अजय सिंह चौहान || भगवान शिव के कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध देवालयों में से एक है ‘‘मुक्तेश्वर महादेव मंदिर’’। यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले की एक सबसे ऊंची पहाड़ी पर मौजूद है। यह मंदिर “मुक्तेश्वर धाम’’ या ‘‘मुक्तेश्वर महादेव” के नाम से भी पहचाना जाता है। इस मंदिर की स्थापना के प्रमाण हजारों वर्ष पूर्व के पौराणिक ग्रंथों में भी मौजूद है। इसके अलावा पौराणिक तथ्यों के अनुसार ‘‘मुक्तेश्वर महादेव’’ के इस मंदिर को भगवान शिव के 18 प्रमुख शिव मंदिरों में भी स्थान प्राप्त है। लेकिन बावजूद इसके आज भी कुछ लोग न जाने क्यों इसका इतिहास लगभग 350 वर्षों का ही बताते आ रहे हैं। जबकि कुछ लोग ये भी मानते हैं कि यहां की जो वर्तमान मंदिर संरचना बनी हुई है वह 350 वर्ष पुरानी है जिसके कारण अधिकतर लोग इसी भ्रम में होते हैं कि इस मंदिर की स्थापना को भी मात्र 350 वर्ष ही हुए हैं। लेकिन, वास्तव में तो यह मंदिर यहां युगों-युगों से स्थापित है।
मुक्तेश्वर महादेव जी का यह मंदिर नैनीताल से करीब 50 किमी की दूरी पर मुक्तेश्वर नामक एक पहाड़ी पर मौजूद है। नैनीताल आने वाले अधिकतर पर्यटक और शिवभक्त यहां आकर दर्शन करना पसंद करते हैं।
इस मंदिर के प्रांगण में भगवान शिव के प्रमुख मंदिर के अलावा, हनुमान, ब्रह्मा, माता पार्वती और भगवान विष्णु के अन्य मंदिर भी स्थिापित हैं। दर्शनार्थियों के लिए वर्षभर खुला रहने वाला यह मंदिर शिव भक्तों के लिए सबसे प्रिय स्थानों में से एक माना जाता है। भले ही यहां सर्दियों के मौसम में कम तापमान के कारण भक्तों की संख्या कम हो जाती है लेकिन, अन्य दिनों में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की वार्षिक संख्या लाखों में होती है।
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर एक धार्मिक स्थल होने के साथ ही एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। क्योंकि यहां के आस-पास की तमाम पहाड़ियों के प्राकृतिक दृश्य सैलानियों का मन मोह लेते हैं। अगर आप भी श्रद्धा, भक्ति, आस्था और पर्यटन का एक साथ आनंद लेना चाहते हैं तो आपको इस मंदिर की यात्रा अवश्य करनी चाहिए और यहां की प्रकृति के लुभावने दृश्यों का आनंद लेना चाहिए।
मुक्तेश्वर महादेव का यह मंदिर समुद्र तल से करीब 2,312 मिटर यानी करीब 7,585 फिट की ऊंचाई पर स्थापित है। प्रकृति प्रेमियों के लिए मंदिर के प्रांगण से आसपास का दृश्य शांत और अद्भुत नजर आता है। इसके अलावा यह मंदिर सूर्योदय के सुन्दर दृश्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। साथ ही यहां से नंदकोट, नंदा घुंटी, त्रिशूल और नंदा देवी जैसी विश्व प्रसिद्ध बर्फ से ढकी महत्वपूर्ण दिव्य हिमालय पर्वत श्रृंखला के भी दर्शन किये जा सकते हैं।
