अजय सिंह चौहान || सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु के अब तक नौ अवतार हो चुके हैं जबकि उनका दसवां अवतार इसी युग यानी कलियुग के अंत में होना तय है जो कल्कि अवतार के नाम से जाना जायेगा। और यह अवतार होगा भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के एक जिले में जिसका नाम सम्भल है। पुराणों में सम्भल को शम्भल के नाम से जाना जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान कल्कि का अवतार होगा। इसी के आधार पर श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान कल्कि की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
कलियुग में उनके दसवें अवतार का इंतजार किया जा रहा है। हालांकि इस अवतार के होने में अभी तो हजारों साल का समय लगेगा। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि जब कलियुग अपने चरम पर होगा उस समय भगवान विष्णु अपना दसवां अवतार लेंगे। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा जो कलयुग और सतयुग के संधिकाल के मध्य में होगा। क्योंकि जब-जब मानव अन्याय और अधर्म के दलदल में खो जाता है, तब भगवान विष्णु उसे सही रास्ता दिखाने के लिए इस धरती पर अवतार लेते हैं।
श्रीमद्भागवत-महापुराण के बारहवें स्कन्द में दिया गया एक श्लोक बताता है कि –
सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।
इस श्लोक का अर्थ यह है कि सम्भल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक ब्राह्मण होंगे, उनका हृदय बड़ा उदार और भगवतभक्ति पूर्ण होगा। साथ ही वे वेदों और पुराणों के महान ज्ञाता भी होंगे। उन्हीं के घर भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगें।
भगवान कृष्ण ने स्वयं ही अर्जुन को अपने दसवें अवतार की जानकारी दी थी। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जब-जब धर्म की हानि होगी मैं स्वयं उसे बचाने, धर्म की रक्षा करने और दुष्टों का नाश करने आऊंगा, क्योंकि यही मेरा कर्तव्य है। इसी के बाद सतयुग का आरंभ भी होगा। भगवान कल्कि देवदत्त नामक एक सफेद घोड़े पर सवार होकर इस संसार के पापियों का विनाश करेंगे और फिर से सनातन धर्म की स्थापना करेंगे। भगवान विष्णु के कल्कि अवतार को निष्कलंक भगवान के नाम से भी जाना जायेगा।
जानकारों का यह भी मानना है कि भगवान कल्कि सफेद उड़न घोड़े पर सवार होंगे तो उसका जो प्रमुख सांकेतिक अर्थ निकलता है उसके अनुसार जब युग बदलेगा तो नये युग रोशनी आएगी और कलियुग का अंधियारा नष्ट हो जायेगा।
श्रीमद्भागवत-महापुराण में सम्भल नाम के जिस स्थान पर भगवान विष्णु का कल्कि रूप में अवतार होना है विद्वानों के अनुसार वर्तमान में उत्तर प्रदेश का यही सम्भल जिला और प्रमुख नगर है। क्योंकि सम्भल का शाब्दिक अर्थ समान रूप से भला या शान्ति करना या शान्ति का होना अर्थात जहाँ शान्ति व अमन हो या शान्ति फैलाने वाला होता है। इसके अलावा भी दूसरे कई कारण है कि भगवान विष्णु का जन्म यहां होने वाला है।
यहां स्वयं ब्रह्याजी ने की थी शिवलिंग की स्थापना | History of Sambhal
सम्भल, एक ऐसा नगर है जिसको लेकर हजारों सालों का धार्मिक इतिहास, पौराणिक मान्यताएं और किंवदंतिया युगों-युगों से चली आ रहीं हैं। पौराणिक ग्रंथों के जानकार बताते हैं कि यह वही सम्भल है जिसका नाम सतयुग में सत्यव्रत था, त्रेता युग में महदगिरि या महेंद्रगिरी था, द्वापर युग में पिंगल था और अब इस कलयुग में यह सम्भल के नाम से प्रसिद्ध है। यूगों-युगों के प्रमाण और साक्ष्य आज भी यहां प्रत्यक्ष देखने को मिलते हैं।
सम्भल में भगवान विष्णु के कल्कि रूप में अवतार लेने की बात को हमारे सभी प्रमुख धर्मग्रंथों में प्रमुखता से स्थान दिया गया और उसी का अनुसरण करते हुए महान हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चैहान ने भी अपने शासनकाल में इसे अखण्ड भारत और सनातन धर्म के लिए प्रमुख तीर्थस्थल और पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करवाया और इसे अपनी राजधानी का दर्जा भी दिया था।
गुरू गोविंद सिंह जी ने भी सम्भल में होने वाले कल्कि अवतार का जिक्र अपने दशम ग्रन्थ में किया है। इसके अलावा सम्भल में भगवान विष्णु के अवतार से पहले ही देश के सभी संतों की सहमती से श्री कल्किपीठ की स्थापना हो चुकी है।
इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने भी जब पुराणों में लिखित उस कल्कि अवतार के विषय में पढ़ा और सुना तो उन्होंने स्वयं यहां आकर एक बहुत ही सुन्दर कल्कि मंदिर की स्थापना करवाई थी। जो आज भी देखा जा सकता है।
हालांकि, यहां एक कल्किधाम मंदिर के निर्माण की योजना भी पिछले कई सालों से अधुरी ही पड़ी हुई है, क्योंकि स्थानीय मुस्लिम समाज के कुछ दबंग नेताओं ने किसी न किसी तरह उस निर्माण की योजना पर रोक लगवा रखी हुई है।