यूनेस्को की संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट के अनुसार भारत में नदियों, झीलों, जलभृतों और मानव निर्मित जलाशयों से मीठे पानी की निकासी में बहुत ही तेजी से वृद्धि हो रही है, जबकि पिछले करीब 12 से 15 वर्षों में इन जलाशयों में जल एकत्रित करने की गति प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों ही तरीकों से लगभग आधी भी नहीं रही। हालाँकि रिपोर्ट के अनुसार यह स्थिति दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अनुभव की जा रही है लेकिन भारत में तो यह और भी भयानक दिख रही है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की नई जल रिपोर्ट ने वैश्विक आयाम के इस मूक संकट के बारे अपनी चेतावनी में स्पष्ट कहा है कि लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों लोग अपनी जिंदगी बचाने और आजीविका को बनाए रखने के लिए पानी से वंचित होते जा रहे हैं। इसके अलावा, वाटर स्कारसिटी क्लॉक, एक इंटरैक्टिव वेबटूल दिखाता है कि इस समय लगभग दो अरब से अधिक लोग ऐसे देशों में रह रहे हैं जो अब जल से जुड़ी तमाम समस्योन और तनाव का लगातार सामना कर रहे हैं। इस संख्या में लगातार भारी वृद्धि होती जा रही है और अभी इसके कम होने की कोई संभावना दिख नहीं रही है़, बल्कि इसमें और अधिक बढ़ोतरी होती दिख रही है।
वैश्विक स्तर पर सुखे से जुड़े तमाम प्रकार क़े आँकड़ों और जल की कमी से जुड़ी तनावपूर्ण स्थितियों के वर्ष 2019 के मानचित्र से पता चलता है की भारत के प्रमुख हिस्से, विशेष रूप से पश्चिम, मध्य और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ हिस्से अत्यधिक जल तनावग्रस्त हैं और पीने के पानी की कमी का भयंकर अभाव झेल रहे हैं। इस विषय पर नीति आयोग की रिपोर्ट, जो वर्ष 2018 में ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ जारी की गई थी उसके अनुसार देश में सबसे खराब जल संकट के बारे में चेतावनी दी है। इस रिपोर्ट कें अनुसार भारत में 50 से 55 करोड़ लोग पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं।
सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो ये है कि जिन क्षेत्रों में पानी की कमी या सबसे अधिक कमी है, वहां के आसपास क़े लिये भी कोई आम जल संग्रहण और भूमि जल संग्रहण आदि के लिये सरकारी या किसी स्व्यंसेवी संगठन क़े स्तर पर आज भी न तो कोई सरकारी योजना देखी गई और न ही इस प्रकार की किसी योजना पर कोई चर्चा ही हो रही है।
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