विनोद बंसल || सदियों की परतंत्रता के बाद 1947 में देश को राजनैतिक स्वतंत्रता तो मिली किन्तु, दुर्भाग्यवश उसके सांस्कृतिक स्वरूप पर होने वाले अनवरत हमलों पर कोई विराम न लग सका। स्वतंत्रता के 7 दशकों तक भी हम ना तो अपने मंदिरों को मुक्त कर पाए, न नदियों को, न सांस्कृतिक विरासतों को, ना अपने महापुरुषों को। हमारे ऐतिहासिक गौरव या गौरवशाली परंपराएं थीं उनको ऐतिहासिक विकृतियों के चलते कुरूपित किया जाता रहा। उनकी वास्तविकता कभी समाज के सामने आ ही नहीं पाई। किंतु, 2014 में अचानक अप्रत्याशित रूप से भारत के सांस्कृतिक अभ्युदय का मार्ग प्रशस्त होते हुए दिखा। जब देश के प्रधानमंत्री अपनी विदेश यात्रा में अमेरिका के राष्ट्रपति को भेंट स्वरूप श्रीमद्भागवत गीता देते हैं, जब वे आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को अक्षरधाम की सीढ़ियों पर बिठा कर ही बिना किसी औपचारिकता के अपनी संस्कृति के दर्शन कराते हैं, जब चीन के राष्ट्रपति को न सिर्फ साबरमती रिवर फ्रंट पर ले जाकर अपनी लोक संस्कृति के दर्शन कराते हैं अपितु गांधी जी के आश्रम में ले जाकर के उन से चरखा भी कतवाते हैं।
इतना ही नहीं, जो देश कभी उन को वीजा देने से कतराते थे उन देशों के राष्ट्राध्यक्ष स्वयं उनकी न सिर्फ अगवानी करते हैं अपितु अपनी गाड़ी को वह स्वयं चला कर हमारे प्रधानमंत्री को सह सम्मान अपने साथ ले जाते हैं, ये तो सिर्फ कुछ वानगियाँ हैं। जब हम स्मरण करते हैं 5 अगस्त 2020 के अयोध्या में हुए श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन का, पाकिस्तान में बने करतारपुर कौरीडोर का, पाक अधिकृत कश्मीर में बने हमारे आदि शंकराचार्य की पवित्र स्थली शारदापीठ का, रामायण सर्किट का, श्रीकृष्ण सर्किट का, बौद्ध सर्किट का या नालंदा विश्वविद्यालय का, सरदार पटेल (स्टैचू ऑफ यूनिटी), जगद्गुरु रामानुजाचार्य (स्टैचू ऑफ इक्वालिटी) व महान जैन मुनि विजय वल्लभ सुरीश्वर जी महाराज (स्टैचू ऑफ पीस) का तो अनुभव होता है कि वास्तव में देश बदल रहा है।
पूर्व की सरकारों ने न सिर्फ मंदिरों के जीर्णोद्धार के सभी प्रकार के प्रयासों के प्रति अपनी आंखें मूंद रखी थी अपितु, उन्हें ध्वस्त करने के भी अनेक षड्यन्त्र रचे गए। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण पर तात्कालिक प्रधानमंत्री नेहरू सहमत नहीं थे। मंदिर के उद्घाटन पर नेहरू के ना चाहते हुए भी तात्कालिक राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पहुंचे।
समानता की मूर्ति (स्टैचू ऑफ इक्वालिटी) –
उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष 2022 की वसंत पंचमी के दिन हैदराबाद में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने संत रामानुजाचार्य की स्मृति में बनी स्टैचू ऑफ इक्वालिटी यानी समानता की मूर्ति का भव्य उद्घाटन किया। जिसने भी वहां के दृश्य को देखा, वही यह कहते सुना गया कि अब भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय हो रहा है। उस दिन प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के माध्यम से भी विश्व को एक बड़ा संकेत किया कि वे भारत को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा था कि जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य जी की इस भव्य विशाल मूर्ति के माध्यम से भारत मानवीय ऊर्जा और प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा है। रामानुजाचार्य जी की यह प्रतिमा उनके ज्ञान, वैराग्य और आदर्शों की प्रतीक है।
बता दें कि इन दिनों श्री रामानुजाचार्य जी की सहस्त्राब्दि मनाई जा रही है। इस निमित्त अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं। 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में जन्मे रामानुजाचार्य एक वैदिक दार्शनिक और समाज सुधारक के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण कर समानता और सामाजिक न्याय का संदेश दिया तथा भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया। उन्हें अन्नामाचार्य, भक्त रामदास, त्यागराज, कबीर और मीराबाई जैसे कवियों के लिए प्रेरणा माना जाता है।
