अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के सतना जिले से करीब 35 किमी की दूरी पर बिरसिंहपुर नाम का एक अति प्राचीन कस्बा है जहां त्रेतायुग में यानी रामायण काल में स्थापित ‘‘गैवीनाथ धाम’’ (Gavinath Shiv Temple Birsinghpur Satna MP) नामक एक ऐसा चमत्कारी शिव मंदिर है जिसको लेकर स्थानिय लोगों की आस्था किसी ज्योतिर्लिंग मंदिर से कम नहीं है।
मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाओं के अनुसार, आज से करीब 317 वर्ष पहले यानी कि वर्ष 1704 की एक घटना के अनुसार, मुगल आक्रांता औरंगजेब अन्य क्षेत्रों के मंदिरों की भांति इस भव्य मंदिर में भी लूटपाट करने के इरादे से यहां आया था और इसके शिवलिंग को भी खंडित और अपवित्र करने का प्रयास किया था।
भले ही उसकी सेना यहां इस मंदिर में लुटपाट करने में कामयाब हो गई थी, लेकिन, उसके बाद उसने यहां जो प्रयास किया उसमें वह न सिर्फ असफल हुआ, बल्कि उसके तुरंत बाद उसे अपनी लुटेरी सेना समेत जान बचा कर इस कस्बे को छोड़कर भागना पड़ गया था। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस गैवीनाथ धाम शिव मंदिर के कारण ही उस हमले में यहां के लोगों की बहन-बेटियों की न सिर्फ इज्जत की रक्षा हो सकी बल्कि, हमारे पूर्वजों की जान भी बच गई थी।
सतना जिले के बिरसिंहपुर में स्थित भगवान शिव के इस ‘‘गैवीनाथ धाम मंदिर’’ (Gavinath Shiv Temple Birsinghpur Satna MP) से जुड़े तमाम ऐतिहास तथ्यों में हमको यह बात भी जानने को मिलती है कि युगों पहले से लेकर आज तक पूरे विंध्य क्षेत्र में इस गैवीनाथ धाम का महत्व भारतवर्ष के तमाम छोटे-बड़े सिद्ध और प्रसिद्ध मंदिरों की भाँति ही है, यानी यह शिव मंदिर भी किसी ज्योतिर्लिंग मंदिर से कम नहीं है।
मंदिर का मुगलकालीन इतिहास –
इतिहासकारों के अनुसार आज से करीब 317 वर्ष पहले क्रुर और अत्याचारी लुटेरा यानी मुगल शासक औरंगजेब जब इस क्षेत्र में अपनी सेना लेकर लूटपाट करने के इरादे से यहां आया हुआ था तो उसने इस मंदिर की भव्यता और प्रसिद्धि के बारे में भी सूना। वह अपनी सेना लेकर सीधे मंदिर में पहुंचा और तमाम प्रकार की लुटपाट के बाद मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर गया। शिवलिंग को खंडित और अपवित्र करने के लिए उसने अपनी तलवार से शिवलिंग पर वार किया। लेकिन, वह शिवलिंग को खंडित नहीं कर पाया। इसके बाद उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि शिवलिंग पर हथौड़े और छेनी से वार किये जायें।
इतिहासकार बताते हैं कि औरंगजेब के सैनिकों के द्वारा ‘‘गैवीनाथ धाम के इस शिवलिंग पर पाँच अलग-अलग प्रहार किए गए थे, और उन पांचों प्रहारों में उन सैनिकों को उस शिवलिंग में अलग-अलग प्रकार से चमत्कार देखने को मिले। औरंगजेब के सैनिकों ने उन चमत्कारों के तौर पर वहां देखा कि पहले प्रहार में शिवलिंग से दूध की धारा निकली, दूसरे प्रहार में शहद निकला, तीसरे प्रहार में खून और चैथे प्रहार में गंगाजल की धारा निकली। और जैसे ही उन सैनिकों ने उस शिवलिंग पर पाँचवाँ प्रहार किया, अचानक न जाने कहां से वहां लाखों की संख्या में भँवर, यानी कि मधुमक्खियों के झूंड निकल आइये और उन सैनिकों पर हमला कर दिया। मधुमक्खियों के उस हमले के कारण औरंगजेब और उसकी पूरी सेना तितर-बितर हो गई और किसी तरह अपनी जान बचाकर भाग गई।
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मंदिर के पौराणिक तथ्य –
