अजय चौहान || दुबई में जिस हिंदू मंदिर (Hindu temple in the UAE) के उद्घाटन का शोर और प्रचार हो रहा है उसके विषय में यह ध्यान दें कि यह कोई हिंदू मंदिर नहीं बल्कि एक विशेष विचारधारा का अड्डा है जो हिंदू धर्म से अलग अपनी एक अलग दुनिया और “कल्ट” यानी पंथ का एक और विस्तार तथा षड्यंत्रों का नया अड्डा है और यह है “स्वामी नारायण संप्रदाय” जिसे स्वयं हमरी ही सरकारों से संरक्षण प्राप्त है।
इस प्रकार के अनेकों मंदिर आज देश और दुनिया में कई स्थानों पर स्थापित किये जा चुके हैं जिनको धर्म नहीं बल्कि पर्यटन के लिए इस्तमाल किया जाता है। लेकिन एक आम हिन्दू व्यक्ति इनमें भेद नहीं कर पाता और उनमें भगवान् दो ढूंढ़ने के बजाय उनकी भाव्यता को देकता रहता है, जबकि जो सनातन के मंदिर होते हैं उन्हें भाव्यता को नहीं बल्कि उसके देवी-देवता को निहारने और दर्शन करने जाया जाता है।
जिस प्रकार से हिंदू धर्म से अलग हो कर इसे धीरे धीरे कमजोर करना और फिर इसको बदनाम करने के लिए आर्य समाज (मूर्ति पूजा का विरोध), RSS (संघ भी मूर्ति पूजा और वेद पुराणों, देवी देवताओं का विरोधी), ब्रह्मकुमारी समाज, बौद्ध, मोरारी बापू (कथावाचक), निर्मला माता (सहज योग), जग्गी वासुदेव आदि अनेकों हुए हैं उसी प्रकार से यह भी यानी “स्वामी नारायण संप्रदाय” है। इन सभी लोगों ने धर्म से विमुख होकर अपने आप को ही धर्म से ऊपर स्थापित करने के लिए एक नया कल्ट यानी नए-नए पंथ स्थापित करने प्रारम्भ कर दिए ताके उन्हें लोग जान सकें। जबकि सत्य तो ये है कि यदि आपको कोई जाने तो उसके लिए आपको तुलसी दास जैसा बनना पड़ेगा और मीरा जैसे भक्ति करनी पड़ेगी, किन्तु इनके अनुयाइयों ने भी धर्म को नकार दिया और इन्हीं दिनारी बाबाओं की भक्ति करनी प्रारम्भ कर दी।”स्वामी नारायण संप्रदाय” की स्थापना वर्ष 1781 में जन्में घनश्याम पांडे द्वारा हुई है जिसने अपने मूल धर्म से विमुख होकर एक नया पंथ खड़ा कर लिया।
स्वामी नारायण समाज किसी भी हिंदू देवी देवता को नहीं मानता, बल्कि उल्टा उनका अपमान करने के लिए आतुर रहता है, लेकिन दिखावे और हिंदुओं को अपनी और लाने के लिए इसमें देवी देवताओं की मूर्तियों को भी स्थापित करता है ताकि हिंदू इनसे आकर्षित हों और उनसे जुड़े और धन राशि का दान करें। और क्योंकि मूल रूप से और मानसिक तौर पर ये लोग हिंदू धर्म से ही निकले हैं इसीलिए ये अपने धार्मिक स्थलों को मंदिर की ही संज्ञा देते हैं और आकार प्रकार में भी उसी का अनुसरण भी करते हैं।
ध्यान देने वाली बात ये भी है की हमारी सरकारों, राजनेताओं, पार्टियों, संगठनों और किसी भी नौकरशाह आदि को हिंदू धर्म की मूल समझ नहीं है इसलिए वे भी अपने “मूल सनातन धर्म” से दूर हो चुके हैं और इन अन्य धर्मियों के साथ हो जाते हैं। क्योंकि इन पंथों में उन्हें विशेष सम्मान, प्रचार और अन्य सुविधाएं भी मिल जाती हैं। जबकि सनातन धर्म में केवल देवी देवताओं को ही महत्व दिया जाता है। यही कारण है जी ये लोग प्रचार, पद, पैसा और सम्मान की लालच में अपने मूल धर्म का त्याग कर देते हैं।
इसके अलावा इसका दूसरा कारण यह भी है कि स्वयं हम या हमारी सरकारें अपने मूल धर्म का न तो प्रचार करते हैं और न ही उसके खिलाफ हो रहे षड्यंत्रों को रोक पाते हैं और न ही उसका प्रतिकार कर पाते हैं इसलिए अन्य धर्मी अर्थात विधर्मी हम पर हावी हो जाते हैं। जबकि अब्राहमिक विचारधारा अपने धर्म का खूब प्रचार करती है और इसके लिए अपने प्रचारकों को सरकारी अनुसार तथा संरक्षण भी प्राप्त करवाती है, ताकि वे हिंदु धर्म के खीलाफ खुला षड्यंत्र रच सकें। उसका मूल कारण भी यही है कि हम उनकी गतिविधियों को तो महत्व देते हैं किंतु उनके षड्यंत्रों को नहीं समझ पाते हैं, और उनकी और आकर्षित होते जाते हैं।
हमारे धर्म के ज्ञाता, ज्ञानी जन, तपी, आध्यात्मिक गुरु और चिंतक तथा शंकराचार्य आदि इन सब षड्यंत्रों और बातों से अनजान भी नहीं हैं कि सनातन के विरुद्ध क्या, क्यों और किस प्रकार से षड्यंत्र हो रहे हैं, किंतु समस्या ये आ रही है कि हमारी सरकार और आम व्यक्ति जो आज आधुनिकता में अंधे होते जा रहे हैं वे भी उन्हीं धर्म रक्षकों का विरोध करने लग जाते हैं और उन्हें बुरा कहने लगते हैं इसीलिए वे भी शांत रहते हैं।
इस बात पर भी ध्यान दें कि दुबई में जिस हिंदू मंदिर (Hindu temple in the UAE) के उद्घाटन का शोर और प्रचार हो रहा है उसके विषय में हमारे नेताओं के अलावा किसी भी शंकराचार्यों ने कभी कोई टिप्पणी नहीं की है, क्योंकि वे जानते हैं कि आज के हिंदू स्वयं उन्हीं का विरोध करेंगे की एक तो किसी मुस्लिम देश में मंदिर बन रहा है और आप ही उसका विरोध कर रहे हैं। लेकिन वे यह भी जानते हैं कि उस मंदिर के द्वारा भविष्य में सनातन धर्म का किस प्रकार से अपमान और उपहास किया जाएगा और हो सकता है कि वहां से हिंदू विरोधी षड्यंत्रों का भी स्वर उठें लगे।
ध्यान रहें कि जो पवित्र व्यक्ति अथवा साधु संत होता है वह इनके मंदिरों में कभी भी दिखाई नहीं देगा, क्योंकि वहां कहीं से भी सनातन धर्म के पवित्र मंदिरों वाली फीलिंग (आध्यात्मिक ऊर्जा का आभास) नहीं होता। इनसे तो अच्छा है की आप अपनी गली मुहल्ले के किसी भी छोटे मंदिर अथवा किसी पेड़ के नीचे स्थापित किसी भी देवी देवता की मूर्ति के आगे खड़े हो जाएं आपको सहज ही अनुभव हो जाएगा की आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव है अथवा नहीं।