अजय सिंह चौहान || गुजरात राज्य के बनासकांठा जिले में अरावली पर्वत श्रंखला के एक पर्वत पर स्थित, अंबाजी शक्तिपीठ (Ambaji Shaktipeeth in Gujarat) देवी दुर्गा का एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के लिए सबसे प्रमुख और सबसे बड़े तीर्थों में माना जाता है। यह मंदिर विदेशों में बसे गुजराती समुदाय के लिए विशेष आस्था और शक्ति उपासना का महत्व रखता है। गुजरात और राजस्थान की सीमा पर अरावली पर्वत श्रंखला में होने के कारण इसे ‘‘अरासुर माता’’ के नाम से भी पहचाना जाता है।
मां भवानी का यह शक्तिपीठ मंदिर (Ambaji Shaktipeeth in Gujarat) भारत के सबसे प्रसिद्ध और विशेष मंदिरों में स्थान रखता है। क्योंकि अंबाजी का यह शक्तिपीठ मंदिर 51 शक्तिपीठों के साथ-साथ उन शक्तिपीठों में भी माना जाता है जो देवी सती के 12 सबसे प्रमुख शक्तिपीठ हैं। मान्यता है कि इस शक्तिपीठ मंदिर में देवी अंबाजी अनादिकाल से अपने जग्रत रूप में निवास करती हैं। इसीलिए यह स्थान हिन्दू धर्म के लिए सबसे प्रमुख और सबसे बड़े तीर्थों में से एक है।
शक्तिपीठ की मान्यता –
आदि शक्ति माता अम्बाजी इस ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च ब्रह्मांडीय शक्ति का अवतार हैं। इसलिए अंबाजी (Ambaji Shaktipeeth in Gujarat) के इस मंदिर में आने वाले उनके सभी भक्त उसी दिव्य और लौकिक शक्ति की पूजा करते हैं, जो अंबाजी के रूप में अवतरित हुई थीं। यह मंदिर देवी शक्ति के ह्दय भाग का प्रतीक होने के कारण 12 सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में स्थान रखता है।
इस स्थान की मान्यता इसलिए भी सबसे अधिक है क्योंकि इसे शक्तिपीठों से संबंधित हर प्रकार के पुराणों और अन्य अनेकों धर्मर्गंथों में प्रमुखता से स्थान दिया गया है। दुर्गा शप्त सती और तंत्र चूड़ामणि के 52 शक्तिपीठ, देवी भागवत पुराण के 108 शक्तिपीठ, कालिका पुराण के 26 शक्तिपीठ और शिवचरित्र में वर्णित 51 शक्तिपीठों में भी इस शक्तिपीठ को प्रमुखता दी गई है।
मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती का ह्दय भाग गिरा था। इस बात का स्पष्ट उल्लेख हमें पद्म पुराण एवं ‘‘तंत्र चूड़ामणि’’ के अलावा और भी अन्य अनेकों धर्मर्गंथों में मिलता है। इसके अलावा कई पौराणिक ग्रंथों में हमें इसके परम तीर्थ होने के उल्लेख मिलते है।
पुराणों में अंबा जी –
श्री वाल्मिीकी रामायण में भी गब्बर तीर्थ का विशेष वर्णन मिलता है। रामाण की एक कथा के अनुसार, भगवान राम और लक्ष्मण सीताजी की खोज में श्रृंगी ऋषि के आश्रम में भी गये थे, जहाँ श्रृंगी ऋषि ने उन्हें गब्बर तीर्थ में जाकर देवी अंबाजी की पूजा करने के लिए कहा था। माता अम्बाजी ने श्रीराम की भक्ति से प्रसन्न होकर उनको ‘‘अजय’’ नाम का वह चमत्कारिक तीर दिया था, जिसकी मदद से उन्होंने दुष्ट रावण को मार दिया।
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार माता यशोदा और पिता नंद ने इसी मंदिर के प्रांगण में करवाया था। इसके अलावा, महाभारत युद्ध से पहले पांडवों ने भी अपने निर्वासन काल के दौरान यहां आकर देवी अंबाजी की पूजा-अर्चना की थी।
प्राचीन काल से ही मेवाड़ के सभी राजपूत राजा इस भवानी माता की नियमित रूप से भक्ति करने के लिए आया करते थे। इन राजाओं में राणा प्रताप का नाम भी शामिल है। कहा जाता है कि राणा प्रताप अपनी हर विजय के बाद अरासुरी अम्बा भवानी की विशेष भक्ति करने और उनका धन्यवाद देने के लिए आया करते थे। स्थानिय दंतकथाओं और लोककथाओं के अनुसार राणा प्रताप ने माता अरासुरी अंबाजी के मंदिर में अपनी सबसे प्रिय तलवार भी भेंट कर दी थी।
