वर्तमान समय में यदि वैश्विक परिस्थितियों का आंकलन किया जाये तो देखने में आता है कि क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुरूप अनेक प्रकार की समस्याएं विद्यमान हैं और इन समस्याओं के निदान के लिए वैश्विक एवं क्षेत्रीय स्तर पर अनेक संगठनों का गठन हुआ है। विश्व की तकरीबन सभी समस्याओं के समाधान एवं उसकी चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन (यू.एन.ओ.) हुआ है। स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी (डब्ल्यू. एच. ओ.) का गठन किया गया है। इसी प्रकार वैश्विक एवं क्षेत्रीय स्तर पर अपनी सहूलियत के हिसाब से अनेक संगठनों का निर्माण हुआ है। जी-20, ब्रिक्स, जी-7, राष्ट्रमंडल खेल, यूरोपीय संघ, उत्तरी एटलांटिक संधि संगठन (नाटो), आसियान, क्वाड, ओपेक आदि तमाम तरह के प्रमुख क्षेत्रीय संगठन अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सक्रिय रूप से अस्तित्व में हैं।
इन संगठनों की स्थापना क्यों की गई है, यह एक व्यापक विषय है किन्तु मोटे तौर पर देखा जाये तो इन सभी संगठनों का एक ही मकसद है कि अशांति का वातावरण न बनने पाये, पूरे विश्व में अमन-चैन स्थापित हो और निरंतर प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका को मिलाकर बने संगठन ब्रिक्स की बात की जाये तो यह आर्थिक, पीपल-टू-पीपल एक्सचेंज, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग के लिए स्थापित किया गया है। इस संगठन में शामिल देश दुनिया की 42 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी प्रकार जी-7 जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैंड और अमेरिका सम्मिलित हैं। इसकी स्थापना 1975 में हुई थी। जी-7 स्वतंत्रता, मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और कानून के शासन की बात करता है।
‘राष्ट्रमंडल खेल’ की बात की जाये तो इसकी स्थापना 1930 में हुई थी। यह खेल प्रत्येक चार साल बाद होता है। इसमें मूल रूप से वे देश हैं जो कभी ब्रिटिश औपनिवेशिक वयवस्था के अंग थे। उन्हें खेलों के माध्यम से जोड़े रखना है, साथ ही इसका उद्देश्य लोकतंत्र, साक्षरता, मानवाधिकार, बेहतर प्रशासन, मुक्त व्यापार और विश्व शांति को बढ़ावा देना है। इसी प्रकार 27 यूरोपीय देशों को मिलाकर ‘यूरोपीय संघ’ बना है। इसकी स्थापना 1 नवंबर 1993 को हुई थी। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो की बात की जाये तो इसकी स्थापना 4 अपै्रल 1949 को हुई। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। मूल रूप से यह एक अंतर सरकारी सुरक्षा संगठन है। इसमें वर्तमान में 29 देश हैं। आजकल यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर नाटो चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि यूक्रेन नाटो में शामिल होना चाहता है जबकि रूस इस बात का विरोध कर रहा है। इस प्रकार जितने भी संगठन बने हैं, चाहे वे वैश्विक स्तर पर हों या क्षेत्रीय स्तर के सभी का अपना मकसद है।
इस दृष्टि से भारत की बात की जाये तो अतीत में भारत विश्व गुरु रह चुका है यानी भारत पूरी दुनिया को ज्ञान दिया करता था। यदि भारत विश्व गुरु रह चुका है तो वह फिर से विश्व गुरु बनने की दिशा में कदम बढ़ा सकता है किन्तु इस संबंध में बार-बार यह सवाल उठता है कि आखिर यह कैसे संभव होगा? वास्तव में आज के वैज्ञानिक युग की बात की जाये तो चाहे उसने जितनी भी तरक्की कर ली हो किन्तु वह सिर्फ उन्हीं विषयों पर रिसर्च कर रहा है जो हमारे ऋषि-मुनि और विद्वान अतीत में हमें बता चुके हैं। आज यदि आवश्यकता है तो सिर्फ इस बात की कि हम फिर से उस पर अमल करें। इस संबंध में वर्तमान सरकार की बात की जाये तो वह श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देशवासियों को अपने अतीत से जोड़कर प्राचीन सभ्यता-संस्कृति की ओर ले जाना चाहती है। इतिहास की गलत जानकारियों को फिर से दुरुस्त करना चाहती है। विभिन्न क्षेत्रों में जो हमारी महान विरासत है, उसको सहेजना चाहती है।
