अजय सिंह चौहान || अगर आप लोग भी मणिमहेश धाम की इस यात्रा पर जाना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि आप देश के किसी भी भाग में रहते हैं वहां से पंजाब के पठानकोट होते हुए सीधे हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में पहुंचना होता है। क्योंकि चंबा से ही सीधे मणिमहेश धाम तक जाने के लिए हिमाचल रोड़वेज की बसें आसानी से मिल जाती हैं। यात्रा के अवसर पर हिमाचल में चंबा के बस अड्डे से मणिमहेश धाम की यात्रा के लिए हिमाचल परिवहन की अतिरिक्त रोड़वेज बसों की सुविधा भी बड़ी ही आसानी से मिल जाती है। आप चाहे तो पठानकोट से या फिर चंबा से टैक्सी की सेवाएं भी ले सकते हैं।
मणिमहेश धाम की अपनी पहले दिन की यात्रा में ध्यान रखें कि पठानकोट से हडसर तक लगभग 200 किलोमीटर का सड़क मार्ग है जो बेहद खतरनाक, पहाड़ी रास्ता है। इसमें पंजाब के पठानकोट से चम्बा के बीच की दूरी लगभग 120 किलोमीटर की है। जबकि चम्बा से आगे भरमौर की दूरी लगभग 60 किलोमीटर है और भरमौर से भी लगभग 15 किलोमीटर आगे हडसर गांव के बेस कैम्प तक जाना होता है और फिर हडसर से ही इस यात्रा की पैदल शुरूआत होती है।
ध्यान रखें कि पठानकोट से हडसर तक पहुंचते-पहुंचते पूरा दिन लग जाता है और यात्री पूरी तरह से थक चुके होते हैं इसलिए यहां पहुंचते ही यात्री सबसे पहले रात्रि विश्राम की सोचते हैं। ध्यान रखें कि हडसर कोई बहुत बड़ा या विकसित पर्यटन स्थल नहीं है इसलिए यहां अच्छे स्तर की सुविधाओं वाले होटल या धर्मशालाएं उपलब्ध नहीं है। लेकिन, छोटे-मोटे कई प्रकार के होटल और धर्मशालाएं मिल जाते हैं। इसके अलावा, यात्रा के अवसर पर कई स्वयंसेवी संस्थाओं और सेवा समितियों के द्वारा मणिमहेश धाम जाने वाले यात्रियों के लिए कुछ विशेष इंतजाम भी किये हुए होते हैं जो बहुत कम खर्च में या फिर मुफ्त में भी ठहरा जा सकता है।
यात्री अगर चाहे तो अपनी सुविधा और समय के अनुसार हडसर से करीब 15 किलोमीटर पहले ही भरमौर में भी रात को ठहर सकते हैं और एक अतिरिक्त दिन बिता कर यहां के कई पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थानों का आनंद ले सकते हैं और फिर अगली सुबह जितना जल्दी हो यहां से निकल कर मणिमहेश धाम की यात्रा के लिए हडसर पहुंच सकते हैं। हडसर एक पर्यटन स्थल जरूर है लेकिन यहां तक पहुंचना हर किसी के लिए आसान नहीं है। शायद इसीलिए यह आम जनता की पहुंच से बहुत दूर है।
दूसरे दिन की अपनी यात्रा में सुबह जितना जल्दी हो सके हडसर से अपनी पैदल यात्रा की शुरूआत कर देनी चाहिए। ध्यान रखें कि हडसर से धन्छो की पैदल दूरी मात्र 6 कि.मी. की है और इसमें चढ़ाई भी बहुत ज्यादा नहीं मिलती। इसका दूसरा फायदा यह होता है कि दर्शन करके वापिस आने वाले यात्री भी उस वक्त तक यहां नहीं पहुंच पाते हैं इसलिए इसमें सिर्फ चढ़ाई करने वाले यात्री ही मिलते हैं। ऐसे में अधिकतर यात्री चाहते हैं कि जितना जल्दी हो सके धन्छो तक का रास्ता तय कर लिया जाय। धन्छो तक पहुंचने में भी कम से कम 3 घंटे का समय लग जाता है।
अगर कोई यात्री घोड़े या खच्चर की सवारी करना चाहे तो उसके लिए यहां आने-जाने के लिए यह सुविधा भी उपलब्ध है लेकिन, ध्यान रखें कि यहां घोड़े की सवारी करना खर्चीला हो सकता है और यह आपका बजट भी बिगाड़ सकता है।
लेकिन, अधिकतर वे यात्री जो भरमौर में रात बिता कर आते हैं या फिर हडसर से ही अपनी यात्रा शुरू करते हैं और यात्रा मार्ग के बीच में पड़ने वाले धन्छो नामक एक बेस कैम्प तक पहुंचते-पहुंचते थक जाते हैं वे यहां के कैंप में रात बिताता पसंद करते हैं। ऐसे में उनको यहां एक दिन अतिरिक्त लग जाता है। हालांकि, यहां बहुत ही कम यात्री रात को रूकते हैं। लेकिन, ध्यान रखें कि जो लोग पहाड़ी रास्तों में पैदल चलने के माहिर नहीं होते हैं उनके लिये लगातार पैदल चलना बहुत ही मुश्किल थकान भरा और खतरनाक हो सकता है। क्योंकि अंधेरा होने से पहले ही कैंप तक पहुंचना होता है, वरना इतने घने और पहाड़ी जंगल में कोई भी दुर्घटना हो सकती है।
