अजय सिंह चौहान || श्रीनगर से 50 किमी दक्षिण-पूर्व में, झेलम नदी के किनारे पर स्थित अनंतनाग (Pre-history of Anantnag in Kashmir) जिस प्रकार से प्राचीनकाल में कश्मीर की राजधानी के तौर पर प्रसिद्ध हुआ करता था, उसी तरह, आज भी यह अपने मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों और विश्व प्रसिद्ध मार्तण्ड सूर्य मंदिर के अवशेषों सही अन्य ऐतिहासिक संरचनाओं के लिए राज्य का एक प्रमुख और पवित्र नगर है।
पौराणिक युग में जहां कश्मीर को नागों का देश कहा गया है वहीं कश्मीर में स्थित अनंतनाग को नागवंशियों की राजधानी बताया गया है। जबकि इस विषय पर श्रीनरसिंह पुराण में विस्तार से वर्णन मिलता है कि आखिर कैसे और क्यों कश्मीर अस्तित्व में आया और इसको इसका यह नाम कश्मीर कैसे मिला।
श्रीनरसिंह पुराण के अनुसार मरीचि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। उन्हीं मरीचि ऋषि तथा उनकी पत्नी सम्भूति ने एक बालक को जन्म दिया, जिसको कश्यप नाम दिया गया। कश्यप नामक यही बालक बड़ा होकर ना सिर्फ महर्षि कश्यप बना बल्कि उसकी पहचान सदैव के लिए सप्तऋषियों में भी होने लगी। महर्षि कश्यप इसीलिए युगों-युगों से जाने जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपने श्रेष्ठ गुणों, तप बल एवं प्रताप के बल पर देवों के समान ही इस सृष्टि के रहस्यों को समझ लिया था।
महर्षि कश्यप द्वारा इस सृष्टि के लिए दिए गए अपने महायोगदानों से संबंधित सनातन साहित्य के वेद, पुराण, स्मृतियां, उपनिषद और ऐसे अन्य अनेकों धार्मिक साहित्य भरे पड़े हैं, जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि उन्हें ‘सृष्टि का सृजक’ क्यों माना जाता है।
महर्षि कश्यप एक अत्यंत तेजवान ऋषि थे, इसीलिए ऋषि-मुनियों में वे सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे। सुर हो या असुर दोनों ही के लिए वे मूल पुरूष माने जाते थे। इसी कारण देवताओं ने उन्हें ‘महर्षि’ जैसी श्रेष्ठतम उपाधि दी थी।
देश-विदेश के अनेकों इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं, पौराणिक तथा वैदिक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि ‘कस्पियन सागर’ एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप के नाम पर ही हुआ था। और उस समय महर्षि कश्यप ने ही सर्वप्रथम कश्मीर को बसाया और उस पर शासन किया था।
श्रीनरसिंह पुराण में आगे जो उल्लेख मिलता है उसके अनुसार महर्षि कश्यप की 17 पत्नियां थीं। उन्हीं पत्नियों से देवों और मानस पुत्रों का जन्म हुआ, और उसी के बाद से इस सृष्टि का सृजन आरंभ हुआ। उसी के परिणामस्वरूप महर्षि कश्यप ‘सृष्टि के सृजक’ या सृजनकर्ता’ कहलाए।
महर्षि कश्यप की इन सभी पत्नियों ने अपने-अपने गुण, स्वभाव, आचरण के अनुसार संतानों को जन्म दिया, जिसके बाद से ही इस सृष्टि का आरंभ हुआ। जैसे कि उनमें से अदिति नामक पत्नी के गर्भ से 12 आदित्य पैदा हुए थे, जिनमें सबसे प्रमुख और सर्वव्यापक देवाधिदेव भगवान विष्णु का वह अवतार भी शामिल है जिसे हम वामन अवतार के नाम से जानते हैं।
इसी प्रकार कद्रू नामक पत्नी के गर्भ से नाग वशं की उत्पत्ति हुई, जिनकी संख्या 8 बताई जाती है। और उन 8 नागों के नाम थे अनंत नाग यानी शेष नाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक।
आज भी मुख्य रूप से कश्मीर में और देश के अन्य भागों में उन सभी नागों के नाम पर स्थानों के नाम मौजूद हैं- जिनमें अनंतनाग, कमरू, कोकरनाग, वेरीनाग, नारानाग, कौसरनाग आदि हैं। इसमें से कश्मीर का अनंतनाग, नागवंशियों की राजधानी हुआ करती थी। अनंतनाग यानी, जिसका कोई अंत न हो। पुराणों के अनुसार यह वही अनंत नाग यानी शेष नाग हैं जिनकी शय्या पर भगवान विष्णु आसीन होते हैं।
आगे चलकर इन्हीं 8 नागों से नागवंश की स्थापना हुई थी। वहीं कुछ पुराणों ने नागों के 5 प्रमुख कुल बताये हैं जिनमें अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला का नाम सामने आता है। इसके अलावा अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन भी मिलता है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म जैसे कुछ प्रसिद्ध नाम हैं।
हमारे विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि किस प्रकार कश्मीर का अनंतनाग नगर नागवंश के समुदाय की राजधानी हुआ करती थी, और किस प्रकार से कश्मीर के अन्य कई सारे क्षेत्र भी माता कद्रु के दूसरे पुत्रों के अधीन हुआ करते थे।
