अजय सिंह चौहान || यह बात तो शायद हम में से कई लोगों को पता होगी कि आगरा उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है और वर्तमान में इस प्रदेश का यह तीसरा सबसे बड़ा शहर भी है। आगरा यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। इसके अलावा इस शहर की खासियत यह है कि यह भारत के पर्यटन उद्योग के लिए इस समय सबसे ज्यादा और अत्यधिक महत्वपूर्ण भी है। क्योंकि ऐतिहासिक धरोहरों के हिसाब से यहां विश्व के अजूबों में से एक यानी ताजमहल है। इसके अलावा यहां लाल किला और फतेहपुर सीकरी का किला सबसे मुख्य हैं। ये इमारतें यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की सूची में भी शामिल हैं। इन सबसे अलग यहां एक स्वामी बाग भी है जो इस नगर की प्रमुख पहचान है।
पौराणिक इतिहास –
तो क्या यह मान लिया जाय कि आज के इस आगरा क्षेत्र में, जब सिकंदर लोदी और अकबर जैसे शासक यहां आये थे, उस उसके पहले तक यहां कोई मानव सभ्यता ही नहीं थी? क्या यह एक जंगल हुआ करता था? या फिर कोई मामूली सा गांव हुआ करता था? चलो मान भी लिया जाय कि अकबर के इस क्षेत्र में आने से पहले यहां एक मामूली-सा और छोटा सा गांव हुआ करता था। तो फिर इस क्षेत्र में ऐसा क्या खास था जो अकबर ने अपने शासनकाल में इसी क्षेत्र को चुना और बसाया? भारत में तो ऐसे और भी कई समृद्ध नगर थे जहां वह जा सकता था और वहां से वह अपना शासन कर सकता था।
तो आईए हम जानते हैं कि आज के आगरा शहर का प्राचीनतम इतिहास क्या था और कैसे यह एक समृद्धशाली राज्य हुआ करता था। दरअसल, आगरा का हजारों सालों का प्राचीन इतिहास, इस क्षेत्र के ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत के गौरवशाली अतीत की गवाही देता है।
आगरा पर मुगलों का आक्रमण –
सबसे पहले तो यह जान लें कि आगरा को ना तो किसी भी मुगल शासक ने बसाया है और ना ही इसको यह नाम दिया। बल्कि मुगल शासकों ने इसको कई बार उजाड़ने का और लूटने का काम जरूर किया है। लेकिन हां, इतना जरूर है कि इसका यह नाम समय और उच्चारण के अनुसार बदलता चला गया और अब यह आगरा हो गया है।
दरअसल, मुगल शासकों ने आगरा शहर को कई बार लूटा और फिर उस पर कब्जा करके यहां के कई मंदिरों में लूटपाट मचाई थी। कई निर्दोष और निहत्थे महिलाओं और पुरुषों और बच्चों को बेरहमी से मार कर यहां के कई पवित्र और धार्मिक महत्व की इमारतों को या तो नष्ट कर दिया या फिर उनको मस्जिदों में बदल दिया गया।
और मुगल शासकों के द्वारा यहां ऐसा करने का एक प्रमुख कारण यह था कि यह नगर भारत के प्राचीन इतिहास, गौरवशाली अतीत, सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर अति प्राचीन और समृद्ध नगर और केन्द्र हुआ करता था। और अगर वे यहां ऐसा नहीं करते, यानी धार्मिक इमारतों को नष्ट नहीं करते, मंदिरों मंे लूटपाट नहीं मचाते और अपनी निर्दयता और अपने अत्याचारी तंत्र को उजागर नहीं करते तो संभवतः यह उनके लिए एक दम असंभव ही था कि वे उत्तरी भारत में पूरी तरह से अपने पैर जमा सकें। क्योंकि मुगल शासकों ने अधिकतर समय यहीं से देशभर में अपनी सत्ता चलाई थी।
आगरा को किसने बसाया था –
इसके अलावा दूसरा जो ऐतिहासिक तथ्य सामने आता है उसके अनुसार अकबर से भी पहले मुगल शासक सिकन्दर लोदी जो दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान माना जााता है उसने भी आगरा की यात्रा की थी और इस किलो की मरम्मत करवाई थी और इस किले में रहा था। सिकंदर लोदी ने भी इसी आगरा को अपनी राजधानी बनाया और यहीं से देश पर शासन किया। सिकन्दर लोदी की मृत्यु भी इसी किलो में हुई थी।
सिकन्दर लोदी के बाद उसके पुत्र इब्राहिम लोदी ने नौ वर्षों तक यह गद्दी संभाली और फिर सन 1526 में वह यानी इब्राहिम लोदी पानीपत के प्रथम युद्ध में मारा गया। इब्राहिम लोदी ने अपने शासन काल में यहां यानी इसी आगरा में कई स्थानों पर मस्जिदों का निर्माण करवाया और कुएं भी बनवाये। जबकि अकबर तो इन सब के बहुत बाद में आया, यानी सन 1556 में शासन में आया था।
भ्रम किसने फैलाया –
तो सवाल यह उठता है कि अकबर से भी पहले अगर यहां दूसरे कई शासक शासन कर चुके थे तो फिर उन्होंने क्यों नहीं इसे अपना नाम दिया? या फिर उनके नाम पर क्यों नहीं जाना जाता इस आगरा नगर को?
