यूं तो सभी सरकारें, संस्थाएं एवं समाजसेवी आम जनता की ही सेवा में लगे हुए हैं। इनकी सेवा से आम लोगों का भला कम हो या ज्यादा किंतु सेवा करने वाले किसी न किसी रूप में अपने मकसद में अवश्य कामयाब हो जाते हैं। जो लोग पूर्ण रूप से आम आदमी का जीवन जीते हैं यानी सार्वजनिक अस्पतालों, स्कूलों, परिवहन एवं अन्य सार्वजनिक सेवाओं का उपयोग करते हैं, वे अच्छी तरह बता सकते हैं कि वास्तव में उनकी जिंदगी कैसी चल रही है? आम लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में जितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, उसको मात्र कुछ पंक्तियों में लिख कर व्यक्त नहीं किया जा सकता है।
आम आदमी किसी भी कार्य के लिए कहीं भी जाता है तो उसे लंबी-लंबी लाइनों का सामना करना पड़ता है। पुलिस स्टेशन से लेकर तमाम सरकारी दफ्तरों में अधिकांश मामलों में बेवजह जलील होना पड़ता है। जो लोग सरकारी अस्पतालों में अपना और अपने परिवार का इलाज नहीं करवाते हैं, वे इन अस्पतालों की बहुत तारीफ करते हैं किंतु वे भी अपनी जगह सही हैं क्योंकि उन्हें तो सरकारी अस्पतालों की तरफ नजर उठाकर देखना भी नहीं है।
राजधानी दिल्ली जैसे महानगर की बात की जाये तो सुबह और शाम बसों में खड़े होने की जगह मिल जाये तो बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। तमाम स्थानों पर जहां बसें रुकती हैं वहां बरसात, गर्मी एवं ठंड से बचने के लिए कोई उपाय ही नहीं है। एक बीमार व्यक्ति जिसकी जेब में ओला, उबर, कार, टैक्सी या आटो से सरकारी अस्पताल पहुंचने के लिए पैसा नहीं है। किसी तरह से यदि वह पहुंच जाता है तो उसे आधे-अधूरे इलाज के बाद टरका दिया जाता है। ऐसी स्थिति में स्वयं सोचा जा सकता है कि उसके दिल पर क्या गुजरती होगी? भारत को महान एवं विश्वगुरु बनना है तो सबसे पहले इस बात की व्यवस्था करनी होगी कि गरीब से गरीब व्यक्ति को दवाई एवं पढ़ाई के लिए दर-दर की ठोकरें न खानी पड़े। कमजोर से कमजोर व्यक्ति पुलिस स्टेशनों में बिना किसी भय एवं संकोच के जा सके।
आम आदमी यदि थानों में जाने से डरे या कतराये तो समझ जाना चाहिए कि अभी हम बहुत पीछे हैं और बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। प्रशासनिक अधिकारी वैसे तो आम जनता के सेवक हैं किंतु तमाम अधिकारियों की जीवनशैली देखकर ऐसा लगता है कि वास्तव में वे राजा हैं। वैसे भी यह बात हर किसी को समझ लेनी चाहिए कि कोई खा-खाकर परेशान हो और कोई खाने बिना मरे, यह स्थिति बहुत दिनों तक चल नहीं सकती है।
समाज में तमाम माफिया एवं अपराधी ऐसे मिल जायेंगे, जो सिस्टम से त्रस्त होकर पैदा हुए हैं। ऐसे लोग पेशेवर अपराधियों से अधिक खतरनाक होते हैं। हालांकि, सोशल मीडिया और आधुनिकता के दौर में सुधार तो हो रहा है किंतु उसकी रफ्तार बहुत धीमी है। इसे और अधिक तेज करने की आवश्यकता है, क्योंकि समाज में यदि कोई गैप होता है तो उसे भरने के लिए परिस्थितियां स्वतः निर्मित हो जाती हैं। अतः सभी को सतर्क हो जाने की नितांत आवश्यकता है।
– जगदम्बा सिंह