अजय चौहान || फ़िकस बेंजामिना (Ficus Benjamina) मूलरूप से ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणपूर्व एशिया के वर्षावनों में पाए जाने वाली वनस्पति है जो हर प्रकार के मौसम को सहन कर करने में सक्षम है इसलिए उष्णकटिबंधीय वनों में भी इसको पाया जा सकता है। देखने में कुछ-कुछ अंजीर के पेड़ की भांति होता है इसीलिए इसे “वीपिंग फिग” (Exotic plant benfits & harm in Hindi) भी कहा जाता है। इसके रंग और इसकी घनी पत्तियों से मोहित होकर दुनियाभर के प्रकृति प्रेमियों ने और खासकर भारत में तो अब लोगों ने इसे अपने आँगन में ही नहीं बल्कि अपने घरों और बेडरूम के अन्दर भी विशेष जगह देनी शुरू कर ही है, बिना यह जाने कि इसके कुछ फायदे हैं भी या बस इसीलिये की देखने में यह बहुत अच्छा लगता है।
फ़िकस बेंजामिना (Ficus Benjamina) एक ऐसा Exotic plant यानी विदेशी किस्म का पेड़ या पौधा कहा जा सकता है जिसे कई देशों में तो लोग हाथ लगाने से भी परहेज करते हैं। इस लिहाज से इसे “दुश्मन” (Exotic plant benfits & harm in Hindi) भी कहा जाए तो कुछ गलत नहीं है, जबकि आजकल तो भारत के हर एक शहर की गलियों, पार्कों, घरों और आंगन में शान से उगाया जा रहा है। हर कोई इसके पत्तों की शानदार चमक पर फ़िदा होकर अब घर, आँगन और गैलरियों में रखने वाले गमलों में उगाकर इससे होने वाली एलर्जिक समस्याओं को आमंत्रित कर रहे हैं।
दरअसल, फ़िकस बेंजामिना (Ficus Benjamina) एक ऐसा विदेशी पौधा (Exotic plant benefits & harm) है जो कैंसर जैसी बीमारी से भी ज़्यादा खतरनाक है और इसके बारे में तो यही कहा जा सकता है की हो न हो, विदेशी ही नहीं बल्कि देशी एलोपथी और मेडिकल माफिया के द्वारा भी इसे भारत में एक जिहाद की भांति फैलाया जा रहा है।
हैरानी तो इस बात की है की फ़िकस बेंजामिना के पेड़-पोधों के बारे पक्षी भी अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन मनुष्य ही नहीं समझ पाया की यह कितना खतरनाक है। पक्षी इस बात को भली प्रकार से जानते हैं कि यदि अधिक देर तक इनके संपर्क में रहेंगे तो वे बीमार हो जायेंगे और उनकी उड़ान भरने की शक्ति कम हो जायेगी। इसलिए इन पर घौसला बनाना तो दूर की बात इनपर अधिक देर बैठना तक भी पसंद नहीं करते हैं, शायद इसीलिए आजतक भी हममें से किसी ने नहीं देखा होगा की किसी भी पक्षी ने इन पेड़ों पर कोई घोसला बनाया होगा।
दरअसल, भारत में फ़िकस बेंजामिना नामक इस वनस्पति के बहुतायत में पाए जाने या फिर इसके सरलता से उगाये जाने के पीछे का कारण हो सकता है कि संभवतः हमारे सरकारी बाबुओं के द्वारा सरकारी बजट में से टांका मार कर अपनी जेब भरने के कारण हुआ हो। लेकिन अब तो इसके पेड़-पोधे किसी भी छोटे से छोटे शहर, मोहल्ले की गलियों और सड़कों के किनारे, पार्कों में, अधिक से अधिक नज़र आने लगे हैं और अब तो यह दुश्मन पौधा हमारे लिए एक घरेलू मित्र पौधा बन बैठा है।
