भारतीय सभ्यता-संस्कृति में अनादिकाल से ही लोगों को सदैव यह बताया जाता रहा है कि मदिरा से व्यक्ति का न सिर्फ शरीर और अर्थ बर्बाद होता है, बल्कि उसकी आत्मा भी अपवित्र हो जाती है। मदिरा के नशे में व्यक्ति क्या-क्या कर सकता है, यह सभी को पता है। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह उठता है कि जब मदिरा से कोई लाभ नहीं है और उसके नुकसान ही नुकसान हैं तो शासन-प्रशासन के स्तर पर इसे बढ़ावा देने का कार्य क्यों किया जाता है? गुजरात एवं बिहार जैसे राज्यों में तो मदिरा पर पूरी तरह से प्रतिबंध है, उसके बावजूद वहां किसी न किसी बहाने तमाम लोग शराब का जुगाड़ कर ही लेते हैं। जिन राज्यों में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध है, वहां जब लोग जुगाड़ कर लेते हैं तो उन राज्यों में क्या होगा, जहां इस पर पूरी तरह छूट होगी।
हम सभी को पता है कि पंजाब एवं कुछ अन्य प्रांतों के युवा किस कदर नशे की चपेट में हैं। इस दृष्टि से यदि देश की राजधानी दिल्ली की बात की जाये तो यहां की सरकार ने दिल्ली को पूरी तरह शराब नगरी बनाने का मन बना लिया है। यह बात कही-सुनी बातों पर आधारित नहीं है बल्कि ऐसा कहने एवं लिखने के पीछे कुछ ठोस वजह है। दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति का विश्लेषण करने के बाद तो कुछ ऐसा ही कहने एवं लिखने के लिए विवश होना पड़ रहा है।
दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति के मुताबिक दिल्ली में 849 शराब के ठेके खुल रहे हैं, जबकि इसके पहले दिल्ली में शराब की लगभग 260 दुकानें थीं। चुनाव से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री आरविंद केजरीवाल कहा करते थे कि अगर मोहल्ले की महिलाएं मना करेंगी तो शराब के ठेके नहीं खुलेंगे, किन्तु आज स्थिति यह है कि न तो महिलाओं की सुनी जा रही है, न ही आर.डब्ल्यू.ए. एवं अन्य संगठनों की कोई बात सुनी जा रही है।
सत्ता में आने से पहले केजरीवाल ने अपनी पुस्तक ‘स्वराज’ में लिखा था कि वह रिहायशी क्षेत्रों में शराब की नई दुकानें नहीं खुलने देंगे। दिल्ली सरकार की नई नीति से पहले 80 नगर निगम वार्डों में एक भी शराब की दुकान नहीं थी किंतु अब नई आबकारी नीति के तहत दिल्ली के सभी 280 वार्डों में शराब की तीन-तीन दुकानें खोली जा रही हैं। इसके अलावा रेस्टाॅरेंट, बार, होटल, बैंक्वेट हाल, हवाई अड्डे, माल और ऐसे अनेक स्थानों पर शराब के अड्डों को खोलने की इजाजत दी गई है। इस तरह देखा जाये तो दिल्ली में शराब की बिक्री लगभग चार हजार स्थानों पर होने लगेगी।
पहले की आबकारी नीति के तहत विद्यालयों, धार्मिक स्थलों एवं अस्पतालों के करीब शराब की दुकानें नहीं खुलती थीं किन्तु अब विद्यालयों, धार्मिक स्थलों एवं अस्पतालों के आस-पास भी शराब की नई दुकानें खुल रही हैं। यदि विश्लेषण किया जाये तो स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि इससे कानून व्यवस्था तो बिगड़ेगी ही, साथ ही साथ कितने घर-परिवार बर्बाद होंगे, इस संबंध में कुछ कहना मुश्किल है। आज दिल्ली का प्रत्येक निवासी यह जानना चाहता है कि आखिर दिल्ली सरकार दिल्ली को शराब के नशे में क्यों डुबाना चाहती है?