संत रामानुजाचार्य जी के गुरु आलवन्दार यामुनाचार्य जी थे। अपने गुरु की इच्छानुसार रामानुजाचार्य जी ने ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबंधनम की टीका लिऽने का संकल्प लिया था। इसके लिए उन्होंने गृहस्थाश्रम त्यागकर श्रीरंगम के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली थी। इसके बाद वे समाज से ऊंच-नीच का भेद मिटाने के लिए निकल पड़े। उनका कहना था कि सभी जातियाँ एक हैं इनमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए और मंदिरों के कपाट सबके लिए खुलें। यही कारण है कि उनकी स्मृति में बनाई गई मूर्ति को ‘समानता की मूर्ति’ नाम दिया गया है। श्री रामानुजाचार्य जी ने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए भी भारत का भ्रमण किया। वे इस धरा पर 120 वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम समय तक उन्होंने सामाजिक एकता और समरसता पर जोर दिया और 1137 में ब्रह्मलीन हो गए।
अयोध्या का राम मंदिर –
हिन्दू समाज के 500 वर्षों के संघर्ष और 125 वर्षों की कानूनी दाव पेचों के बाद 9 नवंबर 2019 को श्री रामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि के पक्ष में एक अभूतपूर्व व अप्रत्याशित निर्णय दिया। इसके उपरांत केंद्र सरकार ने संसदीय कानून के माध्यम से न सिर्फ श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र नामक स्वायत्त शाषी न्यास का गठन किया बल्कि 5 अगस्त 2020 को स्वयं प्रधानमंत्री के करकमलों से श्रीरामजन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर हेतु भूमि पूजन कर सम्पूर्ण विश्व को एक बड़ा संदेश दिया कि भारत का न सिर्फ लोकतंत्र बड़ा है अपितु राम व रामत्व इसके कण कण में विराजमान है।
जब राम मंदिर के सामने प्रधानमंत्री ने शाष्टांग दंडवत किया तो उस दृश्य को लाइव देखने वाले सम्पूर्ण विश्व भर के हिंदुओं के नेत्र सजल होकर प्रधानमंत्री के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहे थे। अब हिन्दू समाज सन 2023 के उस पल की प्रतीक्षा में है जब भव्य मंदिर के गर्भगृह में रामलला को विराजमान देख स्वयं को धन्य पाएंगे।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर –
काशी विश्वनाथ कौरीडोर के चहुमुखी विकास हेतु 8 मार्च 2019 को प्रारंभ की गई योजना 2022 के प्रारंभ में ही पूरी हो गई जब स्वयं प्रधानमंत्री ने वहाँ जाकर देवादीदेव महादेव के दर्शन, पूजन व जलाभिषेक किया जिसे सम्पूर्ण विश के शिव भक्त मग्नावस्था में मंत्रमुग्ध होकर लाइव देखते रहे। उसकी गौरवशाली डिजाइन, लेआउट, भव्यता व दिव्यता अतुलनीय है।
सोमनाथ मंदिर परिसर –
गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने सोमनाथ मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण हेतु कई परियोजनाएं शुरू कीं। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने सोमनाथ मंदिर परिसर में एक प्रदर्शनी केंद्र व समुद्र तट पर सैरगाह का भी उद्घाटन किया।
केदारनाथ धाम –
सन 2013 की बाढ़ की विभीषिका में ध्वस्त हुए श्रीकेदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण की दिशा में भी केंद्र सरकार ने त्वरित व सराहनीय कदम उठाए। दुर्गम पहाड़ियों के बीच स्थित उत्तराखंड के इस परम धाम को भव्यता प्रदान कर वे स्वयं बाबा के दर्शन करने पहुंचे और सभी भक्तों को ये आश्वस्त किया कि अब ये धाम और आकर्षक, सुरक्षित व परमानन्द का परम धाम बन गया है। सब कुछ ध्वस्त होने के बावजूद वे प्रतिवर्ष बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए गए।
चार धाम परियोजना –
यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के चार तीर्थ स्थलों को जोड़ने वाले एक आधुनिक और विस्तृत चार धाम सड़क नेटवर्क के निर्माण को मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने चार धाम परियोजना की शुरुआत की। यह योजना देश भर से इन चार पवित्र स्थानों पर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए अनुकूल और आसान पहुंच प्रदान करेगी। सड़क नेटवर्क के समानांतर, रेलवे लाइन पर भी तीव्र गति से काम चल रहा है जो पवित्र शहर ऋषिकेश को कर्णप्रयाग से जोड़ेगा, जिसकी 2025 तक चालू होने की संभावना है। बद्रीनाथ धाम के विकास का भी मास्टर प्लान बन चुका है।
विदेशों में भी किया मंदिरों को पुनर्जिवित –
उन्होंने मंदिरों के सांस्कृतिक पुनरुत्थान का कार्य न सिर्फ भारत में किया बल्कि मनामा, बहरीन में 200 साल पुराने भगवान श्री कृष्ण श्रीनाथजी (श्री कृष्ण) मंदिर की 4.2 मिलियन डॉलर पुनर्विकास परियोजना का शुभारंभ भी किया। इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने 2018 में अबू धाबी में पहले हिंदू मंदिर का शिलान्यास किया था।
अनुच्छेद 370 व कश्मीर –
अनुच्छेद 370 की विदाई व जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित दर्जा देने के बाद कश्यप ऋषि के बसाये कश्मीर घाटी में आतंकियों व इस्लामिक जिहादियों द्वारा ध्वस्त मठ मंदिरों व आश्रमों के पुनरुद्धार की दिशा में भी केंद्र सरकार ने सराहनीय कदम उठाए हैं। साथ ही विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के पुनर्वास हेतु भी पहल की है।
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कश्मीर में लगभग 1,842 हिंदू पूजा स्थल हैं जिनमें मंदिर, पवित्र झरने, गुफाएं और पेड़ शामिल हैं। 952 मंदिरों में से 212 चल रहे हैं जबकि 740 जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। पुनरनिर्मित मंदिरों में से एक श्रीनगर में झेलम नदी के तट पर स्थित रघुनाथ मंदिर भी है। भगवान राम को समर्पित इस मंदिर का निर्माण पहली बार 1835 में महाराजा गुलाब सिंह द्वारा किया गया था। हालांकि, यह परियोजना अभी भी अपने शुरआती दौर में है, फिर भी यह एक साहसिक पहल है।
पूज्य संतों व महापुरुषों का गुणगान –
महर्षि वाल्मीकि जयंती हो या संत रविदास जी की, बाबासाहेब अंबेडकर की हो या स्वामी रामकृष्ण परमहंस की, महर्षि अरविन्द की हो या स्वामी विवेकानंद की, जनजातीय वीर बिरसा मुंडा हों या मणिपुर की रानी गाइदिन्ल्यू की, प्रधानमंत्री कुछ न कुछ नया अवश्य करते हैं। उनके महान कार्यों और विचारों से सम्पूर्ण विश्व प्रेरणा ले इसके लिए वे सतत सक्रिय रहते हैं। इसके अतिरिक्त देश के स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों को तो वे सदैव स्मरण करते ही रहते हैं।
स्वतंत्रता के 75 वर्ष की पूर्णता के उपलक्ष्य में आयोजित किये जा रहे आजादी के अमृत महोत्सव के माध्यम से तो उन्होंने कोई सेनानी छोड़ा ही नहीं। नेशनल वॉर मेमोरियल के माध्यम से माँ भारती के सपूतों को श्रद्धांजलि दे और उस भव्य परिसर के दर्शन कर देशवासियों की छाती चौड़ी हो जाती है। बिरसा मुंडा जी की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा भारत माता के वीर सपूत के महान कार्यों को सच्चा नमन् है।
इंडिया गेट पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस –
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर अब ग्रेनाइट से बनी उनकी एक भव्य प्रतिमा इंडिया गेट पर लगाई जाएगी। यह नेताजी के प्रति भारत की कृतज्ञता का प्रतीक होगा।
करतारपुर साहिब व प्रकाश पर्व –
गुरु गोविंद सिंह व गुरु तेगबहादुर के प्रकाश पर्व पर तो पता ही नहीं चलता कि प्रधानमंत्री मत्था टेकने कब गुरुद्वारे पहुँच गए। इतना ही नहीं उन्होंने गुरुजी के साहिबज़ादों के बलिदान को नमन करते हुए वीर बाल दिवस मनाने की भी घोषणा कर दी। पाकिस्तान में पचासों अवरोधों के बावजूद करतारपुर साहिब गुरुद्वारा को खोला जाना विश्वभर के लिए एक बड़ा संदेश है।