दरअसल, इसके पीछे का एक दुसरा सबसे प्रमुख कारण है इसकी उष्णकटिबंधीय (tropical nature) प्रकृति, और दूसरी ये की यह पानी भी बहुत कम मांगता है और देखने में भी घना और हरा-भरा लगता है। इसके अलावा कम समय में इसका छोटा सा पौधा घने पेड़ का आकार ले लेता है। इसके घने पत्ते और कम से कम टहनियां होने के कारण इसकी कटिंग करके मनचाहे आकार में शेप दी जा सकती है।
वैसे तो भारत में फ़िकस बेंजामिना नामक इस वनस्पति की कई किस्में उपलब्ध हैं, जिनमें हल्के हरे से गहरे हरे रंग और सफेद रंग तथा विभिन्न रूप के पेड़-पौधे उपलभ हैं, लेकिन आमतौर पर एक या दो प्रकार की किस्म ही यहाँ सबसे अधिक देखी जाती है। इसकी कुछ कम उंचाई और छोटे आकार वाली किस्में, जिन्हें विशेष रूप से ‘टू लिटिल’, कहा जाता है इनडोर बोन्साई तैयार करने के लिए भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय पौधों में इस्तमाल की जातीं हैं। फ़िकस बेंजामिना में लगने वाले फुल और फल आकार में बहुत छोटे होते हैं और इसके दुर्गुणों के कारण ही इनको खाने या अन्य किसी भी काम में नहीं लाया जाता और पशु या पक्षी भी इसी कारण से इनसे दूर रहते हैं।
फ़िकस बेंजामिना को लेकर संयुक्त राज्य वन सेवा (यूएसएफएस) यानी अमेरिकी कृषि विभाग (Exotic plant in America & Europe) का कहना है कि- “इसकी जड़ें तेजी से बढ़ती हैं, जो बगीचों पर आक्रमण कर लेती हैं, फुटपाथों को नुकसान पहुंचाती हैं, आँगनों और नालियों को भी नुकसान पहुंचाती हैं, इसलिए एक पेड़ के रूप में शहरों और आवासीय रोपण के लिए यह बहुत बड़ा खतरा है।
साथ ही संयुक्त राज्य वन सेवा का यह भी कहना है कि इसके साथ एक सबसे बड़ी समस्या ये भी है की इसकी जड़ें भूमि की गहराई में न जाकर मात्र पांच से सात-आठ या अधिक से अधिक दस या बारह फीट की गहराई तक ही जा पाती हैं जो तेज़ और तूफानी हवाओं को झेल पाने में सक्षम नहीं है। इसी खतरे को देखते हुए अमेरिका में दक्षिण फ्लोरिडा के कई क्षेत्रों में, इन पेड़ों को हटाने के लिए आज यदि कोई पहल करता है तो उसे किसी भी प्रकार के अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा, साउथ फ्लोरिडा वॉटर डिस्ट्रिक्ट विभाग ने तो इन पेड़ों को सुरक्षित और तुरंत हटाने की सिफारिश तक कर डाली है।
इधर भारत की बात करे तो यहाँ भी शहरों में फ़िकस वृक्षों और पौधों से जुडी ठीक इसी प्रकार की समस्या देखि जा रही है। दिल्ली-एन.सी.आर. में वर्ष 2022 के मई महीने में आये एक भीषण तूफ़ान के कारण सैकड़ों पेड़ उखड गए थे जिनमें अधिकरत यही फ़िकस प्रजाति के पेड़ थे, जबकि अन्य बहुत ही कम गिर पाए थे। इसके अलावा भारत के शहरों में भी अधिकत उन्हीं नालियों और फूटपाथों की हालत सबसे अधिक ख़राब है जहां इन वृक्षों की संख्या अधिक है।