बात सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। दिल्ली सरकार ने शराब के ठेकेदारों का कमीशन दो प्रतिशत से बढ़ाकर बारह प्रतिशत कर दिया है। बताया तो यहां तक जा रहा है कि ठेकेदारों का कमीशन दस प्रतिशत बढ़ाने के एवज में केजरीवाल सरकार ने भारी भ्रष्टाचार एवं घोटाला किया है। वास्तव में एक बात विचारणीय यह है कि जब ठेकेदार दो प्रतिशत कमीशन पर ही काम करके खुश थे तो उसे बढ़ाकर बारह प्रतिशत क्यों किया गया? ऐसे में लोगों के मन में आशंका पैदा होना स्वाभाविक है कि ठेकों के आवंटन में हेरा-फेरी या लेन-देन का खेल जरूर हुआ होगा।
लोगों की समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर दिल्ली सरकार दिल्ली में शराब के इतने अधिक ठेके बढ़ाने में रुचि क्यों ले रही है? पंजाब के पिछले विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल वहां जाकर कहा करते थे कि पंजाब में यदि उनकी सरकार आई तो पंजाब को नशामुक्त किया जायेगा, किन्तु क्या दिल्ली को नशामुक्ति की आवश्यकता नहीं है।
प्राचीन काल से ही एक कहावत प्रचलित है कि यदि किसी का घर बिगाड़ना हो तो पहले अपना पैसा लगाकर उसके घर के बच्चों को शराब पीने की आदत डलवाई जाये। जब उस घर के बच्चे शराब पीने के पूर्ण रूप से आदी हो जायेंगे तो फिर अपने आप शराब की जुगाड़ कहीं न कहीं से स्वतः कर लेंगे, इसके बाद तो कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
भारत में अनेक ऐसे लोग हैं जो अपने पड़ोसियों का घर बर्बाद करने के लिए इसी तरह की योजना उपयोग में लाते हैं। यह बात सभी को पता है कि शराब एक ऐसी बुराई है जो दूसरी बुराइयों को जन्म देती है। इससे समाज में अपराध बढ़ता है, लोगों का स्वास्थ्य खराब होता है, सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती हैं। लोगों की शारीरिक क्षमता घटती है। जब लोगों की शारीरिक क्षमता घटेगी तो उससे राष्ट्रीय उत्पादकता भी प्रभावित होगी। अंततोगत्वा इसका प्रभाव देश पर ही पड़ता है।
शराब से घरेलू हिंसा बढ़ती है, घर-परिवार की आर्थिक स्थिति चैपट होती है और इससे सबसे बुरा प्रभाव देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर पड़ता है। बिहार में जब पूर्ण शराबबंदी लागू हुई तो उसके बाद वहां एक सर्वे के माध्यम से देखने को मिला कि अपराध में भारी कमी आई, महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ, घरेलू हिंसा में कमी आई, बच्चों की स्थिति सुधरी। पहले जब शराबबंदी नहीं थी तो कमाई का बड़ा हिस्सा लोग शराब पीने में लगा दते थे जिससे घर की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चैपट हो जाती थी।
बिहार में तो यहां तक देखने को मिला कि शराबबंदी के बाद रोड एक्सीडेंट में 58 प्रतिशत की कमी आई और अपराधों में 57 प्रतिशत की कमी आई है। इसके साथ ही लीवर और किडनी की बीमारी में 34 प्रतिशत की कमी आई है। साथ ही घरेलू हिंसा में भी 54 प्रतिशत की कमी आई है।
अब सवाल यह उठता है कि जिन राज्यों में पूर्ण शराबबंदी है तो वहां की अर्थव्यवस्था क्या पूर्ण से रूप से ध्वस्त हो चुकी है? जब वहां की सरकारें बिना शराब की कमाई के शासन-प्रशासन ठीक से चला सकती हैं तो दिल्ली सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती? अतः दिल्ली सरकार को अपनी नई आबकारी नीति पर पुनः विचार करना चाहिए जिससे राजधानी दिल्ली को शराब नगरी बनाने से बचाया जा सके।
– हिमानी जैन, मंत्री- भारतीय जनता पार्टी, दरियागंज मंडल, दिल्ली प्रदेश