हमारी वर्त्तमात समय की सामान्य ऐतिहासिक विषय से जुडी शिक्षा-दीक्षा एवं एक औसत ज्ञान के अनुसार मात्र कुछ ही बड़े मुस्लिम सुल्तान रहे जिन्होंने भारत भूमि पर हिंदुओं के विरुद्ध कत्लेआम मचाया, लूटा, हिंदू महिलाओं को अपवित्र किया और यहां से चले गए। सदियों से हम उसी शिक्षा को दोहराते आ रहे हैं।
अब तक की हमारी हर एक सरकारों ने भी उन्हीं मात्र कुछ कुख्यात सुलतानों को नकारते हुए अन्य सभी जो उन्हीं के समकक्ष या समकालीन हिंदू भक्षक सुलतान हुए थे उनको पता नहीं क्यों बचा लिया। लेकिन कुछ ऐसे इतिहासकार जो सच को न तो छुपाते हैं और न झूठ को फैलाते हैं उन्हीं में से एक थे पी एन ओक। पेश है उन्हीं की पुस्तक का एक छोटा सा अंश जिसे हर एक हिन्दू ने पढ़ना चाहिए –
बहराइच का भक्षक जागीरदार, गुलाम सुलतान अल्तमश का छोटा पुत्र नासिरुद्दीन मरे-कटे खूनी मुस्लिम सुलतानों के खून से लथपथ होने के बाद किसी तरह दिल्ली के हिन्दू राजसिंहासन पर बैठने में कामयाब हुआ।
“सुलतान-ए-मुअज्ज़म नासिरुदुन्या-वा-उद्-दीन महमूद” रक्त रंजित मुस्लिम गद्दी पर रविवार, १० जून, १२४६ ई० को आसीन हुआ था। मगर सबसे मज़ेदार बात तो यह थी कि उसे बहराइच से दिल्ली तक बुर्का ओढ़कर एक औरत की भाँति छिपकर आना पड़ा था। कारण यही था की रास्ते में ग्रामीण हिंदू उसे घेर कर मार सकते थे।
जैसा कि प्रत्येक मुस्लिम इतिहासकारों की आदत थी, मिनहज-अस्-सिराज़ नासिरुद्दीन के शासन-वर्णन की बिसमिल्लाह बड़ाई करते हुए करता है। फिर उसके दुराचारों और अन्यायों का खूब बखान करने बैठ जाता है। वह कहता है कि “सभी लोगों ने एक स्वर से इस उदार, गुणी और कुलीन शाहज़ादे की ताजपोशी की प्रशंसा की। उसके भेद-भावहीन शासनकाल में हिन्दुस्तान का सारा हिस्सा खुश था” यानी मुस्लिम सुखी तो सब सुखी, चाहे दूसरे जहन्नुम की आग में जल ही क्यों न रहे हों।
आगे यही इतिहासकार लोगों को बतलाता है कि जब नासिरुद्दीन बहराइच में जागीरदार था तब उन्होंने “काफ़िरों (यानी हिन्दुस्तान के पुत्र हिन्दुओं) के साथ अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं।”
इन चापलूसों के द्वारा इसी प्रकार के झूठे-सच्चे वर्णन हमारे इतिहासों में ठूंस-ठूंसकर भरे गये हैं तथा उन लोगों के खूनी और दुराचारी कारनामों की तरफ़ से आँखें एकदम बन्द कर ली गई हैं।
नासिरुद्दीन ने २० वर्षों तक लगातार हिन्दुओं का कत्ल किया और चबाया था। इसके बावजूद भी वह भाग्यशाली था कि १२६६ ई० में अपनी सामान्य मौत मरा। हालांकि कुछ लोगों ने इसपर भी संदेह किया है की उसकी मौत के रहस्यों को इतिहास से हटा दिया।
नसिरुद्दीन के बाद बलबन तख्त पर बैठा। यह भी हकीक़त में एक क्रूर-पिशाच था और गुलाम वंश का अन्तिम शासक भी। नासिरुद्दीन का समधी होने के साथ ही यह उसका सेनापति भी था।