
अजय सिंह चौहान | गोडावण पक्षी, जिसे अंग्रेजी में “Great Indian Bustard” कहा जाता है, भारत का एक दुर्लभ और संकटग्रस्त पक्षी है। देखने में यह एक बड़ा, भारी-भरकम पक्षी है जो मुख्य रूप से भारत के शुष्क घास के मैदानों और रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Ardeotis nigriceps है, और यह बस्टर्ड (Bustard) परिवार का हिस्सा है। गोडावण को वर्ष 1981 में राजस्थान का राज्य पक्षी घोषित किया गया है, इसके अलावा जैसलमेर ज़िले का शुभंकर या प्रतीक भी है। इससे पता चलता है की इसका सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्ता क्या है। स्थानीय लोककथाओं और परंपराओं और चित्रकलाओं में भी इसको विशेष स्थान मिलता रहता है। इसलिए यह पक्षी ‘सोन चिरैया’, ‘सोहन चिडिया’ तथा ‘शर्मिला पक्षी’ जैसे अन्य उपनामों से भी जाना जाता है।
गोडावण (Godavan- Great Indian Bustard Bird in danger) अथवा सोहन चिरैया की औसत आयु 14 से 15 वर्ष तक होती है। इनमें नर पक्षी का वजन 15 से 18 किलोग्राम तक हो सकता है, जबकि मादा थोड़ी छोटी और वजन में लगभग 5-10 किलोग्राम तक होती है। गोडावण पक्षी की लंबाई लगभग एक मीटर से अधिक और पंखों का फैलाव भी करीब मीटर तक हो सकता है। इसका रंग मुख्य रूप से भूरा, सफेद और काला होता है। इनमें पहचान के तौर पर नर के सीने पर एक विशिष्ट काली पट्टी होती है जो खासकर प्रजनन के मौसम में स्पष्ट दिखलाई देती है। देखने में यह पक्षी हल्का भूरे रंग का होता है। इसकी गर्दन शुतुरमुर्ग कि भाँति लंबी और हल्की भूरे रंग कि होती है। इनमें नर कि गर्दन मादा से अधिक सफेद होती हैं, जबकि चोंच छोटी होती है तथा माथे पर गहरे स्लेटी अथवा काले रंग जैसा नजर आने वाला मुकुट होता है, जबकि मादा में यह मुकुट नर कि अपेक्षा बहुत छोटा या न के बराबर ही होता है। शुतुरमुर्ग कि भाँति इसकी टांगे लंबी और मज़बूत होती है, जिसके कारण यह तेजी से दौड़ने में सक्षम होता है।
गोडावण एक बेहद शर्मिला पक्षी है, या यूँ कहे की मानव बस्तियों से दूर रहने वाला पक्षी है इसलिए यह घास के मैदानों में पाया जाता है और दिन के उजाले मे य़ह घास में छुप कर रहता है तथा रात में जमीन पर विश्राम करना पसंद करता है। वैसे तो यह पक्षी है इसलिए उड़ सकता है, किंतु इसको चलना उससे भी अधिक पसंद है, इसीलिए इसका शिकार आसानी से हो जाता है। अपनी शारीरिक बनावट से यह करीब-करीब शुतुरमुर्ग के सामान दीखता है, लेकिन उड़ने वाले पक्षियों में सबसे वजनी पक्षी के तौर पर भी अपनी पहचान रखता है।
गोडावण पक्षी (Great Indian Bustard Bird in danger) के अण्डों से नवजात चूजों के निकलने में एक महीने का समय लगता है। “प्रोजेक्ट गोडावण” (Project Great Indian Bustard Bird) के तहत उनके घोसलों की पहचान कर अण्डों को वहाँ से लाकर पैदा होने के एक वर्ष बाद तक नवजात को प्रजनन केंद्र में रखा जाता है, उसके बाद उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाता है। इसके कारण प्रति अंडे नवजात पैदा होने के साथ ही जिवित रहने कि संभावना भी बढ़ी है।
गोडावण पक्षी (Great Indian Bustard Bird in danger) मुख्य रूप से खुले मैदानों को सबसे अधिक पसंद करता है। इसलिए यह भारत के राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के शुष्क और अर्ध-शुष्क घास के मैदानों में पाया जाता है। क्योंकि इनका भोजन भी इन्हें इन्हीं खुले मैदानों में ही मिल पाता है। हालाँकि इन्हीं मैदानों में यह आसानी से शिकार भी हो जाता है।
गोडावण एक सर्वाहारी पक्षी है, जिसमें कई प्रकार के कीड़ों, जैसे- टिड्डियाँ, बीटल, छोटे सरीसृप, बीज, अनाज और कभी-कभी इसका प्रिय भोजन न मिले तो छोटे कृन्तकों (चूहे, गिलहरी, प्रेयरी कुत्ते, साही, ऊदबिलाव, गिनी सूअर और हैम्स्टर आदि) को भी खाता है। इसके अलावा यह पक्षी मौसम के अनुसार अपने भोजन में बदलाव करता रहता है।