नालंदा विश्वविद्यालय –
कभी अपनी सांस्कृतिक धरोहर व शिक्षा का वैश्विक केंद्र रहा नालंदा विश्वविद्यालय भी अब अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त वैश्विक स्तर का कैंपस बनने जा रहा है। नालंदा में बनकर तैयार हुए इस कैंपस की तस्वीरें देखकर कोई भी विस्मृत हो सकता है। इसके भवन की भव्यता देखकर आप अब ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज का नाम भी भूल जाएंगे।
योग, आयुर्वेद, वेद व यज्ञ की महिमा –
योग, आयुर्वेद, वेद व यज्ञ की महिमा के साथ भारतीय दर्शन व उससे जुड़े जीवन मूल्यों की वृद्धि में उनका योगदान सर्वविदित है। होली, दिवाली व रक्षाबंधन जैसे अनेक त्योहारों को तो वे सीमांत क्षेत्रों में दुर्गम स्थानों पर अपनी जान जोखिम में डालकर काम करने वाले वीर सैनिकों को ही समर्पित कर देते हैं।
भारत का आध्यात्मिक जागरण –
पीएम मोदी का मानना है कि भारत का आध्यात्मिक जागरण तभी हो सकता है जब उसके धार्मिक और दैवीय स्थानों को उनके पुराने गौरव के साथ बहाल किया जाए। इसलिए इस क्षेत्र में उनके सभी प्रयास हमारे स्थापित धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्रों की महिमा को बहाल करने पर केंद्रित हैं।
प्रधानमंत्री ने देश भर में हमारे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों और पवित्र स्थलों के मंदिर पुनर्निर्माण और नवीनीकरण अभियान की शुरुआत की है। वह पवित्र हिंदू तीर्थ स्थलों पर चल रहे सभी मंदिर पुनर्निर्माण प्रयासों की अध्यक्षता करते हैं। उनके दूरदर्शी नेतृत्व में आधुनिक भारतीय राष्ट्र को उसकी आध्यात्मिक नींव के करीब लाया जा रहा है। भारत उन्हें एक मंदिर निर्माता और एक हिंदू आस्था के राजदूत के रूप में देख रहा है।
रामायण सर्किट, श्रीकृष्ण सर्किट व बौद्ध सर्किट –
भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ क्षेत्रों को चिन्हित कर उनके चहुमुखी विकास हेतु एक व्यापक योजना केंद्र सरकार ने बनाई है। जिसके अंतर्गत रामायण सर्किट, श्रीकृष्ण सर्किट व बौद्ध सर्किट पर काम तेज गति से जारी है। इन क्षेत्रों में विशेष पर्यटक व तीर्थयात्री रेल गाड़ियां भी चलाई जा रही हैं।
पिछले 25 वर्षों से महात्मा बुद्ध की परिनिर्वाणस्थली कुशीनगर एयरपोर्ट की राह देख रहा था। मोदीजी ने कुशीनगर एयरपोर्ट को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि कुशीनगर बौद्ध सर्किट के अंतर्गत आता है जिसमें नेपाल के लुंबिनी से लेकर बिहार के बोधगया तक का क्षेत्र शामिल है।
विदेशों से लौटीं अमूल्य व पावन मूर्तियाँ –
मोदी सरकार बनने के बाद से 150 से अधिक मूर्तियां विदेश से वापस आईं। जो मूर्तियां वापस आई उनमें उल्लेखनीय हैं मध्य प्रदेश से चोरी हुई पैंटेंट लेडी, कश्मीर से दुर्गा महिषासुरमर्दिनी, तमिलनाडु से चोरी हुई परमेश्वरी व गणेश की प्रतिमा, श्री देवी, पार्वती, भूदेवी, आदि की प्रतिमाएं भी हैं।
अंत में यही कहेंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश में सांस्कृतिक अलख जगाने का ही परिणाम है कि भारतीय राजनीति की दिशा और दशा बदल रही है। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में जो नेता भगवान राम का नाम लेने वालों से पहले चिढ़ते थे फिर कतराते थे, अब वे ही मंदिरों में घंटियां बजाने का नाटक करने लगे हैं। फिरोज़ के पोते और ईसाई माँ के बेटे भी अपना ब्राह्मण गोत्र और जनेऊ दिखाने लगे। निहत्थे रामभक्तों को गोलियों से भूनकर स्वयं को गौरवान्वित समझने वाले भी अब अपने को भगवान कृष्ण का वंशज बताने लगे। धर्म को अफीम मानने वाले वामपंथियों को तो ठौर ही नहीं मिल रहा है। अब वास्तव में भारत सांस्कृतिक अभ्युदय की ओर है।
(लेखक विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं )