पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में राजनैतिक दलों द्वारा जिस प्रकार अनाप-शनाप वायदे किये जा रहे हैं उससे लोकतंत्र मजबूत होने की बजाय कमजोर ही होगा, क्योंकि इससे लोकतंत्र का वास्तविक मकसद प्रभावित हो जाता है।
एक राजनीतिक दल की लोक-लुभावन घोषणा के बाद अन्य दल भी ऐसा करने के लिए विवश हो जाते हैं किन्तु अनाप-शनाप तरह के किये गये वायदों पर अमल कैसे किया जायेगा, इस बात का जवाब राजनैतिक दल नहीं दे पाते हैं। ऐसे में यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि कानून बनाकर अनाप-शनाप चुनावी वायदो ंपर लगाम लगनी ही चाहिए।
चुनाव में सत्ता का लोभ एवं अवसरवाद इस कदर बढ़ता जा रहा है कि चुनाव आते ही नेताओं का दल बदलना शुरू हो जाता है। कुछ नेता तो ऐसे हैं जो पूरे समय तक सत्ता का आनंद लेते हैं और जब देखते हैं कि दूसरे दल में जाकर लाभ की संभावना अधिक है तो वहां चले जाते हैं।
लोभ एवं लालच में इस प्रकार बार-बार दल बदलना किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता है। इससे लोकतंत्र मजबूत होने की बजाय बदरंग हो रहा है, इस प्रवृत्ति को किसी भी रूप में रोकने की आवश्यकता है।
– सुधीर मंडल, घोड़बंकी (बिहार)