अजय सिंह चौहान || अगर हम अपने आस-पास के किसी भी आम या ख़ास हिन्दू व्यक्ति से पूछें कि- “उसके लिए बड़ा क्या है- पैसा या हिंदू धर्म?” तो वह व्यक्ति बस यही जवाब देगा कि- “फिलहाल तो मेरे लिए पैसा ही सबसे बड़ा है। क्योंकि इस समय पैसे की उसको सख्त जरुरत आन पड़ी है।“ जबकि किसी भी इस्लामी मजहब के गरीब से गरीब व्यक्ति को पूछा जाय कि- “उसके लिए पैसा बड़ा है या उसका इस्लाम?” तो वह बिना कुछ सोचे विचारे मात्र यही उत्तर देगा कि- “उसके लिए सबसे बड़ा उसका खुद का मजहब आता है बाद में पैसा।“
यहाँ सवाल आता है की आखिर ऐसा क्या कारण है कि एक हिन्दू के लिए सबसे पहले पैसा ही आता है, बाद में धर्म? इस्लाम में ऐसा क्यों नहीं है? तो इसका उत्तर ये है कि- जब तक हिन्दुओं के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा में गुरुकुल और संस्कृत के साथ-साथ मातृभाषा और सनातन धर्म की मूल शिक्षा नहीं दी जायेगी तब तक कोई भी हिन्दू आगे चल कर अपने मूल धर्म को प्रथम नहीं कहेगा। क्योंकि इस्लाम अपनी प्रारंभिक शिक्षा में ऐसा ही कर रहा है इसलिए उसके अनुयायी पैसे और मजहब में से पहले अपने मजहब को ही मान्यता देता है।
चलो मान लिया जाय की पैसा बड़ा है। लेकिन, यह भी सच है कि कई हिन्दू ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि सिर्फ हिन्दू धर्म ही उनके लिए बड़ा है, तो इसका मतलब यहाँ यही है की ये वही हैं जिन्होंने भविष्य के लिए ही नहीं बल्कि वर्तमान में भी सच्चे अर्थों में अपने मूल धर्म को न सिर्फ बचा कर रखा हुआ है बल्कि उसका प्रचार भी कर रहे होते हैं और उसके लिए कुछ न कुछ कार्य भी कर रहे होते हैं।
अक्सर हम सुनते हैं कि वेतन बढ़ाने की मांगो को लेकर कई बार सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं या कुछ अन्य तरीके अपनाते हैं। लेकिन हैरानी की बात तो ये है की किसी कर्मचारी संघ ने आज तक कभी भी सरकार को इस बात के लिए हड़ताल की धमकी नहीं दी है कि हिन्दू धर्म के खिलाफ बोलने वाले किसी भी मौलाना या अन्य किसी भी व्यक्ति या संस्थान के खिलाफ कारवाई करे, नहीं तो हम हड़ताल पर चले जाएंगे।
दरअसल ऐसा इसलिए नहीं होता है क्योंकि उन सभी के लिए भी पैसा ही बड़ा है, न की हिन्दू धर्म। यदि यहां धर्म की बात आ भी जाती तो भी वे हड़ताल की धमकी कभी नहीं देते। लेकिन आज ये बात कोई भी नहीं समझ पा रहा है की किस प्रकार से सरकारी नौकरियों के जरिये विशेष तरीके का जिहाद पैदा किया जा रहा है, और वो भी हमारी ही सरकारों के सहयोग के द्वारा, हमारे ही विरुद्ध।
हालांकि ऐसा भी नहीं है की इस बात का ज्ञान मुस्लिम समाज के पास नहीं है। क्योंकि ये बात वे भी जानते हैं की जब उनके अपने लोग अधिक-से-अधिक संख्या में सरकारी पदों पर आ जाएंगे तो आए दिन हड़ताल या अन्य प्रकार की धमकी देने लग जाएंगे, और उसके बाद अपने “गजवा-ए-हिंद” जैसे एजेंडा को सफल बनाने की कोशिश करेंगे। क्योंकि तब उनके लिए ऐसा करना बहुत ही आसान हो जाएगा। शायद, यही कारण है कि जल्दी से जल्दी सरकारी पदों पर उस विशेष समुदाय की भर्ती तेज़ी से की जा रही है।
