बहुत ही कम हिन्दुओं को इस बात की जानकारी है कि, आदिगुरु शंकराचार्य के कारण ही आज का हिंदू और हिन्दू धर्म न सिर्फ जीवित है बल्कि एक बार फिर से अपने तीज-त्यौहारों को मना पा रहा है। लेकिन, उन्हीं आदिगुरु शंकराचार्य के बारे में आज के हिंदू ठीक प्रकार से न तो जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं। फिर चाहे ऐसे हिंदुओं की संख्या आम हो या फिर खास।
आज यदि कोई हिंदू आदिगुरु शंकराचार्य के बारे में जानता है तो मात्रा इतना ही कि आज से सैकड़ों वर्ष पहले एक आदिगुरु शंकराचार्य हुआ करते थे जो एक ऋषि थे और आश्रम में रह कर अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे। और वे हिन्दू ये भी बताएँगे कि बहुत ही कम आयु में उन शंकराचार्य जी का निधन हो गया था। लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य है की हिन्दू इससे अधिक न तो जानते हैं और न ही जानना चाहते हैं।
जबकि करीब 10 प्रतिशत हिंदू ऐसे भी हैं जो मात्रा इतना जानते हैं कि आदिगुरु शंकराचार्य ने मठों की स्थापना की थी जो प्राचीन समय में शिक्षा के प्रमुख केन्द्र हुआ करते थे। लेकिन, ऐसे हिंदुओं से अगर उन मठों के नाम पूछे जायें तो वे मात्र एक या फिर दो के ही नाम बता पायेंगे। उन नामों में भी वे उस मठ का नाम ठीक से नहीं जानते होंगे जो हिंदू धर्म के लिए सबसे प्रमुख और सबसे पवित्र मठ है। ऐसे में भला उन हिन्दुओं से क्या उम्मीद रखी जा सकती है कि वे ये भी बता पाएंगे कि आदिगुरु शंकराचार्य ने उन मठों की स्थापना क्यों की थी और इसके पीछे उनका उद्देश्य क्या था?
तो चलिए आज हम उन्हीं मठों में से एक मठ के बारे में बात करते हैं। दरअसल, उस सबसे पवित्र मठ का नाम है ‘‘श्रृंगेरी मठ’’। श्रृंगेरी मठ दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के चिकमंगलूर जिले की श्रृंगेरी तहसील में स्थित है। इस श्रृंगेरी मठ का महत्व आज हिंदू धर्म के चारों धामों और बारह ज्योतिर्लिंगों के समान या फिर उनसे भी बढ़ कर ऐहसान के तौर पर माना जाना चाहिए है। लेकिन, हिंदू अपने अतीत को भूल चुके हैं और वर्तमान में खोकर भविष्य से भी अनजान होते जा रहे हैं।
आदिगुरु शंकराचार्य जी का जन्म किस कालखण्ड में हुआ था इस बात की सटीक जानकारी संभवतः किसी के पास उपलब्ध नहीं है। लेकिन, जो अनुमान लगाया जाता है उसके अनुसार उनका जन्म 8वीं शताब्दी में हुआ था। और उन्होंने आज की इसी श्रृंगेरी तहसील में अपने कुछ दिनों के प्रवास के दौरान श्रृंगेरी मठ की स्थापना की थी।
दरअसल, 8वीं शताब्दी के उस दौर में हिंदू धर्म कई प्रकार से संकटों के दौर से गुजर रहा था और उसके अस्तित्व के बचने की संभावनाएं समाप्त होती जा रही थीं। ऐसे में आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने दम पर इस धर्म की रक्षा की जिम्मेदारियां संभाली और उस समय के अखण्ड भारत के कई दुर्गम हिस्सों की यात्राएं की और हिंदुओं को इसके बारे में जागृत किया।
अपनी अखंड भारत की तीर्थ यात्रा के दौरान उन्होंने भारत की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी। जिसमें दक्षिण भारत में “श्रृंगेरी मठ” की स्थापना की थी, जो कि रामेश्वरम् में स्थित है। इसके बाद दूसरा मठ “गोवर्धन मठ” है जो उड़ीसा के पुरी में स्थित है। इसी तरह तीसरा मठ “शारदा मठ” है और यह तीसरा मठ भी उड़ीसा के पुरी में ही स्थित है। दरअसल, शारदा मठ की स्थापना उन्होंने कश्मीर के श्री शारदा शक्तिपीठ मंदिर में की थी जो की आज पकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चला गया है। इसलिए उस पीठ को अस्थाई रूप से उड़ीसा के पुरी में स्थान दिया गया है। जबकि चौथा मठ जो कि “ज्योतिर्मठ” के नाम से है और यह मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में मौजूद है।
आदिगुरु शंकराचार्य के उन्हीं मठों के प्रयासों के बाद हिंदू एक बार फिर से अपने धर्म को जान पाया और अपने अस्तित्व को बचाने में कामयाब हो पाये थे। तब कहीं जाकर आज हम अपने उन चारों धामों और बारह ज्योतिर्लिंगों में एक बार फिर से दर्शन कर पा रहे हैं और उनके बारे में जान पाते हैं।
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि, आज एक बार फिर से वही स्थिति उत्पन्न होती जा रही है, जिसके कारण हिंदूओं का धर्म एक बार फिर से समाप्ती की कगार पर है। ऐसे में हर बार तो कोई शंकराचार्य आने वाला नहीं है, और यह बात अब हर हिंदू को जान लेनी चाहिए।
आज यहां एक बार फिर वही स्थिति आ चुकी है जिसमें यही कहा जा सकता है कि उस दौर में तो मुर्दा हिन्दुओं को आदिगुरु शंकराचार्य ने अकेले अपने दम पर ज़िंदा कर दिया था, लेकिन आज कौन है जो एक बार फिर से ऐसा कर सकने में सक्षम होगा। जबकि, आज का हिंदू भविष्य के उन खतरों से पहले की ही भांति एक बार फिर से अनजान बनता जा रहा है और अपने धर्म से विमुख होते होते मौत के मुंह में समाता जा रहा है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि आज हर हिंदू स्वयं शंकराचार्य बन कर अपने इस हिंदू धर्म की रक्षा करे। न कि फिर से किसी शंकराचार्य के आने का इंतजार।
– गनपत सिंह, खरगोन मध्य प्रदेश