अजय सिंह चाौहान | श्री बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर (Shaktipeeth Bajreshwari Devi Temple Kangra Himachal Pradesh) हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नगरकोट शहर में स्थित है। देवी दुर्गा को समर्पित यह मंदिर माता सती का ही एक रूप है जिसे नगरकोट धाम और कांगड़ा देवी मंदिर के नाम से भी पहचाना जाता है। यह मंदिर अनादिकाल से ही सनात धर्म के सबसे दिव्य, भव्य और सबसे समृद्ध मंदिरों में से एक तीर्थ स्थल है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीहरि विष्णु के सुदर्शन चक्र से कट कर देवी सती की मृत देह के जो 51 अलग-अलग भाग पृथ्वी पर गिरे थे उन सभी स्थानों पर शक्तिपीठ मंदिरों की स्थापना होती गई। और यह स्थान भी उन्हीं में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की मृत देह से कट कर जो भाग गिरा था वह था उनका बायां वक्षस्थल। इसीलिए यह शक्तिपीठ कहलाया। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिंडी के रूप में माता आदिशक्ति बज्रेश्वरी विराजमान हैं। जबकि दूसरी पिंडी में मां भद्रकाली और तीसरी तथा सबसे छोटी पिंडी में मां एकादशी के दर्शन होते हैं।
बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर के पौराणिक तथ्य एवं साक्ष्य –
मंदिर स्थल से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार राक्षसों से युद्ध के दौरान माता को कुछ घाव हो गये थे जिसके बाद देवताओं ने उन घावों पर मक्खन का लेप लगाया और भोजन में भी उनको मक्कखन का ही भोग लगाया था। उसी कथा के अनुसार यहां आज भी मकर संक्रांति के दिन माता की पिंडी को मक्खन का लेप एवं भोग लगाने की एक परंपरा चली आ रही है।
मंदिर के गर्भगृह से बाहर आने पर घेरे में जल का एक छोटा सा पवित्र कुण्ड नजर आता है जिसमें गर्भगृह से निकल कर यहां चरणामृत के रूप में जमा होता जाता है। इसके अलावा, मंदिर के पीछे ही बरगद का एक पुराना और विशाल आकार वाला पेड़ भी है जिस पर भक्त चुनरियां बांध कर अपनी मन्नतें मांगते हुए दिख जाते हैं।
लाल भैरोनाथ जी के दर्शन –
माना जाता है कि भगवान शिव ने क्रोध में आकर जब अपना तांडव नृत्य शुरू किया था, तो उन्होंने भैरव का रूप धारण कर लिया था, इसीलिए भगवान भैरवना इन शक्तिपीठों में सती के पति और रक्षक के रूप में विराजमान हैं। यही कारण है कि माता के दर्शनों के बाद भैरोनाथ जी के दर्शन करना भी अनिवार्य होता है। इसलिए यहां मंदिर परिसर में ही स्थित लाल भैरोनाथ जी के दर्शन हो जाते हैं। लाल भैरव जी की इस मूर्ति के बारे में मान्यता है कि जब कभी भी कांगड़ा क्षेत्र पर कोई विपत्ति आती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू टपकने लगते हैं। जिसके बाद स्थानीय पूजारीगण यहां मंदिर में कुछ विशेष पूजा-पाठ और हवन आदि के माध्यम से उस विपत्ति को टालने का निवेदन करते हैं।
बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर का इतिहास –
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा शहर में मौजूद इस बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर (Shaktipeeth Bajreshwari Devi Temple Kangra Himachal Pradesh) का इतिहास बताता है कि यह मंदिर कई बार, बड़े से बड़े, भीषण और विभत्स विदेशी आक्रमणों को झेल कर भी आज अपने भव्य आकर और समृद्ध तथा दिव्य स्वरूप में खड़ा है।
वर्ष 1905 में आये एक विनाशकारी भूकंप के कारण यह मंदिर भी क्षतिग्रस्त हो गया था। जबकि, सन 1920 में स्थानीय लोगों ने इस मंदिर का फिर से जिर्णोद्धार करवा दिया था। हैरानी की बात तो यह है कि उस भूकंप के कारण मंदिर के गर्भगृह के निचले भाग की दीवारों को कोई हानि नहीं पहुंची थी। इसलिए जिर्णोद्धार में मंदिर के उसी निचले भाग के ऊपर इसका निर्माण करवा दिया गया। आज भी प्राचीन शैली के उन सुंदर और आकर्षक अवशेषों को देखा जा सकता है।
इसके अलावा इस मंदिर से पांडवकालीन इतिहास भी जुड़ा हुआ है, जिसके अनुसार माना जाता है कि यहां पांडवों ने भी एक बार माता के मंदिर का जिर्णोद्धार करवाया था।
