अजय सिंह चौहान || भारतीय इतिहास के उन महान योद्धाओं को भी हमें कभी-कभी याद कर ही लेना चाहिए जिन्होंने न सिर्फ भारत भूमि को बचाये रखा बल्कि भारत भूमि से बाहर जाकर भी अपनी सत्ता को कायम रखने में सफलता हासिल की थी। ये बात सच है कि आज के दौर में हमारा देश अपनी सिमाओं से बाहर नहीं जाना चाहता है, लेकिन, क्या इतिहास के उस दौर में यह संभव था कि बिना अपनी सिमाओं को लांघे वे राजा और उनकी सेना अपनी सिमाओं की रक्षा कर सकती थीं? सवाल तो बहुत सारे हैं। लेकिन, उनके उदाहरण के तौर पर उत्तर में यहां हम आज जिर्क करने जा रहे हैं ऐसे ही एक महान योद्धा का जो आज से लगभग 1293 वर्ष पूर्व यानी 727 ईसवी में जिसने गुहिल राजवंश की कमान संभाली थी। उस योद्धा का नाम था बप्पा रावल।
बप्पा जी रावल का असली नाम कालभोज रावल था। रावल राजवंश के संस्थापक नागादित्य के पुत्र कालभोज ने 727 ईसवी में गुहिल राजवंश की कमान संभाली थी। कालभोज भारतीय इतिहास के उस दौर में एक अति लोकप्रिय राजा और एक महान योद्धा के रूप में उभरे थे। उनकी लोकप्रियता को देखते हुए ही उन्हें उनकी प्रजा ने बप्पा रावल उसकी उपाधि दी थी। जबकि अन्य प्रदेशों में उन्हें बापा के नाम से भी पुकारा जाता था।
बप्पा जी का योगदान –
सन 727 ईसवी का ये वो दौर था जब अखंड भारत पर अरब की ओर से आने वाले लुटेरों के हमलों का डर बना रहता था। आज से लगभग 1400 साल पहले अरब के लुटेरे शासकों ने मध्य-पूर्व और अरब के इलाकों को अपने कब्जे में ले लिया था। इसके बाद इन्होंने मिस्र, स्पेन और ईरान को भी जीत लिया था।
जबकि अखंड भारत का यह वह ऐतिहासिक दौर था जब हमारा भारतवर्ष सोने की चिढ़िया कहलाता था और उस समय वे लूटेरे भारत पर भी अपनी नजर गढ़ाए बैठे थे। ऐसे समय में राजस्थान के दक्षिण-मध्य का एक स्वतंत्र भाग जो कि आज भी मेवाड़ के नाम से ही जाना जाता है, उसके राजपाट की कमान सन 727 ईसवी में कालभोज ने संभाली।
कालभोज एक न्यायप्रीय शासक और वीर योद्धा था इसलिए जल्द ही वह अपनी प्रजा में लोकप्रिय हो गया और उसके न्याय और शासन की चर्चाएं दुनियाभर में होनी लगी थीं। मेवाड़ की जनता अब उन्हें प्यार से बप्पा रावल कह कर पुकारने लगी थी। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, मेवाड़ साम्राज्य की शुरूआत 8वीं शताब्दी में बप्पा रावल के समय में हुई थी। इसीलिए बप्पा रावल को मेवाड़ का संस्थापक पिता भी कहा जाता है, और पाकिस्तान के एक प्रमुख शहर रावलपिंडी भी उन्हीं के नाम पुकारा जाता है।
बप्पा रावल की वीरता –
वीर योद्धा बप्पा रावल जी की महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सन 1947 में भारत से विभाजित होकर कट्टर मुस्लिम देश पाकिस्तान बनने के बाद से आज तक भी उनके द्वारा बसाया गया वह नगर उन्हीं के नाम पर है, जिसका नाम है रावलपिंडी। अखंड भारत के इतिहास के उन दिनों में विदेशी आक्रमणकारियों को दूर-दूर तक खदेड़ देने वाले वीर बप्पा रावल ने ही रावलपिंडी शहर को अपने सैन्य ठिकाने के तौर पर विकसित किया था।
इतिहास में बप्पा का स्थान –
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, अरब की ओर से आने वाले उन लुटेरों और आक्रमणकारियों को रोकने, उनको जवाब देने और उनकी हर प्रकार की सैनिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए बप्पा ने उस समय के अखण्ड भारत के गजनी प्रदेश में अपनी कुछ मजबूत सैन्य चैकियां स्थापित की थीं, ऐसे में इस बात में कोई शक नहीं कि जिस जगह पर उन्होंने अपनी मजबूत सैन्य चैकियां स्थापित की थीं, उस स्थान का नाम बदल कर बप्पा रावल के नाम पर रावलपिंडी कर दिया गया था। जिसके कारण यह शहर आज भी उन्हीं के नाम रावल से रावलपिंडी हुआ और आज भी यही नाम चला आ रहा है।
इतिहासकारों का यह भी मानना है कि बप्पा रावल ने अरब की ओर से आने वाले उन विदेशी आक्रमणकारियों को अफगानिस्तान की सीमा से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया और वहां से उन आक्रमणकारियों को सहायता देने वाले के शासक सलीम तक को भी मार भगाया था। बप्पा रावल ने गजनी प्रदेश को उन आक्रमणकारियों से मुक्त करने और उन पर जीत हासिल करने के बाद बप्पा ने वहां अपना एक प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया और खुद वापस चित्तौड़ लौट आए थे।
जब मुगलों को भगाया –
इतिहास बताता है कि बप्पा रावल ने कंधार समेत पश्चिम के कंधार, खुरासान, तुरान, इस्पाहन और कई ईरानी साम्राज्यों को जीतकर उन्हें भी अपने साम्राज्य में मिला लिया था। इस प्रकार इतिहास के महान योद्धा बप्पा रावल ने भारतवर्ष को न केवल अरब लुटेरों से बचाया, बल्कि अरब सीमा तक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार भी किया।
बप्पा रावल की वीरता का डर विदेशी आक्रमणकारियों में इतना समा गया था कि वे भारत पर आक्रमण करने के बारे में सोचते भी नहीं थे। उनकी वीरता के डर और प्रभाव के कारण गजनी के सुल्तान ने अपनी पुत्री का विवाह भी बप्पा के साथ करवा दिया था। इसीलिए सभी इतिहासकार इस बात को निर्विवाद स्वीकार करते हैं कि रावलपिण्डी का नामकरण बप्पा रावल के नाम पर ही हुआ था। जबकि बप्पा रावल से पहले तक तक रावलपिंडी को गजनी प्रदेश कहा जाता था।