इसके अलावा दूसरा नाम है कमरुनाग, जो हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से करीब 60 किलोमीटर दूर है। यहां कमरुनाग का एक प्रसिद्ध मंदिर भी है और एक झील भी।
नागवंश में जो तीसरा नाम आता है वह है कोकरनाग का। कोकरनाग वर्तमान में जम्मू-कश्मीर राज्य के अनंतनाग में स्थित एक पर्यटन स्थल के रुप में पहचाना जाता है। कोकरनाग का दूसरा नाम ‘बिन्दू जलांगम’ भी है और यह नाम रिकाॅर्ड में भी दर्ज है। यह स्थान अनंतनाग जिला मुख्यालय से लगभग 17 किमी दूर है।
नागवंश में जो चैथा नाम आता है वह है वेरीनाग का। वर्तमान में वेरीनाग कश्मीर घाटी के मुगल उद्यानों का सबसे पुराना और प्रसिद्ध स्थान है। वेरीनाग अनंतनाग से लगभग 26 कि.मी. की दूरी पर है।
नागवंश में जो चौथा नाम आता है वह है नारानाग। नारानाग जम्मू-कश्मीर राज्य के गान्दरबल जिले का एक पर्वतीय पर्यटक स्थल है। यहां लगभग 200 मीटर की दूरी पर 8वीं सदी में निर्मित मंदिरों का एक समूह है। इतिहासकारों के अनुसार शिव को समर्पित इन मंदिरों को नागवंशी सम्राट ललितादित्य ने ही बनवाया था।
कौसरनाग यानी नागवंश में पांचवा नाम आता है वह जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले के पीर पंजाल पर्वतश्रेणी में ऊंचाई पर स्थित एक झील है। यह झील लगभग 3 किमी लम्बी है। इसकी अधिकतम चैड़ाई लगभग 1 किमी है।
इसके अलावा अमरनाथ यात्रा के मार्ग में पड़ने वाली शेषनाग झील को भी नागवंश से ही जोड़ कर देखा जाता है। यह झील पहलगाम से 23 किलोमीटर की दूरी पर है। माना जाता है कि भगवान शेषनाग ने खुद ही इस जगह की स्थापना की थी और आज भी वे यहां रहते हैं। कई स्थानिय लोगों का कहना है कि उन्होंने इस झील में शेषनाग के दर्शन भी किये हैं।
भारत का प्राचीन इतिहास भी यही बताता है कि आज से लगभग 3,000 ईसा पूर्व यानी आर्य काल में भी भारत में ऐसे अनेकों नागवंशियों के शासक और कबीले थे जो सर्प की पूजा करते थे। इसके अलावा इस बात के भी स्पष्ट प्रमाण मौजूद है कि आज भी भारत के कई नगरों के नाम उन प्रमुख नाग वंशों के नाम पर ही पाये जाते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि या तो उनके पूर्वज नाग थे या उनके देवता नाग थे।
इसमें ललितादित्य नामक नागवंशी क्षत्रिय सम्राट का स्पष्ट और विशेष उदाहरण भी दिया जा सकता है। कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि सम्राट ललितादित्य का शासनकाल 724 से 761 ई. तक कश्मीर के कर्कोटा में रहा। कार्कोटा भी एक नागवंशी क्षत्रिय का ही नाम था, जिसके नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा।
ललितादित्य के शासन काल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया और बंगाल तक पहुंच गया था। उन्होंने अरब के मुसलमान आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा तिब्बती सेनाओं को भी पीछे धकेला। उनका राज्य पूर्व में बंगाल तक और दक्षिण में कावेरी तक पहुंच चुका था। जबकि पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक उसने अपना शासन स्थापित किया था।
प्रसिद्ध इतिहासकार आर. सी. मजुमदार के अनुसार ललितादित्य ने दक्षिण में कुछ महत्वपूर्ण युद्ध जितने के बाद अपना ध्यान उत्तर की तरफ लगाया जिससे उनका साम्राज्य काराकोरम पर्वत शृंखला के सूदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा था। इस दौरान नागवंशी क्षत्रिय सम्राट ललितादित्य ने अनेकों भव्य मंदिरों और भवनों का निर्माण भी करवाया था, जिसमें अनंतनाग के मार्तण्ड सूर्य मंदिर के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति नागवंशी क्षत्रिय सम्राट ललितादित्य का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। 37 वर्ष का उनका शासनकाल, उनके सफल सैनिक अभियानों, अद्भुत कला-कौशल, प्रेम और विश्व विजेता बनने की चाह से पहचाना जाता है।
नाग वंश और अनंतनाग को लेकर हमारे पौराणिक साक्ष्यों के अलावा ऐसे अन्य कई प्रमाण भी मौजूद हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि भारतवर्ष में नागवंश का शासन हुआ करता था। उन साक्ष्यों और प्रमाणों के तौर पर हमें यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि प्राचीन काल से ही भारत में ना सिर्फ नागों की पूजा की परंपरा रही है बल्कि नाग वंश का एक कुशल शासन भी किया है।
लेकिन, देश के कई हिस्सों से भाषा और संस्कृति में आये बदलावों के चलते, ऐसे कई स्थानों के नाम और अस्तित्व धीरे-धीरे इतिहास में खोते गये। लेकिन, यदि हमारे पुराणों का गहनता से अध्ययन किया जाये तो ऐसे सैकड़ों स्थानों के नाम व उनकी पहचान आज भी जस का तस देखने और पढ़ने को मिल जाता है।