‘‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’’। कहने के लिए तो एक बहुत वजनदार स्लोगन है। लेकिन, क्या इसमें वो सब कुछ है जो प्रियंका वाड्रा कहना चहती हैं? क्या यह स्लोगन उन सभी लड़कियों और महिलाओं के लिए भी है जो कांग्रेस की वोटर हैं। या सिर्फ एक चुनावी हथकंडा या चुनावी स्लोगन मात्र है।
सब को पता है कि प्रियंका वाड्रा पहले एक लड़की थी, अब महिला है। उसका अपना परिवार है। परिवार में पति है, बच्चे भी हैं, और भी सदस्य होंगे ही। लेकिन, क्या प्रियंका का यही मात्र परिवार है या फिर इसके आगे भी वो देख सकती हैं। जब वो खुद एक परिवार की सदस्या हैं तो जाहिर सी बात है कि वही परिवार उनका अपना है। लेकिन, उनका क्या जो उनकी पार्टी को वोट देता है? क्या उन वोटरों के परिवारों में लड़कियां नहीं हैं जो उनकी पार्टी को वोट देते हैं?
कांग्रेस के ही एक नेता ने जब भरी सभा में इतनी आसानी से निडर होकर कह दिया कि ‘लड़ नहीं सकतीं तो मजे लो’। आखिर कौन है जिसके लिए इस कांग्रेसी नेता ने यह बात कही है कि ‘लड़ नहीं सकतीं तो मजे लो’? किसके इशारे पर यह बात कही होगी? कोई तो होगा जो उसके पीछे खड़ा होगा? किसी न किसी का तो आश्रय होगा ही। शायद उसी पार्टी का जिसके राष्ट्रीय चेहरे का कहना है कि ‘‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’’, या फिर उन महारानी का जो पार्टी की मुखिया हैं।
दुनिया जानती है कि राहुल बाबा राज घराने का है इसलिए लड़ तो सकता है लेकिन, राज करने योग्य संयोग नहीं है। राज करने योग्य संयोग इसलिए नहीं हैं क्योंकि उनके पूर्वजों के कारण ये संयोग नहीं बन रहे हैं। इसके अलावा सफेद कपड़े और गले में लटका छोटा-सा ‘क्रास’ उन भगवा वस्त्रों का मुकाबला नहीं कर पा रहा है जो खुलेआम और खुल कर ‘क्रास’ और हरे झंडे से मुकाबला कर रहे हैं।
कहा जाता है कि जैसा राजा-वैसी प्रजा। लेकिन, कांग्रेस शासित राज्य में तो प्रजा भी वैसी है और तमाम मंत्री भी। क्योंकि वहां की प्रजा न तो राजा का विरोध कर रही है और न ही उस बयानवीर का। लेकिन मजे लेने वले बयान पर न सिर्फ शांत है बल्कि मौन समर्थन देकर जता दिया है कि जो चाहे कर लो। क्योंकि हम लड़ नहीं सकते इसलिए मजे तो ले ही सकते हैं।
जबकि उत्तर प्रदेश की प्रजा जो करीब सात दसकों से एक ही खूंटे से बंधी थी। आज उसे खेलने के लिए खुला मैदान मिल गया है। सोशल मीडिया के माध्यम से उत्तर प्रदेश की प्रजा ने जता दिया है कि बस अब बहुत हुआ अपमान।
– पूरन शर्मा, शिमला (हिमाचल प्रदेश)