भारतवर्ष की प्राचिनतम हिन्दू सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा व्यवस्था में गुरुकुल, आश्रम और कई प्रकार के शिक्षास्थलों या विश्वविद्यालयों को महत्वपूर्ण बताया गया है और इन शिक्षा केन्द्रों का इतिहास मात्र चार या पांच हजार वर्ष पुराना नहीं बल्कि कई हजार वर्ष पुराना माना जाता है। और यही शिक्षा व्यवस्था मध्य युगीन इतिहास में भी जस की तस चली आ रहा थी।
हमारे लिए एक बहुत ही बड़ा दुर्भाग्य रहा कि इनमें से अधिकतर शिक्षण संस्थान और विश्वविद्यालय 12वीं शताब्दी के आस-पास मुस्लिम आक्रांताओं, घुसपैठियों और लूटेरों की बर्बरता की भेंट चढ़ गए। ऐसे ही कुछ ऐतिहासिक विश्वविद्यालयों की संक्षिप्त जानकारी आज हम इस लेख के माध्यम से बताने का प्रयास कर रहे हैं।
1. गुरु द्रोणाचार्य के गुरुकुल –
भारत के इतिहास में अब तक का सबसे प्राचीन गुरुकुल द्रोणाचार्य का गुरुकुल ही बताया जाता है। और यह अति प्राचिन गुरुकूल क्षेत्र दिल्ली के पास ही में स्थित है। गुरु द्रोणाचार्य के उस गुरुकुल और उसके क्षेत्र को बाद में संस्कृत से अपभ्रंश होकर गुरु गांव और फिर गुरुग्राम कहा जाने लगा। इतना ही नहीं समय और भाषा के प्रभावों के अनुसार इस गुरुकुल क्षेत्र को हम सभी गुरुगांव और फिर स्थानीय बोलचाल के हिसाब से गुड़गांव के नाम से जानने लगे। लेकिन हाल ही में प्रदेश सरकार ने इसको इसका खोया हुआ नाम गुरुग्राम वापस दे दिया है।
2. तक्षशिला विश्वविद्यालय (वर्तमान में पाकिस्तान) –
ऐतिहासिक द्रष्टि से तक्षशिला विश्वविद्यालय सबसे प्रसिद्ध और दुनिया का पहला विश्वविद्यालय माना जाता है जो आज से लगभग 2700 साल पहले स्थापित किया गया था। तक्षशिला को टैक्सिला या ताकशिला भी कहा जाता है। 600 बीसी और 500 एडी के बीच प्राचीन भारत के गंधार राज्य में था, लेकिन 1947 में हुए भारत विभाजन के बाद अब यह स्थान पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार कहा जाता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय ने अपने समय में विभिन्न क्षेत्रों में साठ से अधिक पाठ्यक्रम पेश किए थे। तक्षशिला विश्वविद्यालय में प्रवेश पाने वाले छात्रों की न्यूनतम आयु सोलह वर्ष निर्धारित थी। इसमें वेदों और अठारह कलाओं को पढ़ाया, जिसमें तीरंदाजी, शिकार और हाथी के रूप में कौशल शामिल थे। इसके अलावा इसमें छात्रों के लिए नीति शास्त्र, मेडिकल स्कूल, कृषि और सैन्य विज्ञान भी शामिल थे।
प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों ने इस विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। तक्षशिला विश्वविद्यालय में तीन प्रमुख भवन शामिल थे, जिनको रत्नसागर, रत्नोदावी और रत्नायणक नाम दिया गया था। इस विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध स्नातकों में पाणिनी, चाणक्य, चरका, विष्णु शर्मा, जिवाका जैसे नाम शामिल हैं। प्राचीन तक्षशिला के इन अवशेषों को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
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3. नालंदा विश्वविद्यालय –
बिहार के नालंदा में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष बताते हैं कि यह दुनिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना आधुनिक बिहार में गुप्त वंश के शाकरादित्य ने 5वीं शताब्दी की शुरुआत में की थी। नालंदा विश्वविद्यालय के विषय में बताया जाता है कि यहां पढ़ने वाले छात्रों और शिक्षकों, दोनों के लिए आवासीय व्यवस्था रखने वाला यह दुनिया का पहला विश्वविद्यालय था। इसमें बड़े-बड़े सार्वजनिक व्याख्यान कक्ष भी थे। तिब्बत, जापान, इंडोनेशिया, कोरिया, चीन, तुर्की और फारस जैसे देशों के छात्र यहां अध्ययन करने आते थे।
इस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय उस समय की दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय था जिसमें ज्योतिष, खगोल विज्ञान, व्याकरण, तर्क, साहित्य, कृषि, और दवा जैसे विभिन्न विषयों पर हजारों पांडुलिपियां थीं। 1193 में मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी की सेना ने इस विश्वविद्यालय को बर्बाद कर दिया था। इस विश्वविद्यालय का पवित्र पुस्तकालय इतना विशाल था कि इसमें मुगलों द्वारा आग लगाने के बाद भी तीन महीनों तक यह जलता रहा।