अपने अतीत, अपनी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान,ज्योतिष, स्वास्थ्य, शिक्षा, चिकित्सा, अमूल्य धरोहरों, आदि के माध्यम से पूरी दुनिया में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के रास्ते पर ले जाने का कार्य यदि कोई कर सकता है तो वह महान कार्य सिर्फ भारत ही कर सकता है किन्तु उसके लिए जरूरत इस बात की है कि भारत अतीत में रहे अपने साथ के देशों को एक कामन प्लेटफार्म पर लाये, किसी संगठन या समूह के माध्यम से उनके साथ सामंजस्य स्थापित करे और कुछ प्रमुख कामन मुद्दों को लेकर आगे बढ़े किन्तु बार-बार प्रश्न यह उठता है कि अखंड भारत के कुल कितने देश बन चुके हैं? इस संबंध में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पूरे तथ्य एवं जानकारियों के साथ पहुंचना आसान काम नहीं है किन्तु मोटे तौर पर बात की जाये तो भारत के अतिरिक्त आफगानिस्तान, भूटान, फिलीपींस, ईरान, बांग्लादेश, कंबोडिया, म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया, तिब्बत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, मालद्वीव, सिंगापुर, बु्रनेई, लाओस एवं वियतनाम जैसे देश अखन्ड भारत के अंग रह चुके हैं।
इन सभी देशों का राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, प्राकृतिक संसाधनों एवं अन्य उपलब्धियों की दृष्टि से विशेष महत्व है। समग्र रूप से यदि विचार किया जाये तो ये सभी मिलकर पूरे विश्व को समग्र रूप से दिशा देने का काम कर सकते हैं। जिस प्रकार वैश्विक एवं क्षेत्रीय स्तर पर अनेक संगठनों का गठन हुआ है, उसी तर्ज पर यदि अखंड भारत के देशों को मिलाकर यदि कोई नया समूह या संगठन बने तो इन देशों के साथ-साथ पूरे विश्व का कल्याण हो सकता है और वैश्विक स्तर पर शांति की स्थापना हो सकती है। इस मामले में निश्चित रूप से पहल तो भारत को ही करनी होगी या यूं कहें कि इन देशों के साथ भारत को बड़े भाई की भूमिका निभानी होगी। हालांकि, यह काम कठिन तो जरूर है किन्तु असंभव नहीं है।
अखंड भारत के सभी देश कला-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, प्राकृतिक आपदा, व्यापार, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा एवं कुछ अन्य मुद्दों को लेकर आपस में एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं और इन मामलों में सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं। एक दूसरे के सुख-दुख में भागीदार हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर श्रीलंका में आये संकट के मद्देनजर भारत ने काफी मदद की है। कोरोना काल में दुनिया के कई देशों को वैक्सीन देने का काम किया है। वैसे भी भारत का व्यवहार अपने पड़ोसी देशों के साथ सदा मित्रवत ही रहा है। ये सभी देश मिलकर आपस में व्यापार की जटिल उलझनों को सुलझा सकते हैं। यदि ये सभी आंशिक रूप से भी कुछ मुद्दों को लेकर एक प्लेटफार्म पर आते हैं तो दुनिया की कोई भी महाशक्ति इनमें से किसी भी देश का शोषण नहीं कर पायेगी और भारत के नेतृत्व में अखंड भारत के सभी देशों का आत्मविश्वास भी काफी ऊंचा होगा। जहां तक मेरा विचार है, इस संबंध में भारत को आगे बढ़कर इस दिशा में कार्य करना चाहिए और मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि इस काम में कामयाबी निश्चित रूप से मिलेगी।
