यूं तो राजनीति, संगठन एवं समाजसेवा में सक्रिय रहने के लिए समग्र दृष्टि से सतर्क रहना पड़ता है और तत्कालीन परिस्थितियों पर बारीकी से नजर रखनी पड़ती है। राजनीति एवं समाजसेवा में निरंतर सक्रिय रहने के लिए आमतौर पर जिन खूबियों की आवश्यकता होती है, यदि इन पर चर्चा की जाये तो समय, स्वास्थ्य, उम्र, हैसियत, अनुभव, शिक्षा, सक्षमता, दूरदर्शिता, सानिध्य, समर्पण, स्वीकार्यता, संयम, संघर्ष, समन्वय, सकारात्मकता आदि की बातें की जाती हैं।
वास्तव में यदि देखा जाये तो इन सभी खूबियों की आम जनजीवन में भी जरूरत पड़ती है किंतु जो दल सत्ता में होते हैं, स्वार्थवश उन दलों से जुड़ने एवं चंदा देने वालों की संख्या अधिक बढ़ जाती है। सत्ताधारी दलों को भी यही लगता है कि सत्ता में रहते हुए जैसी अनुभूति होती है, वह अनवरत बनी रहेगी किंतु ऐसा होता नहीं है। वास्तव में ऐसे ही वक्त पर दूरदर्शिता की जरूरत होती है। इस बात की दूरदर्शिता की जरूरत होती है कि सत्ता में रहते हुए जो कुछ चल रहा है या जैसा देखने को मिल रहा है, क्या वह भविष्य में टिकाऊ रहेगा।
इस दृष्टि से यदि भारतीय जनता पार्टी की बात की जाये तो उसका समय अन्य दलों से बहुत बेहतर चल रहा है किंतु इस प्रकार की स्थिति आगे भी बरकरार रहेगी, इसी पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। भारतीय जनता पार्टी चूंकि, कैडर आधारित पार्टी है।
पार्टी का बड़े से बड़ा नेता अपने को सामान्य कार्यकर्ता ही मानकर कार्य करता है और इस पार्टी की स्थापना काल से ही आमतौर पर यह तासीर रही है कि कोई भी कार्यकर्ता जब तक स्वस्थ है और उसकी जब तक इच्छा है तब तक काम करेगा किंतु हाल के वर्षों में पार्टी ने कुछ प्रयोग किये। इन्हीं प्रयोगों के अंतर्गत कुछ प्रांतों में मंडल अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष एवं कुछ अन्य जिम्मेदारियों के लिए उम्र का निर्धारण किया गया। राजधानी दिल्ली में भी यह फार्मूला लागू किया गया परंतु मात्र कुछ समय में ही देखने को मिला कि उम्र का फार्मूला तय करना उचित परिणाम देने में कारगर नहीं रहा। उम्र का मिला-जुला मिश्रण यानी हर उम्र के लोगों का समन्वय होना नितांत जरूरी है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि सर्वदृष्टि से पार्टी में युवाओं को आगे लाया जाये और महत्वपूर्ण दायित्व दिये जायें किंतु युवा उम्र के साथ-साथ समय की भी जरूरत होती है। युवावस्था में ही युवाओं को अपने करियर की चिंता होती है और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई एवं उन्हें संस्कारित करने की भी जिम्मेदारी होती है। पार्टी आमतौर पर यह मानकर चलती है कि युवा ज्यादा भागदौड़ कर लेंगे, किंतु जहां तक मेरा मानना है कि भागदौड़ के साथ-साथ सुलझे हुए व्यक्तित्व की भी आवश्यकता होती है। युवाओं के साथ एक बात यह भी देखने में मिल रही है कि अधिकांश युवा राजनीति में लक्ष्य लेकर आ रहे हैं।
कुछ समय उपरांत यदि उनको अपना लक्ष्य हासिल होता नहीं दिखता है तो वे दल बदलने में भी जरा सा संकोच नहीं करते हैं किंतु जिन लोगों ने एक लंबा समय पार्टी को दे दिया है, वे अपनी पार्टी छोड़कर किसी अन्य दल में जाने की सोचते तक नहीं हैं। हां, यदि विशेष परिस्थितियों में इक्की-दुक्की घटनाएं हो जायें तो उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है। उम्र यानी अनुभव बढ़ने के साथ-साथ कार्यकर्ता पार्टी की रीति-नीति, सिद्धांतों एवं परंपराओं से भली-भांति परिचित होता जाता है और उसकी स्वीकार्यता भी बढ़ती जाती है।
