Skip to content
6 July 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • विशेष
  • षड़यंत्र

संघ परिवारः मुस्लिम मोह में गिरफ्तार

admin 28 September 2023
शंकर शरण जी द्वारा संघ परिवार का सच_Truth of Sangh Parivar by Shankar Sharan Ji
Spread the love

शंकर शरण । नजारा घातक राजनीति है। सभी सूफी इस्लामी माँगे रखते हैं। उस ‘वर्ल्ड सूफी फोरम’ ने आतंकवाद विरोध के नाम पर दिल्ली सम्मेलन किया जिस में भाजपा महाप्रभु गये थे। पर उस की माँगे यह थीं – मुसलमानों के खिलाफ हुई ‘ऐतिहासिक गलतियाँ’ सुधारें; अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दें; केंद्रीय सूफी संस्थान बनाएं, तथा उस की शाखाएं खोलें; सूफी विश्वविद्यालय बनाएं; ‘सूफी कॉरिडोर’ बना कर सभी सूफी केंद्रों को जोड़ें, आदि। उन में से कई माँगें पूरी हो चुकी हैं। खुद भाजपा मंत्री और पदाधिकारी गर्व से बताते रहते हैं! 

आगामी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए संघ-परिवार ने ‘सूफी-संवाद’ आरंभ किया है। इस में भाजपा और संघ का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच लगे हैं। केवल जबलपुर में इस के दस आयोजन हो चुके। वही अनेक शहरों में होने वाला है। संघ/भाजपा पदाधिकारी विभिन्न मस्जिद, मदरसे, दरगाह और खानकाहों के मुतवल्ली, पीर, आलिमों के साथ बैठकें कर रहे हैं। सूफी नेताओं को सम्मानित कर रहे हैं। मुस्लिम मंच के अनुसार ‘सूफी संवाद एक देशव्यापी प्रोग्राम है’।

मगर यह प्रोग्राम किस के हित में है? स्पष्ट रूप से संघ-भाजपा के बड़े अधिकारी नहीं बताते। सदा की तरह, संघ-परिवार हिन्दुओं से शक्ति, समर्थन, और संसाधन बटोर उसे हिन्दू-विरोधी मतवादों की सेवा में लगा रहा है। यह कथित सूफी नेताओं की अपनी घोषणाओं और दावों से ही दिखता है।

शंकर शरण जी द्वारा संघ परिवार का सच_Truth of Sangh Parivar by Shankar Sharan Ji
शंकर शरण जी द्वारा संघ परिवार का सच_Truth of Sangh Parivar by Shankar Sharan Ji

आखिर, ऐसे सूफी संवाद मुस्लिम देशों में क्यों नहीं होते? कुछ वर्ष पहले, दिल्ली में ‘वर्ल्ड सूफी फोरम’ सम्मेलन हुआ जिस में भाजपा के सर्वोच्च नेता गए। एक बार लोक सभा चुनाव दौरान ‘वर्ल्ड सूफी काउंसिल’ भी सक्रिय हुआ था। उस ने चुनाव में ‘सेक्यूलर दलों’ को जिताने की अपील की थी। उस में अजमेर के सूफी सैयद मु. जिलानी अग्रणी थे। उन्होंने नाम लेकर भाजपा से देश को चेताया, पर उन्हें तबलीगी जमात, पी.एफ.आई., इंडियन मुजाहिदीन, जैशे-मुहम्मद, आदि से उज्र न था।

सो, नजारा घातक राजनीति है। सभी सूफी इस्लामी माँगे रखते हैं। उस ‘वर्ल्ड सूफी फोरम’ ने आतंकवाद विरोध के नाम पर दिल्ली सम्मेलन किया जिस में भाजपा महाप्रभु गये थे। पर उस की माँगे यह थीं – मुसलमानों के खिलाफ हुई ‘ऐतिहासिक गलतियाँ’ सुधारें; अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक दर्जा दें; केंद्रीय सूफी संस्थान बनाएं, तथा उस की शाखाएं खोलें; सूफी विश्वविद्यालय बनाएं; ‘सूफी कॉरिडोर’ बना कर सभी सूफी केंद्रों को जोड़ें, आदि। उन में से कई माँगें पूरी हो चुकी हैं। खुद भाजपा मंत्री और पदाधिकारी गर्व से बताते रहते हैं!