आखिर क्यों यह भ्रम फैलाया जाता है कि आगरा को अकबर ने ही बसाया था। दरअसल, आगरा के नाम को लेकर सबसे खास ऐतिहासिक तथ्य या जानकारी जो हम सभी के मन में जाना चाहिए था या जो सोचना चाहिए था वह शायद आज तक किसी ने ना तो सोचा और ना ही किसी ने यह जानने की कोशिश करी कि आगरा का सही-सही मतलब आखिर है क्या?
दरअसल आज का आगरा शहर एक ऐसा अति प्राचीन और ऐतिहासिक नगर है जिसके प्रमाण महाभारत के समय से ही हमारे ऐतिहासिक और पौराणिक गं्रथों में देखने और पढ़ने को मिलते हैं। और इस बात के प्रमाण यहां चारों ओर आज भी देखने को मिल ही जाते हैं।
पौराणिक महत्व और असली इतिहास –
आगरा के इतिहास से संबंधित प्रारंभिक संदर्भ को या इससे जुड़े कई पौराणिक, धार्मिक तथ्यों और प्रमाणों को सनातन धर्म के कई प्रमुख ग्रंथों सहित द्वारपर युग के प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत में भी देखा जा सकता है। जिसमें तथ्यों के आधार पर इतिहास में आगरा का पहला जिक्र महाभारत के समय से माना जाता है। जिसमें इस नगर को प्राचीन समय में अग्रबाण या अग्रवन के नाम से भी संबोधित किया जाता था।
जबकि कुछ अन्य तथ्य यह बताते हैं कि इन स्रोतों से भी पहले, यानी त्रेतायुग में भी यह नगर विद्यमान था और उस समय इस नगर को “आर्य गृहा” कहा जाता था जिसका सीधा-सा अर्थ या सीधा-सा मतलब आर्यों का निवास स्थान से था।
प्राचीन नगरों में से एक –
इसके अलावा आगरा को इन सबसे भी अति प्राचीन नगरों में इसलिए माना जाता है क्योंकि किसी समय में यहां महर्षि अन्गिरा ने तपस्या की थी। इसीलिए इस स्थान को महर्षि अन्गिरा के नाम से पुकारा जाता था। ये वही महर्षि अन्गिरा हैं जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं और गुणों में भी ब्रह्मा जी के ही समान समझे जाते हैं।
इन सब तथ्यों के अलावा यहां उसी दौर के यानी त्रेतायुग और द्वापर युग के कुछ ऐसे शिवालय भी हैं जो महर्षि अन्गिरा और परशुराम के हाथों से स्थापित किए गए थे। और उनमें आज भी पूजा की जाती है।
एक प्रमुख साक्ष्य के तौर पर आगरा में स्थित एक ही मंदिर में विराजित दो ज्योतिर्लिंगों को लेकर एक विस्तृत कथा भी है जिसके अनुसार यह माना जाता है कि भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि के द्वारा स्वयं इन पवित्र शिवलिंगों की स्थापना आज से हजारों साल पहले त्रेता युग में हुई थी।
त्रेता युग के भी प्रमाण –
इसके अलावा भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि का आश्रम जो रेणुका धाम के नाम से जाना जाता है वह भी यहां से पांच से छह किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है। और यह वही रेणुकाधाम आश्रम है जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत गीता में भी वर्णित है। जबकि ऐसे ही कई और भी अनेकों प्रमुख और गौरवशाली प्रमाण और साक्ष्य, पवित्र इमारतों और मंदिरों के तौर पर मौजूद थे जिनको आज लगभग समाप्त किया जा चुका है और इतिहास के पन्नों से भी उनको हटा दिया गया है।
