कहा जाता है कि हिमालय में आज भी हजारों ऐसे स्थान हैं जिनको आदिकाल से देवी-देवताओं और तपस्वियों के रहने का पवित्र स्थान माना गया है, लेकिन, उन स्थानों के बारे में एक आम आदमी को बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है कि वे स्थान किस दिशा में और कहां-कहां मौजूद हैं। क्योंकि हिमालय में कई ऐसी प्राचीन और प्राकृतिक गुफाएं हैं जहां एक साधारण मानव की पहुंच आज भी संभव नहीं है। हमारे पुराणों में भी इस बात का उल्लेख है और आज के दौर की भी यही मान्यता है कि हिमालय की उन गुफाओं में कई ऐसे तपस्वी आज भी हैं, जो हजारों ही नहीं बल्कि लाखों वर्षों से तपस्या करते आ रहे हैं।
इस संबंध में हिन्दु धर्म से जुड़े दसनामी अखाड़े और नाथ संप्रदाय के कुुछ विशेष सिद्ध योगियों से जुड़े इतिहास के अध्ययन के आधार पर जानकारों ने जानकारियों जुटाने का प्रयास किया और प्रमाण भी जुटाए थे। उन प्रमाणों के आधार पर कहा जाता है कि आज भी हिमालय में पिछले कई हजार वर्षों से कुछ विशेष सिद्ध योगी और महापुरुष अदृश्य अवस्था में तपस्या कर रहे हैं और कभी-कभी वे आम लोगों के बीच भी विचरण करते रहते हैं।
हिमालय के इन तमाम अति-दुर्गम और विशाल आकार वाले पर्वतों, गुफाओं और विशाल आकार की चट्टानों को अपना आश्रय बनाकर अनादिकाल से कुछ महापुरुष और महायोगी तपस्या में लीन हैं। उन्हीं में से कुछ के नाम इस प्रकार से हैं – ऋषि अत्रि, ऋषि दुर्वासा, महर्षि वशिष्ठ, राजा बलि, जामवंत, परशुराम, ऋषि मार्कण्डेय, हनुमान, विभीषण, अश्वत्थामा, ऋषि व्यास, कृपाचार्य। जबकि कुछ ऋषि भी हैं जिनके न तो हम नाम जानते हैं और न ही उनके बारे में कोई अन्य जानकारियां हैं। लेकिन वे भी वहां हजार-हजार वर्षों से तपस्या में लीन हैं। इनके अलावा कुछ ऐसे भी मौजूद हैं जो पिछले करीब एक हजार या दो हजार वर्षों से वहां तपस्या कर रहे हैं।
अक्सर हमारे मन में यही सवाल आता है कि यदि इतने महान ऋषि हिमालय में रह रहे हैं तो फिर आम लोगों से उनका सामना क्यों नहीं हो पाता, जबकि आज तो हिमालय के चप्पे-चप्पे पर आम आदमी की पहंुच हो चुकी है? तो यहां हम बता दें कि हिमालय क्षेत्र कोई मात्र 500 या 700 किलोमीटर का क्षेत्र नहीं है। बल्कि कई हजार किलोमीटर के दायरे में फैली इसके विशाल आकार वाली पर्वत श्रंखलाएं और उनमें सैकड़ों प्राकृतिक कुफाएं, नदियां, विशाल आकार वाले झरने, झीलें, और बड़े-बड़े मैदानी क्षेत्र हैं। जो उन्हें आम आदमी से दूरी बनाने में सहायता करते हैं। इसके अलावा वे लोग कोई साधारण मानव या साधारण ऋषि-मुनि भी नहीं हैं जो, जब चाहे आम लोगों के बीच आ जायें और अपने चमत्कार दिखाते रहें या अपनी विरताओं का बखान करते रहें।
जिस हिमालय क्षेत्र में वे लोग निवास करते हैं उन हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं का दायरा कितना विशाल है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें जम्मू-कश्मीर, सियाचिन, हिमाचल, सिक्किम, उत्तराखंड, अरुणाचल और असम तक हिमालय का विस्तार है। इसके अलावा तिब्बत, नेपाल, भूटान, उत्तरी पाकिस्तान, उत्तरी अफगानिस्तान भी हिमालय के ही ऐसे दूर्गम क्षेत्र हैं। जबकि हिमालय के कई दूर्गम भाग ऐसे हैं जहां चीन ने कब्जा कर रखा है। इतने विशाल आकर वाले क्षेत्र में से मानव अब तक मात्र 20 से 30 प्रतिशत हिस्से तक ही अपनी पहुंच बना पाया है।
