अजय सिंह चौहान || पवित्र श्री अमरनाथ यात्रा शिव भक्तों के लिए स्वर्ग की प्राप्ति का माध्यम मानी जाती है और इसी मान्यता के आधार पर भारत के कोने-कोने से और विदेशों से लाखों शिव भक्त श्री अमरनाथ बाबा की गुफा में प्रकृति के अद्भूत चमत्कार के दर्शन करने के लिए हर साल अनेकों प्रकार की बाधाएं पार करके सदियों से पहुंचते आ रहे हैं।
बाबा अमरनाथ के साक्षात दर्शन करने वालों का कहना है कि प्राकृतिक रूप से बनने वाले हिमशिवलिंग में इतनी अधिक चमक विद्यमान होती है कि देखने वालों की आंखों को चकाचैंध कर देती है। यह पवित्र गुफा अमरनाथ पर्वत की गोद में समुद्रतल से 12,756 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। प्राकृतिक रूप से निर्मित इस विशालकाय गुफा की भीतर की ओर गहराई 19 मीटर है, जबकि चैड़ाई 16 मीटर है और 130 फीट ऊंची है।
इस गुफा की प्रमुख विशेषता है इसमें प्राकृतिक रूप से शिवलिंग का निर्मित होना। प्राकृतिक रूप से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु हर साल यहां आते हैं।
श्रावण पूर्णिमा को यह हिमलिंग अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। इसमें आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा के आसपास आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है।
धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टी से अति महत्वपूर्ण श्री अमरनाथ यात्रा को कुछ शिव भक्त स्वर्ग की प्राप्ति का माध्यम बताते हैं तो कुछ लोग मोक्ष प्राप्ति का।
श्री अमरनाथ गुफा में ही स्थित पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां भगवती सती का कंठ भाग गिरा था। इसी गुफा में शिव लिंग के पास में प्राकृतिक रूप से बनीं बर्फ की तीन अन्य अलग-अलग स्वयंभू आकृतियां भी नजर आती हैं। जिन्हें शेषनाग, श्री गणेश पीठ व माता पार्वती पीठ के नाम से जाना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार यहां पर यानी इसी गुफा में भगवान शिव बर्फ के शिवलिंग के रूप में स्वयं स्थापित हुए थे। इसके साथ ही यहां भगवान गणेश, देवी पार्वती और काल भैरव को भी पूजा जाता है। ये तीनों आकृतियां भी मई से अगस्त के बीच स्वयं ही अस्तित्व में आती हैं और और उसके बाद स्वयं ही पिघल भी जाती हैं।
लेकिन अब सवाल उठता है कि गर्मी में तो बर्फ पिघलना शुरू होती है तो फिर गर्मियों में ही कैसे बनता है यह हिमलिंग? क्या यह चमत्कार या वास्तुशास्त्र का एक उदाहरण नहीं है कि चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है? चंद्र का संबंध शिव से माना जाता है। आखिर ऐसा क्या है कि चंद्र का असर इस हिमलिंग पर ही होता है। यहां इस क्षेत्र में अन्य गुफाएं भी हैं जहां बूंद-बूंद पानी गिरता रहता है, लेकिन वे सभी हिमलिंग का रूप क्यों नहीं ले पाते हैं?
वैज्ञानिकों का कहना है कि जिन प्राकृतिक स्थितियों में इस शिवलिंग का निर्माण होता है वह विज्ञान के तथ्यों से विपरीत है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बर्फ को जमने या बने रहने के लिए कम से कम शून्य डिग्री तापमान तक की जरूरत होती है और अमरनाथ यात्रा हर साल जून-जुलाई में शुरू होती है। ऐसे में इतना कम तापमान संभव नहीं होता।
कुछ वैज्ञानिकों का तर्क यह भी है कि गुफा में हवा का घुमाव कुछ ऐसा है कि यहां हर साल शरद ऋतु में प्राकृतिक रूप से विशाल शिवलिंग बन जाता है। और यही कारण है कि यहां के बाकी स्थानों की बर्फ पिघल जाने पर भी इस गुफा में यह शिवलिंग अपना अस्तित्व बनाए रखता है।
इस बारे में कुछ अन्य वैज्ञानिकों के तर्क हैं कि गुफा के आस-पास और इसकी दीवारों में मौजूद दरारे या छोटे-छोटे छेदों में से ठंडी हवा आती-जाती रहती है जिसके कारण गुफा में और उसके आस-पास बर्फ जमकर लिंग का आकार ले लेती है। लेकिन वैज्ञानिकों के इस तथ्य की कोई पुष्टि नहीं हुई है क्योंकि यह दोनों ही बातें तर्क पर आधारित है।
धर्म में आस्था रखने वाले लोग मानते हैं कि अगर यही नियम शिवलिंग बनने का है तो इस क्षेत्र में और भी कई सारी छोटी-बड़ी गुफाएं हैं जिनमें बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है वहां हिमलिंग क्यों नहीं बनता? दूसरी सबसे बड़ी बात कि इस गुफा के आस-पास मीलों तक कच्ची बर्फ पाई जाती है, जिसको छूने पर बिखर जाती है लेकिन यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि सिर्फ हिम शिवलिंग का निर्माण पक्की बर्फ से ही होता है। इसमें दूसरा सबसे बड़ा आश्चर्य यह भी है कि इस हिमलिंग की ऊंचाई चंद्रमा की कलाओं के साथ घटती-बढ़ती है।
