अशोक चौहान || रूस के वैज्ञानिकों ने करीब 46,000 साल पहले लुप्त हो चुके एक कीड़े को फिर से जीवित कर दिया है। यह कीड़ा पृथ्वी पर उस समय हुआ करता था जब बड़े-बड़े बालों और बड़े-बड़े दांतों वाले मैमथ यानी हाथी और बाघ जैसे विशाल जानवरों का राज हुआ करता था। एमेरिटस टेयमुरास कुर्जचालिया जो कि मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ माॅलिक्यूलर सेल बायोलाॅजी एंड जेनेटिक्स में प्रोफेसर हैं का कहना है कि साइबेरियाई पर्माफ्राॅस्ट में यह राउंडवर्म सतह से करीब 40 मीटर नीचे सुप्तावस्था में जीवित था।
वैज्ञानिकों का कहना है कि क्रिप्टोबायोटिक अवस्था में पानी या ऑक्सीजन की पूर्ण अनुपस्थिति में भी ऐसे जीव रह सकते हैं। इसके अलावा अत्यधिक नमकीन परिस्थितियों में या फिर बेहद ठंडे तापमान में भी ऐसे कीड़े जीवित रह सकते हैं। प्रोफेसर कुर्जचालिया के अनुसार, यह मृत्यु और जीवन के बीच की स्थिति कही जाती है, ऐसी स्थिति में मेटाबोलिक एक्टिविटी इस हद तक कम हो जाती है कि उसका पता लगाना ही बेहद मुश्किल हो जाता है।
प्रोफेसर कुर्जचालिया ने कहा कि इसे एक प्रमुख खोज माना जा सकता है। क्योंकि कोई भी जीव इस स्थिति में अपना जीवन रोक सकता है और फिर उसे शुरू भी कर सकता है। हालांकि, इसकी प्रजाति क्या है यह अभी अज्ञात ही है। जिस हिसाब से यह जिंदा रहा उसे बायोलाॅजीकल विज्ञान में क्रिप्टोबायोसिस के रूप में जाना जाता है।
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प्रोफेसर कुर्जचालिया ने कहा कि इससे पहले जो जीव इस तरह की स्थिति में मिले हैं वे हजारों वर्ष पुराने होने की जगह कुछ सैकड़ों साल पहले के ही थे। इससे पहले भी रूस के मृदा या मिट्टी विज्ञान में भौतिक रासायनिक और जैविक समस्या संस्थान के वैज्ञानिकों ने पांच साल पहले साइबेरियाई के पर्माफ्राॅस्ट में दो राउंडवर्म प्रजातियों का पता लगाया था। शोधकर्ताओं ने कहा कि फिलहाल हमने सिर्फ दो ही कीड़ों को केवल पानी से रिहाइड्रेट करके वापस जिंदा किया है जबकि, इसके आगे के विश्लेषणों के लिए 100 कीड़ों को जर्मनी ले जाया गया है।
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दरअसल, वैज्ञानिकों ने इन कीड़ों को निकालने के बाद इनके समय का पता लगाने के लिए पर्माफ्राॅस्ट में मौजूद पौधों की सामग्री का रेडियोकार्बन विश्लेषण किया, जिससे पता चला कि यह कीड़ा लगभग 46,000 साल पहले पृथ्वी पर बहुतायत में हुआ करता होगा। हालांकि, वैज्ञानिकों को इस बात का पता नहीं चल पाया था कि यह कीड़ा किसी ज्ञात प्रजाति है या नहीं। लेकिन, ड्रेसडेन और कोलोन में वैज्ञानिकों ने इस पर जब आनुवंशिक विश्लेषण किया तो पता चला कि यह एक नई प्रजाति है। जिसके बाद शोधकर्ताओं ने इसे ‘पैनाग्रोलाईमस कोलीमेनिस’ नाम दिया।