स्थानीय इतिहासकार बताते हैं कि यह कस्बा और इसके आस-पास के कई गांव त्रेतायुग के उस रामायणकालीन दौर से ही यहां बसे हुए हैं। इसलिए पौराणिक काल में इस स्थान को देवपुर के नाम से पहचाना जाता था। जबकि इस गैवीनाथ मंदिर का वर्णन भी हमें पद्म पुराण के पाताल खंड में पढ़ने को मिलता है।
भगवान शिव का यह गैवीनाथ मंदिर और यह बिरसिंहपुर कस्बा, मध्य प्रदेश के सतना जिले से करीब 35 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर विंध्य समेत पूरे मध्य भारत में सनातन आस्था के प्रमुख तीर्थस्थानों और केंद्रों में से एक है।
प्राचीन काल के इस देवपुर में यानी आज के इस बिरसिंहपुर नाम के अति प्राचीन कस्बे में स्थापित भगवान शिव के इस ‘‘गैवीनाथ धाम’’ मंदिर के बारे में हमारे सामने जो तथ्य आते हैं उनके अनुसार इस मंदिर की स्थापना यहां त्रेताकाल में यानी कि भगवान राम के युग में हुई थी।
मंदिर की स्थापना और शिवलिंग –
मंदिर की प्राचीनता से जुड़े पौराणिक तथ्यों के अनुसार बिरसिंहपुर में यानी प्राचीन देवपुर में उन दिनों राजा वीर सिंह का शासन हुआ करता था। राजा वीर सिंह भगवान महाकाल के परम भक्तों में माने जाते थे इसलिए कई वर्षों तक वे नियमित रूप से देवपुर से महाकाल के दर्शन करने के लिए उज्जैन नगरी तक आते-जाते थे।
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देवपुर से महाकाल दर्शन के लिए उज्जैन तक आने-जाने का यह क्रम कई वर्षों तक चलता रहा। लेकिन, जब राजा राजा वीर सिंह वृद्धावस्था में पहुंच गये तो उनके लिए यह कार्य कठीन हो गया।
और जब राजा वृद्ध हो गये तो उन्होंने एक दिन भगवान महाकाल को अपनी यह व्यथा बताई। राजा की व्यथा सुन कर भगवान महाकाल ने राजा के स्वप्न में आकर देवपुर में ही दर्शन देने की बात कह दी। ठीक उसी दौरान देवपुर के एक गैवी यादव नामक निवासी के घर के चूल्हे से एक दिन चमत्कारी शिवलिंग प्रकट हुआ। लेकिन कहा जाता है कि गैवी यादव की माँ अज्ञानतावश प्रतिदिन उस चूल्हे की सफाई करते समय उस शिवलिंग को बार-बार जमीन के अंदर कर देती थी।
भगवान महाकाल ने एक बार फिर से राजा वीर सिंह के स्वप्न में आ कर उस घटना के बारे में बताया कि- ‘‘मैं तो उस स्थान से निकलना चाहता हूं, किन्तु गैवी यादव की मां मुझे फिर से उसी स्थान के अंदर धकेल देतीं हैं।’’ निंद से जागने के बाद राजा तुरंत उस गैवी यादव नामक व्यक्ति के घर पहुंचा और जिस स्थान से शिवलिंग चूल्हे से बाहर आने का प्रयास कर रहा था, उस स्थान के ऊपर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवा दिया।
और क्योंकि यह स्वयंभू शिवलिंग गैवी नाम के उस व्यक्ति के घर में प्रकट हुआ था इसलिए भगवान महाकाल के आदेश के अनुसार राजा वीर सिंह ने उस स्वयंभू शिवलिंग को भगवान महाकाल का ही रूप मान कर उसे नाम दिया ‘‘गैवीनाथ शिव मंदिर’’। बिरसिंहपुर नाम के इस प्राचीन कस्बे में स्थापित यह वही मंदिर है जो आज भी ‘‘गैवीनाथ धाम’’ के नाम से पहचाना जाता है।
मंदिर का महत्व –
इस शिवलिंग के बारे में माना जाता है कि यह एक स्वयंभू शिवलिंग है इसलिए यह जमीन के अंदर कितनी गहराई तक है, इसके विषय में कोई नहीं जानता। जबकि ‘‘गैवीनाथ धाम’’ के इस मंदिर से जुड़ी एक अन्य स्थानीय मान्यता है कि सनातन की तीर्थयात्राओं में सबसे प्रमुख चार धामयात्रा यानी कि बद्रीनाथ धाम, द्वारका धाम, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम् की चारधाम यात्रा को तभी पूरा माना जाता है, जब तक कि उन चारों धामों से लाया गया जल भगवान गैवीनाथ को अर्पित नहीं किया जाता।
