अजय सिंह चौहान | छत्तीसगढ़, अनादिकाल से लेकर आज तक, शक्ति और मातृरूप के प्रतीक के तौर पर सबसे अधिक प्रसिद्ध रहा है। तभी तो यहां आदि-अनादि काल में स्थापित शक्तिपीठ मंदिरों के अलावा भी माता के ऐसे अनेकों सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हैं जो उस काल के साक्षी हैं। यहां के ऐसे सैकड़ों प्रसिद्ध और सिद्ध देवी मंदिरों की स्थापना को लेकर अलग-अलग प्रकार की चमत्कारिक किंवदंतियां और पौराणिक साक्ष्य आज भी उपलब्ध हैं।
प्राचीनकाल में स्थापित किये गये छत्तीसगढ़ के इन मंदिरों में से रायपुर में देवी महामाया मंदिर, चंद्रपुर में देवी चंद्रहासिनी मंदिर, डोंगरगढ़ में देवी बमलेश्वरी मंदिर, रतनपुर का महामाया देवी मंदिर, महासमुन्द जिले में खल्लारी माता मंदिर और दंतेवाड़ा में देवी दंतेश्वरी शक्तिपीठ मंदिर जैसे और भी कई मंदिर आज भी हैं।
छत्तीसगढ़ के इन्हीं सैकड़ों प्रसिद्ध और प्रमुख देवी मंदिरों में से एक माता बमलेश्वरी मंदिर, प्रदेश की राजधानी रायपुर से करीब 105 किलोमीटर और राजनादगांव से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर है।
प्राचीनकाल के डोंगरगढ़ नगर में स्थित मां बमलेश्वरी के इस मंदिर को कुछ जानकार मात्र दो हजार साल के इतिहास से जोड़कर देखते हैं। लेकिन, इस मंदिर का पौराणिक महत्व और इसकी विशेषताएं, इसके उस अनादिकाल के इतिहास और महत्व को दर्शाती हैं जब इस धरती पर देवी सति की देह से, उनके विभिन्न अंग, वस्त्र और आभूषण गिरे था।
माँ बमलेश्वरी मंदिर के विषय में स्थानीय लोगों तथा कुछ अन्य जानकारों का मानना है कि यह एक शक्तिपीठ मंदिर है, जबकि कुछ लोग यह मानते हैं कि यह एक जागृत और सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध है।
मंदिर का प्राचीन इतिहास –
यदि हम मां बमलेश्वरी मंदिर के प्राचीन इतिहास की बात करें तो सबसे पहले यहां यह समझना होगा कि जिस स्थान पर यह मंदिर स्थापित है वह उस समय का डोंगरगढ़ नगर है जो प्राचीनकाल में वैभवशाली कामाख्या नगरी के नाम से जानी जाती थी। उस दौर में यहां राजा वीरसेन का शासन हुआ करता था। लेकिन, जैसे-जैसे इतिहास करवट लेता गया, वही कामाख्या नगरी डोंगरी और फिर आज के इस डोंगरगढ़ नाम में बदल गई।
इसके अलावा, वैदिक और पौराणिक काल से ही डोंगरगढ़ सहीत संपूर्ण छत्तीसगढ़ क्षेत्र, विभिन्न संस्कृतियों के विकास का केन्द्र रहा है।
आज भी यहां हजारों वर्ष पुराना माँ बमलेश्वरी का वह मंदिर है, जिसके कारण इस नगर की पहचान होती है। डोंगरगढ़, पहाड़ों से घिरा हुआ एक ऐसा नगर है जो मुख्य रूप से एक धार्मिक पर्यटन के रूप में प्रसिद्ध है, और मां बमलेश्वरी देवी का यह जागृत शक्तिपीठ मंदिर भी इन्हीं में से एक पहाड़ी पर है।
माँ बमलेश्वरी का यह मंदिर, यहां की करीब 16 सौ फीट की ऊंचाई वाली एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 11 सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। लेकिन, अगर आप यहां सीढ़ियां चढ़ने में असमर्थ हैं, या फिर उड़नखटौला की सवारी का आनंद लेना चाहते हैं तो उसके लिए भी यहां यह सुविधा उपलब्ध है।
यहां माता बमलेश्वरी के दो स्वरुप विराजमान हैं, जिनमें से प्रमुख मंदिर पहाड़ी की चोटी पर, बड़ी बमलेश्वरी माता के नाम से, जबकि दूसरा, छोटी बमलेश्वरी माता का मंदिर है जो पहाड़ी पर चढ़ाई के शुरूआत में ही देखने को मिल जाता है। बमलेश्वरी माता के मुख्य मंदिर के अलावा यहां शीतला माता, बजरंगबली मंदिर और नाग वासुकी मंदिरों के अलावा भी कई देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद हैं।
माँ बमलेश्वरी यहां साक्षात महाकाली के रुप में विराजमान हैं। कहा जाता है कि मां बमलेश्वरी उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की कुल देवी भी है।
माँ बमलेश्वरी मंदिर से जुड़े इतिहास के अनुसार, डोंगरगढ़ का प्राचीन नाम कामख्या नगरी हुआ करता था। उस समय यहां के राजा वीरसेन की अपनी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ती की कामना के लिए राजा वीरसेन ने महिषमती पुरी में, यानी मध्य प्रदेश के मंडला नगर में भगवान शिव और देवी भगवती दुर्गा की आराधना की। इसके एक वर्ष बाद रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने उस बालक का नाम मदनसेन रखा। भगवान शिव और मां दुर्गा की कृपा से राजा वीरसेन को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, इसी भक्ति भाव से प्रेरित होकर राजा वीरसेन ने अपनी कामख्या नगरी में स्थित मां बमलेश्वरी के छोटे आकार वाले मंदिर का पुननिर्माण करवा कर उसे एक भव्य आकार और विस्तार वाला मंदिर बनवा दिया।
आगे चल कर राजा वीरसेन के उसी पुत्र ने यानी राजा मदनसेन ने कामख्या नगरी का राजपाट संभाला और फिर राजा मदनसेन के पुत्र और राजा वीरसेन के पौत्र राजा कामसेन ने भी कामख्या नगरी पर राज किया। कहा जाता है कि बाद में राजा कामसेन के नाम पर ही कामख्या नगरी का नाम बदल कर कामावती पुरी कर दिया गया था।
हालांकि अब वही कामावती पुरी डोंगरगढ़ के नाम से जानी जाती है। इसके अलावा यहां यह भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में माता को बिमलाई देवी के रूप में पूजा जाता था, लेकिन आज वही बमलेश्वरी देवी के नाम से जानी जाती हैं।