अजय सिंह चौहान || कहा जाता है कि दक्षिणी भारत की भूमि को भगवान ने खास तौर पर सनातन जीवन पद्धति और सनातन यानी हिंदू धार्मिक हितों के विशेष स्थानों के साथ बनाया है। तभी तो प्राचीनकाल से ही दक्षिण भारत का आम जनमानस ही नहीं बल्कि यहां के नगर और प्राचीन मंदिर न केवल अध्यात्म और बुद्धि के प्रतिक रहे हैं बल्कि स्थापत्य की समृद्ध कला और परंपरा का भी जीवंत प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। इसीलिए कहा जाता है कि यदि भारत के आश्चर्यों को देखना हो, इंक्रेडिबल इंडिया को देखना हो तो दक्षिण भारत में जा कर ही देखा जा सकता है।
दक्षिण भारत की इसी समृद्ध परंपरा को देखते हुए आज यहां हम बात करने वाले हैं दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के चिकमंगलूर जिले की श्रृंगेरी तहसील की। इसी श्रृंगेरी तहसील में स्थित है पवित्र श्रृंगेरी मठ। इस श्रृंगेरी मठ का महत्व आज हिंदू धर्म के चारों धामों और बारह ज्योतिर्लिंगों से कहीं बढ़ कर माना जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी मठ के कारण आज हम और हमारी यह सनातन सभ्यता जीवित है। वर्ना तो मुगलों ने, अंग्रेजों ने और फिर सन 1947 के बाद से आज तक की सभी सरकारों ने इसे नष्ट करने के लिए क्या-क्या उपाय नहीं किये। लेकिन, हम आभारी हैं इस श्रृंगेरी मठ के और इस मठ को स्थापित करने वाले आदि शंकराचार्य जी के जिन्होंने 8वीं शताब्दी में ही भविष्य के खतरों को पहले ही भांप लिया था।
शृंगेरी (Sri Sringeri Sharada Peetham Karnataka) से जुड़े संक्षिप्त इतिहास की बात करें तो, शृंगी गिरि, यानी आज का यह शृंगेरी नगर एक अति प्राचीन नगर है, और इसको यह नाम यहां से करीब 12 किमी दूर स्थित शृंगगिरि नामक एक छोटी पहाड़ी से मिला है जिसके बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहां शृंगी ऋषि का जन्म हुआ था, इसलिए उन्हीं के नाम पर इस स्थान को शृंगेरी गिरि नगर नाम दिया गया। इसी छोटी सी पहाड़ी पर आज भी शृंगी ऋषि के पिता विभांडक के नाम पर एक आश्रम बना हुआ है। शृंगी ऋषि का नाम आम बोलचाल और साधारण भाषा में धीरे-धीरे अपभ्रंश होता गया और अब यह ‘शृंगी गिरि’ से ‘शृंगेरी’ का रूप ले चुका है। तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित यह शृंगेरी नगर अब धीरे-धीरे एक आधुनिक शहर में बदलता दिख रहा है।
8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने यहाँ अपने कुछ दिनों के प्रवास के दौरान शृंगेरी तथा शारदा मठों की स्थापना की थी और आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित तथा आदि वेदान्त से संबंधित चार प्रमुख मठों में शृंगेरी मठ ही प्रथम मठ है जिसके कारण सनातन को नया जीवन मिला।
आठवीं शताब्दी से चली आ रही ‘श्रृंगेरी मठ’ और आदि शंकराचार्य की उसी शिष्य परंपरा में यहां 14वंी शताब्दी के उस दौर में ऋषि विद्यारण्य को यहां श्रृंगेरी मठ के 12वें शंकराचार्य के तौर पर स्थान प्राप्त था। शंकराचार्य श्री विद्यारण्य ऋषि ‘विजयनगर साम्राज्य’ की वंश परंपरा से आने वाले हरिहर और बुक्का नाम के उन दो भाईयों के गुरु भी थे इसलिए वे यहां शासन चलाने में उन दोनों भाईयों की मदद कर रहे थे।
हरिहर और बुक्का नामक ये वही दो भाई थे जिन्होंने विजयनगर में स्वतंत्र हिंदू साम्राज्य की स्थापना की थी। हरिहर और बुक्का के पिता का नाम संगम, जो होसाला शासकों के दरबार के एक सरदार हुआ करते थे। हरिहर और बुक्का ने विजयनगर में स्वतंत्र हिंदू साम्राज्य की स्थापना करने के बाद उसे इतना समृद्धशाली बना दिया था कि दक्षिण भारत के इतिहास में यह उस समय का सबसे प्रसिद्ध और समृद्धशाली साम्राज्य था। और यह सब संभव हुआ उनके गुरु और शंकराचार्य श्री विद्यारण्य ऋषि के कारण।
शंकराचार्य श्री विद्यारण्य ऋषि के निधन के बाद हरिहर और बुक्का ने उनकी स्मृति के तौर पर उनकी समाधि के ऊपर एक मंदिर का निर्माण करवाया और उसे नाम दिया ‘विद्याशंकर मंदिर’। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार ‘विद्याशंकर मंदिर’ का निर्माणकाल 1338 ई. का बताया जाता है। इस हिसाब से यह मंदिर आज से लगभग 685 वर्ष पूर्व बन कर तैयार हुआ था। इस मंदिर में एक ऐसी खुबी है जो इसे सातों अजूबों से भी बढ़ा बनाती है।
आयातकार आकृति में बने इस मंदिर का मुख्य आकर्षण इसके वो 12 स्तंभ हैं जिन पर सौर्य चिन्ह बने हुए हैं जो 12 राशि चक्रों को प्रदर्शित करते हैं। इन सभी 12 स्तंभ के 12 राशि चक्र की रूपरेखा खगोलीय अवधारणाओं को आधार मान कर तैयार की गई है। प्रत्येक सुबह जब सूरज की किरणें मंदिर में प्रवेश करती हैं तो वे वर्ष के उसी महीने का संकेत देने वाले एक विशेष स्तंभ से टकराती हैं। इसकी यही खुबी हमें इस संपूर्ण पृथ्वी पर कहीं ओर देखने को नहीं मिलती।