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हालांकि, सनातन परंपरा के अनुसार किसी भी खण्डित प्रतिमा या शिवलिंग की पूजा-पाठ पूरी तरह से वर्जित माना जाता है, लेकिन, बावजूद इसके आज भी देश में ऐसे कुछ मंदिर हैं जिनमें पूजा-पाठ होती आ रही है और यह मंदिर भी उन्हीं में से एक है।
बिरसिंहपुर के इस प्राचीन ‘‘गैवीनाथ धाम’’ शिवलिंग पर आज भी औरंगजेब की तलवार और उसके सैनिकों द्वारा किये गये प्रहारों के निशान देखे जा सकते हैं।
इस खण्डित शिवलिंग की पूजा-पाठ को लेकर भी कहा जाता है कि जब शिवलिंग को खण्डित देखकर मंदिर के पुजारी दुखी हो गये तो भगवान शिव ने एक पुजारी को स्वप्न में आकर बताया कि तुम मेरे इसी खंडित लिंग की पूजा कर सकते हो, क्योंकि इसमें तुम्हें या किसी अन्य को कोई दोष नहीं लगेगा। कहा जाता है कि इसीलिए गैवीनाथ बाबा के इस खंडित शिवलिंग की पूजा होती आ रही है।
स्थानीय लोगों में इस मंदिर के चमत्कारों को लेकर एक अलग ही आस्था है। उनका मानना है कि जो कोई भी भक्त अगर यहां सच्चे मन से मन्नत मांगता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या प्रतिदिन हजारों में होती है। जबकि सावन के महीने और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों के अवसर पर तो यहां यहां लंबी-लंबी लाइने लग जातीं हैं।
सतना के अन्य प्रसिद्ध मंदिर –
सतना के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों एवं पर्यटन स्थलों में सबसे प्रमुख है मां शारदा का मैहर शक्तिपीठ मंदिर, व्यंकटेश मंदिर, चित्रकूट धाम, तुलसी संग्रहालय आदि।
सतना में कहां ठहरें –
सतना धार्मिक नगरी है इसलिए यहां रात को ठहरने के लिए हर प्रकार के यात्रियों के बजट के अनुसार, रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड के आस-पास कई सारे अच्छी सुविधाओं वाले निवास स्थान, होटल एवं धर्मशालाएं मिल जातीं हैं।
मंदिर तक कैसे पहुंचे –
सबसे पहले तो यहां ये जान लें कि अगर आप ‘‘गैवीनाथ धाम’’ शिव मंदिर तक सड़क के रास्ते जाना-आना करना चाहते हैं तो प्रयागराज और वाराणसी से होते हुए इस मंदिर तक बहुत ही आसानी से पहुँच सकते हैं। रीवा शहर से इस गैवीनाथ धाम मंदिर की दूरी लगभग 60 किमी है। सतना का बस स्टैंड शहर के लगभग मध्य में स्थित है इसलिए यहां के आसपास के सभी स्थानीय धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों के लिए आॅटो रिक्शा और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध हो जाती है।
सतना तक पहुंचने के लिए हवाई मार्ग से जाने वालों के लिए सबसे नजदीकी हवाईअड्डा खजुराहो में स्थित है जो यहां से करीब 140 किमी दूर है। इसके यहां के लिए दूसरा नजदीकी हवाईअड्डा 215 किमी दूर जबलपुर में है।
रेल द्वारा जाने वालों के लिए यहां का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन सतना शहर में ही स्थित है। सतना का यह स्टेशन पूर्वी मध्य प्रदेश का एक बड़ा और व्यस्त रेलवे स्टेशन भी है। सतना के इस रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी करीब 35 किमी है। रेलवे स्टेशन से मंदिर के लिए स्थानीय बस, टैक्सी एवं निजी वाहन के माध्यम से बिरसिंहपुर के इस गैवीनाथ धाम तक आसानी से पहुँच सकते हैं।