चंद्रकला की बात करें तो ऐसा हमारे ग्रंथों में भी लिखा मिलता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को श्रीअमरनाथ की यात्रा को विशेष महत्व मिला। रक्षा बंधन की पूर्णिमा के दिन ही छड़ी मुबारक भी गुफा में बने हिमशिवलिंग के पास स्थापित कर दी जाती है।
पूरी तरह से आस्था और विश्वास के रूप में माने जाने वाले इस हिमलिंग के विषय में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसके बिल्कुल विपरित सोचते हैं। उनका मानना है कि अमरनाथ शिवलिंग का प्राकृतिक रूप से बनता कोई बड़ी चमत्कारिक घटना नहीं है।
गुफा में एक-एक बूंद पानी नीचे गिरता है जो धीरे-धीरे बर्फ के रूप में बदल जाता है और यही बर्फ लगभग 12 से 18 फीट तक ऊंचे शिवलिंग का आकार ले लेती है। कभी-कभी यह 22 फीट की ऊंचाई तक भी पहुंच जाती है। वहीं स्वामी अग्निवेश जैसों का मानना है कि अमरनाथ शिवलिंग का निर्माण कृत्रिम बर्फ से किया जाता है, इसलिए इसमें मात्र आस्था के और कुछ नहीं है।
जबकि स्वामी विवेकानंद ने भी खुद भी 8 अगस्त, 1898 में इस पवित्र गुफा की यात्रा की थी और अपनी उस यात्रा का उल्लेख करते हुए उन्होंने लिखा था कि – मैंने देखा कि बर्फ का लिंग स्वयं शिव है। मैंने ऐसी सुन्दर, इतनी प्रेरणादायक कोई चीज पहले नहीं देखी और न ही किसी धार्मिक स्थल का इतना आनंद लिया है।
तो अमरनाथ हिमशिवलिंग को लेकर बात यदि विज्ञान, आस्था और इसके पौराणिक या धार्मिक प्रमाण के बारे में की जाय तो सर्वप्रथम साक्ष्य के रूप में बाबा अमरनाथ जी की इस पवित्र गुफा और उसमें बनने वाले प्राकृतिक हिमलिंग का उल्लेख भृगू संहिता तक में भी मिलता है। पौराणिक साक्ष्यों और किंवदंतियों के आधार पर देखा जाय तो इस धरती पर अमरनाथ गुफा की खोज सर्वप्रथम भृगु ऋषि ने की थी। और तब से लेकर आज तक लगभग हर साल यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती आई है।
इस पौराणिक साक्ष्य के अलावा यदि बात मध्य युग या आधुनिक युग की की जाये तो उसमें भी बाबा अमरनाथ को लेकर इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि 12वीं शदी में महाराज अनंगपाल ने अपनी पत्नी महारानी सुमन देवी के साथ अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। उनकी इस यात्रा का जिक्र 16वी सदी में लिखी गयी “वंशचरितावली” नाम की एक किताब में मिलता है। यह किताब आज भी मौजूद है। इसके अलावा उस समय के सुप्रसिद्ध कवि, नाटककार और इतिहासकार कल्हण की “राजतरंगिनी तरंग द्वितीय” में भी इस बात का जिक्र है कि कश्मीर के राजा सामदीमत शिव के भक्त थे और वे पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ से बने अद्भूत और भव्य शिवलिंग की पूजा करने के लिए जाया करते थे।
एक अन्य साक्ष्य के अनुसार 16वीं शताब्दी के मुस्लिम शासक अकबर के इतिहासकार अबुल फजल ने आइना-ए-अकबरी में इस गुफा के बारे में लिखा था कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थान है। गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है।
तो आस्था और पौराणिक या धार्मिक प्रमाणों के दम पर कहा जा सकता है कि कुछ लोगों के स्वार्थ या विज्ञान को आधार बनाकर बाबा अमरनाथ के पवित्र हिमशिवलिंग की पवित्रता को बयानों और तर्कों के आधार पर नहीं देखा जा सकता है।
बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा में हर वर्ष बनने वाले स्वयंभू हिमलिंग की प्रकृति की रक्षा करना आज बहुत जरूरी हो गया है। कुछ वर्षों से बाबा अमरनाथ गुफा के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है, जिसके चलते वहां होने वाली मानवीय गतिविधियों से गर्मी उत्पन्न हो रही है।
आंकड़े बताते हैं कि सन 2011 में लगभग 635, 000 श्रद्धालुओं ने पवित्र गुफा के दर्शन किए थे। यह आंकड़ा अपने आप में ही एक रिकाॅर्ड है। जबकि यह संख्या सन 2012 में 625,000 और सन 2013 में 3,50,000 थी। इसके अलावा वहां कुछ श्रद्धालु अब धूप और दीप भी जलाने लगे हैं जो कि हिमलिंग और गुफा के प्राकृतिक अस्तित्व के लिए खतरा सिद्ध हो रहा है।
आने वाले समय में कहीं ऐसा न हो कि गुफा के सामने एकत्रित होने वाले श्रद्धालुओं का जनसैलाब और गुफा से कुछ ही दुरी पर लगने वाले टेंट और भण्डारों में बनने वाले भोजन के लिए जलने वाली आग की गर्मी कहीं श्रद्धा पर भारी पड़ने लगे।