अब सवाल यह उठता है कि प्राचीन इतिहास में अगरा के अगर कई अलग-अलग नाम थे और सभी नाम लगभग एक दूसरे से मेल खाते थे तो फिर आज का यह नाम यानी आगरा इसे कैसे मिला।
विदेशी इतिहास में आगरा –
दरअसल, इस विषय में जो तथ्य सामने आते हैं उनके अनुसार माना यह जाता है कि आज जिसे हम आगरा के नाम से जानते हैं वास्तव में इस नगर को इसका यह नाम उच्चारण के अनुसार मिश्र के एक प्रसिद्ध ज्योर्तिविद, भूगोलवेत्ता और गणितज्ञ क्लाडियस टाॅलमी ने दिया था। क्लाडियस टाॅलमी को 100 से 178 ई. के आस-पास का माना जाता है। यानी अपने दस्तावेजों में और अपनी खोजों में टाॅलमी ने ही सबसे पहले इसे इसका यह विकृत रूप वाला नाम दिया था।
जानकार मानते हैं कि इस नगर का नाम वास्तव में अन्गिरा ही था, लेकिन जब क्लाडियस टाॅलमी यहां आया था तो उसके लिए इस नाम का उच्चारण बहुत ही मुश्किल हो रहा था और अन्गिरा शब्द को वह हर बार आंगरा या फिर आगरा कह कर पुकारने लगा। और वही समय इस नगर के लिए सबसे बड़ा दूर्भाग्य बना। क्योंकि वहीं से इस नगर को आगरा कह कर पुकारा जाने लगा। धीरे-धीरे यह नाम इतना मशहूर हो गया कि आज तक चल रहा है।
साहित्यकारों की नजर में आगरा –
इसके अलावा एक प्रसिद्ध लेखक और साहित्यकार डाॅ. श्रीभगवान शर्मा ने भी आगरा को एक अति प्राचीन नगर बताया है। उन्होंने आगरा जनपद के कुछ स्थानों के नामों में छिपे इतिहास को उजागर करते हुए बताया है कि ऐतिहासिक दृष्टि से यह नगर अति प्राचीन है इसलिए यह अपने गर्भ में कई धार्मिक और पौराणिक रहस्यों को दबाये हुए है।
डाॅ. श्रीभगवान शर्मा के अनुसार यक्ष, जर, रुद्र, पांडव, मदल आदि कुछ ऐसे सूत्र हैं जिनके आधार पर आगरा के प्राचीन इतिहास को क्रमबद्ध किया जा सकता है। क्योंकि आगरा जनपद में बसे कुछ मौहल्ले और गाँवों के नाम पुरातात्विक दर्शन का आभास कराते हैं। जैसे- कौलक्खा, जखौदा, जारौली, रुद्रमौलि, पीनाक हाट (पिनाहट), मदन (मैन) पुर, स्थान के नामों में कौल, यक्ष जर, रुद्र, पीनाक (धनुष), मदन, पूर्व पद है और रक्षा, अवसथ, अवलि, मौलि, हाट, पुर पर पद है। इन स्थानों के नामों के आधार पर यहां अन्य कई प्रमाण आज भी मिल सकते हैं।
साक्ष्य के रूप में –
इन सब के अलावा यदि आधुनि इतिहास पर नजर डाली जाय तो बाबर, हुमाऊँ, अकबर, शाहजहाँ, भदावर, सिन्धिया, जाट, कछवाये, गुर्जर, प्रतिहार, राजा मानसिंह, राजा जयसिंह, आर्मिनियाई आदि राजा-महाराजाओं, बादशाहों एवं शासकों ने भी इस क्षेत्र के स्थानों और नामों को आधार प्रदान किये।
आगरा जनपद में स्थित सदरवन नाम भी महाभारत कालीन नाम ही है। श्रृंगी ऋषि के नाम पर सींगना ग्राम तथा यमदग्नि की पत्नी एवं महर्षि परशुराम की माता रेणुका के नाम पर बसे रुनकता पूर्व नाम रेणुकूट आदि नाम अपने गर्भ में आगरा का प्राचीन और समृद्ध इतिहास सिमटे हुए है। डाॅ. श्रीभगवान शर्मा का मानना है कि आगरा में कुछ ऐसे गांव, तहसील और कस्बे भी हैं जिनके नामों से ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपने अन्दर अति प्राचीन इतिहास सिमटे हुए हैं।