यहां हम बात कर रहे हैं एक साधारण और एक आम मीडियाकर्मी की, जो कि आज के दौर में किस प्रकार से अपने आप को दो पाटन के बीच पिसते हुए देख रहा है और उस दर्द को बयान कर रहा है. उसका कहना है कि- “मैं एक बहुत बड़ा तो नहीं लेकिन सामान्य-सा मीडियाकर्मी हूँ, जिसके कारण मीडिया के कई छोटे-बड़े लोगों से मिलना-जुलना एक आम बात होती है.
मीडियाकर्मी होने के साथ-सात विचारों और कर्मों से मैं एक सनातनवादी यानी हिन्दू भी हूँ. क्योंकि मीडिया में ऐसे बहुत ही कम कर्मचारी या पत्रकार होते हैं जो विचारों और कर्मों से सनातनवादी यानी हिन्दू होते हैं, और उन्हीं में से मैं भी एक हूँ. मैं एक ऐसा सनातनवादी पत्रकार हूँ जो अपना कार्य करता तो लेफ्ट और राइट दोनों ही विचारधाराओं के बीच हूँ, लेकिन प्रयास करता हूँ कि पूर्ण रूप से मैं सनातनवादी ही रहूं, लेकिन आज के दौर में ऐसा बहुत ही मुश्किल होता जा रहा है, क्योंक दुनिया मीडिया के बारे में जो देखती और जानती है ऐसा बिलकुल भी नहीं है.
एक आम आदमी को ये बात जान लेनी चाहिए कि लेफ्ट यानि वामपंथी विचारधारा के पत्रकारों के बारे में तो अधिकतर लोग जानते हैं कि उनकी विचारधारा और गतिविधियां क्या हैं. लेकिन राइट यानि दक्षिणपंथी विचारधारा के पत्रकारों के बारे में बहुत ही कम लोग जान पाते हैं कि उनका सच क्या है? और जो लोग इस बारे में नहीं जानते हैं तो मैं बता दूँ कि दक्षिणपंथी विचारधारा के पत्रकारों में से करीब-करीब 90 प्रतिशत पत्रकार एकदम सरकारों के पिछलग्गू, भ्रष्ट, निकम्मे, चापलूस, अपनी नौकरी और पद को बचाने वाले, नेताओं के तलवे चाटने वाले और कमीशन पर काम करने वाले होते हैं. जबकि एक आम भारतीय और उनमें भी हिन्दुओं को दक्षिणपंथी पत्रकारों के बारे में यही जानकारी होती है कि वे लोग हिन्दुओं के लिए काम करते हैं और उन्हीं की विचारधार को आगे बढ़ाते हैं. लेकिन यहाँ मैं ये साफ़-साफ़ बता दूँ कि उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता है कि उनके संपर्क के नेता या सरकार दक्षिणपंथी विचारधारा की है या फिर वामपंथी विचारधारा की, उन्हें तो बस अपनी नौकरी और धंधे से मतलब होता है.
अपने पिछले करीब-करीब 14 वर्षों के इस पत्रकारिता के क्षेत्र में मैंने अबतक इस प्रकार के न जाने कितने ही अनुभवों को साक्षात देखा और भोगा है. देखा तो यहां तक भी है कि कुछ बातें बताने लायक नहीं होती. लेकिन इतना जान लीजिये कि जहां पैसे के लालच में पत्रकारिता को एक वैश्या के रूप में पस्तुत किया जाता है, भोगा जाता है वह पत्रकारिता नहीं बल्कि एक धंधा ही होता है. चाहे मीडिया कंपनी का मालिक हो या फिर उसका सम्पादक, उसमें काम करने वाला और उससे जुड़ा हर एक व्यक्ति किसी भी प्रकार से पैसे के पीछे ही भागता है.
हैरानी की बात तो यह है कि यदि कोई मीडिया संस्थान या फिर कोई संपादक अपने आपको दक्षिणपंथी बताता है या दक्षिणपंथी सरकार का साथ देता है तो भी वह संस्थान एक प्रकार से हिन्दू विरोधी ही रहता है. अपनी खबरों में, विचारों में, संपर्कों में या फिर अन्य किसी भी क्षेत्र में अपने आप को दक्षिणपंथी बताने वाले ऐसे कई मीडिया घराने हैं हो राष्ट्रवाद की आड़ में वामपंथ को बढ़ावा देते हैं.
दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों ही विचारधारा हिन्दू धर्म के साथ एक प्रकार से गंगा-जमुना तहज़ीब का सा बर्ताव करती हैं, और इन दोनों ही विचारधाराओं में पिसा जाता है हिंदुत्ववादी विचारधारा का पत्रकार. या तो वह समझौता करे, बिक जाये, या फिर नौकरी छोड़ दे और घर बैठ जाए.
आज ऐसे कितने ही पत्रकारों को मैं निजी तौर पर जानता हूँ जो इन विचारधाराओं से समझौता न करने के कारण बेरोज़गार हैं. कुछ यूट्यूब पर सनातन को आगे बढ़ा रहे हैं. कुछ हैं जो अपनी वेबसाइट चला रहे हैं. कुछ हैं जो धक्के खा रहे हैं. कुछ हैं जिन्होंने अपना व्यवसाय बदल लिया. हालांकि कुछ ऐसे भी हैं जो हैं तो हिंदुत्ववादी, लेकिन वे लोग वामपंथ का झंडा ऊंचा करने में लगा हैं.
मीडिया में ये बात सभी जानते हैं कि किस खबर के क्या मायने होते हैं. इसलिए यदि कोई सरकार, नेता, बिजनेसमैन या फिर कोई बिल्डर अपने बड़े-बड़े विज्ञापन देता है तो उस अखबार या उस चैनल के कर्मचारी अपने आप ही अंदाज़ा लगा लेते हैं कि वह सरकार, वह नेता या वह बिल्डर या कोई बिजनेसमैन या तो अपने कारनामों को छुपाने के लिए और मीडिया का मुँह बंद करने के लिए इतना पैसा खर्च कर रहा है.
समस्या तो ये है कि आज़ादी के बाद से कोई भी सनातनी मीडिया ग्रुप आजतक भारत में नहीं है. और यदि कोई है भी तो वह आज कंगाली की हालत में ही होगा. क्योंकि उसको कोई भी सरकार, नेता या कोई भी बिल्डर या बिजनेसमैन अपना विज्ञापन देना ही नहीं चाहता. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस प्रकार से दक्षिणपंथी मीडिया राष्ट्रवादी होता है उसी प्रकार से सनातनी मीडिया ग्रुप वाष्ट्रवादी नहीं बल्कि धर्मवादी होता है.
लेफ्ट यानि वामपंथी विचारधारा के मीडिया ग्रुप्स के बारे में तो सभी जानते हैं कि वे खुलेआम अपना एजेंडा, फेक न्यूज़, नेताओं के प्रमोशन, माफिया का समर्थन, मंत्रालयों में अपने काम निकलवाना, और न जाने क्या-क्या करते हैं. लेकिन फिर भी यहाँ मैं एक बात जो कि विश्वास के साथ कह रहा हूँ कि लेफ्ट के यानि वामपंथी विचारधारा के पत्रकार ज़्यादा भरोसे के लायक कहे जा सकते हैं, लेकिन दक्षिणपंथी विचारधारा के पत्रकारों से भरोसे की कोई भी बड़ी उम्मीद नहीं की जा सकती.
– एक हिन्दू पत्रकार