अजय सिंह चौहान || पाकिस्तान के कराची शहर में मौजूद पंचमुखी हनुमान जी के इस मंदिर में भले ही पाकिस्तान के मुस्लिम समाज की आस्था नहीं है, लेकिन, आज भी यहां रह रहे हिंदू समुदाय के लिए यह मंदिर पाकिस्तानी सीमाओं के भीतर सबसे प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थल है और इसमें विराजमान भगवान श्रीराम के परम भक्त हनुमान के प्रति उनकी श्रद्धा में भी कोई कमी नहीं आई है। इसीलिए आज भी बजरंगबली के इस दरबार में पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू समुदाय के अनेकों श्रद्धालु उन्हें नमन करने के लिए आते रहते हैं।
कहा जाता है कि सरहदों के बंट जाने से धर्म भले ही बदल जाए लेकिन, इतिहास नहीं बदला करते। भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के बाद पाकिस्तान एक कट्टर मुस्लिम देश बन गया और उसके बाद वहां किसी भी अन्य धर्म को उतने अवसर नहीं मिले जितने की उनके अपने इस्लाम धर्म को मिले। बावजुद इसके वहां आज भी किसी न किसी तरह से हिंदू धर्म के कई पौराणिक और ऐतिहासिक धर्मस्थल और मंदिर मौजूद हैं, जो किसी न किसी तरह से अपने अस्तित्व को बचाए हुए हैं।
पंचमुखी हनुमान का यह मंदिर पाकिस्तान के कराची शहर के सोल्जर बाजार में स्थित है। आज यह पंचमुखी हनुमान मंदिर पाकिस्तान के उन कुछ गिने-चुने सनातन मंदिरों में से एक है जो में मौजूद दौर में भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। इस मंदिर के बारे में हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताएं हैं कि यह त्रेता युग के समय का मंदिर है इसलिए इसकी मान्यताएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए बंटवारे के बाद पाकिस्तान के अन्य हिंदू मंदिरों की तरह ही यहां भी धीरे-धीरे कई प्रकार की धार्मिक गतिविधियों और कर्मकांडों पर बंदिशों का असर होने लगा था और विभाजन के बाद, कानूनी, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक तौर पर कई प्रकार की परिस्थितियों के बदलने से यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में भारी कमी होती गई।
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कराची शहर में मौजूद इस पंचमुखी हनुमान मंदिर के इतिहास के बारे में माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना हजारों साल पहले त्रेता युग में हुई थी, इसलिए इसका इतिहास हजारों साल पुराना है। उन दिनों में यह मंदिर एक विशाल आकार वाला हुआ करता था। कई महान राजाओं ने यहां आकर पूजा-अर्चनाएं की थी और कई प्रकार से सेवादान दिए थे।
यह पंचमुखी हनुमान मंदिर अखंड भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक हुआ करता था और 15 अगस्त सन 1947 से पहले तक भी कराची के इस पंचमुखी हनुमान मंदिर में संपूर्ण भारत के श्रद्धालु विशेष तौर पर भगवान हनुमान के दर्शन करने आते थे।
हालांकि 15 अगस्त सन 1947 के बाद भी इस मंदिर में आने वाले सनातन भारतीय भक्तों की कमी नहीं थी, लेकिन विभिन्न प्रकार के हालातों और दस्तावेजों के दांव-पेचों के चलते और फिर भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद यहां आने वाले भक्तों पर तरह-तरह से प्रतिबंध लगते गए, जिसके चलते भारत से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में यहां भारी कमी होती गई।
स्थानीय हिंदू समुदाय का मानना है कि इस मंदिर में विराजमान पंचमुखी हनुमान जी पिछले हजारों वर्षों से हम भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते आ रहे हैं। इन लोगों का मानना है कि जिन हिंदुओं ने विभाजन के समय अपना घर नहीं छोड़ा था, आज उनके लिए यह मंदिर आस्था का एक प्रमुख केन्द्र बन चुका है और इसीलिए हर मंगलवार और शनिवार को कराची शहर के हिंदू भक्त और श्रद्धालु यहां काफी संख्या में दर्शन करने आते हैं।
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मंदिर में स्थित बालाजी की प्रतिमा के विषय में हालांकि कोई विशेष प्रमाण नहीं हैं, लेकिन, मान्यता है कि यह प्रतिमा लगभग 1500 साल पुरानी है और आज भी उसी स्थान पर स्थापित है। इसमें हनुमान जी की मूर्ति के पंचमुखी स्वरूप में पहला मुख वानर, दूसरा गरुड़, तीसरा वराह, चैथा हैयग्रीव या घोड़े का और पांचवां नृसिंह का मुख है। हिंदू धर्म के अनुसार हनुमान जी की मूर्ति के पंचमुखी स्वरूप के हर एक मुख का अपना एक अलग महत्व है।
यह भी कहा जाता है कि जहां जा यह मंदिर है वहां से 11 मुट्ठी मिट्टी हटाई गई थी जिसके बाद यह प्रतिमा प्रकट हुई थी। इसीलिए खास तौर पर इस मंदिर में 11 के अंक का विशेष महत्व रखता है और उसी के आधार पर माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु बालाजी की 11 बार परिक्रमाएं पूरी करता है, भगवान हनुमान जी उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। जबकि 21 बार परिक्रमा करने वाले भक्त को हनुमान जी दौबारा दर्शनों के लिए बुलाने का अवसर देते हैं।
पंचमुखी हनुमान के इस मंदिर के विषय में एक और मान्यता प्रचलित है, जिसके अनुसार यह माना जाता है कि भगवान श्रीराम जब इस स्थान पर आये थे तो उन्होंने यहां विश्राम किया था और इसी स्थान पर बैठ कर अपने परम भक्त हनुमान को आशिर्वाद दिया था, इसलिए उनके भक्त हनुमान ने यहां स्थापित होने का निर्णय लिया।
कराची में स्थित पंचमुखी हनुमान के इस मंदिर ने तेत्रा युग से लेकर आज तक कई तरह के उतार-चढ़ाव देखें हैं। आक्रांताओं के हाथों यह मंदिर कई बार लुटा गया, तोड़ा गया, उजाड़ा गया, और उतनी ही बार हिंदू राजाओं के द्वारा जिर्णोद्धार करवाया गया। लेकिन बावजुद इसके यह स्थान आज भी शान से खड़ा है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इस मंदिर की इमारत के विषय में माना जाता है कि हनुमान जी के मंदिर की इस इमारत का पुनर्निमाण 1882 में हुआ था।