हमारी नियमित जीवन शैली के लिए कितनी महत्व रखती है तुलसी
सनातन को मानने वाले करीब-करीब सभी घरों के आंगन, छत या फिर बालकनियों में एक पौधा हमेशा देखा जा सकता है जिसका नाम है तुलसी। क्योंकि तुलसी मात्र एक पौधा ही नहीं बल्कि एक पूजनीय औषधि है जो किसी भी देवी या देवता के समान ही स्थान रखता है। जिस प्रकार से एक सच्चे सनातनी के लिए गाय का महत्व है उसी प्रकार से तुलसी का भी महत्व है। भले ही आजकल तुलसी को ‘क्वीन आफ हब्र्स्’ कहा जाने लगा है, लेकिन, यह क्वीन नहीं बल्कि माता के तौर पर न सिर्फ पुजी जाती है बल्कि इसे माता का स्थान भी दिया जाता है।
वर्तमान दौर के मेडिकल साइंस की मानें तो कोरोना से लड़ने के लिए किसी भी व्यक्ति या रोगी की रोग प्रतिरोधक को क्षमता बढ़ाने के लिए प्राकृतिक तौर पर सबसे अधिक तुलसी ही कारगर है तभी तो आयुष मंत्रालय द्वारा जारी काढ़ा बनाने की सामग्री में तुलसी को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। विज्ञान ने माना है कि तुलसी के बीजों में फेनोलिक और फ्लैवोनोइड्स शामिल हैं जो कि मनुष्य के शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को सुधारते हैं। इसके अलावा तुलसी एंटी-आक्सीडेंट गुणों से भी भरपूर होती है क्योंकि यह मानव शरीर में होने वाले फ्री रेडिकल्स के नुकसान से बचाती है।
इन सब वैज्ञानिक और प्राकृतिक गुणों अलवा तुलसी हमारी आम और नियमित जीवन शैली के लिए कितनी महत्व रखती है यह भी जान लेना चाहिए, क्योंकि तुलसी हमारे लिए औषधियुक्त पौधा ही नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक भी है।
– तुलसी रक्त संबंधी अनेकों विकारों को दूर करती है।
– तुलसी के करीब पांच पत्ते नियमित रूप से चबाने वाले दांतों को कभी कीड़ा नहीं लगता।
– तुलसी हमारे मन में बुरे विचारों को आने से रोक देती है।
– तुलसी की नियमित सेवा करने ववाले को क्रोध बहुत कम आता है।
– कार्तिक माह में जो जो व्यक्ति तुलसी तुलसी का नियमित रूप से सेवन करते हैं, उन्हें वर्ष भर अन्य उपचारों की आवश्यकता बहुत ही कम होती है।
– तुलसी गर्म तासीर वाली होती है इसलिए कार्तिक माह में तुलसी के पत्ते या तुलसी के रस का सेवन करने के बाद पान न खाएं क्योंकि पानी की तासीर भी गर्म होती है। इसके अलावा कार्तिक माह में रक्त-संचार भी प्रबलता से होता है जिसके कारण आप परेशानी में पड़ सकते हैं।
– तुलसी त्वचा से संबंधित कई संबंधी रोगों को दूर रखती है इसलिए तुलसी के पत्तों के जल से नियमित स्नान करने से कोढ़ नहीं होता।
– ध्यान रखें कि तुलसी का सेवन करने के बाद दूध का सेवन नहीं करना चाहिए, अन्यथा इससे चर्म-रोग होने का अंदेशा होता है।
– तुलसी हमारे रक्त संबंधी विकारों को शांत करती है।
– तुलसी हमारे स्वभाव में सात्विकता को लाती है।
– पुलाव आदि में जीेरे के स्थान पर तुलसी-रस के छींटे देने से पौष्टिकता और महक में दस गुणा वृद्धि हो जाती है।
– भोजन के साथ खाए जाने वाले सलाद में तुलसी के पत्ते भी खाये जा सकते हैं।
– ग्रहण के दौरान अन्न और पके हुए भोजन या सब्जी आदि में तुलसी के पत्ते इसलिए रखे जाते हैं ताकि सौरमंडल की विनाशक गैसों से हमारे खाद्यान्न दूषित न हो सके।
– साग-सब्जी आदि में तेजपात की जगह तुलसी के पत्ते डालने से आंखों में रोशनी एवं वाणी में तेजस्विता आती है।
– तुलसी के आगे खड़े होकर नियमित रूप से हर शाम दीप जलाकर उसकी आरती उतारकर पौधे की परिक्रमा करने से हमारी समस्त इंद्रियों के विकार दूर होते हैं।
– विद्याथी यदि तुलसी के पौधे के पास बैठकर पढ़ते हैं तो मन में एक नई ऊर्जा का संचार होता है तथा इससे मानसिक शक्ति और चेतना भी मिलती है।
– अंधेरा होने के बाद तुलसी के पत्ते आदि तोड़ने से शरीर में विभिन्न विकार आ सकते हैं क्योंकि इस समय इसकी विद्युत लहरें तेज हो जाती हैं।
– प्रीति, इंदौर