उम्र तो सबकी बढ़नी है, चाहे वह कोई भी हो किंतु जब उम्र का सम्मान होता है तो उससे युवा पीढ़ी प्रेरणा लेती है और समाज में भी एक सकारात्मक संदेश जाता है। उम्र के साथ-साथ व्यक्ति घर-परिवार की अपनी जिम्मेदारियों से भी मुक्त होने लगता है और उसका ध्यान पार्टी एवं पार्टी की गतिविधियों पर अधिक केंद्रित होता जाता है यानी कहा जा सकता है कि घर-परिवार की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर जब कोई पार्टी को और अधिक समय देना चाहता है तो उसकी सेवाओं का लाभ पार्टी को और अधिक लेना चाहिए न कि उम्र के आधार पर उससे किनारा करना चाहिए।
उम्र एवं अनुभव के साथ व्यक्ति में समाज को जानने, समझने, परखने और दिशा देने की क्षमता और अधिक बढ़ती जाती है, इसलिए ऐसे लोग राष्ट्र एवं समाज के लिए ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर आज के वातावरण में भी जब घर-परिवार में शादी एवं अन्य प्रमुख कार्य होते हैं तो उसमें परिवार के वरिष्ठ सदस्यों को आगे किया जाता है। ऐसा करके वरिष्ठता का सम्मान तो किया ही जाता है, साथ ही साथ उनमें किसी भी स्थिति से उबरने की भी क्षमता होती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वरिष्ठ सदस्यों की उपस्थिति में इस बात का विश्वास अधिक होता है कि कुछ उलटे एवं अप्रिय कार्य नहीं होंगे।
कमोबेश इसी प्रकार की स्थितियां राजनीति में भी आती-जाती रहती हैं, हार-जीत का सिलसिला चलता रहता है। कभी-कभी हताशा एवं निराशा का दौर बहुत व्यापक स्तर पर देखने को मिलता रहता है। ऐसे में पार्टी को वरिष्ठ सदस्य निराशा की स्थिति से निकालने का कार्य करते हैं। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि यदि कोई भी कार्यकर्ता जिसकी उम्र अधिक हो चुकी है किंतु वह पूर्ण रूप से स्वस्थ है और वह पार्टी को अपनी सेवाएं देना चाहता है तो पार्टी को उसका लाभ अवश्य उठाना चाहिए, न कि उम्र का हवाला देकर उससे किनारा किया जाये।
कई मामलों में देखने को मिलता है कि जो काम युवा नहीं कर पाते हैं, उसे बुजुर्ग कर देते हैं। बढ़ती उम्र के साथ जब व्यक्ति को पार्टी एवं संगठन की जरूरत और अधिक होती है तो उससे कटने के बजाय और अधिक जुड़ने की आवश्यकता होती है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि जब तक कोई स्वस्थ है तब तक मस्त होकर काम करने दिया जाये। वैसे भी, पार्टी एवं संगठन में जितना अच्छे स्वास्थ्य की जरूरत है, उतना ही समय की भी जरूरत है।
आजकल ‘सक्षम’ शब्द का प्रचलन पार्टी में बहुत तेजी से बढ़ा है। सक्षम शब्द का आशय मात्र इस बात से होना चाहिए कि कार्यकर्ता कार्य करने की दृष्टि से सक्षम हो, न कि उसका आशय दूसरा हो। इसके साथ-साथ राजनीति में जिन-जिन बिंदुओं की जरूरत हो, उसका विधिवत विश्लेषण करके उस पर आगे बढ़ा जाये। आज पार्टी का जो स्वर्णिम समय चल रहा है, वह अनवरत चलता रहे, उसके लिए निहायत ही दूरदर्शी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। वैसे भी, भविष्य के खतरे को भांपकर उस पर आगे बढ़ जाना निहायत ही सकारात्मक सोच का परिचायक है। जहां तक मेरा विचार है, यदि उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर निरंतर आगे बढ़ते रहा जाये तो उचित ही रहेगा। पार्टी एवं संगठन को इसका लाभ मिलेगा।
– हिमानी जैन, मंत्री- भारतीय जनता पार्टी, दरियागंज मंडल, दिल्ली प्रदेश