अजय सिंह चौहान || मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित एक प्रमुख तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर को धर्म, आध्यात्म, पौराणिक मान्यताओं, महत्वों और यहां के विभिन्न पौराणिक मंदिरों, एतिहासिक इमारतों और कहानियों को लेकर काफी धनी माना जाता है। यहां के हर एक मंदिर और ऐतिहासिक इमाारतों से कोई न कोई पौराणिक और धार्मिक इतिहास और कहानियां जुड़ी हुई हैं।
कुछ इसी तरह के ऐतिहासिक और पौराणिक साक्ष्य यहां के एक अन्य मंदिर से भी जुड़े हुए हैं जो ‘प्राचीन गौरी सोमनाथ मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इस मंदिर को ‘मामा भांजे का मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि ओंकारेश्वर में स्थित गौरी सोमनाथ मंदिर की स्थापना पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान की थी।
गौरी सोमनाथ मंदिर को मामा भांजे का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है और ऐसा इसलिए क्योंकि यहां प्रचलित किस्से और कहानियों के अनुसार इस मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग की लंबाई करीब 5 फीट से अधिक है। और शिवलिंग की मोटाई भी अधिक होने के कारण कोई भी एक व्यक्ति उसे अपनी बांहों में नहीं पकड़ सकता, लेकिन अगर मामा और भांजा मिलकर यह प्रयास करें तो ही इसको चारों ओर से पकड़ सकते हैं।
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यहां प्रचलित किस्से-कहानियों और किंवदंतियों को माने तो बताया जाता है कि कि अगर मामा और भांजा के अलावा दूसरा कोई इस शिवलिंग को पकड़ता है तो वे इसमें सफल नहीं हो पाते हैं। और ऐसा इसलिए क्योंकि इस मंदिर के गर्भगृह में दो शिवलिंग है और इसमें स्थित मुख्य शिवलिंग को मामा कहा जाता है जबकि मंदिर के गर्भगृह के किनारे पर स्थित एक अन्य शिवलिंग भी है जिसको भांजे के रूप में पूजा जाता है।
ओंकारेश्वर के मुख्य ओम बिंदु पर स्थित गौरी सोमनाथ के इस मंदिर की संरचना कब और किसके द्वारा बनवाई गई इस बात का उल्लेख मंदिर से जुड़े इतिहास में कहीं भी देखने को नहीं मिलता। लेकिन संरचना को देखकर लगता है कि यह लगभग 1,200 वर्षों से भी अधिक प्राचीन है।
प्राचीन गौरी सोमनाथ का यह मंदिर आज भी अपनी अलौकिक छवि और स्थापत्य कला को प्रदर्शित करता है। विशाल पत्थरों द्वारा बनाया गया यह मंदिर तीन मंजिला है। इसकी ऊपर मंजिलों पर पहुंचने के लिए बनी हुई सीढ़ियां संकरी ओर एक दम खड़ी हैं। देखने में यह मंदिर काफी आकर्षक और नक्काशीदार है।
ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर बताया जाता है कि जब औरंगजेब ने मालवा के विभिन्न क्षेत्रों पर पर कब्जा करना शुरू किया और यहां की अपार संपदा से परिपूर्ण मंदिरों और अन्य ऐतिहासिक इमारतों को निशाना बनाकर लूटना शुरू किया उस समय उसे जानकारी मिली कि यहां के ओंकार पर्वत पर एक ऐसा मंदिर भी है जहां की मूर्ति में व्यक्ति के भविष्य और अगले जन्म का आभास देखने को मिलता है।
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आनन-फानन में औरंगजेब इस मंदिर में आया और उसने भी अपने अगले जन्म के विषय में जानना चाहा, लेकिन कहा जाता है कि उसे इसका जो आभास हुआ वह बहुत ही भयानक था और उसके सैनिकों को भी इसमें उनका विनाश ही दिखाई दिया। इसलिए औरंगजेब क्रोधित हो गया और उसने उसी वक्त अपनी सेना को आदेश दिया कि इस मंदिर को नष्ट कर दो और इसमें आग लगा दो।
क्रुर शासक औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर में भारी उत्पात मचाया और इस मंदिर के सभामंडप को मलबे में बदल दिया गया। लेकिन, जब उसकी सेना इस मुख्य मंदिर की इमारत को आसानी से तोड़ नहीं पाई तो उसने इसमें आग लगवा दी। और इसमें स्थापित पवित्र शिवलींग पर किसी भारी वस्तु से कई वार किए गए जिससे शिवलिंग में दरारें पड़ गईं जो आज भी साफ-साफ दिखाई देती हैं।
स्थानिय लोगों का कहना है कि इस मंदिर के गर्भगृह के अंदर का भाग काले रंग का इसलिए है क्योंकि औरंगजेब ने इस मंदिर के गर्भगृह में आग लगवा दी थी। इस मंदिर के पास ही में एक संग्रहालय भी है जहां इस मंदिर से संबंधित बहुत सारी खंडित प्रतिमाएं और अन्य नक्काशीदार पत्थर भी रखे गए हैं।