10वीं शताब्दी तक तो यह मंदिर एक भव्य आकार और समृद्धि के लिए प्रसिद्ध था। लेकिन, उसके बाद यहां विदेशी आक्रमणों के दौर में कई बार भीषण आक्रमण हुए और यहां से भारी मात्रा में कीमती आभूषण और उपहार आदि को लूट कर तुर्की ले जाया गया, जिसमें से वर्ष 1009 में महमूद गजनवी की सेना ने यहां पहली बार कदम रखे और न सिर्फ इस मंदिर को लूटा, बल्कि उसके बाद इसे पूरी तरह से नष्ट भी कर दिया था। उसके बाद से महमूद गजनवी की सेना ने इस मंदिर सहीत यहां के संपूर्ण क्षेत्र को पांच बार लूटा और इसके अन्य कई प्रमुख धार्मिक स्थलों और मंदिरों को नष्ट करने का प्रयास किया था।
सन 1337 में मुहम्मद बीन तुगलक भी यहां आया और उसकी सेना ने भी यहां लूटपाट की। फिर सिकंदर लोदी ने भी इस मंदिर सहीत यहां के संपूर्ण क्षेत्र में भारी तबाही मचाई और यहां से कीमती आभूषण और वस्तुओं को अपने साथ ले गया। इसके बाद अकबर की सेना ने भी यहां खूब लूटपाट की और यहां के तमाम मंदिरों को तहस-नहस कर दिया था। हालांकि, उसके बाद यहां धीरे-धीरे हिंदुओं की सेनाएं मजबूत होती गई और फिर मराठाओं का साम्राज्य स्थापित हो गया। जिसके बाद इस मंदिर सहीत इस क्षेत्र के अन्य कई मंदिरों को भी फिर से स्थापित करने में उन्होंने भरपूर सहयोग किया।
इसके बाद वर्ष 1905 में आये एक विनाशकारी भूंकप से उस मंदिर की संरचना पूरी तरह नष्ट हो गई थी, जिसे सन 1920 में स्थानिय प्रशासन के सहयोग से दोबारा बनवाया गया। वर्तमान मंदिर संरचना के स्तंभों पर कई प्रकार की अद्भुत नक्काशी की गई है। इस नक्काशी में हमें विभिन्न देवी-देवताओं की छवियों के दिव्य रूपों का दर्शन होता है। बावजूद उन अनगिनत आक्रमणों और लूटपाट के, यह मंदिर आज भी अपने दिव्य, भव्य और समृद्ध रूप में खड़ा है।
बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर कैसे पहुंचे –
श्री बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा शहर के लगभग मध्य में, और शहर के प्रमुख बस स्टैण्ड से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके आस-पास के कुछ अन्य प्रमुख शहरों से दूरी इस प्रकार से है।
सड़क मार्ग से बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर के लिए – दिल्ली से कांगड़ा शहर की दूरी करीब 460 किलोमीटर है। जबकि, चंडीगढ़ से यह दूरी 220 किलोमीटर, जालंधर से करीब 145 किलोमीटर, पठानकोट से 85 किलोमीटर, लुधियाना से 175 किलोमीटर, अमृतसर से 200, शिमला से 220 और पालमपुर से करीब 35 किलोमीटर तथा बैजनाथ से यह दूरी करीब 55 किलोमीटर है।
दिल्ली के आईएसबीटी से कांगड़ा के लिए जाने वाली हिमाचल परिवहन की बसें आसानी से मिल जाती हैं। इसके अलावा चंडीगढ़ सहीत आसपास के अन्य कई शहरों से भी कांगड़ा के लिए रोडवेज की बसें मिल जाती हैं। अगर आप किसी भी रोडवेज बस द्वारा दिल्ली से काँगड़ा जाते हैं तो इसमें साधारण किराया लगभग 630 से 650 के बीच लग जाता है। लेकिन, किसी भी निजी आपरेटर की बस से जाने पर इसका सबसे कम किराया भी लगभग 750 से 800 रुपये तक लग जाता है।
रेल यात्रा से बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर के लिए – रेल यात्रा के द्वारा श्री बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर तक जाने वालों के लिए मंदिर का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन ‘अम्ब अन्दौरा’ के नाम से है जो मंदिर से करीब 75 किलोमीटर दूर है। जबकि दिल्ली से ‘अम्ब अन्दौरा’ स्टेशन की यह दूरी लगभग 370 किलोमीटर है। इसके बाद आगे की करीब 75 किलोमीटर दूरी सड़क मार्ग से ही तय करनी होती है।
रेल से जाने वालों के लिए श्री बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर के लिए नई दिल्ली स्टेशन से सुबह 5 बज कर 50 मिनट पर चलने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस है जो लगभग 11 बजे तक अम्ब अन्दौरा स्टेशन पर पहुंच जाती है। इसके लिए वंदे भारत एक्सप्रेस में चैयर कार का किराया प्रति व्यक्ति करीब 1,000 रुपये लगता है।
