डॉ.स्वपनिल यादव | देखा जाए तो हिंदी हमारी राजभाषा है और भारतीय संस्कृति ने हिंदी भाषा को मां का दर्जा सम्मान दिया है। परंतु हिंदी भाषा में विज्ञान लेखन हमेशा चुनौती पूर्ण रहा है। देश के बड़े-बड़े वैज्ञानिक और शोध संस्थानों में प्रकाशित लेख अधिकतर अंग्रेजी भाषा में ही प्रकाशित होते आए हैं। कुछ वैज्ञानिक संस्थान हिंदी में भी वैज्ञानिक लेख प्रकाशित कर रहे हैं और बहुत ही बेहतर पत्रिकाएँ भी निकाल रहे हैं। परंतु अभी भी हमारे वैज्ञानिक शोध की भाषा हिंदी भाषा नहीं बन पाई है। वर्ष 1913 में उत्तरप्रदेश के प्रयाग में ‘विज्ञान परिषद’ की स्थापना हुई। विज्ञान परिषद की स्थापना में डॉ. गंगानाथ झा, प्रोफेसर हमीरुद्दीन, रामदास गौड़ और पंडित सालिगराम भार्गव शामिल थे।
विज्ञान परिषद का मुख्य उद्देश्य भारतीय भाषा में वैज्ञानिक साहित्य की रचना करना, वैज्ञानिक विचारधारा का प्रसार करना, वैज्ञानिक अध्ययन और वैज्ञानिक अनुसंधान कार्य को प्रोत्साहन देना, प्रदेश के वैज्ञानिक समस्याओं के संबंध में विचार विमर्श करना था। श्री रामदास गौड़ ने तो पंडित सालिगराम के साथ मिलकर ‘विज्ञान प्रवेशिका भाग एक’ भी लिख दी। बाद में परिषद में ‘विज्ञान’ पत्रिका का प्रकाशन भी हिंदी भाषा में शुरू किया। इस समय सबसे अधिक चुनौती पूर्ण यह था कि विज्ञान के जानकार हिंदी भाषा को लेकर और हिंदी भाषा के जानकारी विज्ञान विषय को लेकर उदासीन थे।
विज्ञान परिषद के संस्थापकों में शामिल श्री रामदास गौड़ का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में 1881 में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा जौनपुर और बनारस में हुई। अपने बीए सेंट्रल कॉलेज से किया और बाद में सेंट्रल हिंदू कॉलेज में रसायन के सहायक अध्यापक रहे। प्रयाग विश्वविद्यालय से रसायन विषय में एमएससी करने के बाद आप 1918 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर भी रहे। परंतु राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होने के कारण नौकरी छोड़कर 1921 में भारत की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और वैज्ञानिक होने के साथ-साथ लेखक के रूप में स्वयं को स्थापित करना रामदास गौड़ के लिए अत्यंत चुनौतीपूर्ण रहा।
विज्ञान पत्रिका में गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान के साथ-साथ आयुर्वेद विज्ञान के भी लेख प्रकाशित होते रहे।श्री शिव प्रसाद गुप्त के कहने से रामदास गौड़ ने हिंदुत्व विषय पर किताब लिखना शुरू किया। गुप्त जी की हमेशा इच्छा थी कि प्रत्येक धर्म के संबंध में एक ऐसा ग्रंथ प्रकाशित किया जाए जिससे केवल उसी को देखने से धर्म की भूमिका और क्रम विकास का पूरा ज्ञान पाठक को हो सके तथा जो अधिक अध्ययन करना चाहते हैं उन्हें यह मालूम हो जाए कि क्या पढ़ना चाहिए। इसके साथ ही शिव प्रकाश गुप्त जी का यह भी उद्देश्य था कि इस धर्म को मानने वालों को संस्कृत का ज्ञान हो और यह दायित्व श्री रामदास गौड़ ने पूरी तरीके से निभाया।इसके साथ ही रामदास गौड़ ने विज्ञान हस्तामलक, वैज्ञानिक अद्वैतवाद और रामचरितमानस की भूमिका आदि पुस्तकों का भी लेखन किया। श्री रामदास गॉड 1915 से 1916 तक विज्ञान परिषद के प्रधानमंत्री रहे और 1933 से 1937 तक विज्ञान पत्रिका के संपादक भी रहे। उनको ससम्मान ‘लिविंग एनसाइक्लोपीडिया’ भी कहा जाता था। रामदास गौड़ ने अंतिम सांस 12 सितंबर 1937 को ली। दिसंबर 1937 में विज्ञान पत्रिका ने श्री रामदास गौड़ पर विशेषांक भी प्रकाशित किया।