बचपन में जब हम रामायण की कहानियां सुना करते थे तब हमें लक्ष्मण जी के बेहोश होने पर हनुमान जी के संजीवनी बूटी लेने जाना जाने का किस्सा भी सुनने को मिलता था जिसमे संजीवनी बूटी ना मिलने पर पूरा का पूरा पर्वत उठाकर लाने वाला किस्सा बेहद रोचक लगता और आज के बच्चों को भी वही किस्सा सबसे अधिक और सबसे रोचक लगता है। जिस तरह से हनुमान जी एक ही रात में श्रीलंका से हिमालय के पर्वतों पर पहुंचे? और पहाड़ उठाकर वापस भी आ गए तो निश्चित ही उनके उड़ने की क्षमता बेहद तेज रही होगी।
यहां हम उनकी तुलना किसी भी मानव या मशीन से नहीं करना चाहते, और ना ही आधुनिक युग के पास इस समय ऐसा कोई प्रमाण हैं कि उनके उड़ने की गति या रफ्तार क्या रही होगी। लेकिन, अगर रामायण पर आधारित प्रमाणों की बात करें तो हमारे सामने सटीक और स्पष्ट प्रमाण हैं कि हनुमान जी का वेग आज के युग में उपलब्ध किसी भी मशीन से सैकड़ों गुणा अधिक ही रहा होगा।
रही बात हनुमान जी के विषय में तो उन्हें भी एक अवतार के रूप में माना जाता है इसलिए यहां हम उनकी तुलना किसी भी मानव या मशीन से नहीं कर सकते थे। लेकिन, फिर भी यदि बात उनकी रफ्तार को लेकर चली है तो यहां इस बात का सही-सही अनुमान तो नहीं लगाया जा सकता, और ना ही प्रमाण दिया जा सकता।
हमारे कई ग्रंथों में बताया गया है कि हनुमान जी महिमा और लघिमा शक्तियों के बल पर अपनी इच्छा शक्ति के अनुसार उसी समय एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाया करते थे और मनचाहा रूप भी धारण कर लिया करते थे या अपना आकार भी उन्हीं शक्तियों से बदल लेते थे।
लेकिन फिर भी उस समय जो घटनाएं घटित हुई थी हमने कुछ उन तथ्यों और आंकड़ों के अनुसार यह जानने की कोशिश की है कि आखिर हनुमान जी की उस समय की वह रफ्तार क्या रही होगी जिससे वे एक ही रात में हजारों किलोमीटर दूर से संजीवनी बूटी लेकर आ गए थे।
तो, जिस प्रकार की रामायण में वर्णन है उसको आधार मानकर कहा जाता है कि जिस वक्त लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध होने वाला था उससे ठीक पहले मेघनाथ ने अपनी कुलदेवी की तपस्या शुरू कर दी थी और वह तपस्या मेघनाथ ने पूरे दिन की थी। इसकी खबर जब श्रीराम की सेना को लगी तो विभीषण ने श्रीराम को बताया कि अगर मेघनाथ की तपस्या पूर्ण हो गई तो मेघनाथ अमर हो जाएगा और फिर मेघनाथ को कोई भी नहीं मार सकेगा। इसीलिए मेघनाथ की तपस्या को किसी भी तरीके से भंग करना होगा। इसके बाद हनुमान सहित कई वानर मेघनाथ की तपस्या भंग करने निकल पड़े। उन्होंने अपनी गदा के प्रहार से मेघनाथ की तपस्या भंग करने में सफलता प्राप्त की लेकिन तब तक रात हो चुकी थी।
लक्ष्मण जी ने रात को ही मेघनाथ को युद्ध के लिए ललकारा, रामायण के अनुसार उस समय रात्रि का दूसरा पहर शुरु हो चुका था। जैसे कि हम सब जानते हैं कि रात्री के चार पहर होते हैं। जिसमें रात्रि का पहला पहर सूर्य अस्त होते ही शुरू हो जाता है और सूर्य उदय होने के साथ ही रात्रि का अंतिम यानी चैथा पहर भी खत्म हो जाता है।
इसका मतलब प्रत्येक पहर 3 घंटे का हुआ। और अगर हम आधुनिक काल की घड़ी के हिसाब से देखें तो लक्ष्मण और मेघनाथ का युद्ध रात के लगभग 9ः00 बजे शुरू हुआ होगा। यह भी माना जाता है कि लक्ष्मण और मेघनाथ के बीच जो युद्ध हुआ था वो लगभग 1 पहर यानी 3 घंटे तक चला होगा। उसके बाद ही मेघनाथ ने अपने शक्तिशाली अस्त्र का प्रयोग किया होगा जिससे लक्ष्मण मूर्छित हो गए। यानी लक्ष्मण के मूर्छित होने का समय लगभग 12ः00 बजे के आसपास का रहा होगा।
