अजय सिंह चौहान || महिष्मती यानी आज का महेश्वर नामक नगर या शहर जो मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे और खरगोन जिले में स्थित है, सनातन और पौराणिक काल में राजा सहस्त्रार्जुन की राजधानी हुआ करता था। राजा सहस्त्रार्जुन एक क्षत्रिय राजा था जो हैहय वंश के राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक का पुत्र था। राजा सहस्रार्जुन इतना बलशाली था कि उसने रावण को भी एक युद्ध में पराजित कर बंदी बना लिया था।
हमारे पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि एक बार राज राजेश्वर सहस्त्रार्जुन ने अपनी 500 रानियों के साथ नर्मदा नदी में जलक्रीड़ा करते हुए अपनी एक हजार बलशाली भुजाओं के दम पर नर्मदा नदी के बहाव को रोक लिया था। जबकि उसी समय लंकापति रावण अपने पुष्पक विमान में बैठकर आकाश मार्ग से वहां से गुजर रहा था। सूखी नदी के स्थान को देखकर रावण के मन में वहां शिवपूजा करने की इच्छा हुई!
जब रावण ने बालू रेत से उस सूखी नदी में शिवलिंग बनाकर पूजा करनी शुरू की तो सहस्त्रार्जुन ने जलक्रीड़ा समाप्त होने के बाद नर्मदा का जल बहाव के लिए छोड़ दिया जिसके कारण रावण द्वारा बनाया गया बालू रेत का शिवलिंग पानी में बह गया और उसकी पूजा अधूरी ही रह गई।
इस बात से क्रोधित रावण को जब पता चला कि यहां के राजा सहस्रार्जुन ने ही उसकी शिव पूजा में बाधा उत्पन्न की थी तो रावण ने उसको युद्ध के लिए ललकारा। लेकिन इस युद्ध में रावण को हार स्वीकार करनी पड़ी और महेश्वर के राजा सहस्त्रार्जुन ने रावण को बंदी बना लिया।
हमारे पुराणों में इस बात का वर्णन है कि राजा सहस्त्रार्जुन की रानियां बंदी बनाये गए रावण के दस शीशों पर देसी घी के दीपक जलाती थीं और वे ऐसा इसलिए करतीं थीं क्योंकि दीपक जलाना राजा सहस्त्रार्जुन को बहुत अच्छा लगता था।
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माना यह भी जाता है कि तब से लेकर आज तक महेश्वर में स्थित श्री राज राजेश्वर के उस मंदिर में अखंड 11 दीपक ज्योति पुरातनकाल से प्रज्जवल्लित है। इसके अतिरिक्त इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु प्रसाद के साथ-साथ देसी घी भी अवश्य चढाते हैं, ताकि वह दीपक ज्योति सदैव जलती रहे। आज भी इस हैहयवंशी क्षत्रिय राजा श्री सहस्त्रार्जुन के वंशज और इस समुदाय के लोग महेश्वर क्षेत्र को एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में मानते हैं।
हैहय वंश के क्षत्रिय राजा कार्तवीर्य और रानी कौशिक के पुत्र अर्जुन के नाम के विषय में पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सहस्त्रार्जुन का वास्तविक नाम अर्जुन ही था। और जब अर्जुन ने भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की तो उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान दत्तात्रेय ने अर्जुन से वरदान मांगने को कहा। वरदान के रूप में अर्जुन ने भगवान दत्तात्रेय से एक हजार बलशाली हाथों का आशीर्वाद मांग लिया।
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भगवान दत्तात्रेय से वरदान प्राप्त करने के बाद अर्जुन को एक हजार हाथ प्राप्त हो गए, और इसी के बाद से वह अर्जुन से सहस्त्रार्जुन यानी एक हजार हाथों वाला अर्जुन के नाम से जाना जाने लगा। इसके अलावा पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में सहस्त्रार्जुन को सहस्त्रबाहु और राजा कार्तवीर्य पुत्र होने के कारण कार्तेयवीर्य के नाम से भी उल्लेख मिलता है।
वर्तमान समय में महेश्वर के नाम से प्रसिद्ध इस शहर का उल्लेख रामायण और महाभारत में महिष्मती के नाम से मिलता है। अपने धार्मिक महत्त्वों के कारण यह शहर काशी के समान भगवान शिव की नगरी जितना महत्व रखती है। अपने पौराणिक महत्व में स्कंध पुराण, रेवा खंड, तथा वायु पुराण आदि के नर्मदा रहस्य में इसका महिष्मति नाम से विशेष उल्लेख मिलता है।
ऐतिहासिक महत्त्व में यह शहर भारतीय संस्कृति में स्थान रखने वाले राजा महिष्मान, राजा सहस्त्रबाहू जैसे राजाओं और वीर पुरुषों की राजधानी रहा है। हालांकि, समय के साथ-साथ यह नगरी पौराणिक और ऐतिहास महत्व खोती जा रही थी। लेकिन बाद में, होलकर वंश के कार्यकाल में इसे एक बार फिर प्रमुखता प्राप्त हुई।
महेश्वर के अत्यंत गौरवशाली और पौराणिक महत्व और इतिहास को ध्यान में रखते हुए देवी अहिल्या बाई ने इसे अपनी राजधानी बनाया। देवी अहिल्याबाई होलकर के समय में यहाँ के धार्मिक तथा पौराणिक महत्व के कई मंदिरों को एक बार फिर से संवारा गया।
महेश्वर मंदिरों और देवालयों का नगर है, जिसमें शिव मंदिरों की संख्या सबसे अधिक है। इसीलिए यह स्थान संत और तपस्वी लोगों को बहुत प्रिय लगता है। और इसी कारण इस क्षेत्र को गुप्त काशी भी कहा जाता है। यहां के मुख्य मंदिरों में श्री राजराजेश्वर मंदिर, काशी-विश्वनाथ मंदिर, अहिल्येश्वर महादेव, ज्वालेश्वर महादेव, बाणेश्वर, कालेश्वर शिव मंदिर, सप्तमातृका, कदम्बेश्वर मंदिर आदि हैं। कुछ मंदिर नव निर्मित हैं जो भव्य और आकर्षक भी हैं जिनमें सहस्त्रधारा क्षेत्र में बना दत्तधाम है।
देवी अहिल्या के शासनकाल में महेश्वर में स्थित लम्बा-चैड़ा नर्मदा तट एवं उस पर बने अनेकों सुन्दर घाटों को तरीके से संवारा गया, जिसके कारण आज भी घाटों के किनारे बने मंदिरों और इमारतों के प्रतिबिंब नदी में खूबसूरत दिखाई देते हैं। धर्म, अध्यात्म तथा पर्यटन के लिहाज से यह स्थल म.प्र. शासन द्वारा पवित्र नगरी का दर्जा प्राप्त है। कला, धर्म, अध्यात्मक, संस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को समेटे यह वर्तमान शहर हजारों वर्ष पुराना है।