इंदौर, मध्य प्रदेश का एक व्यावसायिक नगर ही नहीं, बल्कि अनेकों प्राचीन, ऐतिहासिक, सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिरों का नगर भी है और ऐसे ही प्राचीन, ऐतिहासिक मंदिरों की लिस्ट में से एक है इंदौर का बिजासन माता मंदिर। यह मंदिर इंदौर के एयरपोर्ट के ठीक पास ही में एक छोटी-सी टेकरी यानी पहाड़ी पर बना हुआ है। दूर-दूर से आने वाले माता के भक्तों की भीड़ यहां बारहों मास लगी रहती है।
बिजासन माता के इस मंदिर में भी कटरा के वैष्णोदेवी मंदिर में स्थित मूर्तियों के समान ही माता की पाषाण पिंडियाँ विराजीत हैं। ये मूर्तियाँ यहाँ कब से प्रतिष्ठित हैं, इस बारे में कोई विशेष पौराणिक या ऐतिहासिक प्रमाण मौजुद नहीं है। मंदिर के गर्भगृह में माता बिजासन के नौ स्वरूप विद्यमान हैं। पुजारियों का मानना है कि माता की ये पिंडियाँ सैकड़ों सालों से इसी प्रकार प्रतिष्ठित हैं, जिनकी यहाँ के निवासी पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। पुजारियों का यह भी मानना है कि ये पिंडियाँ स्वयंभू हैं।
इस मंदिर की खोज के विषय में हालांकि, कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है लेकिन माना जाता है कि किसी समय में यहाँ का घना जंगल काले हिरणों का जंगल हुआ करता था और मराठा वंश से संबंधित होलकर राजघराने के सदस्य यहां अक्सर शिकार करने के लिए आया करते थे।
बताया जाता है कि सन 1760 में ऐसे ही एक दिन महाराजा शिवाजीराव होलकर भी इस जंगल में शिकार की तलाश में घुम रहे थे तभी उन्हें यहां एक प्राचीन मंदिर के अवशेष दिखाई दिये। जिसके बाद से आस-पास के लोगों ने यहां पूठा-पाठ करनी शुरू कर दी।
जबकि कई लोगों का मानना है कि इस मंदिर में हजारों सालों से पूजा होती आ रही है, और उन दिनों में यहां पौराणिक काल में बने हुए एक मंदिर के अवशेष भी देखे जाते थे जो समय के साथ-साथ मिट्टी और पत्थरों के एक अस्थाई चबूतरे में बदल चुके थे। और क्योंकि यहां आसपास का जंगल बहुत ही घना हुआ करता था इसलिए यहां श्रद्धालु आसानी से नहीं आ पाते थे और अक्सर रास्ता भटक जाते थे।
लेकिन, इंदौर के महाराजा शिवाजीराव होलकर ने सन 1760 में जब यहां मराठा शैली में एक स्थायी मंदिर का निर्माण करवा दिया तभी से यहां आने वाले भक्तों की संख्या भी बढ़ने लगी। सन 1760 में बने उस मंदिर में सन 1920 में एक बार फिर से जिर्णोद्धार करवाया गया जिसे हम आज भी देख सकते हैं। इसके अलावा भक्तों की भीड़ को देखते हुए मंदिर तक आने-जाने के रास्तों को भी स्थायी बनाया गया।
बिजासन माता के इस सिद्धपीठ मंदिर को सौभाग्य और संतानदायिनी माना जाता है इसके चलते विवाह के बाद यहां प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर से नवयुगल माता के दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। यहां प्रचलित किंवदंतियां बताती हैं कि आल्हा-उदल ने भी मांडू के राजा को हराने के लिए माता से मन्नात मांगी थी। इसके अलावा यहां यह भी माना जाता है कि तंत्र-मंत्र और अनेकों प्रकार की सिद्धियों के लिए भी इस मंदिर की एक विशेष पहचान है।
मंदिर में हर नवरात्र के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है। चैत्र और शारदीय नवरात्र में माताजी को देश की सबसे लंबी चुनरी चढ़ाई जाती है, साथ ही यहाँ मंदिर में नौ दिनों तक मेला भी लगता है।
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एक अनुमान के मुताबिक नवरात्र के दौरान यहां देशभर से लगभग चार लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। इन दिनों में यहां सूरज उगने से पहले ही भक्तों की लंबी-लंबी कतारें लगनी शुरू हो जाती हैं। दूर-दूर से आने वाले भक्तों की भीड़ बारहों मास लगी रहती है। यहाँ आने वाले भक्तों का कहना है कि यहाँ मांगी मुराद अवश्य पूरी होती है।
माता की इस टेकरी के ऊपर से इंदौर शहर का मनोरम दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है। मंदिर के आँगन में स्थित एक तालाब है जिसमें तैरती मछलियें को मंदिर में दर्शन करने आने वाले भक्त दाना खिलाते देखे जा सकते हैं। मंदिर के पास ही की अन्य टेकरियों पर गोमटगिरि और ह्रींकारगिरि नामक पवित्र जैन स्थल भी हैं जहां हर साल चातुर्मास के समय में जैनमुनि आते हैं।
माता के इस मंदिर में अनेकों प्रकार के विकास कार्य स्थानीय प्रशासन की विभिन्न योजनाओं के तहत आज भी किये जा रहे हैं, जिसमें मंदिर के सौंदर्यीकरण का काम प्रमुख है। निजी वाहनों से आने वाले भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए पार्किंग की विशेष व्यवस्था का भी प्रबंध है।
इंदौर शहर के पश्चिम क्षेत्र में स्थित माता के इस मंदिर से रेलवे स्टेशन लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है। जबकि इंदौर के देवी अहिल्याबाई हवाई अड्डे से यह मंदिर पैदल की दूरी पर ही है। इंदौर शहर देश के एक प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्ग आगरा-मुंबई से जुड़ा हुआ है। आप देश के किसी भी हिस्से से यहाँ सड़क, रेल या वायुमार्ग से आसानी से पहुँच सकते हैं।
– ज्योति सोलंकी, इंदौर