समाचारों के अनुसार इन पक्षियों के एक दल को अभी कुछ महीनों पूर्व भारत के सीमावर्ती देश पाकिस्तान के इलाके में भी देखा गया था, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पक्षी-प्रेमियों के लिए चिंता का विषय भी रहा। क्योंकि लुप्तप्राय होते इस विशालकाय पक्षी का पाकिस्तान में शिकारियों की नज़र में आना बहुत आसान है।
गोडावण पक्षी (Project Great Indian Bustard Bird) के प्रजनन का मौसम आमतौर पर मानसून के दौरान जैसे की जुलाई से सितंबर के मध्य का होता है। इस दौरान नर पक्षी एक प्रकार से आकर्षक प्रदर्शन करते हैं, जिसमें वे अपने पंख फुलाते हैं और गरदन को फुलाकर मादा को लुभाते हैं। मादा एक बार में केवल एक से दो अंडे ही देती है, जिस कारण से या पक्षी अपने अण्डों के संरक्षण के लिए और भी संवेदनशील नज़र आते हैं।
वर्तमान में गोडावण पक्षी की लगातार घटती संख्या के कारण IUCN (International Union for Conservation of Nature) द्वारा “गंभीर रूप से संकटग्रस्त” (Critically Endangered) घोषित किया गया है। कुछ वर्षों पूर्व इनकी संख्या हजारों में थी, लेकिन अब अनुमान है कि भारत में इनकी आबादी करीब-करीब 100 से भी कम हो चुकी है।
गोडावण पक्षी के विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे के मुख्य कारण –
मुक्य तौर पर इनके प्राकृतिक आवास का नुकसान होना ही इन गोडावण पक्षी के विलुप्त होने की कगार पर पहुंचने के मुख्य कारण है, जिसमें खेती में इस्तमाल होने वाले जहरीले और कीटनाशक खाद और अन्य प्रकार के बुनियादी ढांचे के विकास के कारण इनकी संख्या के साथ-साथ इनके आवास भी उजड़ते जा रहे हैं। दुसरे कारणों में बिजली की तारों से टकराव भी है, जिससे उड़ते समय कई पक्षियों की मृत्यु हो जाती है। जंगलों का लगातार कम होना, अधिक गर्मी पड़ना और हर जगह अब मानवीय गतिविधियों के होने से इनका प्राकृतिक आवास सिमटता जा रहा है।
सरकारी स्तर पर संरक्षण के प्रयास –
हालाँकि, भारत सरकार ने इसे बचाने के लिए कुछ कदम अवश्य उठाए हैं, जिनमें से “प्रोजेक्ट गोडावण” भी एक है। राजस्थान के डेजर्ट नेशनल पार्क को इसके संरक्षण के लिए प्रमुख क्षेत्र संरक्षित किया गया है। कुछ स्थानों पर प्रोजेक्ट गोडावण के तहत कृत्रिम प्रजनन और संरक्षण कार्यक्रम भी शुरू किए गए। लेकिन उसका असर अभी ठीक से सामने दिख नहीं रहा है।
प्रोजेक्ट गोडावण –
“प्रोजेक्ट गोडावण” भारत सरकार और कुछ अन्य संरक्षण संगठनों द्वारा शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य गोडावण पक्षी यानी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड को विलुप्त होने से बचाना और इसकी आबादी को बढ़ाना है। यह प्रोजेक्ट मुख्य रूप से राजस्थान के जैसलमेर और अन्य क्षेत्रों में केंद्रित है, जहाँ गोडावण का प्राकृतिक आवास है।
प्रोजेक्ट गोडावण से लाभ –
कृत्रिम प्रजनन में सफलता – इस प्रोजेक्ट के तहत कृत्रिम गर्भाधान और कैप्टिव ब्रीडिंग (Captive Breeding) तकनीकों का उपयोग करके गोडावण के चूजों को सफलतापूर्वक पैदा किया गया है। उदाहरण के लिए, जैसलमेर में 2024 में एक स्वस्थ चूजे का जन्म इस तकनीक से हुआ, जो संरक्षण में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।
आबादी में संभावित वृद्धि –
गोडावण पक्षियों की कुल आबादी जो पहले 100 से भी कम रह गई थी, अब इन संरक्षण प्रयासों से उम्मीद है की धीरे-धीरे बढ़ सकती है। कृत्रिम प्रजनन केंद्र जैसे रामदेवरा और सम क्षेत्र (जैसलमेर) में इनके अंडे संग्रहण और हैचिंग की प्रक्रिया ने इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाया है।
आवास संरक्षण –
इस परियोजना के तहत गोडावण के प्राकृतिक आवास, जैसे डेजर्ट नेशनल पार्क (राजस्थान), को विकसित और संरक्षित करने के लिए प्रयास किए गए हैं। इसके अलावा बिजली की तारों को भी भूमिगत करने और शिकार पर रोक जैसे कदमों से उनके जीवन को खतरा कम हुआ है।
जागरूकता और स्थानीय भागीदारी –
