अजय सिंह चौहान || हमारी इस संपूर्ण पृथ्वी पर और विशेष कर भारत भूमि पर, अनंतकाल से माता जगतजननी के हजारों ही नहीं बल्कि लाखों, सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिर हुआ करते थे, जिनमें से अब मात्र कुछ ही शेष रह गये हैं और बाकि मंदिरों का तो आक्रांताओं ने अस्तित्व ही मिटा दिया। उनके बारे में तो पता ही नहीं है कि अब उनका मूल स्थान कहां है। लेकिन, जो कुछ भी शेष रह गये हैं उनमें सनातन संस्कृति, यानी हिंदू धर्म के लिए सबसे प्रमुख तीर्थों में अपन एक विशेष स्थान रखने वाले, माता सति को समर्पित 51 प्रमुख शक्तिपीठों में से एक ‘‘चामुंडा देवी’’ (Chamunda Devi Mandir Kangra- HP) के नाम से विश्व प्रसिद्ध मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में आज भी मौजूद है।
जानकारों के अनुसार देवी भगवती पुराण में उल्लेख मिलता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु के चक्र से कट कर माता सति के चरणों का एक भाग गिरा था, जिसके बाद से इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाने लगा। हालांकि, अधिकतर मान्यताओं और पुराणों में माता चामुंडा देवी के इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता नहीं है, लेकिन, स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में ही पूजा जाता है। जबकि जानकार मानते हैं कि यह एक सिद्ध पीठ मंदिर है इसलिए किसी सिद्धपीठ की मान्यता भी शक्तिपीठ स्थलों से कम नहीं होती।
चामुंडा देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश (Chamunda Devi Mandir Kangra- HP) के कांगड़ा जिले में बाण गंगा नदी के तट पर पडर नामक एक गांव में स्थित है। स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में ही पूजा जाता है। स्थानीय लोगों की आस्था है कि देवी चामुंडा का यह मंदिर ‘भगवा शिव और माता शक्ति’ का एक ऐसा निवास स्थल है जहां वे अपने विश्व भ्रमण के दौरान विश्राम करते हैं।
माता चामुंडा को यहां ‘हिमानी देवी मंदिर’ के नाम से भी पहचाना जाता है। इसके अलावा भगवान शिव के प्रमुख गण नंदी के नाम पर ‘चामुंडा नंदिकेश्वर धाम’ के रूप में भी इस स्थान का विशेष महत्व है। पुराणों की कथाओं के अनुसार ‘चामुंडा नंदिकेश्वर धाम’ भगवान शिव और माता शक्ति का निवास स्थान है। इसके अलावा एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, ‘चंड’ और ‘मुंड’ नाम के राक्षसों का अंत करने के बाद देवी माता के उस रौद्र रूप को यहां सभी देवताओं की ओर से “रुद्र चामुंडा” के रूप में उपाधि और पहचान मिली थी, इसलिए इस स्थान का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
किसी समय में भले ही यह मंदिर (Chamunda Devi Mandir Kangra- HP) इस क्षेत्र के लिए सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक हुआ करता था और इस पवित्र तीर्थ के लिए अखण्ड भारत से यात्री यहां दर्शनों के लिए आया करते थे। लेकिन आज यह मंदिर और इसका यह संपूर्ण क्षेत्र, तीर्थ स्थल के साथ हिमाचल प्रदेश के कुछ प्रसिद्ध हिल स्टेशनों में भी एक प्रसिद्ध स्थान रखता है।
स्थानीय लोगों की आस्था है कि माता चामुंडा देवी यहां अपने मंदिर में ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र की प्रकृति में भी निवास करती हैं और यहां के प्राकृतिक दृश्यों में भी उनके साक्षात दर्शन किये जा सकते हैं। तभी तो उनके प्राकृतिक स्वरूप को निहारने के लिए पर्यटक और तीर्थयात्री दूर-दूर से यहां आते रहते हैं। चामुंडा देवी का यह मंदिर प्रदेश के पालमपुर में ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश सहित संपूर्ण देश के लिए सबसे प्रतिष्ठित धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्रों में से एक है जो अपने शांत परिवेश के लिए जाना जाता है।
कैलाश मन्दिर के रहस्यों को भी सामने लाये सरकार
चामुंडा देवी का यह प्रसिद्ध मंदिर समुद्र तल से करीब 1,000 मी. यानी कि 3,281 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। इसी कारण यहां आने वाले तमाम लोगों को यह स्थान एक पर्वतीय तीर्थ के साथ पर्यटन का भी आनंद देता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को ऐसा लगता है मानो वे किसी ऐसे स्थान पर पर आ गये हों जो इस लोक से परे की कोई दिव्य नगरी है।
