चीनी वायरस यानी ‘‘कोरोना वायरस’’ के विषय में माना जाता है कि इसको लेकर करीब 40 साल पहले ही भविष्यवाणी हो चुकी थी कि संभवतः भविष्य में कोई ऐसा जैविक हथियार विकसित होने वाला है जिसके कारण मानव सभ्यता विनाश के कगार पर पहुंच जायेगी। जबकि एक अन्य भविष्यवाणी के अनुसार चीन के वैज्ञानिकों ने भी करीब एक साल पहले इस प्रकार के किसी वायरस जैसी महामारी की चेतावनी दे दी थी। इसके अलावा 2018 में दक्षिण कोरिया में बने एक नाटक ‘‘माई सीक्रेट टेरियस’’ में भी कोरोना वायरस जैसी महामारी को लेकर चेतावनी दी गई थी। आप चाहें तो नेटफ्लिक्स पर इस नाटक के एपिसोड देख सकते हैं।
कोरोना का डर –
बहरहाल, जो भी हो, कोरोना यानी ‘चीनी वायरस’ के कारण आज आम जनमानस के मन में डर कुछ इस कदर बैठा हुआ है कि वे अब अपने पड़ौसियों से भी दूरी बनाकर रहने लगे हैं और किसी भी प्रकार के सुख या दुख में एक दुसरे का साथ देने को तैयार नहीं है। वे लोग भी जो कभी भी किसी से नहीं डरते थे अब अपने घरों में बैठकर इस महामारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं।
जो भी हो, फिलहाल तो कोरोना वायरस प्रकृति के साथ छेड़छाड का नतीजा ही कहा जा सकता है क्योंकि जिस तरह से यह महामारी वैश्विक रूप लेती जा रही है, उससे तो लगता है कि जैसे यह किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं है। इसके अलावा आशंका यह भी है कि ‘‘चायनीज़ वायरस’’ के नाम से प्रसिद्ध यह कोरोना चीन की ही देन हो सकती है। क्योंकि इसकी शुरूआत चीन से ही हुई है और अब चीन से निकलकर यह दुनिया के हर देश में मौत का तांडव दिखा रहा रहा है।
कोरोना का शाब्दिक अर्थ –
कोरोना क्या है यह तो आज सभी लोग जान चुके हैं। लेकिन, कोरोना वायरस को लेकर जितना भयंकर डर का माहौल बना हुआ है उससे भी अधिक अब लोगों के मन में यह जिज्ञासा हो रही है कि आखिर इस महामारी को ‘‘कोरोना वायरस’’ ही क्यों कहा जा रहा है। यानी इसको यह नाम क्यों और कैसे मिला? दरअसल, जब भी किसी भी व्यक्ति या वस्तु का नामकरण होता है। यानी या तो उसके खोजकर्ता के नाम पर उसको नाम दिया जाता है या फिर उसकी उत्पत्ति के स्थान से उसका नामकरण किया जाता है या फिर उसके आकार, बनावट या संरचना के आधार पर ही उसे नाम दिया जाता है। उसी प्रकार कोरोना वायरस के नाम में भी कारण और तर्क छुपे हुए हैं।
कोरोना नाम ही क्यों पड़ा –
सरल भाषा में कहें तो जब सूर्य ग्रहण होता है उस समय चंद्रमा अपने पीछे सूर्य को पूरी तरह ढक देता है जिसके कारण सूर्य एक गोले के रूप में सीधे-सीधे दिखना तो बंद हो जाता है लेकिन वह अपनी किरणों के द्वारा चंद्रमा के आकार से बाहर की तरफ फैला कर एक नर्म रोशनी को दर्शाता है। उस समय लगता है जैसे सूर्य की वह नर्म रोशनी तेजी से ब्रह्मांड में कहीं विलुप्त हो जाती है और फिर कुछ देर के बाद धीरे-धीरे अपने नर्म रूप में वापस आती हुई दिखती है। सूर्य की उस नर्म और मध्यम रोशनी को ही करोना कहा जाता है। यानी सूर्य ग्रहण के समय की चंद्रमा की उस छाया के चारों तरफ फैल रही सूर्य की मध्यम या नर्म कोरोना नामक उस रोशनी के नाम पर ही कोरोना वायरस को भी नाम दिया गया है, क्योंकि इस वायरस की बनावट उस खगोलीय घटना से उत्पन्न कोरोना जैसी ही है।