यानी, आतंकवाद का मुकाबला करने के नाम पर सूफी सम्मेलन ने इस्लाम की ताकत बढ़ाई। उस की चाह ‘‘इस्लामी पवित्र स्थलों को सुन्नी उम्मा को लौटाना’’ है। यानी देश में सैकड़ों पुराने भवनों, मकबरों, खंडहरों पर सुन्नी इस्लाम का कब्जा। हजारों एकड़ जमीनें जो अभी पर्यटन या पुरातत्व-विभाग के पास हैं, उस पर इस की नजर है।

क्या यह आतंकवाद से लड़ना है, जिस बहाने संघ-भाजपा उन्हें माला-माल कर रहे हैं? यह घोर तुष्टीकरण, ‘तृप्तिकरण’ है। तब संघ-परिवार ने दशकों तक कांग्रेस की निन्दा किसलिए की थी? यह हिन्दू समाज के विरुद्ध कितना भयंकर विश्वासघात है, यह स्वयं संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं को सोचना चाहिए।

ये सूफी कभी कबीर, रसखान, शाह हुसैन, बुल्ले शाह, मीर, या गालिब का नाम नहीं लेते। केवल जुनैद बगदादी और मोइनुद्दीन चिश्ती का नाम लेते हैं। अतः संघ-भाजपा भी चिश्ती को ही चादर चढ़ाते हैं, जिस ने छल-बल से इस्लाम फैलाया। चिश्ती शहाबुद्दीन घूरी के सैन्य लश्कर के साथ अजमेर आया था। उस ने पृथ्वीराज चौहान को मार डालने में भूमिका निभाई। चिश्ती के अपने शब्दों में, “हम ने पिथौरा को जीवित पकड़ा और उसे इस्लामी फौज के सुपुर्द कर दिया।” (एस.ए.ए. रिजवी, ‘ए हिस्ट्री ऑफ सूफीज्म इन इंडिया’)।

उसी तरह, अमीर खुसरो को बड़ा सूफी माना जाता है। जिसे मलाल था कि भारत से हिन्दू धर्म खत्म न हो सका। खुसरो के शब्दों में, ‘‘हमारे मजहबी लड़ाकों की तलवार से देश ऐसा बन गया जैसे आग जंगल को कांटों से विहीन कर देती है। यदि शरीयत ने जजिया टैक्स देकर जान बचाने की मंजूरी न दी होती, तो हिन्द का नाम, जड़-मूल समेत, मिट गया होता।’’ वही मंसूबा आज भी है। निजामुद्दीन दरगाह के ख्वाजा हसन निजामी ने 1941 ई. में घोषणा की थी, “मुसलमान ही भारत के अकेले बादशाह हैं। उन्होंने हिन्दुओं पर सैकड़ों साल तक शासन किया और इसलिए उन का इस देश पर अकेला अधिकार है। हिन्दुओं की क्षमता ही क्या? मुसलमानों ने शासन किया और मुसलमान ही शासन करेंगे।” यह सूफी घोषणा डॉ. अंबेदकर की पुस्तक में दर्ज है।

अतः इतिहास और वर्तमान, सभी दिखाते हैं कि यहाँ अधिकांश सूफी पक्के इस्लामी राजनीतिक रहे हैं। रिचर्ड ईटन की प्रसिद्ध पुस्तक ‘सूफीज ऑफ बीजापुर’  में सदियों के वर्णन है। अधिकांश सूफी स्वयं जिहादी थे, जिन ने खूनी लड़ाइयाँ लड़ी। कर्नाटक, महाराष्ट्र मे ऐसे अनेक सूफियों की दास्तानें हैं। पीर मबारी खंदायत दिल्ली से अल्लाउद्दीन खिलजी की सेनाओं के साथ दक्षिण गया था और बीजापुर पर कब्जे में मदद की। शेख अली पहलवान, शेख शाहिद, पीर जुमना आदि जैसे कई सूफी ऐसे ही थे। वे गाजी (जिहाद लड़ने वाले) और औलिया  दोनों कहलाते थे। ‘गाजी-बाबा’ शब्द का चलन उसी से हुआ जो आज भी तालिबानों में प्रचलित है।

उन सूफियों में एक शब्द भी आध्यात्मिक संदेश नहीं है। सब की शोहरत इस्लामी विस्तार के लिए ही हुई। आज भी अजमेर में चिश्ती पर हिन्दू नेताओं द्वारा चादर चढ़ाने को ‘इस्लाम की श्रेष्ठता’ जैसा लहराया जाता है। फिर भी, संघ-भाजपा नेता हिन्दुओं को चिश्ती दरगाह जाने को प्रोत्साहित करते हैं। जबकि सूफी लोग मुसलमानों को योग-शिविरों तक में जाने से रोकते हैं।