आज भी कुछ लोग न जाने क्यों इसका इतिहास लगभग 350 वर्षों का ही बताते आ रहे हैं। वास्तव में तो यह मंदिर यहां युगों-युगों से स्थापित है।‘मुक्तेश्वर महादेव मंदिर’’ में ‘‘मुक्तेश्वर’’ का अर्थ है, वह भगवान जो सभी कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं। क्योंकि इस मंदिर स्थल के बारे में पौराणिक मान्यताएं हैं कि आज भी भगवान शिव स्वयं कभी-कभी इस स्थान पर मनुष्य रूप में आकर तपस्या किया करते हैं। इसके अलावा यहां यह भी माना जाता है कि बाबा गोरखनाथ जी भी यहां तपस्या किया करते थे। तभी तो यहां आने वाले अधिकतर शिवभक्त इस स्थान को सबसे अधिक ध्यान और योग के लिए पहचानते हैं। इसके अलावा कहा जाता है कि द्वापर युग में यहां स्वयं पांडवों ने भी मंदिर में आकर भगवान मुक्तेश्वर के दर्शन किये थे।
पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार मुक्तेश्वर महादेव जी का यह मंदिर यहां अनंतकाल से स्थापित है। इस मंदिर के बारे में एक पौराणिक कथा कही जाती है जिसके अनुसार एक बार एक दानव और भगवान शिव के बीच युद्ध हो रहा था। परिणामस्वरूप वह दानव भगवान शिव के हाथों इसी स्थान पर मुक्ति को प्राप्त हुआ था, जिसके बाद इस स्थान पर देवताओं ने शिवलिंग की स्थापना की और उसको नाम दिया ‘‘मुक्तेश्वर महादेव’’। उसके बाद इस स्थान पर सर्वप्रथम भव्य मंदिर का निर्माण वास्तुशिल्प राजा ययाति प्रथम द्वारा किया गया था। उसके बाद से तो यहां अनेकों बार मंदिर संरचना का जिर्णोद्धार हो चुका है, और जो वर्तमान मंदिर संरचना बनी हुई है वह भी करीब 350 वर्ष पुरानी बताई जाती है।
मुक्तेश्वर महादेव के इस वर्तमान मंदिर संरचना की वास्तुकला कलिंग शैली के प्रारंभिक दौर की बताई जाती है। कलिंग शैली के निर्माण की उस समय की यह वास्तुकला सबसे प्रमुख, सबसे प्राचीन और विशेष शैलियों में से एक मानी जाती है। इसीलिए भारत के संरक्षित मंदिर स्मारकों की सूची में इसे स्थान दिया गया है।
हालांकि, मुक्तेश्वर महादेव का यह मंदिर कोई विशाल आकार वाला नहीं, बल्कि लगभग 35 फीट की ऊंचाई वाली एक साधारण लेकिन, मान्यताओं के आधार पर एक दिव्य और पौराणिक महत्व के विशेष स्थान पर बना हुआ है। इस मंदिर संरचना की खिड़कियां आकर्षक और नक्काशीदार हैं। मंदिर की दिवारों पर पंचतंत्र की कहानियों से लिए गये कुछ पात्रों को दर्शाया गया है। पूरा मंदिर एक प्राचीन भारतीय वास्तुकला का मिश्रण कहा जा सकता है।
यहां मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के अलावा अन्य स्थानों की बात करें तो मंदिर के ठीक बगल से करीब ढाई सौ मीटर पैदल चलने के बाद ‘चैली की जाली’ नाम से एक प्रसिद्ध ‘व्यूव प्वाइंट’ भी है जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। ‘चैली की जाली’ से आप सामने का प्राकृतिक दृश्य और बर्फीले पर्वतों को साक्षात देख सकते हैं।
‘जीरो प्वाइंट’ से सामने नजर आने वाले पर्वतों में यहां से विश्व प्रसिद्ध नंदकोट, नंदा घुंटी, त्रिशूल और नंदा देवी जैसी विश्व प्रसिद्ध बर्फ से ढकी दिव्य हिमालय पर्वत श्रृंखला के भी दर्शन किये जा सकते हैं।इसके अलावा मुक्तेश्वर महादेव मंदिर से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर ‘जीरो प्वाइंट’ के नाम से एक अन्य प्रसिद्ध स्थान भी है। ‘जीरो प्वाइंट’ से सामने नजर आने वाले पर्वतों में यहां से विश्व प्रसिद्ध नंदकोट, नंदा घुंटी, त्रिशूल और नंदा देवी जैसी विश्व प्रसिद्ध बर्फ से ढकी दिव्य हिमालय पर्वत श्रृंखला के भी दर्शन किये जा सकते हैं।
अगर आप नैनीताल के बजाय मुक्तेशर धाम के पास ही में ठहरना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि यहां ‘जीरो प्वाइंट’ पर स्थित के.एम.वी.एन. यानी कुमाऊं मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस बने हुए हैं जहां आपको पहले ही बुकिंग करवानी पड़ती है। हालांकि, अधिकतर पर्यटक नैनीताल में ही रूकना पसंद करते हैं लेकिन, एकांत वातावरण और प्राकृतिक नजारों को पसंद करने वाले अधिकतर यानी यहीं आकर रूकते हैं।
मुक्तेश्वर धाम मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय –
आप जब कभी भी मुक्तेश्वर मंदिर जाने की योजना बनायें तो ध्यान रखें कि यहां जाने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से अप्रैल के महीनों के बीच का होता है, जबकि दिसंबर और जनवरी के महीने में यहां सर्दियों के कारण तापमान शुन्य तक भी पहुंच जाता है। इसके अलावा मानसून के मौसम में यहां जाने से बचना चाहिए, क्योंकि पहाड़ों में होने वाली बारिश कई बार भयंकर रूप ले लेती है।
मुक्तेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे –
मुक्तेश्वर महादेव जी के मंदिर तक जाने के लिए जब आप नैनीताल शहर से मुक्तेश्वर मंदिर के लिए निकलते हैं तो आपको भवाली, कर्णप्रयाग और अल्मोड़ा की तरफ जाने वाली सड़क से आगे को बढ़ना होता है। इसी सड़क पर रास्ते में आता है भवाली नामक एक गांव। भवाली से उल्टे हाथ की तरफ को एक रास्ता अल्मोड़ा और रानी खेत की तरफ को जाता है और सीधे हाथ वाला रास्ता मुक्तेश्वर धाम मंदिर की ओर।
जैसे-जैसे आप मुक्तेश्वर धाम की ओर बढ़ते जायेंगे आपको घने जंगलों से होकर जाने वाले इस मार्ग से हिमालय के ऊंचे-ऊंचे बर्फीले पर्वतों के दर्शन भी होते जायेंगे। मुक्तेश्वर पहुंचने से करीब 5 किमी पहले ही ठीक रास्ते में एक अन्य मंदिर में भी आप दर्शन कर सकते हैं और यह मंदिर है ‘दत्तात्रेय साईनाथ मंदिर’। यह मंदिर वैसे तो नया है लेकिन, इसकी मान्यता और महत्व युगों पहले का बताया जाता है। आप चाहे तो यहां भी रात्रि विश्राम के लिए ठहर सकते हैं।
दत्तात्रेय साईनाथ मंदिर से सड़क मार्ग से करीब 5 किमी आगे चलने पर ठीक सामने ही नजर आने लगता है समुद्र तल से करीब 2,312 मिटर यानी करीब 7,585 फिट की ऊंचाई पर स्थित मुक्तेश्वर महादेव मंदिर का प्रवेश द्वार। इस प्रवेश द्वार से करीब 100 सीढ़ियां चढ़ने के बाद आप पहुंच जाते हैं मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में।
मुक्तेश्वर महादेव का यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले की एक ‘मुक्तेश्वर पहाड़ी’ पर लगने वाले स्थानिय मुक्तेश्वर नामक ग्रामीण बाजार से करीब एक किमी की दूरी पर स्थित है। मंदिर तक जाने के लिए सड़कों की अच्छी सुविधा उपलब्ध है। आप चाहें तो मंदिर तक पहुंचने के लिए एक स्थानिय आॅटोरिक्शा का सहारा भी ले सकते हैं। सड़क मार्ग से करीब 100 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मंदिर के प्रांगण तक पहुंचा जा सकता है।
मुक्तेश्वर महादेव मंदिर के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा है पंतनगर में है जो यहां से करीब 100 किमी दूर है। सड़क मार्ग से जाने पर इस मंदिर की दूरी नैनीताल से 50 किमी और हल्द्वानी से 72 किमी है। सड़क और रेल मार्ग से जाने पर यह मंदिर काठगोदाम से करीब 72 किमी दूर है।