विभिन्न पुराणों और पौराणिक कथाओं में मान्यता है कि मां अम्बे यहां साक्षात विराजी हैं। इसलिए यह स्थान कई तांत्रिकों और तांत्रिक क्रियाओं के लिए भी प्रसिद्ध है।
अनादिकाल से ही यहां प्रतिदिन मां अंबा के तीन अलग-अलग रूपों की पूजा होती आ रही है, जिसमें प्रातःकाल बाल रूप, दोपहर को युवा रूप और शाम को वृद्धा रूप में पूजा होती है। इसके अलावा मां अम्बा की अखंड जोत यहां सदियों से प्रज्जवलित है।
चैत्र तथा शारदीय नवरात्र के अवसरों पर यहां का वातावरण अलौकिक, दिव्य, पावन और अद्भूत भक्तिमय हो जाता है। शारदीय नवरात्र के विशेष अवसर पर तो मंदिर में दर्शनार्थियों की लंबी-लंबी लाइनें लग जाती हैं। इस अवसर पर यहां खेले जाने वाला गरबा नृत्य विश्व भर के लिए सबसे खास और आकषण का केन्द्र बन जाता है।
मंदिर की विशेषता –
इस अंबाजी मंदिर (Ambaji Shaktipeeth in Gujarat) की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके गर्भगृह में माता की कोई प्रतिमा नहीं है, बल्कि एक श्री यंत्र स्थापित है। इस श्री-यंत्र को ही माता के प्रतीक के रूप में सजाया जाता है और पूजन किया जाता है। श्रद्धालुओं को इस पवित्र श्री यंत्र के दर्शन करने के लिए गर्भगृह के भीतर प्रवेश की अनुमति नहीं है। इसलिए मंदिर का गर्भगृह एक सुरक्षित गुफा की तरह से बना हुआ है। श्री यंत्र के दर्शन करने के लिए उस दिवार में एक साधारण सा झरोखा छोड़ दिया गया है जहां से उस श्री यंत्र के दर्शन होते हैं।
कहा जाता है कि उस पवित्र श्री यंत्र पर 51 पवित्र बिजपात्र या पत्र अंकित हैं। ठीक इसी प्रकार का एक श्री यंत्र उज्जैन के श्री हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर में भी देखने को मिलता है। श्री हरसिद्धि शक्तिपीठ का यह श्री यंत्र मंदिर के सभा मंडप के अंदर की छत के ऊपर की ओर एक विशाल आकृति में अंकित करके दर्शाया गया है।
हालांकि, उज्जैन के श्री हरसिद्धि शक्तिपीठ मंदिर के श्री यंत्र का फोटो लेना वर्जित नहीं है इसलिए वह संसार के सामने है। लेकिन, क्योंकि श्री अंबाजी मंदिर के इस श्री यंत्र का फोटो लेना एक दम मना है इसलिए यह पवित्र श्री यंत्र आजतक संसार के सामने नहीं आ पाया है।
अंबाजी के गब्बर तीर्थ पर्वत का महत्व –
इसके अलावा, यहां अंबाजी मंदिर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर गब्बर तीर्थ के नाम से 1,600 फीट ऊंची एक पहाड़ी है। इस पहाड़ी के शिखर पर भी माता का एक ऐसा ही मंदिर है।
मान्यता है कि इस मंदिर में स्थित माता के रथ चिन्ह और पदचिन्ह स्वयं माता दूर्गा के ही हैं। इस गब्बर तीर्थ स्थान के विषय में हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं कि यह वही स्थान है जहां माता सति का ह्दय भाग गिरा था। इसीलिए अंबाजी मंदिर में दर्शन करने के बाद वे सभी श्रद्धालु इन पदचिन्हों के साक्षात दर्शन करने के लिए भी यहां अवश्य ही आते हैं।
यह प्रसिद्ध गब्बर तीर्थ पर्वत, गुजरात और राजस्थान राज्य की सीमा के करीब होने के साथ-साथ इसलिए भी अधिक महत्व रखता है क्योंकि यहां से प्राचीनकाल की वैदिक कुंवारी नदी सरस्वती का उद्गम मार्ग भी इसके निकट ही से, यानी इसकी दक्षिण दिशा के जंगल और अरासुर की पहाड़ियों से होकर जाता है।
माना जाता है कि अंबाजी के इस शक्तिपीठ मंदिर में पूर्व वैदिक काल से, यानी लाखों वर्ष पहले से ही पूजा-पाठ होती आ रही है। मंदिर के विष में प्राप्त कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार अरावली की पहाड़ियों में स्थित होने के कारण ही संभवतः इसे अरावली से अरासुर पुकारा जाने लगा और अरासुर से ही ‘‘अरासुर नी अम्बे मां’’ या ‘‘अरासुर वाली माता’’ के नाम से पहचाना जाने लगा है।