4. विक्रमशिला विश्वविद्यालय –
विक्रमाशिला विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय के साथ, पाला साम्राज्य के दौरान भारत में बौद्ध शिक्षा के दो सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक हुआ करता था। इसके अवशेष आज भी बिहार राज्य के भागलपुर जिले में देखे जा सकते है। इसकी स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 775-800 ई. में की थी। इस विश्वविद्यालय ने अपनी स्थापना के तुरन्त बाद ही अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त कर लिया था।
विक्रमाशिला विश्वविद्यालय के कई विद्वानों ने विभिन्न ग्रंथों की रचना की, जिनका आज भी बौद्ध साहित्य और इतिहास में नाम है। इन विद्वानों में कुछ प्रसिद्ध नाम हैं- रक्षित, विरोचन, ज्ञानपाद, जेतारि रत्नाकर शान्ति, ज्ञानश्री मिश्र और अभयंकर।
दीपंकर नामक विद्वान इस विक्रमाशिला विश्वविद्यालय या शिक्षाकेन्द्र के महान प्रतिभाशाली विद्वानों में से एक थे, उन्होंने लगभग 200 ग्रंथों की रचना की थी। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में विद्याध्ययन के लिए आने वाले तिब्बत के विद्वानों के लिए अलग से एक अतिथिशाला हुआ करती थी। विक्रमशिला से अनेक विद्वान तिब्बत गए थे तथा वहाँ उन्होंने कई ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया था।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय में बारहवीं शताब्दी में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या लगभग 3000 थी। लेकिन सन 1203 ई. में बख्तियार खिलजी ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय को भी नष्ट कर दिया।
5. पुष्पगिरी विश्वविद्यालय –
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय की स्थापना कलिंग शासकों द्वारा तीसरी शताब्दी में उड़ीसा में की गई थी और अगले 800 वर्षों तक यानी 11वीं शताब्दी तक काफी विकसित हो चुका था। कालिंग साम्राज्य आधुनिक ओडिशा के कटक और जजपुर जिलों में फैलों तक फैला हुआ था।
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में तक्षशिला, नालंदा और विक्रमाशिला विश्वविद्यालयों के साथ-साथ उच्च शिक्षा के सबसे प्रमुख केंद्रों में से एक था। पुष्पगिरी विश्वविद्यालय परिसर ललित गिरी, रत्न गिरी और उदयगिरी नाम के तीन भागों में बंटा हुआ था। आज भी पुष्पगिरी विश्वविद्यालय के खंडहरों को यहां देखा जा सकता है।
एक चीनी यात्री जो जुआनजांग जिसको ह्यूएन त्संग के नाम से जाना जाता है, उसने 639 सीई में इस पुष्पगिरी विश्वविद्यालय का दौरा किया। उसने अपने यात्रा संस्मरणों में इस विश्वविद्यालय को बौद्ध शिक्षा के लिए सबसे अच्छे केंद्र के रूप में वर्णित किया है।
यहां हम मात्र इन पांच पौराणिक व ऐतिहासिक विश्वविद्यालयों की बात कर रहे हैं हालांकि, इस तरह के अन्य अनेकों पौराणिक और ऐतिहासिक गुरुकुल और विश्वविद्यालय थे, जिनके कारण भारत दुनिया में विश्वगुरु कहलाता था। लेकिन मुगलों ने भारत के उस अमुल्य इतिहास को मिटाकर देश को कई हजार साल पीछे भेज दिया और इसके विकास चक्र को थाम दिया। और आज हमारे सामने रह गए हैं उन विश्वविद्यालयों के खंडहर।
आज भी ये खंडहर मूंह चिढ़ा रहे हैं भारत की उस सभ्यता और संस्कृति को जो कभी इन स्थानों पर और इनके आस-पास सम्पन्नता के साथ फैली हुई थी। और यह वही कारण रहा कि ‘विश्वगुरु’ कहलाने वाले भारत को आज अज्ञानता के मार्ग पर चलना पड़ रहा है।
अगर आप लोग भी पौराणिक, धार्मिक और एतिहासिक स्थानों में दिलचस्पी रखते हैं तो कम से कम एक बार तो इन स्थानों पर जरूर जाना चाहिए और जानना चाहिए कि आखिर वो कौन से कारण रहे होंगे जिनके कारण हमारी इन्हें नष्ट कर दिया गया और आज भी इन ऐतिहासिक संरचनाओं और धरोहरों का उचित देखभाल नहीं हो पाता है और जिम्मेदार लोग अक्सर इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं?
– मनीषा परिहार, भोपाल