हिमालच प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित इस पालमपुर शहर के माता चामुंडा देवी मंदिर और इसके आसपास के अन्य शहरों की बात करें तो पालमपुर शहर से यह मंदिर मात्र 10 किमी, कांगड़ा से 24 किमी और धर्मशाला से भी यह मंदिर मात्र 15 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
हालांकि, आधुनिकता के इस दौर में यह धार्मिक क्षेत्र, तीर्थ के साथ-साथ पर्यटन के लिहाज से भी एक पिकनिक स्पाॅट की तरह बन चुका है इसलिए अब यहां पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की संख्या को बरामर मात्रा में देखा जा सकता है। इस क्षेत्र में आने वाले अधिकतर पर्यटक चामुण्डा देवी मंदिर में दर्शन करने अवश्य ही पहुंचते हैं।
मंदिर के प्रांगण से आस-पास की पहाड़ी सुंदरता, जंगल और नदियां श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अध्यात्मिक उर्जा प्रदान करती है। मंदिर के बीच वाला प्रांगण क्षेत्र ध्यान मुद्रा के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना गया है। इसलिए आध्यात्मिक आनंद के लिए यहां अधिकतर श्रद्धालुओं को ध्यान करते देखा जा सकता है।
दूर-दूर से चामुंडा माता मंदिर में आने वाले तमाम श्रद्धालुओं को यहां अपने पूर्वजों के लिए पूजा, प्रार्थना और अनुष्ठान करते देखा जा सकता है। साथ ही साथ श्रद्धालुओं और पर्यटकों के साथ आने वाले बुजुर्गों और बच्चों को भी यहां आध्यात्मिक आंनद लेते हुए देखा जा सकता है। मंदिर के प्रांगण में खड़े होकर पास ही में बहने वाली बाण गंगा नदी की तेज धारा के मधुर स्वर को स्पष्ट सूना जा सकता है। अधिकतर श्रद्धालु इस नदी में स्नान करते हैं और कुछ मंदिर के पास ही के एक प्राचीन कुण्ड में भी स्नान करते देखे जा सकते हैं। वर्तमान में इस कुण्ड को आधुनिक रूप देकर सुविधाजनक कर दिया गया है। अधिकतर श्रद्धालु इस स्नान के पश्चात ही माता के दर्शन करने के लिए मंदिर में प्रवेश करते हैं।
चामुंडा माता मंदिर के मुख्य द्वार के पास ही में भगवान भैरों नाथ जी, भगवान श्रीराम और राम भक्त हनुमान जी की प्रतिमाओं के दर्शन हो जाते हैं। मंदिर के पीछले हिस्से में एक पवित्र प्राचीन गुफा भी है जिसके अंदर भगवान शिव के प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन हो जाते हैं। मंदिर के पास ही में अन्य कई देवी-देवताओं की अद्भूत नक्काशीदार आकृतियांे के भी दर्शन होते हैं। मंदिर की अन्य दीवारों पर महाभारत और रामायण के विभिन्न दृश्यों को चित्रित कर सजाया गया है।
मंदिर के प्रांगण का मध्य भाग साधकों और श्रद्धालुओं की ध्यान साधना के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है, इसलिए यहां पर कई लोगों को ध्यान लगाते और अध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति करते देखा जा सकता है। पहाड़ी सुंदरता, जंगल और नदियां श्रद्धालुओं और पर्यटकों को मोहित कर देती हैं।
नवरात्र के अवसर पर यहां पर यहां सबसे अधिक धूमधाम देखी जाती है। मंदिर में अखण्ड पाठ आयोजित होते हैं और सप्तचण्डी का पाठ किया जाता है। विशेष हवन-पूजा किया जाता है और लगातार नौ दिनों तक जगरण किया जाता है। स्थानीय स्तर पर व्यापारिक एवं सांस्कृतिक मेले का भी आयोजन होता है। इन नौ दिनों तक यहां दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ की आस्था को लंबी-लंबी कतारों के माध्यम से महसूस जा सकता है।
मंदिर का योगदान –
सनातन के प्राचीन परंपरागत मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों के अनुसार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित इस चामुंडा देवी के प्रसिद्ध मंदिर के पीछे की ओर एक पुस्तकालय एवं संस्कृत विद्यालय है जिसमें वेद एवं पुराणों कि कक्षाएं मुफ्त में चलाई जाती है। इसके अलावा यहां के इस पुस्तकालय में कई पौराणिक गं्रथों के अतिरिक्त ज्योतिषाचार्य, वेद, पुराण, संस्कृति से संबंधित अन्य कई पुस्तकें भी बिक्री के लिए रखी गई हैं। पुस्तकालय एवं चिकित्साल को यहां मंदिर की संस्था द्वारा संचालित जाता है। इसके अलावा यहां एक आयुर्वेदिक चिकित्सालय भी है जिसमें प्राकृतिक चिकित्सा संबंधि कई प्रकार की सामग्री एवं जड़ी-बुटियां प्राप्त की जा सकती हैं।