लक्ष्मण के मूर्छित होने से समस्त वानर सेना में हड़कंप मच गया था। मेघनाथ ने मूर्छित लक्ष्मण की देह को उठाने की जी तोड़ कोशिश की लेकिन उठा पाने में असमर्थ होने पर मेघनाथ वापस चला गया। श्रीराम अपने प्यारे भाई को मूर्छित देखकर शोक में डूब गए, उसके बाद विभीषण के कहने पर हनुमान जी लंका में से राज्य वेद को जबरदस्ती उठा कर ले आए।
यानी अगर लक्ष्मण जी अगर 12ः00 बजे मूर्छित हुए तो जाहिर है उसके बाद श्री राम के शोक और विभीषण द्वारा सुषेण वैद्य को लेने के लिया कहना और हनुमान जी द्वारा सुषेण वैद्य को उठा कर लाना इन सब में लगभग 1 घंटे का समय तो लग ही गया होगा। यानी रात्रि के करीब 1ः00 बज चुके होंगे। इसके बाद वैद्य द्वारा लक्ष्मण की जांच करने और उनके प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी लाने की सलाह देने और हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने के लिए प्रस्थान करने में भी कम से कम आधे घंटे का समय तो जरूर लगा होगा।
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तो हम यह मान सकते हैं कि आज के समय के अनुसार करीब 1 बज कर 30 पर बजरंगबली ने संजीवनी बूटी लाने के लिए रावण की नगरी से उड़ान भरी होगी। और जहां तक सवाल उनके वापस आने का है तो निश्चित ही वह सूर्य उदय होने से पहले यानी लगभग 5ः00 बजे वापस आ गए होंगे।
अगर 1ः30 बजे हनुमान जी संजीवनी लाने के लिए उड़े और 5ः00 बजे तक वापस भी आ गये तो इसका मतलब हनुमान जी 3ः30 घंटे में द्रोणागिरी पर्वत उठाकर वापस आ गए थे। लेकिन, यहां इन 3ः30 घंटों में से भी हमें कुछ समय कम करना होगा। क्योंकि जैसा की रामायण में हमें पढ़नें को मिलता है कि लंका से निकलकर पवन पुत्र भारत आए तो रास्ते में उन्हें कालनेमि नामक राक्षस भी रूप बदल कर मिला था।
कालनेमि नामक उस राक्षस की मंशा भी हनुमान जी का समय खराब करने की थी। जैसे कि रामायण में बताया गया है कि हनुमान जी ने जब जंगल से रामनाम का जाप सुना तो जिज्ञासावश नीचे उतर आए कालनेमि ने खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी बताया और हनुमान जी से कहा कि पहले आप स्नान करके आओ उसके बाद मैं आपको रावण के साथ चल रहे युद्ध का नतीजा बताऊंगा।
हनुमान जी उसकी बातों में आ गए और स्नान करने चले गए। स्नान करते समय उनका सामना एक मगरमच्छ से हुआ जिसे हनुमान जी ने मार डाला। उस मगर की आत्मा ने हनुमान को उस कपटी कालनेमि की सच्चाई बता दी। जिसके बाद बजरंगबली ने उस कालनेमि को भी अपनी पूंछ में लपेटकर परलोक भेज दिया।
इस घटनाक्रम में भी हनुमान जी का कम से कम आधे घंटे का समय तो जरूर खराब हुआ ही होगा। उसके बाद बजरंगबली ने उड़ान भरी और द्रोणागिरी पर्वत जा पहुंचे। लेकिन यहां भी संजीवनी बूटी को पहचाने और खोजने के लिए वे कुछ देर तो भटके ही होंगे। ऐसे में यहां भी उनका कम से कम आधे घंटे का समय खराब हुआ ही होगा। तभी तो बूटी को ना पहचान पाने की वजह से हनुमान जी ने पूरा पर्वत ही उठा लिया और वापस लंका की ओर जाने लगे।