वैसे भी पूरी दुनिया में कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान नहीं किया जा सके। अब सवाल यह उठता है कि अखंड भारत में कितने देश थे, यदि इस बात पर कहीं से कोई विवाद हो तो कम से कम उन देशों को साथ लेकर काम किया जा सकता है जिन पर पूरी तरह स्पष्टता हो। वैसे वर्तमान भारत की बात की जाये तो क्षेत्रफल की दृष्टि से दुनिया का सातवां बड़ा देश है। आजादी से पहले भारत से कुल 15 देश अलग हुए हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत कितना बड़ा देश रहा होगा? ये सभी देश एक साथ अलग नहीं हुए हैं बल्कि धीरे-धीरे अलग हुए हैं। इनमें कुछ देश राजाओं की वजह से अलग हुए तो कुछ अंग्रेजों की कूटनीति की वजह से अलग हुए। भारत से सबसे बाद में अलग होने वाले देश पाकिस्तान एवं बांग्लादेश हैं।
इतिहास की बात की जाये तो विगत 2500 वर्षों में आज तक इस बात का उल्लेख कहीं नहीं मिलता कि भारतवर्ष पर जो आक्रमण हुए वे अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका व नेपाल, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान, मालद्वीप या बांग्लादेश पर हुआ हो। वर्ष 1857 से 1947 तक हिन्दुस्तान के कई टुकड़े हुए और इस तरह बन गये सात नये देश। वर्ष 1947 में बना पाकिस्तान भारत का पिछले 2500 वर्षों में एक तरह से 24वां विभाजन था। पाकिस्तान एवं बांग्लादेश का इतिहास तो सभी जानते हैं किन्तु बाकी देशों के इतिहास की चर्चा नहीं होती।
अखंड भारत यानी आर्यावर्त की बात की जाये तो इसकी सीमा में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, बांग्लादेश, बर्मा, इंडोनेशिया, कंबोडिया, वियतनाम, जावा, सुमात्रा, मालद्वीव और अन्य कई छोटे-बड़े क्षेत्र हुआ करते थे। हालांकि, सभी क्षेत्र के राजा अलग-अलग होते थे किन्तु कहलाते थे सभी भारतीय जनपद। आज इस संपूर्ण क्षेत्र को अखंड भारत इसलिए कहा जाता है क्योंकि अब यह खंड-खंड हो चुका है और आज हम जिसे भारत कहते हैं, दरअसल उसका नाम हिन्दुस्तान है। हकीकत में अखंड भारत की सीमाएं विश्व के बहुत बड़े भू-भाग तक फैली हुई थीं।
इतिहास की किताबों में हिन्दुस्तान की सीमाओं का उत्तर में हिमालय व दक्षिण में हिंद महासागर का वर्णन है लेकिन पूर्व व पश्चिम की जानकारी नहीं है। कैलाश मान सरोवर से पूर्व की ओर जायें तो वर्तमान इंडोनेशिया और पश्चिम की ओर जायें तो वर्तमान में ईरान देश या आर्यान प्रदेश हिमालय के अंतिम छोर पर है। एटलस के अनुसार जब हम श्रीलंका या कन्याकुमारी से पूर्व व पश्चिम की ओर देखेंगे तो हिन्द महासागर इंडोनेशिया व आर्यान (ईरान) तक ही है। इन मिलन बिंदुओं के बाद ही दोनों ओर महासागर का नाम बदलता है। इस प्रकार से हिमालय, हिंद महासागर, आर्यान (ईरान) व इंडोनेशिया के बीच के पूरे भू-भाग को आर्यावर्त अथवा भारतवर्ष या हिंदुस्तान कहा जाता है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाये तो 1857 में भारत का क्षेत्रफल 83 लाख वर्ग किमी था। भारत के 9 पड़ोसी देशों का क्षेत्रफल 33 लाख वर्ग किमी है। वर्ष 1800 से पहले दुनिया के देशों की सूची में वर्तमान भारत के चारों ओर आज जो देश माने जाते हैं, उस समय ये देश नहीं थे। यहां राजाओं का शासन था। यहां की मान्यताएं व परंपराएं बाकी भारत जैसी ही हैं। खान-पान, भाषा-बोली, वेशभूषा, संगीत-नृत्य, पूजा-पाठ, पंथ के तरीके करीब-करीब समान थे। विदेशियों के संपर्क में आने के बाद यहां की संस्कृति बदलने लगी थी।
कुल मिलाकर कहने का आशय यही है कि यदि अखंड भारत के देशों को लेकर कोई संगठन या समूह बनता है तो जीवनशैली सभ्यता-संस्कृति एवं अन्य कई मामलों में इनमें काफी समानता मिल सकती है, क्योंकि जड़ें तो सबकी एक सी हैं और यह बात अपने आप में पूरी तरह सत्य है कि किसी को भी उसकी जड़ों से इतनी आसानी से अलग नहीं किया जा सकता है और यही बात भारत के देशों के साथ-साथ पूरी दुनिया को नई राह दिखा सकती है। पूरे विश्व को सिर्फ नई राह ही नहीं मिलेगी बल्कि पूरे विश्व में शांति एवं ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भी भावना आगे बढ़ेगी। वास्तव में आज पूरे विश्व को इसी की आवश्यकता है।
– अरूण कुमार जैन (इंजीनियर)