अजय सिंह चौहान || हैदराबाद का चिलकुर बालाजी मंदिर जो श्री वेंकटेश्वर स्वामी को समर्पित है, आजकल वीसा-बालाजी या वीसा भगवान (Sri Chilkur Balaji Temple) के नाम से भी बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर को लेकर लोगों की यह मान्यता है कि किसी भी देश में जाने का वीजा पाने के लिए इंटरव्यू से पहले अगर कोई भी व्यक्ति श्री वेंकटेश्वर स्वामी के दर्शन कर लेता है तो इनकी कृपा से सकारात्मक और चमत्कारिक परिणाम मिलता है। इसीलिए अब चिलकुर बालाजी को वीजा मंदिर के नाम से भी जाना जाने लगा है।
कहा जाता है कि अगर आपकी विदेश यात्रा में अड़चन आ रही हो तो इस मंदिर में बालाजी के दर्शन करके उनसे वीजा लगवाने की प्रार्थना करो और फिर देखो कैसे फटाफट वीजा मिल जाता है। इसी आस में यहां हर सप्ताह लगभग 1 लाख लोग दूर दूर से पहुंचते हैं। बताया जाता है कि बालाजी के इस मंदिर की 11 बार परिक्रमा करना ही यहां हर मुश्किल समस्या का हल है, और जब उसकी मनोकामना पुरी हो जाती है तो उसे इस मंदिर की 108 परिक्रमा करनी होती है। चिलकुर बालाजी मंदिर की वेबसाइट पर कई युवकों ने अपने अनुभवों को शेयर भी किया है।
यह एक प्राचीन मंदिर है जो कि भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है। इस मंदिर को हैदराबाद के सबसे पुराने और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक माना जाता है। हैदराबाद में उस्मान सागर झील के पास स्थित चिलकुर बालाजी के इस मंदिर के वास्तुशिल्प और निर्माण शैली के अध्ययन के बाद यह अनुमान लगाया गया है कि मंदिर कि यह इमारत लगभग 500 साल पुरानी है।
श्री वेंकटेश्वर बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। जिन्हें हिंदुओं के प्रमुख वैष्णव संप्रदाय के देवता विष्णु का अंश माना जाता है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर कोई श्रद्धालु किसी कारणवश तिरुपति बालाजी के दर्शन नहीं कर पाते हैं, वे अगर यहाँ आकर चिलकुर बालाजी के दर्शन लेते हैं तो भी उन्हें भगवान तिरुपति के दर्शनों का फल मिल जाता है। भगवान बालाजी के इस मंदिर में भगवान बालाजी की मूर्ति को जागृत मूर्ति के रूप में माना जाता है।
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां किसी भी प्रकार की भेंट, चढ़ावा या दान दक्षिणा नहीं ली जाती। न ही नकद धनराशि देने का कोई प्रावधान है। इसीलिए यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को कहीं भी कोई दान-पात्र या हुंडी नहीं दिखाई देती। यहां ईश्वर को खुश करने के लिए मात्र नारियल चढ़ाना ही काफी होता है। और इस तरह का यह गुजरात के राजकोट जिले में स्थित जलाराम मंदिर के अलावा भारत का दूसरा ऐसा मंदिर है जहाँ कोई भेंट या चढ़ावा नहीं लिया जाता।
चिलकुर बालाजी का मंदिर भारत का दूसरा ऐसा मंदिर है जिस पर किसी भी प्रकार से सरकार का नियंत्रण नहीं है। सवाल यह उठता है कि जब यहां कोई दान या दक्षिण नहीं ली जाती है तो फिर इस मंदिर के रखरखाव का खर्च कैसे चलता है तो उसके लिए यहां मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं से ली गयी पार्किंग फीस से ही यहां का खर्च चलता है। इसके अलावा यहां आने सभी दर्शनार्थी और श्रद्धालु एक बराबर माने जाते हैं, इसलिए यहा आने वाले दर्शनार्थियों में अगर कोई भी वीआईपी होता है तो भी उसे दर्शन करने के लिए कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं होती। यहाँ आये हुए सब श्रद्धालु एक सामान होते है।
चिलकुर बालाजी के मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या हर महिने 4 से 5 लाख तक होती है। और इन श्रद्धालुओं में देश के लगभग हर भाग से लोग यहां आते हैं। इस मंदिर में आकर एक अलग ही प्रकार की शांति का अनुभव होता है। इस मंदिर की एक और खासियत ये है कि इसमें भूदेवी और श्रीदेवी के साथ भगवान वेंकटेश्वर विराजमान है।
मान्यता है कि चिलकुर बालाजी मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालु अन्य मंदिरों की तरह यहां अपनी आँखें बंद करके भगवान से प्रार्थना नहीं करते। आंखे खुली रखने के बारे में इस मंदिर की मान्यता यही है कि ईश्वर सर्वव्यापी है और वही सब कुछ देने वाला है इसलिए उसे किसी भी प्रकार की कोई भेंट या लालच की आवश्यकता नहीं।
श्री वेंकटेश्वर या श्री बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और चिलकुर बालाजी की इस मूर्ति को स्वयंभू माना गया है।
इस मंदिर के चारों तरफ हरेभरे जंगल होने के कारण यहां आने वाले यात्रियों की संख्या भी अच्छी खासी होती है। यह मंदिर उसमान सागर झील के किनारे पर स्थित है और मुरुवानी राष्ट्रीय उद्यान के नजदीक है इसलिए यहां आने वाले यात्री धर्म के साथ-साथ पर्यटन का आनंद लेने से भी नहीं चुकते हैं।
हर साल हजारों की संख्या में आने वाले दर्शनार्थी यहां आकर मन की शांति और आत्मज्ञान के लिए यहां आसपास के जंगलों में ध्यान-साधना करते देखे जा सकते हैं। उनका मानना है कि खुद को शांत रखने के लिए, मन को एकांत देने लिए यह जगह सबसे उचित है।
चिलकुर का बालाजी मंदिर तेलंगाना राज्य के रंगा रेड्डी जिले में स्थित चिलकुर नामक एक छोटे से कस्बे में है। यह स्थान मेहदीपट्नम से करीब 33 किमी दूर है। भगवान वेंकटेश्वर का यह मंदिर हैदराबाद से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर है।