
अजय सिंह चौहान | उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के पास ही में स्थित रुद्र सरोवर का पौराणिक महत्त्व और इतिहास कोई साधारण नहीं है। इस रुद्र सरोवर को, जिसे कभी-कभी रुद्र सागर भी कहा जाता था आज से करीब दो सौर से तीन सौ वर्षों पूर्व तक भी एक प्राचीन और पवित्र जलाशय हुआ करता था, क्योंकि यह स्थान उज्जैन की धार्मिक और पौराणिक परंपराओं से गहरे जुड़ा हुआ था। हालाँकि आज भी इसका धार्मिक महत्त्व तो वही है लेकिन संवेधानिक सरकारों के कारण आज यह केवल सरकारी कागजों और फाइलों में ही सिमट कर रह गया है। रुद्र सरोवर महाकालेश्वर मंदिर और हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर के बिच खाली पड़े उसी गड्डे को ही कहा जाता है जहां आजकल महाकाल कोरिडोर के रूप में विकसित किया गया है। यदि सरकार को इसका महत्त्व ज्ञात होता तो आज यह सरोवर फिर से पवित्र जल से सराबोर हो चूका होता और इस तरह से प्लास्टिक फाइबर की मूर्तियों से अपवित्र नहीं हुआ होता। क्योंकि इसका महत्व स्कंद पुराण, शिव पुराण जैसे पवित्र ग्रंथों में वर्णित है। न की किसी साधारण सी पुस्तक में। तो आइए, इससे जुड़े अन्य पौराणिक महत्त्व और इतिहास को भी समझते हैं।
रुद्र सरोवर का पौराणिक महत्व –
तो उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के पास ही में स्थित इस रुद्र सरोवर का उल्लेख स्कंद पुराण के अवंति खंड में विस्तार मिलता है, जो उज्जैन (प्राचीन नाम अवंतिका) की महिमा का वर्णन करता है। इस पुराण के अनुसार, यह सरोवर भगवान शिव के रुद्र रूप से संबंधित है। “रुद्र” शब्द स्वयं शिव के उस स्वरूप को दर्शाता है जो संहारक और कल्याणकारी दोनों ही है। मान्यता है कि इस सरोवर का निर्माण स्वयं भगवान शिव के आशीर्वाद से हुआ था, इसीलिए यह सरोवर उनके प्रिय स्थानों में से एक है।
उत्पत्ति की कथा –
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब उज्जैन में दूषण नामक राक्षस ने उत्पात मचाया, तो भगवान शिव ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए महाकाल रूप में अवतार लिया। दूषण का वध करने के बाद, शिव ने उज्जैन के लोगों के कल्याण के लिए यहाँ स्थायी रूप से निवास करने का निर्णय लिया। इसी दौरान उनके रुद्र रूप की शक्ति से रुद्र सरोवर का उद्गम हुआ। कहा जाता है कि यह सरोवर उस स्थान पर प्रकट हुआ जहाँ शिव ने अपने त्रिशूल से धरती को स्पर्श किया था, जिससे एक पवित्र जल स्रोत उत्पन्न हुआ।
क्षिप्रा नदी और रुद्र सरोवर का संबंध –
रुद्र सरोवर का संबंध पवित्र क्षिप्रा नदी से भी माना जाता है, जो उज्जैन की जीवनरेखा है। स्कंद पुराण में लिखा है: –
“महाकाल: सरिच्छिप्रा गतिश्चैव सुनिर्मला, उज्जयिन्यां विशालाक्षीं वास: कस्य न रोचते।”
अर्थात, जहाँ महाकाल और क्षिप्रा का निर्मल जल बहता है, वह उज्जैन सभी को प्रिय है। कुछ विद्वानों का मानना है कि रुद्र सरोवर कभी क्षिप्रा नदी का ही हिस्सा रहा होगा या उससे जुड़ा हुआ एक प्राकृतिक जलाशय था, जो बाद में पौराणिक मान्यताओं के साथ एक स्वतंत्र तीर्थ बन गया।
धार्मिक महत्व –
- मोक्ष प्राप्ति का स्थल: रुद्र सरोवर में स्नान करने से पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है। यहाँ स्नान करने वाले भक्तों का मानना है कि यहाँ का जल शिव की कृपा से पवित्र है और आत्मा को शुद्ध करता है।
- सिंहस्थ कुंभ: हर 12 वर्ष में उज्जैन में आयोजित होने वाला सिंहस्थ कुंभ मेला भी रुद्र सरोवर के महत्व को बढ़ाता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु यहाँ स्नान करने आते हैं। हालाँकि क्षिप्रा नदी का रामघाट मुख्य स्नान स्थल है, लेकिन रुद्र सरोवर भी इस पर्व में विशेष स्थान रखता है।
- शिव का निवास: चूँकि यह सरोवर महाकालेश्वर मंदिर के समीप है, इसे शिव का आशीर्वाद प्राप्त क्षेत्र माना जाता है। यहाँ की शांति और पवित्रता भक्तों को शिव की उपस्थिति का अनुभव कराती है।
ऐतिहासिक संदर्भ –
रुद्र सरोवर का इतिहास केवल पौराणिक ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक भी है। प्राचीन काल में उज्जैन भारतीय खगोलशास्त्र और समय गणना का केंद्र हुआ करता था। इसलिए विद्वानों का मानना है कि रुद्र सरोवर के आसपास के क्षेत्र में वैदिक काल से ही कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान होते थे। मराठा काल में, जब महाकालेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ, तब रुद्र सरोवर के संरक्षण और सौंदर्यीकरण पर भी विशेष ध्यान दिया गया था, लेकिन उसके बाद इसका जलस्तर धीरे-धीरे घटता आया और उसकी सुखी भूमि पर बस्तियां बसने लग गई। धीरे धीरे इस रूद्र सरोवर का आकर और क्षेत्रफल घटने लगा और आज यह न सिर्फ सिमट चुका है बल्कि गंदगी से भी भर चुका है।
वर्तमान स्थिति –
आज रुद्र सरोवर महाकालेश्वर मंदिर परिसर के निकट एक शांत और पवित्र स्थल के रूप में मौजूद है। हालाँकि समय के साथ इसका आकार और स्वरूप कुछ बदल गया है, फिर भी यह भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। हाल के वर्षों में मध्य प्रदेश सरकार ने “महाकाल लोक” परियोजना के तहत इस क्षेत्र को और विकसित करने का प्रयास किया है, जिसमें रुद्र सरोवर की सफाई और संरक्षण भी शामिल है।
रुद्र सरोवर का पौराणिक इतिहास भगवान शिव की महिमा, उज्जैन की पवित्रता और यहाँ की प्राचीन परंपराओं का प्रतीक है। यह न केवल एक जलाशय है, बल्कि एक आध्यात्मिक केंद्र भी है जो भक्तों को शांति और मुक्ति का मार्ग दिखाता है। यदि आप उज्जैन जाएँ, तो महाकालेश्वर के दर्शन के साथ-साथ रुद्र सरोवर के दर्शन अवश्य करे। हालाँकि एक समय था जब इसमें देवता भी स्नान किया करते थे। आधुनिक इतिहास में जाएँ तो आज से करीब 150 वर्षों पूर्व तक भी इसमें स्नान किया जाता था, लेकिन आजादी के बाद की सरकारों ने इसकी इतनी अनदेखी की है कि आज यह विलुप्त ही हो चुका है और उसके स्थान पर आज से करीब तीन वर्ष पूर्व तक इस स्थान पर कोत कूड़े और बरसाती पानी की सडांध ही हुआ करती।