हम गरीबों को माफ कर देना हे बाबा महाकाल। क्योंकि किसी तरह हम आपकी चौखट तक आ तो जाते हैं, लेकिन अब हम जैसे गरीबों के लिए गर्भगृह में प्रवेश अब पहले की तरह शायद कभी संभव नहीं हो सकेगा। कहने के लिए तो भले ही उज्जैन नगरी के राजा आप हैं लेकिन अब यहां “रामराज्य वाली सरकार” के तुगलकी फरमान चलते हैं जो अपने आपको सबसे ऊपर समझते हैं।
ये बात सच है कि कैलाश पर्वत पर तो सभी भक्त, देव, भूत प्रेत, सुर असुर, नर पशु सभी बगैर किसी शुल्क के दर्शन के लिए पहुंच जाते थे। लेकिन अब रामराज्य वाली सरकार ने आपके लिये यहां उज्जैन में करोड़ों रुपए खर्च कर एक ऐसे “महाकाल लोक” रूपी “चक्रव्यूव” की रचना कर दी है जिसमें आपके नजदीक हम जैसे किसी आम और गरीब भक्त को तो बिलकुल भी आने नहीं दिया जाता।
हम जानते हैं कि आपके पास अब धन की कोई कमी नहीं है, लेकिन ये बात भी सच है कि “महाकाल लोक” बन जाने के बाद से हम जैसे गरीब भक्तों की श्रद्धा भक्ति की कमी इसमें जरूर दिख रही है। और अब तो शायद ये कमी हमेशा ही रहने वाली है, क्योंकि रामराज्य का घमंड करने वाली सरकार ने हम गरीबों को आप से दूर करके हमारा दिल दुखाया है।
हम ये दृश्य बहुत अच्छे से देख पा रहे हैं कि “महाकाल लोक” बनने के बाद से आप ही के दरबार में आप ही के भक्तों के बीच अमीर गरीब का बहुत बड़ा फर्क दिखने लगा है। दिल्ली में बैठे एक “हिन्दू ह्रदय सम्राट” कहे जाने वाले व्यावसाई ने आपको VVIP भगवान का रूप देकर आपके धाम को पर्यटन उद्योग के तौर पर एक व्यवसाय का दर्जा जो दे दिया है।
है बाबा महाकाल, हम गरीबों को अब यह देखकर पीड़ा होने लगी है कि जबसे आप हम गरीबों को छोड़ कर “महाकाल लोक” के वासी हुए हैं, तब से आपके दर्शनों के भी अब अलग अलग रेट तय कर दिए गए हैं। मानो अब किसी पांच सितारा होटल के मीनू कार्ड से कम नहीं हैं। क्योंकि, यदि आपको कोई दूर से निहारेगा तो उसे 250 रुपए देने होंगे, आपको छूने, जल तथा दूध अर्पण करने के 1500 रुपए, आपकी भस्म आरती देखने और श्रृंगार देखने के 200 रुपए लगने लगे हैं, इसके अलावा भी मंदिर प्रबंध समिति ने आप के दर्शन के लिए अलग-अलग प्रकार के शुल्क लगाए हुए हैं। ऐसे में भला हम गरीब भक्त कर ही क्या सकते हैं? जबकि इससे पहले तो आप और हम कई कई घंटों तक मिल लिए करते थे और सुख दुःख की बातें कर लिया करते थे, वो भी मुफ्त में। लेकिन अब आप VVIP भगवान् जो हो गए हैं।
हे बाबा महाकाल, आपके दर्शनों की ये व्यवस्थायें एकदम नई भले ही नहीं हैं, लेकिन परिसर में कई सारे ऐसे नए बोर्ड लगा दिए गए हैं जिनमें दर्शन, पूजन, अभिषेक और शीघ्र दर्शनों पर लगने वाले खर्चों की सूचियां डरावनी लगने लगी हैं, क्योंकि इनसे झूठी श्रद्धा, झूठी आस्था और दिखावे के नाम पर यहाँ आने वाले देशी विदेशी पर्यटकों को तो कोई परेशानी नहीं होती लेकिन हम जैसे गरीब और साधारण श्रद्धालुजन डर जाते हैं और जहाँ पहले आधे या एक घंटे में आपके दर्शन हो जाते थे अब तीन से चार घंटों तक इंतज़ार करना पड़ता है।
बचपन से सुनते आ रहे हैं कि भगवान् के मंदिर में कोई छोटा बड़ा नहीं होता, लेकिन वो बातें अब पुरानी हो गई हैं। क्योंकि हैसियत और समय के अनुसार ही अब तो आपके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होने लगा है।
हम आपके गरीब भक्त यह देख कर विवश हैं कि यदि आपके कोई भक्त प्रोटोकॉल के अनुसार दर्शन करने आ रहे हैं या VVIP श्रेणी के हैं तो उनके लिए शुल्क ही नहीं लगता। बल्कि मंदिर समिति ऐसे भक्तों को मुफ्त का दुपट्टा ओढ़ाकर, एक किलो लड्डू प्रसाद का पैकेट देकर सम्मान भी करती है। और तो और, मंदिर समिति 2-3 कर्मियों को भेजकर गेट से गर्भगृह तक लाने और ले जाने की सुख सुविधा और विशेष सुरक्षा भी देती है। जबकि दूसरी तरफ, हमारे जैसा कोई दशनार्थी सामान्य है तो उसको आपके दर्शनों के लिए 250 रुपए देने के बाद भी दूर खड़े होकर दर्शन करने पड़ते हैं।
हे भगवान् महाकाल, जब से आप “महाकाल लोक” के चक्रव्यू के निवासी हुए हैं तब से उज्जैन शहर में बड़े से बड़े लोग आपके दर्शनों के लिए यहां आते जाते रहते हैं, इसलिए शहर की व्यवस्थाएं भी अब 5 से 7 सितारा होटलों जैसी होती जा रही है। हम जैसे गरीब श्रद्धालुओं के लिए भी छोटे से छोटे होटल, धर्मशालाएं और खानपान सबकुछ महंगा हो चूका है।
– कमल सिंह, उज्जैन (मध्य प्रदेश)