फ़िकस बेंजामिना के पौधे और वृक्ष देखने में जितने सुन्दर और मनमोहक होते हैं, हमारे और अन्य पशु-पक्षियों के लिए भी उतने ही खतरनाक भी होते हैं, इसीलिए वैज्ञानिकों ने इसे न सिर्फ धूल, धुएं और पालतू जानवरों के सामान एलर्जी का कारक माना है बल्कि उनका तो मानना है कि फ़िकस बेंजामिना का पौधा इनडोर एलर्जी का तीसरा सबसे बड़ा और आम स्रोत है। वैज्ञानिकों के अनुसार फ़िकस बेंजामिना से होने वाले सामान्य एलर्जी लक्षणों में एलर्जिक अस्थमा और राइनो कंजंक्टिवाइटिस एक आम बात या आम लक्षण हैं। लेकिन क्योंकि सरकारें इसके प्रति जागरूकता के अभियान नहीं चलातीं इसलिए आम लोगों को इसके खतरों का पता ही नहीं चल पाता है।
दरअसल, अस्थमा से पीड़ित कई लोगों को वास्तव में एक एलर्जिक अस्थमा होता है और यह अस्थमा का सबसे आम प्रकार और कारण होता है। इसमें रोगी किसी भी प्रकार के सामान्य या फिर भयंकर प्रदूषण अथवा किसी विशेष वनस्पति के संपर्क में आने पर भी एलर्जिक हो सकता है। इसके अलावा राइनो कंजंक्टिवाइटिस भी एक ऐसी एलर्जिक समस्या है जो प्रमुख रूप से आँखों को हानि पहुंचाती हैं और इस रोग में राइनो कंजंक्टिवाइटिस के दौरान ऑंखों में दर्द और सूजन होती है, और इसमें भी ऐसा तब होता है जब रोगी किसी दुसरे एलर्जिक व्यक्ति किसी सामान्य या फिर भयंकर प्रदूषण अथवा किसी विशेष वनस्पति के संपर्क में आता है।
फ़िकस बेंजामिना के पेड़-पौधे सबसे उन लोगों के लिए चिंता का कारण हो सकते हैं जो “लेटेक्स” एलर्जी से अधिक पीड़ित होते हैं. लेटेक्स अधिकतर पेड़-पौधों में पाए जाने वाला एक प्रकार का दुधिया और तरल पदार्थ होता है जो बच्चों और बुजुर्गों के लिए सबसे अधिक और सामान्य एलर्जी का कारण होता है। इसीलिए यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को बहुत अधिक और बार-बार एलर्जी हो रही हूँ तो हो सकता है की उनके आस-पास फ़िकस या फिर इसी प्रकार के कुछ अन्य पेड़-पौधे हो सकते हैं। ये भी हो सकता है कि बच्चे ने ऐसे ही किसी पौधों के पत्ते, फल या कुछ अन्य हिस्सों को चबा लिया या निगल लिया हो जिससे उसे मात्र कुछ ही मिनटों में उल्टी-दस्त या खुजली जैसी एलर्जी होना संभव है।
कुछ दुर्लभ मामलों में ऐसे ही पौधों से होने वाली एलर्जी एक गंभीर एलर्जिक प्रतिक्रिया को जन्म देती है, जिसे “एनाफिलेकि्टक” या “एनाफिलेकि्सस शॉक” कहा जाता है। इसका प्रभाव पूरे शरीर पर भी पड़ सकता है और मरीज़ के जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। हैरानी की बात तो यह भी है कि एलर्जि के ये लक्षण मरीजों में इन पदार्थों या इन वनस्पतियों के संपर्क में आने के मात्र कुछ ही मिनटों में दिखने लग जाते हैं।
दरअसल हम भारत के लोग किसी भी विदेशी व्यक्ति, वस्तु, वनस्पति या फिर उसकी शैली को मात्र इसलिए अधिक से अधिक अपनाने लगते हैं क्योंकि एक तो हम उनके खतरों से अनजान होते हैं और दूसरा ये कि हमें अपनों से अधिक अन्य पर अधिक भरोसा होने लगता है।