अभी हाल ही में कोलकाता के एयरपोर्ट से रेडियो ऐक्टिव धातु कैलिफोर्नियम धातु की 250 ग्राम खेप जब्त की गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत सवा चार हजार करोड़ से ज्यादा बताई जा रही है। खबरों के मुताबिक यह दुनिया की दूसरी सबसे महंगी रासायनिक धातु है। एक ग्राम कैलिफोर्नियम की अंतराष्ट्रीय बाजार में कीमत 27 लाख डाॅलर यानी करीब 18 करोड़ रुपये तक होती है जबकि सबसे कीमती धातु पैलेडियम है जो अब तक दुनिया की चार सबसे महंगी धातुओं की सूची में सबसे ऊपर आती है। इन धातुओं के इतना महंगा होने की वजह है कि ये धातुएं उतनी मात्रा में मौजूद नहीं है, जितनी इसकी मांग होती है।
कैलिफोर्नियम प्राकृतिक न हो कर लैब में तैयार किया गया रासायनिक तत्व है। इसका प्रयोग खासतौर पर सोने और चांदी की खदानों की पहचान, पोर्टेबल मेटल डिटेक्टर्स आदि में किया जाता है। कैलिफोर्नियम का जो सबसे खास इस्तेमाल होता है उसके अनुसार न्यूक्लियर रिएक्टर को स्टार्ट करने में भी यह मदद करता है।
क्या होता है कैलिफोर्नियम?
कैलिफोर्नियम उन खास ट्रांसयूरेनियम एमिलमेंट्स में से एक है जिन्हें इतनी मात्र में बनाया गया है कि खुली आंखों से देखा जा सके। भौतिकीय भाषा में कहें तो कैलिफोर्नियम धातु के सारे आइसोटोप्स भी रेडियो ऐक्टिव होते हैं, जबकि सबसे स्थिर आइसोटोप Cf-251 की अर्द्ध आयु करीब 800 साल तक हो सकती है।
कैलिफोर्नियम कोई प्राकृतिक उत्पाद नहीं बल्कि लैब में बनाया गया एक प्रकार का धातु है और अमेरिका की एक लैब में सन 1950 में सिंथेसाइज किया गया था।
कैलिफोर्नियम चांदी के रंग जैसी होती है और करीब 900 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पिघलती है लेकिन वहीं इसकी खासियत है कि अपने असली रूप में यह धातु इतनी मुलायम होती है कि उसे आसानी से ब्लेड से काटा जा सकता है। हालांकि, रूम टेम्प्रेचर पर यह कठोर अवस्था में रहती है।
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कैसे बना कैलिफोर्नियम –
इस धातु का नाम कैलिफोर्नियम इस रखा गया क्योंकि इसको सबसे पहले वर्ष 1950 में कैलिफोर्निया की एक लेबोरेटरी में तैयार (संश्लेषित) किया गया था। यदि हम विकीपीडिया को आधार माने तो प्राप्त जानकारियों के अनुसार इसकी खोज का श्रेय कीनिथ स्ट्रीट, स्टेलने जी. थाॅमसन, ग्लेन टी. सीबाॅर्ग तथा अल्बर्ट ग्हेयरसो नाम के वैज्ञानिकों को जाता है।
कैलिफोर्नियम एक रेडियो ऐक्टिव रासायनिक तत्व है जिसे आवर्त सारिणी में यानी पीरियोडिक टेबल में सीएफ के नाम से पहचाना जाता है। इसकी परमाणु संख्या या फिर जिसे एटाॅमिक नंबर कहा जाता है वह 98 है।
कैलिफोर्नियम के प्रयोग की बात करें तो सबसे पहले इसे क्यूरियम व अल्फा पार्टिकिल के साथ विस्फोट या बमबार्डिंग करके अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित लारेंस बर्कले नाम की एक नेशनल लेबोरेटरी में तैयार किया गया था।
कैलिफोर्नियम का इस्तेमाल –
सन 1965 में भारत और अमेरिका के द्वारा नंदा देवी पर्वतों पर एक खुफिया मिशन चलाया गया था जिसमें से एक न्यूक्लियर डिवाइस खो गया था, उसमें भी कैलिफोर्नियम का उपयोग किया गया था।
कैलिफोर्नियम के जरिए एयरक्राफ्ट की न्यूट्राॅन रेडियोग्रफी की जा सकती है ताकि किसी खराब या फंसी हुई नमी का पता लगाया जा सके। इसके अलावा कैलिफोर्नियम के माध्यम से न्यूक्लियर रिएक्टर्स को चलाने के लिए जरूरी न्यूट्राॅन्स मुहैया कराए जा सकते हैं।
एक न्यूट्राॅन सोर्स के रूप में यह ‘न्यूट्राॅन ऐक्टिवेशन’ नाम की तकनीक के जरिए सोने और चांदी की खदानें खोजने के महत्वपूर्ण काम भी आता है। तेल के कुओं में पानी और तेल वाली परतों का पता लगाने के लिए भी इसकी मदद ली जाती है।
कैलिफोर्नियम से खतरा –
मनुष्य के लिए कैलिफोर्नियम कितना नुकसानदायक है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इंसानी शरीर में यह जहरीले भोजन या पानी के जरिए प्रवेश कर सकता है। रेडियो ऐक्टिव हवा में सांस लेने पर इसके कुछ कण शरीर में प्रवेश कर सकते हैं जो जहर का काम करते हैं।
– अशोक सिंह, ग़ाज़िआबाद, उत्तर प्रदेश