कोरोन से बना कोरोना –
कोरोना वायरस देखने में एक प्रकार से सिर पर पहने जाने वाले उस मुकुट के आकार का दिखता है जिसे लेटिन भाषा में क्राउन कहा जाता है। इसलिए यह नाम मूलतः लेटिन भाषा के ‘‘क्राउन’ से लिया गया माना जाता है। इसके अलावा कोरोना वायरस एक प्रकार की माला के आकार में भी दिखता है जिसे प्राचीन ग्रीक भाषा में ‘‘कोरोन’’ कहा जाता है। प्राचीन ग्रीक भाषा में ‘‘कोरोन’’ का अर्थ है एक प्रकार की वह माला जो हम सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा के पीछे की ओर सूर्य की प्लाज्मा की आभा किरणों को एक गोल आकार की माला रूप में देखते हैं।
कोरोना वायरस देखने में उसी करोना की तरह गोल भी है और इस वायरस की सतह पर भी उसी प्रकार से प्रोटीन की स्टेन्स यानी किरणें उगी हुई दिखती हैं जैसी सूर्य ग्रहण के समय कोरोना की शाखाएं या रोशनी दिखती है और जो हमें हर दिशा में फैलती हुई प्रतीत होती हैं।
आसान भाषा में उदाहण –
यदि इसे हम इससे भी आसान और सरल भाषा में समझे तो उसके लिए यहां हम सूरजमुखी के फूल की संरचना का उदाहरण दे सकते हैं। सूरजमुखी के फूल को दूर से देखने पर उसके बीच का भाग काले रंग का होता है। जबकि उसकी गोलाई के चारों तरफ की पंखुड़ियां सूर्य की किरणों की भांति ही नर्म किरणों का प्रकाश फैलाता हुआ दिखता है। इससे भी आसान भाषा में कहें तो सूर्य ग्रहण के समय की चंद्रमा की उस छाया के चारों तरफ फैल रही सूर्य की उस मध्यम या नर्म रोशनी को विज्ञान की भाषा में कोरोना कहा जाता है।
कोरोना पर भारत की रिसर्च –
यहां हम यह भी बता दें कि कोरोना वायरस को लेकर भारत के वैज्ञानिकों को भी एक बहुत बड़ी कामयाबी हाथ लग चुकी है। हमारे वैज्ञानिकों ने कोरोना की चपेट में आने वाले देश के पहले मरीज के गले से कोरोना वायरस का सैंपल लिया था। भारत के केरल में कोरोना वायरस का पहला मामला 30 जनवरी को पाया गया था। इंडियन जर्नल आफ मेडिकल रिसर्च के वैज्ञाकिों और डाॅक्टरों ने कोरोना वायरस की माइक्रोस्कोप से ली गई कुछ तस्वीरों को ‘‘इंडियन जर्नल आफ मेडिकल रिसर्च’’ में भी प्रकाशित भी किया है। और उसी के आधार पर यह बात साबित हो जाती है कि यह ‘चीनी वायरस’ यानी कोरोना वायरस असल में दिखता कैसे है। वैसे अभी तक दुनिया के किसी भी देश के पास इसका कोई निश्चित इलाज संभव नहीं है। लेकिन, तमाम देशों के वैज्ञानिक इसका तोड़ ढूंढने के लिए रिसर्च के काम में लगे हुए हैं।
– अजय सिंह चौहान