स्थानीय भाषा एवं भोजन –
यह मंदिर क्षेत्र और पर्यटन स्थल हिमालच प्रदेश में आता है। और हिमाचल प्रदेश किसी समय में पंजाब का ही एक भाग हुआ करता था इसलिए यहां पंजाबी भाषा सबसे अधिक बोली जाती है। इसके अलावा हिंदी बोलने वालों की संख्या भी यहां कम नहीं है। भोजन व्यवस्था की बात करें तो यहां करीब-करीब हर प्रकार के उत्तर भारतीय और खास तौर पर पंजाबी और पहाड़ी पकवानों का आनंद लिया जा सकता है।
सही मौसम –
भले ही गर्मी के मौसम में अन्य पहाड़ी क्षेत्रों की तरह ही कांगड़ा जिले में स्थित इस चामुंडा देवी के प्रसिद्ध मंदिर में भी पर्यटकों की भीड़ देखी जा सकती है लेकिन, सर्दियों के मोसम में भी यहां पर्यटकों की कमी नहीं रहती। इसलिए कहा जा सकता है कि आस्था के साथ-साथ पर्यटन का आनंद लेने वालों की संख्या भी यहां हर मौसम में यहां अच्छी खासी रहती है।
सर्दियों के मौसम में यहां पारा शून्य डिग्री से नीचे पहुंच जाता है इसलिए अच्छी खासी ठंड पडती है। ऐसे में पर्यटकों को यहां अतिरिक्त गरम कपड़ों की अवश्यकता होती है। जबकि अप्रैल से अक्टूबर के बीच के महीनों में यहां दिन का मौसम गर्म ही रहता है, लेकिन सुबह-शाम और रात के समय में हल्की ठंड हो जाता है। जनवरी से मार्च के महीनों में यहां पर सबसे अधिक पर्यटकों को देखा जा सकता है।
दूरी –
चामुंडा देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बाण गंगा नदी के तट पर पडर नामक स्थान पर स्थित है। और इस स्थान के आस-पास के अन्य प्रमुख शहरों और स्थानों से मंदिर की दूरी की बात करें तो धर्मशाला से 10 किमी, पालमपुर से करीब 25 किमी, मराण्डा रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किलोमीटर, धर्मशाला से 18 कि.मी., मैकलियोड गंज से 25 किमी और कांगड़ा से 26 किमी और ज्वालामुखी से 55 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
कहां ठहरें –
चामुंडा देवी का मंदिर के आस-पास रात्रि विश्राम के लिए होटल और धर्मशालाओं की सुविधाएं आराम से मिल जाती हैं। लेकिन, क्योंकि मंदिर से करीब 15 से 50 किलोमीटर के आसपास अन्य कई प्रमुख पर्यटन स्थल और प्रसिद्ध शहर मौजूद हैं इसलिए अधिकतर यात्री उन्हीं शहरों में रात को ठहरना पसंद करते हैं।
कैसे पहुंचे –
करीब-करीब हर पहाड़ी राज्यों के दूर-दराज के क्षेत्रों स्थित धार्मिक और पर्यटन स्थानों तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग का ही सहारा होता है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर में स्थित मां चामुंडा देवी के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए यहां रेल की सुविधा उपलब्ध है। क्योंकि पठानकोट से करीब 115 किमी की दूरी पर स्थित मराण्डा स्टेशन तक छोटी लाइन पर चलने वाली रेलगाड़ी के द्वारा पहुंचना होता है। इसके बाद मराण्डा स्टेशन से चामुंडा देवी मंदिर की दूरी लगभग 30 किलोमीटर रह जाती है।
सड़क मार्ग से चामुंडा देवी मंदिर तक पहुंचने वाले यात्रियों के लिए हिमाचल प्रदेश के सभी प्रमुख शहरों से यह मंदिर सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है, इसलिए हिमाचल प्रदेश पर्यटन और रोडवेज विभाग की बसों की मदद से चामुंडा देवी मंदिर तक किसी भी दिशा से आसानी से पहुंच सकते हैं।
हवाई जहाज से हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर में स्थित मां चामुंडा देवी के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा यहां से करीब 30 किलोमीटर दूर कांगड़ा में गग्गल नामक स्थान पर स्थित है। कांगड़ा नामक यह कोई बहुत बड़ा और व्यस्त एयरपोर्ट नहीं है इसलिए यहां बहुत ही कम उड़ाने आती-जाती हैं। इस एयरपोर्ट से स्थानीय रोडवेज बसें और टैक्सी की सुविधा के जरिए चामुंडा देवी मंदिर तक पहुंचा सकता है। जबकि चामुंडा देवी मंदिर के लिए पठानकोट में दूसरा सबसे बड़ा और नजदीकी एयरपोर्ट है जो भारत के कुछ सबसे व्यस्त हवाई अड्डों में से एक है।