यह सारा एक-तरफापन हिन्दुओं के लिए घातक रहा है। पहले भी किसी सूफी ने हिन्दुओं पर मु्सलिम शासकों के जुल्मों का विरोध नहीं किया था। बल्कि कई सूफी और जुल्म की माँग करते थे। जैसे, नक्शबंदी शेख सरहिन्दी। उन्होंने शेख फरीद को एक चिट्ठी में लिखा था कि ‘‘इस्लाम की शान के लिए काफिरों को अपमानित करना जरूरी’’ है। कई सूफियों ने मुस्लिमों को भारत पर हमले का न्योता दिया। सूफी शाह वलीउल्ला ने अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली को मराठाओं पर हमले के लिए बुलाया था, ताकि यहाँ फिर इस्लामी राज बने!

इस तरह, यहाँ सूफियों की भूमिका इस्लाम का प्रभुत्व फैलाने और हिन्दू धर्म को मिटाने की रही है। इसीलिए जहाँ इस्लामी राज जम चुका, वहाँ से वे चले भी जाते थे। ईटन के अनुसार, ‘‘जिस क्षेत्र में इस्लाम का राजनीतिक दबदबा कायम हो चुका, वहाँ उन की जरूरत नहीं रह जाती।’’ इस से समझ‌ लीजिए कि भारत जैसा ‘सूफी संवाद’ किसी मुस्लिम देश में क्यों नहीं होता!

सारा इतिहास दिखाता है कि इस्लामी विषयों में कल्पना से सोचना करना नींद में चलने जैसा है। गाँधी, नेहरू, सुभाष, आदि बड़े हिन्दू नेताओं की तमाम सदाशयता, उदारता के बावजूद आम मुसलमानों ने अली, इकबाल, जिन्ना की ही सुनी! लेकिन इस से सीखने के बदले सभी हिन्दू नेताओं ने इतिहास का ही मिथ्याकरण कर डाला है।

आज संघ-भाजपा नेता भी उसी सौदेबाजी की लालसा में हैं जिस में गाँधीजी से लेकर बाद के कांग्रेसी भी लगे रहे। किन्तु परिणामों की समीक्षा नहीं की। उसी ‘तुष्टिकरण’ की निन्दा कर-करके संघ-परिवार ने अपनी राजनीतिक जमीन बढ़ाई। पर आज वे उसी फंदे को मजबूत कर रहे हैं जिस में लाखों-लाख निरीह हिन्दुओं के प्राण व सम्मान जाते रहे हैं।

क्या संघ-परिवार के नेता इस से अनजान हैं? नहीं, उन में अनेक जानकार सब कुछ जानते हैं। किन्तु मुस्लिम वोट की लालसा में गिरफ्तार हैं, गाँधीजी की तरह। फिर गाँधीजी की तरह ही हिन्दुओं से शक्ति साधन पा कर, अपने मोहावेश में मुस्लिमों पर कुर्बान करते हैं। उन के मोह और अहंकार का भयंकर दंड केवल आम हिन्दू जनता को भोगना पड़ा है।

साभार

About The Author

admin

See author's posts

709

Related

Continue Reading

Previous: Ganesh JI Aarti in Marathi | सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नचि
Next: अलाउद्दीन खिलजी का राष्ट्रवाद और हिन्दुओं का राष्ट्रद्रोह

Related Stories

Natural Calamities
  • विशेष
  • षड़यंत्र

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

admin 28 May 2025
  • विशेष
  • षड़यंत्र

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

admin 27 May 2025
Teasing to Girl
  • विशेष
  • षड़यंत्र

आसान है इस षडयंत्र को समझना

admin 27 May 2025

Trending News

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास Natural Calamities 1

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

28 May 2025
मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है? 2

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

27 May 2025
आसान है इस षडयंत्र को समझना Teasing to Girl 3

आसान है इस षडयंत्र को समझना

27 May 2025
नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह Nave Word Medal 4

नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

26 May 2025
युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है? war-and-environment-in-hindi 5

युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

23 May 2025

Total Visitor

078325
Total views : 142927

Recent Posts

  • वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास
  • मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?
  • आसान है इस षडयंत्र को समझना
  • नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह
  • युद्धो और युद्धाभ्यासों से पर्यावरण को कितना खतरा है?

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved