समय और समस्याओं के चलते साथ बदलती तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी विकास ने हमें पृथ्वी ही नहीं अपितु अंतरिक्ष तक को समझने के लिए सक्षम बना दिया है। आज बच्चों को नए गैजेट्स यानी तकनीकी उपक्रमों के साथ खेलना, उनको समझना ज्यादा रुचिपूर्ण लगता है और इनके माध्यम से वे बेहतर तरीके से सीखने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे में उनके इस कौशल एवं रुचि को देखते हुए शिक्षण हेतु सही एवं उपयुक्त तकनीकी का चयन व उसका सही इस्तेमाल, उच्च स्तर प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
आज जरूरत है एक शिक्षक का इस आवश्यकता को समझना। ऐसे में शिक्षकों में खुद की कुशलता एवं रुचि एक बड़ा सवाल हो सकता है। जाहिर है, समय के साथ-साथ शिक्षण में आ रहे बदलाव और नवाचार में खुद को ढालना शिक्षक के लिए अनिवार्य हो गया है।
तकनीकी शिक्षा से क्या तात्पर्य है? इस तरह के सवाल अक्सर विद्यार्थियों के मन में उठते हैं। सीधे शब्दों में तकनीकी शिक्षा हमारे विद्यार्थियों और जन मानस को कुशल बनाती है जिससे औद्योगिक उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। इसमें विद्यालयों और शिक्षकों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। तकनीकी शिक्षा में इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, वास्तुकला, नगर योजना, फार्मेसी, एप्लाइड आर्ट्स यानी अनुप्रयुक्त् कला एवं शिल्पी, होटल प्रबंधन और केटरिंग प्रौद्योगिकी के कार्यक्रम भी शामिल हैं।
जीवन स्तर सुधार हेतु देश में तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता, सार्थकता और प्रभाव लाने और इसकी क्षमता को बढ़ाने के लिए पर्याप्त विचार-विमर्श, और सलाह की आवश्यकता है। साथ ही ‘शिक्षा में तकनीकी’ या ‘शिक्षा के लिए तकनीकी’ इन दोनों बिंदुओं पर गहन चर्चा की आवश्यकता है।
गणित शिक्षण के नजरिए से यदि देखा जाए तो कुछ तकनीकी यंत्र या सहायक सामग्री हमारे देखने-सोचने में आती है, जैसे कि कैलकुलेटर, कंप्यूटर आधारित सी.डी. या पेन ड्राइव, इन्टरैक्टिव बोर्ड, आॅडियो-वीडियो उपकरण, इंटरनेट आदि। आज इस प्रकार की कक्षा बनने भी लगी हैं। अतः यह समझना आवश्यक है कि प्रारंभिक स्तर पर, खासकर शिक्षण के लिए, किन-किन प्रकार की तकनीकी का प्रयोग हम कर सकते हैं और किस हद तक।
आधुनिक दुनिया में एक देश के लिए दूसरे देशों से मजबूत, ताकतवर और अच्छी तरह से विकसित होने के लिए विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में नए अविष्कार करना बहुत आवश्यक है। इस प्रतियोगी समाज में भी हमें आगे बढ़ने और जीवन में सफल व्यक्ति बनने के लिए अधिक तकनीकियों की जरुरत है।
विकास, चाहे वो देश का हो या फिर व्यक्ति का, यह बहुत तरीकों से तकनीकियों की उचित वृद्धि और विकास से जुड़ा हुआ है। हमें ऐसा देश और समाज बनाने में मददगार बनना है जहां विज्ञान में उच्च कौशल और पेशेवर वैज्ञानिकों के द्वारा नए अविष्कार हों। हम कह सकते हैं कि तकनीकी शिक्षा तो ऐसा क्षेत्र है जिस पर भविष्य का बड़ा दारोमदार टिका है।
तकनीकी शिक्षा की शुरुआत –
इसकी शुरुआत की बात करें तो देश में तकनीकी प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना भारत के ब्रिटिश शासकों के समय सार्वजनिक भवनों, सड़कों, नहरों और बंदरगाहों के निर्माण और रखरखाव व थल सेना एवं नेवी के उपकरणों के लिए सबसे पहले महसूस की गई थी। इसी दौरान यूरोप और अमेरिका में इंजीनियरिंग काॅलेजों का विकास हो रहा था, जिससे उनके नागरिकों को अच्छी शिक्षा और गणित विषयों में विशेष दक्षता हासिल हुई।
प्रथम इंजीनियरिंग काॅलेज की स्थापना सिविल इंजीनियरों के लिए 1847 में रूड़की, उत्तर प्रदेश में की गई, जिसमें अपर गंगा केनाल के लिए स्थपित बड़ी कार्यशालाओं और सार्वजनिक भवनों का प्रयोग किया गया। रूड़की काॅलेज किसी भी विश्वाविद्यालय से सम्बद्ध नहीं था, लेकिन इसके द्वारा डिग्री के समकक्ष डिप्लोमा प्रदान किए जाते थे। 1880 के बाद मैकेनिकल, इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की आवश्यककता महसूस की गई।
इस अवधारणा के साथ कि भारत एक बड़ा औद्योगिक देश है, और पुराने संस्थानों द्वारा तैयार किए गए इंजीनियरों से कहीं अधिक इंजीनियरों की आवश्यकता होगी, 1947 में आजादी के बाद से देश में कई इंजीनियरिंग काॅलेजों की स्थापना की जा चुकी है। आज तो जिस दर से सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी.) बढ़ रही है, यह इस बात का सबूत है कि इसने हमारे जीवन के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित कर दिया है।
क्या है सबसे बड़ी चुनौती –
ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में अमूमन साइंस स्ट्रीम वाले स्कूल कम होते हैं। वहां चाहकर भी छात्र-छात्राएं साइंस नहीं पढ़ पाते हैं। शहरी क्षेत्रों के स्कूलों में साइंस विषय लेने वाले छात्रों की संख्या इतनी अधिक होती है कि स्कूलों को मेरिट के आधार पर साइंस में एडमिशन देना पड़ता है। साथ ही इंजीनियरिंग और मेडिकल की पूरी पढ़ाई कोचिंग आधारित हो गई है तथा एक बड़े वर्ग या शहरी क्षेत्रों के संपन्न नौजवान ही इनमें निकल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के काबिल छात्रों को इनमें निकलने का मौका दूर उन्हें साइंस पढ़ने के भी पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाते हैं।
– शिप्रा