हम सब जानते ही हैं कि हिंदू धर्म के लिए सबसे पवित्र और विशेष स्थान रखने वाला कैलाश पर्व तथा वहां की मानसरोवर झील भी इस समय चीन के कब्जे में है। हमारे पुराणों में इस बात का साफ-साफ उल्लेख है कि भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्व है तथा मानसरोवर झील के आसपास का तमाम क्षेत्र भी हमारे लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां साक्षात देवी-देवताओं का निवास है।
हालांकि ये भी सच है कि समय-समय पर हमें कुछ विशेष खबरों और जानकार लोगों से उन सिद्ध महापुरुषों के बारे में जानकारियां प्राप्त होती रहती हैं। लेकिन, वे स्वयं सामने नहीं आते, लेकिन, पुराणों में स्पष्ट उल्लेख है कि ऐसे सिद्ध महापुरुष अपना रूप और वेष बदल कर कुछ समय के लिए आम लोगों के बीच कभी-कभी कुछ खास अवसरों पर आते रहते हैं।
कहा जाता है कि खास तौर पर कुंभ के विशेष स्नान पर्वों के दौरान वे सभी महापुरूष आम लोगों की तरह ही अपना रूप लेकर उन स्थानों पर आते हैं और स्नान कर चले जाते हैं। इसीलिए हमारे लिए कुंभ जैसे महापर्वों का महत्व सबसे अधिक होता है। क्योंकि इसी दौरान वे पवित्र आत्माएं वहां भीड़ का एक हिस्सा बन कर साक्षात आती हैं और उन अवसरों तथा उन स्थानों को पवित्र कर चली जाती हैं।
इस विषय में हिंदू धर्म के एक पवित्र गं्रथ ‘‘मुण्डकोपनिषद्’’ में उल्लेख मिलता है कि कुछ सूक्ष्म-शरीरधारी पवित्र आत्माओं का एक संघ है जो हिमालय की पर्वत श्रृंख्लाओं में से ही किसी एक स्थान पर अनादिकाल से निवास करता आ रहा है। मुण्डकोपनिषद् में इस बात का भी उल्लेख है कि हिमालय की वादियों में से एक आज के उत्तराखंड नामक स्थान पर ही कहीं उन सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का वह संघ निवास करता है। उस स्थान को ‘‘देवात्मा हिमालय’’ कहा जाता है।
कुछ विद्धानों का मत है कि क्योंकि वह ‘देवात्मा हिमालय’’ एक दिव्य और अदृश्यलोक है इसलिए वहां आम मानव की पहुंच संभव ही नहीं है इसलिए यदि कोई ऐसे स्थानों पर पहुंच भी जाता है तो भी वहां किसी व्यक्ति, वस्तु या अन्य किसी भी प्रकार के न तो कोई प्रमाण मिलते हैं और न ही वहां किसी के होने का आभाष ही होता है।
कुछ लोग यहां हिमालय में पाये जाने वाले उस येति या यति नामक एक विशेष प्राणी से भी उन दिव्य व्यक्तियों को जोड़ कर देखते हैं जो कि एक विशालकाय हिम मानव है जिसे देखे जाने की घटनाओं का जिक्र हिमालय के स्थानीय निवासी अक्सर करते आए हैं। हालांकि, येति क्या है यह बात आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
इस विषय में अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, रूस, और जर्मनी जैसे देशों ने भी अपने-अपने स्तर पर खोजबीन कर के देख लिया, लेकिन, उन्हें वहां कुछ भी हाथ नहीं लग पाया। जबकि नासा के सेटेलाइट के द्वारा जब उस विशेष स्थान की खोज की गई तो उन्हें वहां एक विशेष स्थान पर कुछ ऐसे काले धब्बे और बादलों से ढंका हुआ संदेहास्पद स्थान अवश्य मिला। लेकिन, उनके वैज्ञानिकों तथा पर्वतारोहियों का दल जब उस स्थान पर पहुंचा तो वहां उन्हें भ्रम की स्थिति जैसा कुछ आभाष हुआ। और यह भ्रम उन्हें एक बार नहीं बल्कि कई बार हुआ है।
इस विषय में कई विदेशी विद्धानों ने किताबों और लेखों के माध्यम से अपने-अपने मत दिये हैं और हैरानी की बात तो ये है कि उन सभी का मत एक सा है। लेकिन, जो सबसे अधिक चर्चा का विषय रहा वह था ब्रिटिश सेना के एक अधिकारी मिस्टर एल.पी. फैरेल का वह बयान जो उन्होंने स्वयं के अनुभव के आधार पर कुमाऊं के राजा के साथ की गई उस यात्रा के अनुभवों के आधार पर दर्ज कराया था।
– मनीषा ठाकुर, भोपाल