यह बात साफ़ है कि उस विशेष मजहब का लक्ष्य और प्राथमिकता पैसा नहीं है, ये बात उन सबको अच्छे से पता है, क्योंकि वे हिन्दुओं की भाँती मॉडर्न स्कूलों में नहीं पढ़ते। उनके अपने शिक्षक और अपनी विशेष तालीम व्यवस्था ही उनके लिए उनका मजहब है। हिन्दुओं की नज़र में वे गलत जरूर हैं, लेकिन देखा जाय तो वे गलत बिलकुल भी नहीं हैं। वे एकदम सही हैं और अपनी उसी राह पर चल भी रहे हैं। वे कहीं भी, कभी भी भटक नहीं रहे हैं, न तो उनमें से कोई भी एक व्यक्ति भटक रहा है और न ही उनका सम्पूर्ण समुदाय ही भटक रहा है।
मुस्लिम समुदाय में हर एक व्यक्ति अपने धर्म के पक्के हैं, अपनी नीतियों, नियमों और अपने वचनों पर वे कायम हैं। वे अपने उसकी धर्म का पालन कर रहे हैं, अपनी परंपरा और अपनी समस्याओं को मिल-बैठ कर सुलझा रहे हैं। वे अपनी दैनिक जीवन शैली और अपने व्यवसाय आदि में अपने मजहब को प्रथम स्थान पर रखते हैं, क्योंकि यही उनका मजहब सिखाता है। वे भूखे भी रह सकते हैं लेकिन अपने मजहब को धोखा देना नहीं चाहते।
इस्लाम के अनुसार, काफिरों के साथ साम, दाम, दंड, भेद, धोखा, फरेब तथा और भी बहुत कुछ कुछ जायज है, क्योंकि वे अपनी मूल शिक्षा के आधार पर चल रहे हैं। ऐसे में भले ही वे हमारी नज़र में वे गलत हैं, लेकिन वे अपनी खुद की नज़र में एकदम सही हैं। मैं स्वयं भी मानता हूँ की यहाँ वे एकदम सही हैं, क्योंकि वे वही कर रहे हैं जो बचपन से उनको धर्म पर आधारित शिक्षा व्यवस्था और जीवन शैली तथा विचार और गतिविधियाँ करने का अधिकार देती है।
इधर हम हिंदूओं का लक्ष्य हमेशा से पैसा ही रहा है। पैसे के कारण ही हिन्दू काटे जाते रहे हैं और आगे भी कटते रहेंगे। पैसे का लालच देकर ही हमारी खुद की चुनी हुई सरकारों ने हमारे मीडिया में सच को सन्नाटा बना दिया और झूठ का शोर मचा दिया है। पैसे के लालच में ही तो हमारे इतिहासकारों ने हमारा सच हमसे छीन लिया है। पैसे के कारण ही तो हमारे मठ-मंदिरों पर सरकारों का कब्जा है। पैसे के कारण ही गरीबों के घरों में सन्नाटा है। उधर दूसरी तरफ देखें तो, पैसे के कारण ही सड़कों पर महंगी-महंगी और नई-नई गाड़ियां दौड़ रहीं हैं। पैसे के कारण ही भारत डवलप हो रहा है। पैसे के कारण ही खेल के मैदानों में हिन्दुओं की भीड़ का शोरे और मंदिरों में सन्नाटा है।
हालांकि देखा जाय तो अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, अगर हिन्दू चाहें तो सड़कों पर उतर कर मात्र 6 से 7 दिनों में ही सरकारों पर दबाव बनाकर अपने मंदिरों और मठों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करवा सकते हैं। अपनी शिक्षा-व्यवस्था और अपने मूल धर्म को स्थापित करके भारत को हिंदूराष्ट्र बनवा सकते हैं और सनातनवादी संविधान लागू करवा सकते हैं। लेकिन समस्या यही है कि हिन्दुओं का मार्गदर्शक कोई नहीं है।
दरअसल, हमारी समस्या ये है कि जिन हिन्दुओं के पास अथाह पैसा है उनके पास न तो उनका मूल धर्म है और न ही धर्म का ज्ञान है। उधर दूसरी तरफ देखें तो जिन हिन्दुओं के पास अपना मूल धर्म है उनके पास पैसा ही नहीं है। कुछ लोग जो अपने मूल हिन्दू धर्म के मार्गदर्शक हैं भी, तो उनको सरकारों ने गुमनामी में जीने को विवश कर दिया है। कुछ कालनेमि ऐसे भी हैं जो धर्म को ठेके पर लेकर चला रहे हैं। अधिकतर राजनेता मूल रूप से हिन्दू धर्म से ही निकल रहे हैं, लेकिन शत्रुता वे अपने ही धर्म और राष्ट्र से कर रहे हैं। धर्मवाद को वे नहीं जानते, लेकिन राष्ट्रवाद के बेसुरा ढोल पिटते रहते हैं और करोड़ों हिन्दुओं को उसपर झुमने के लिए विवश करते हैं। यही राजनीति है और यही धर्म है।
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