अजय चौहान || यहाँ यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा कि भगवान राम को अपमानित करने और उनका उपहास करने का षड्यंत्र रचने वाली फिल्म “आदिपुरूष” को “भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड” द्वारा आसानी से पास करने का श्रेय जिसको जाता है वो है केंद्र सरकार। यह कोई मनगढ़ंत आरोप नहीं बल्कि ऐसा सच हैं जो यह साबित करता है कि संवैधानिक तरीके से चुनी गई सरकार के द्वारा ही चुने गए चेयरमैन प्रसून जोशी वर्तमान में “भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड” के चेयरमैन यानी अध्यक्ष हैं और इन्हीं वर्तमान चेयरमैन श्रीमान प्रसून जोशी जी के द्वारा भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड की तरफ से आदिपुरूष को विवादरहित लेकिन हिन्दू विरोधी फिल्म का सर्टिफिकेट दे दिया गया।
इससे भी पहले यहाँ हम ये भी जान लेना चाहिए कि यह वही “भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड” है और इसके ये वही चेयरमैन प्रसून जोशी हैं जिन्होंने इसके पहले रिलीज़ हुई “द केरला स्टोरी” जैसी फिल्म में करीब 10 बड़े और महत्वपूर्ण कट लगवा कर फिल्म की कहानी को मार्ग से भटका दिया था। यानी इन महाशय को “द केरला स्टोरी” में तो किसी की भावनाओं का बहुत ध्यान रहा लेकिन हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के बारे में कोई भी ध्यान नहीं रहा।
“द केरला स्टोरी” में जो 10 बड़े कट लगवाये गए थे उनमें से यदि केरल के पूर्व मुख्यमंत्री सर वीएस अच्युतानंदन का वह भाषण नहीं हटाया होता तो आज उनका वही भाषण भारत की राजनीति में सबसे प्रमुख मुद्दा और चर्चा का विषय बन सकता था। श्री वीएस अच्युतानंदन का वह भाषण जो उन्होंने 24 जुलाई, वर्ष 2010 को देश की राजधानी दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया था उसके अनुसार, ‘उनकी योजना अगले 20 वर्षों में केरल को एक मुस्लिम राज्य बनाने की है। इसके लिए वे युवाओं को झांसा दे रहे हैं। उन्हें पैसे भी ऑफर कर रहे हैं। वे जोर देकर कहते हैं कि मुस्लिम आबादी बढ़ाने के लिए वे हिंदू लड़कियों से शादी करते हैं। इस तरह वे अपना बहुमत बढ़ा रहे हैं। और उनकी ये तरकीबें काम भी कर रही हैं!’
क्या कारण है कि प्रसून जोशी ने हिन्दुओं के पक्ष में जाती हुई फिल्म “द केरला स्टोरी” में 10 महत्वपूर्ण कट लगवाकर उसको आतंकवाद की तरफ मोड़ कर इसे विश्वापी समस्या बता दिया और उसके जरिये उन्होंने अपना खुद का वो परिचय भी दे दिया जिसको उन्होंने आजतक हिन्दुत्वाद के पीछे छुपा कर रखा था। लेकिन यहाँ सवाल आता है कि उन्हीं प्रसून जोशी महाशय ने आदिपुरूष को किसके कहने पर पास कर दिया और क्या वे खुद भी नहीं जानते कि इसमें जो कुछ भी फिल्माया गया है उसका परिणाम क्या हो सकता है? क्या वे नहीं जानते थे की उसे रोककर उसमें कुछ बदलाव भी किया जाना चाहिए? या फिर यहाँ हमें ये मान लेना चाहिए कि वे सिर्फ नाम के ही हिन्दू हैं, या फिर उन्होंने भी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से हिन्दू विरोधी शिक्षा ली है?
“द केरला स्टोरी” में यदि सच दिखाने में प्रसून जोशी को डर लग रहा था तो फिर आदिपुरूष में तो सच दिखा ही सकते थे। यहाँ तो उन्हें किसी भी प्रकार से कोई समस्या नहीं आने वाली थी। वे तो हिंदूवादी सरकार की तरफ से ही यहाँ बैठाए गए हैं। यहाँ तो उनकी सरकार का दबाव भी नहीं होना चाहिए था, या फिर यहाँ भी हम यही मान लें कि “आदिपुरूष” के लिए भी उनपर किसी बड़ी हस्ती या किसी विचारधारा का दबाव था जो उन्होंने इस फिल्म को किसी मकसद के चलते या जानबूझ कर इसी प्रकार से हिन्दू धर्म के अपमान के लिए पास होने का जानबूझकर अवसर दिया?