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लेकिन यहां भी हनुमान जी का समय खराब करने के लिए एक और मुसीबत इंतजार कर रही थी। यानी जब वे पर्वत को लेकर अयोध्या के ऊपर से उड़ रहे थे तो श्रीराम के भाई भरत ने सोचा कि यह कोई राक्षस ही होगा जो अयोध्या के ऊपर से जा रहा है और उन्होंने बिना सोचे समझे हनुमान जी पर बाण चला दिया। बाण लगते ही वीर हनुमान श्रीराम का नाम लेते हुए नीचे आ गिरे।
हनुमान के मुंह से श्रीराम का नाम सुनते ही भरत दंग रह गए और उन्होंने हनुमानजी से उनका परिचय पूछा। हनुमान जी ने उन्हें राम-रावण युद्ध के बारे में बताया और लक्ष्मण के मूर्छित होने का पूरा किस्सा भी सुनाया। किस्सा सुनकर भरत भी रोने लग गए और उनसे माफी मांगी। फिर हनुमानजी का उपचार भी किया गया। इसके बाद हनुमान जी ने लंका की ओर उड़ान भरी। लेकिन इस घटनाक्रम में भी बजरंगबली के कीमती समय का कम से कम आधा घंटा तो फिर से खराब हो ही गया होगा।
अब अगर हम हनुमान जी के सिर्फ उड़ने के कुल समय की बात करें तो उसमें सिर्फ दो घंटे का ही समय बचा था। और इन्हीं दो घंटों में वह लंका से द्रोणागिरी पर्वत आए और वापस भी आ गए थे।
और इन दो घंटों में अगर हम उनके द्वारा तय की गई दूरी को देखें तो इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार श्रीलंका से द्रोणागिरी पर्वत तक की दूरी लगभग 2500 किलोमीटर की है। यानी कि आने और जाने दोनों तरफ की यह दूरी कुल मिलाकर लगभग 5,000 किलोमीटर तक है और बजरंगबली ने 5,000 किलोमीटर की यह दूरी लगभग 2 घंटे में तय की थी। इस हिसाब से हनुमान जी के उड़ने की रफ्तार लगभग 2,500 किलोमीटर प्रति घंटे से भी अधिक निकलती है। और अगर इसकी तुलना ध्वनी की रफ्तार से करें तो उसकी तुलना में हनुमानजी की गति लगभग 2 गुना ज्यादा बैठती है।
इस समय भारतीय वायु सेना के पास मिग 29 नाम के जो लड़ाकू विमान मौजूद हैं उनकी रफ्तार लगभग 2,400 किलोमीटर प्रति घंटा है। और अगर हम इन विमानों की तुलना हनुमान जी की रफ्तार से करें तो यहां पर भी हनुमान जी की रफ्तार ज्यादा ही निकलती है। यानी हम यह कह सकते हैं कि हनुमान जी के उड़ने की रफ्तार या गति आधुनिक भारत के पास मौजूद सबसे तेज लड़ाकू विमानों से भी तेज रही होगी।
जैसा कि हनुमान जी के लिए अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता का संबोधन किया जाता है। उसके अनुसार हनुमानजी को योग की आठ सिद्धियां प्राप्त थीं। और ये आठों सिद्धियां एक प्रकार से शक्तियों के समान मानी जाती हैं। इन्हीं शक्तियों में से महिमा और लघिमा नाम की शक्तियों के माध्यम से मन के वेग या गति से उड़ा जा सकता है।
माना जाता है कि लघिमा नामक सिद्धि का उपयोग करके हनुमान जी अपने शरीर का वजन ना के बराबर कर लेते थे, जिसके बाद वे प्रकाश की गति से भी तेज उड़ सकते थे। इसे अगर हम वैज्ञानिक आधार पर देखें तो वहां भी प्रकाश की गति से तेज उड़ने के लिए किसी भी चीज का वजन ना के बराबर होना चाहिए। और अगर शरीर में वजन ही नहीं होगा तो उस पर ना तो गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव हो सकता है और ना ही किसी भी प्रकार की कोई केंद्रीय ऊर्जा ही उन्हें अपनी ओर खींच सकती थी। तो संभव है कि इसी कारण से हनुमान जी भी प्रकाश की गति से या उससे भी तेज उड़ सकते थे। शास्त्रों के ज्ञाताओं का भी यही मानना है कि हनुमान जी ने संभवतः लघिमा नाम की सिद्धि का ही प्रयोग करके लक्ष्मण की जान बचाई थी।
– मनीषा परिहार