अठारह महापुराणों में ‘गरुडमहापुराण’ का अपना एक विशेष महत्त्व है। इसके अधिष्ठातृदेव भगवान् विष्णु हैं, अतः यह वैष्णव पुराण है। इसके माहात्म्य में कहा गया है— ‘यथा सुराणां प्रवरो जनार्दनो यथायुधानां प्रवरः सुदर्शनम्। तथा पुराणेषु च गारुडं च मुख्यं तदाहुर्हरितत्त्वदर्शने ॥’ जैसे देवों में जनार्दन श्रेष्ठ हैं और आयुधों में सुदर्शन चक्र श्रेष्ठ है, वैसे ही पुराणों में यह गरुडपुराण हरि के तत्त्वनिरूपण में मुख्य कहा गया है। जिस मनुष्य के हाथ में यह गरुडमहापुराण विद्यमान है, उसके हाथमें नीतियों का कोश है। जो मनुष्य इस पुराण का पाठ करता है अथवा इसको सुनता है, वह भोग और मोक्ष-दोनों को प्राप्त कर लेता है।
गरुडमहापुराण पुराण मुख्य रूप से पूर्व खण्ड (आचारकाण्ड), उत्तरखण्ड (धर्मकाण्ड-प्रेतकल्प) और ब्रह्मकाण्ड – तीन खण्डों में विभक्त है। इसके पूर्वखण्ड (आचारकाण्ड) -में सृष्टि की उत्पत्ति, ध्रुवचरित्र, द्वादश आदित्यों की कथाएँ, सूर्य, चन्द्रादि ग्रहों के मन्त्र, उपासना विधि, भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार की महिमा, यज्ञ, दान, तप, तीर्थ सेवन तथा सत्कर्मानुष्ठान से अनेक लौकिक और पारलौकिक फलों का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें व्याकरण, छन्द, स्वर, ज्योतिष, आयुर्वेद, रत्नसार, नीतिसार आदि विविध उपयोगी विषयों का यथास्थान समावेश किया गया है।
गरुडमहापुराण के उत्तरखण्ड में धर्मकाण्ड-प्रेतकल्प का विवेचन विशेष महत्त्वपूर्ण है। इसमें मरणासन्न व्यक्ति के कल्याण के लिये विविध दानों का निरूपण किया गया है। मृत्युके बाद और्ध्व-दैहिक संस्कार, पिण्डदान, श्राद्ध, सपिण्डीकरण, कर्मविपाक तथा पापों के प्रायश्चित्त के विधान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें पुरुषार्थ चतुष्टय – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साधनों के साथ आत्मज्ञान का सुन्दर प्रतिपादन है।
गरुडमहापुराण पुराण के स्वाध्याय से मनुष्य को शास्त्र – मर्यादा के अनुसार जीवनयापन की शिक्षा मिलती है। इसके अतिरिक्त पुत्र-पौत्रादि पारिवारिक जनों की पारमार्थिक आवश्यकता और उनके कर्तव्यबोध का भी इसमें विस्तृत ज्ञान कराया गया है। विभिन्न दृष्टियों से यह पुराण जिज्ञासुओं के लिये अत्यधिक उपादेय, ज्ञानवर्धक तथा वास्तविक अभ्युदय और आत्मकल्याण का निदर्शक है। जन-सामान्य में एक भ्रान्त धारणा है कि गरुडमहापुराण मृत्यु के उपरान्त केवल मृतजीव के कल्याण के लिये सुना जाता है, जो सर्वथा गलत है। यह पुराण अन्य पुराणों की भाँति नित्य पठन-पाठन और मनन का विषय है। इसका स्वाध्याय अनन्त पुण्य की प्राप्ति के साथ भक्ति- ज्ञान की वृद्धि में अनुपम सहायक है।
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