हालाँकि फिल्म “द कश्मीर फाइल” के विषय में बात करें तो इसमें सेंसर बोर्ड का विवाद न के बराबर ही रहा इसलिए यहाँ तारीफ़ भी बनती है, लेकिन शाहरुख़ खान की फिल्म “पठान” को लेकर भी सेंसर बोर्ड का सम्बन्ध यही रहा की बोर्ड ने “पठान” फिल्म के द्वारा भी भगवा रंग का खूब अपमान होने दिया और कई आपतिजनक दृश्यों के साथ आसानी से पास कर दिया। और फिर जब भगवा रंग का खूब अपमान हो चुका उसके बाद ही उसमें भी कुछ बदलाव करवाकर अपना पल्ला झाड लिया। ठीक उसी तरह से यहाँ भी, यानी “पठान” की तरह ही “आदिपुरुष” में भी कुछ न कुछ इधर-उधर करवाने की बात कहलवाकर अपने आप को पाकसाफ कर लिया।
यह सच है कि “भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड” के वर्तमान चेयरमैन प्रसून जोशी केंद्र सरकार के मुखिया और प्रधान मंत्री श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी के बहुत करीबी भी माने जाते हैं। ये वही प्रसून जोशी हैं जिनकी लिखी एक कविता – “ये देश नहीं झुकने दूंगा, ये देश नहीं रुकने दूंगा।” को पीएम मोदी ने एक मंच से देश की जनता को सुना कर खुद भी वाहवाही लुटी और प्रसून जोशी का भी प्रमोशन कर दिया था। हालाँकि सरकार में कुछ पद ऐसे भी होते हैं जो इसी प्रकार से अपने कुछ सबसे करीबी और विशेष लोगों के लिए आरक्षित होते हैं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं होना चाहिए कि– “अंधा बांटे रेवाड़ी, अपने-अपने को ही दे।”
आज यदि “आदिपुरूष” या अन्य फिल्मों के माध्यम से हिन्दू धर्म और इसकी आस्था के साथ खिलवाड़ और विवाद हो रहा है तो इसमें इसके निर्माता-निर्देशक कम और “भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड” ही सबसे जिम्मेदार माना जा सकता है। क्योंकि सेंसर बोर्ड को जो काम सौपा गया है उसका उसने सही तरीके से पालन नहीं किया है। क्या यह सही है कि कोई भी किसी भी प्रकार की सामग्री के साथ अनाप-शनाप फिल्म बना देगा और सेंसर बोर्ड उसे मान्यता दे देगा? बात यहाँ विषय की जानकारी का न होना और उसके प्रति सम्मान या लगन के अभाव की ही नहीं बल्कि जानबूझकर किसी धर्म और उसके प्रति आस्था के साथ खिलवाड़ का है। अन्य धर्मियों को खुश करने के चक्कर में सेंसर बोर्ड इस हद तक क्यों और कैसे पहुँच सकता है इस बात की भी जांच होने चाहिए। आज यदि हिन्दुओं द्वारा चुनी गई सरकार हिन्दू हितों के लिए मात्र इतना भी कार्य नहीं कर सकती है तो फिर क्या इसे हिंदूवादी सरकार कहा जा सकता है?
देखा जाय तो बीजेपी का हिंदुत्व प्रेम एवं भगवान् राम के सम्मान एवं उनके प्रति उनका कर्त्तव्य भी उतना ही सच है जितना कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए राम मंदिर के निर्णय को अपनी जीत बताकर न सिर्फ उस पर अपनी मुहर लगाना बल्कि बार-बार हिन्दुओं को इस बात के लिए भी भ्रमित करते रहना कि यह फैसला कोर्ट के माध्यम से हमने ही सुनाया है। इसमें समस्या यह भी आ रही है कि वर्तमान में करीब 85 से 90 प्रतिशत हिन्दू आबादी अपने धर्म के प्रति कम और राजनीति और राजनेताओं के प्रति अधिक सम्मान रखने लगी है और राजनीति को ही अपना धर्म तथा राजनेताओं को ही अपना कुल देवता मानकर चलने लगे है। यही कारण है कि आज कोई भी आता है और हिन्दुओं का देवता बनकर जैसा चाहे हिन्दुओं का ही अपमान करता जाता है, बावजूद इसे हिन्दू फिर भी उसे ही अपना कुलदेवता मानते हैं।