प्रोजेक्ट के तहत स्थानीय समुदायों को गोडावण का महत्त्व और इसके प्रति जागरूक किया और उन्हें संरक्षण कार्यों में शामिल किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि इससे न केवल गोडावण की सुरक्षा बढ़ी है, बल्कि स्थानीय लोगों को पर्यावरण संरक्षण का महत्व भी समझ आ रहा है।
पारिस्थितिकी संतुलन –
गोडावण एक ऐसी प्रजाति का पक्षी है जिसके संरक्षण से शुष्क घास के मैदानों की पूरी पारिस्थितिकी को लाभ मिलता है। इस पक्षी के द्वारा अन्य कई प्रजातियों के जीव जैसे कीड़े, सरीसृप और छोटे स्तनधारियों का भी संतुलन बनाए रखा जा सकता है। प्रोजेक्ट गोडावण के तहत वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला है की इसकी प्रजनन प्रक्रिया, व्यवहार और आवश्यकताओं के द्वारा भविष्य में अन्य संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए भी लाभ लिया जा सकता है।
सांस्कृतिक और पर्यटन लाभ –
गोडावण राजस्थान का राज्य पक्षी है, और इसके संरक्षण से क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान मजबूत होती है। साथ ही, यह पक्षी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। लेकिन, प्रोजेक्ट गोडावण के समक्ष कुछ ऐसी राजनैतिक चुनौतियाँ भी आ रहीं हैं जो इस काम से कहीं अधिक बड़ी साबित होती दिख रहीं हैं जैसे की इसके लिए सीमित बजट। जिसके कारण इसकी धीमी प्रजनन दर, और इस प्रोजेक्ट के प्रति स्थानीय लोगों में जागरूकता का अभाव देखने को मिल रहा है।
गोडावण पक्षी के संरक्षण के लिए जून 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने “प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड” की शुरुआत की थी। “प्रोजेक्ट गोडावण” के तहत भारत में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण पर अब तक हुए कुल खर्च के बारे में सटीक और आधिकारिक आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि यह एक विशिष्ट, एकीकृत “प्रोजेक्ट” के रूप में नामित नहीं आता, जैसा कि “प्रोजेक्ट टाइगर” या “प्रोजेक्ट एलिफेंट” के मामले में है। इसलिए यह कहना संभव नहीं है की इसी एक प्रोजेक्ट के लिए अब तक कितना धन दिया गया है और कितना खर्च हो चुका है।
हालांकि, कुछ संदर्भों से अनुमान लगाया जा सकता है, जैसे कि- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण के लिए वर्ष 2011 में एक रिकवरी प्रोग्राम शुरू किया गया था, जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर काम शुरू किया। इस प्रोग्राम के तहत प्रजनन केंद्र स्थापित करने, आवास संरक्षण, और बिजली लाइनों को भूमिगत करने जैसे कदम उठाए गए। 2021 तक, सरकार ने बताया था कि इस प्रजाति के संरक्षण के लिए कई करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन प्रोजेक्ट गोडावण से जुड़े सटीक आंकड़ा स्पष्ट नहीं है।
बजट आवंटन: सभी प्रकार के वन्यजीव संरक्षण के लिए वर्ष 2023-24 में भारत सरकार का वार्षिक बजट लगभग 300-350 करोड़ रुपये था। इसमें से गोडावण के लिए विशेष रूप से कितना खर्च हुआ, यह अलग से प्रकाशित नहीं है। किन्तु फिर भी एक अनुमान है कि पिछले एक दशक में गोडावण संरक्षण पर 50-100 करोड़ रुपये के बीच खर्च हुआ होगा, जिसमें इस पक्षियों का प्रजनन कार्यक्रम, आवास प्रबंधन, और जागरूकता अभियान आदि शामिल हैं।
हालिया रिपोर्ट्स की माने तो 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान और गुजरात में बिजली लाइनों को भूमिगत करने का आदेश दिया था, क्योंकि ये गोडावण की मृत्यु का प्रमुख कारण हैं। जबकि इस परियोजना की लागत अरबों रुपये में अनुमानित है, लेकिन यह अभी तक भी पूरी तरह लागू नहीं हुई है। क्योंकि इसके बजट और खर्च दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। मार्च 2025 तक भी “प्रोजेक्ट गोडावण” या ग्रेट इंडियन बस्टर्ड संरक्षण पर कुल खर्च का सटीक आंकड़ा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं।
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