इसके अलावा, पुरानी दिल्ली स्टेशन से चलने वाली हिमाचल एक्सप्रेस भी है जो रात 10 बज कर 45 मिनट पर चलती है और सुबह करीब सात बजे अम्ब अन्दौरा स्टेशन पहुंच जाती है। इसमें स्लीपर क्लास का किराया करीब 250 रुपये और थर्ड ऐसी का करीब 670 रुपये के आसपास लगता है। अम्ब अन्दौरा स्टेशन से मंदिर तक जाने के लिए स्थानीय बसें आसानी से मिला जाती हैं, जिसमें करीब 100 से 120 रुपये तक का किराया देना पड़ता है। इसके अलावा यहां टैक्सियों की सुविधा भी उपलब्ध है।
हवाई हजाह से बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर के लिए – अगर आप यहां हवाई जहाज से जाना चाहते हैं तो इसके लिए कांगड़ा का गग्गल हवाई अड्डा मंदिर से मात्र 10 किलोमीटर दूर है।
कांगड़ा में कहां ठहरें –
कांगड़ा में रूकने के लिए होटल और गेस्ट हाउस आदि आसानी से उपलब्ण्ध हो जाते हैं। और ये सभी सुविधाएं आपको नगरकोट चैक के आस-पास ही में आसानी से मिल जायेंगी। और क्योंकि कांगड़ा मूल रूप से एक धार्मिक नगरी है। इसलिए यहां मंदिर के आसपास रात को ठहरने के लिए बजट के अनुसार इसी प्रकार की व्यवस्था बस अड्डे के पास भी मिल जाती है। हालांकि, यह एक पर्यटन स्थल भी है। लेकिन, क्योंकि ये शहर हिमाचल के निचले पहाड़ी क्षेत्र में आता है इसलिए यहां पर्यटकों की बहुत अधिक भीड़ नहीं देखी जाती।
कांगड़ा के अन्य प्रमुख मंदिर दर्शन –
यहां एक और बात भी ध्यान देने की है कि अगर आपके पास समय और बजट दोनों की ही की अधिक समस्या नहीं है तो आप इस अम्ब अन्दौरा स्टेशन से बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर के साथ-साथ यहां के अन्य चार शक्तिपीठों के लिए भी टैक्सी बुक करवा सकते हैं। हिमाचल प्रदेश में माता बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर के अलावा, मां चामुंडा देवी, मां चिंतपूर्णी देवी, मां नयना देवी और मां ज्वालाजी के शक्तिपीठ मंदिर भी हैं जो यहां से बहुत अधिक दूरी पर नहीं हैं। इसलिए अम्ब अन्दौरा स्टेशन से टैक्सी बुक करने पर इनका कुल किराया करीब-करीब 3,500 से 4,000 रुपये तक लग जाता है।
आस-पास के पर्यटन स्थल –
कांगड़ा का प्रमुख और प्राचीन तथा ऐतिहासिक किला, करेरी झील, डल झील तथा पालमपुर चाय बागान भी यहां के कुछ प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं। इसके अलावा मैकलोडगंज धर्मशाला के पास एक हिल स्टेशन है, जो ट्रेकर्स के बीच काफी लोकप्रिय है।
कांगड़ा जाने का सही समय –
सबसे पहले तो इस बात का ध्यान रखें कि नवरात्र के अवसर पर यहां बहुत अधिक भीड़ हो जाती है, जबकि आम दिनों में यहां इतनी अधिक भीड़ नहीं देखी जाती। कांगड़ा जाने के लिए सबसे अच्छा मौसम फरवरी से जून और सितम्बर से दिसम्बर का होता है। अक्टूबर से जनवरी के बीच यहां भयंकर सर्दी का असर रहता है। इसके अलावा अगर आप यहां जुलाई या अगस्त माह में जायेंगे तो पहाड़ों की जोरदार बारीश में आप परेशान हो सकते हैं। सर्दियों दौरान यहां आने पर भारी ऊनी कपड़ों की आवश्यकता होती है। जबकि गर्मियों के दौरान यहां साधारण सूती कपड़ों से भी काम चल जाता है।
कांगड़ा में भाषा और भोजन –
बज्रेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर परिसन में श्रद्धालुओं के लिए भोजन प्रसाद की सुविधा के लिए नगरकोट धाम का लंगर भवन है जिसमें दोपहर 12 से 3 बजे तक, और शाम को 7 बजे से रात 9ः30 तक भोजन प्रसाद की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा आप चाहें तो मंदिर से बाहर भी कई सारे भोजनालय और रेस्टाॅरेंट भी हैं जहां आप अपनी पसंद का भोजन ले सकते हैं।
भाषा के लिहाज से कांगड़ा में मुल रूप से पंजाबी भाषा और पंजाबी खानपान का सबसे अधिक चलन देखा जाता है। इसके अलावा यहां हिंदी, अंग्रेजी के साथ क्षेत्रिय बोली का भी बोलबाला है। दक्षिण भारत से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यहां भाषा की थोड़ी समस्या हो सकती है।