धन्छो में थोड़ा विश्राम करने और लंगर का स्वादिष्ट भोजन करने के बाद यात्री आगे की यात्रा के लिए बढ़ जाते हैं। धन्छो से मणिमहेश धाम तक की चढ़ाई न सिर्फ 8 किलोमीटर लंबी है बल्कि यह चढ़ाई इस यात्रा का सबसे कठिन हिस्सा भी है। क्योंकि यहां से आगे के रास्ते में लगातार और बहुत ही अधिक दुर्गम, खड़े पहाड़ों से भरी चढ़ाई मिलती है। यहां कई जगहों पर आॅक्सिजन की कमी भी होने लगती है जिसके कारण कई लोगों को सांस लेने में दिक्कत महसूस होती है। बहुत ही अधिक दुर्गम खड़े पहाड़ी रास्ते होने के कारण यहां तक पहुंचने में शाम हो जाती है। दिनभर की पैदल यात्रा के बाद सभी यात्री किसी न किसी तरह रात होने से पहले ही कैंप तक पहुंच जाते हैं।
तिसरे दिन की यात्रा के दौरान यात्री अपनी वापसी यात्रा में भगवान मणिमहेश के दर्शन और पूजन करने के बाद सुबह लगभग 9 बजे तक वहां से उतरना शुरू कर देते हैं। इसमें वे यात्री जो यात्रा से लौटते हुए और पहाड़ों से उतरते-उतरते बुरी तरह से थक चुके होते हैं, वे अगर चाहे तो धन्छो में आकर भी आराम से रात गुजार सकते हैं और फिर अगली सुबह ही यहां से निचे उतरें। लेकिन, क्योंकि इस यात्रा में अधिकतर वे यात्री ही आते हैं जो पैदल चलने में माहिर होते हैं इसलिए वापसी में भी यहां बहुत ही कम यात्री रात को रूकते हैं और शाम होने से पहले ही हडसर पहुंच जाते हैं। हडसर पहुंचने पर आप चाहें तो यहीं रात को रूकें या फिर अपनी सुविधा, सेहत और समय के अनुसार ही वापसी की यात्रा के लिए यहां से मिलने वाली बस या टैक्सी से सीधे चंबा बस अड्डे के लिए निकलें।
चैथे दिन की वापसी यात्रा में हडसर से हिमाचल रोडवेज की बसें सीधे चंबा या धर्मशाला के बस अड्डे तक जाने के लिए बहुत ही आसानी से मिल जाती हैं। चंबा, भरमौर या फिर धर्मशाला पहुंचने के बाद पठानकोट या फिर किसी भी अन्य स्थान के लिए बसों की कोई कमी नहीं होती। लेकिन अगर आप समय, सुविधा और बजट के अनुसार आस-पास के अन्य धार्मिक, दर्शनिय और ऐतिहासिक महत्व के या पर्यटन स्थानों का भी आन्नद लेना चाहें तो इसके लिए चम्बा या भरमौर में भी कई ऐसे स्थान हैं जो धर्म, और इतिहास के महत्व के अति प्राचिन और मनमोहक और आकर्षक स्थान हैं।
ध्यान रखें कि यह तीर्थ यात्रा दुर्गम पहाड़ों में होने वाली एक अत्यंत कठीन और थका देने वाली यात्रा है। इसलिए अपने तय समय और निश्चित दिनों में एक या दो दिन अतिरिक्त लेकर ही चलें। साथ ही अपने जेब खर्च के बजट में भी कुछ अतिरिक्त लेकर चलें, ताकि समय और खर्च के अभाव में किसी भी प्रकार की परेशानी ना हो। इसलिए मैं तो यही कहूंगा कि खर्च की कोई सीमा नहीं है, लेकिन आज भी अगर बात की जाये तो यह खर्च यानी 2019 में भी पठानकोट से आगे जाने और फिर वापस पठानकोट तक आने के खर्च की तो कम से कम 4 हजार रुपये में एक व्यक्ति के लिए यह यात्रा आज भी हो सकती है। लेकिन, ध्यान रखें कि यह एक अनुमान है। और अगर आप पालकी, घोड़े या खच्चर की सवारी करना चाहे तो उसके लिए आपका खर्च बहुत ज्यादा हो सकता है।
इसमें एक बात और ध्यान देने की है कि अपने घर से हडसर बेस कैम्प तक आने और जाने का जो भी खर्च होगा वह यात्रा के समय और सुविधा के अनुसार ही तय होता है। इसके अलावा हडसर से पैदल यात्रा शुरू होकर मणिमहेश के दर्शन करने के बाद वापसी में फिर हडसर तक पहुंचने के बीच का जो भी खर्च होगा उसमें आपका खर्च बहुत ही कम होता है। क्योंकि वहां जगह-जगह स्वयंसेवी संस्थाओं और समितियों के द्वारा लंगर की सुविधाएं और अन्य प्रकार की सेवाएं एवं सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। जिसमें रात को ठहरने की सुविधा, अपातकाल में डाॅक्टरी और दवाई आदि की सुविधाएं भी शामिल हैं।