अजय सिंह चौहान || गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले में माता चामुंडा का एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जो ‘चोटिला माता’ के नाम से जाना जाता है। माता का यह मंदिर पर्वत की चोटी पर होने के कारण गुजराती भाषा में ‘चोटिला माता मंदिर’ पुकारा जाता है, जिसका शब्दिक अर्थ है ‘पर्वत की चोटी पर स्थित माता का मंदिर’। मुलरूप से यह माता दुर्गा का चामुंडा रूपी मंदिर है। चोटिला पर्वत के पास ही में स्थित होने के कारण यहां के गांव को भी ‘चोटिला गांव’ के नाम से पहचाना जाता है। चोटिला गांव गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले का एक तहसील मुख्यालय भी है।
चोटिला माता मंदिर का महत्व-
चामुंडा माता गुजरात और राजस्थान के कई परिवारों की कुलदेवी भी हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि माता मंदिर के महत्व और प्रसिद्धि को देखते हुए इसके इतिहास को मात्र हजार या बारह सौ वर्षों तक में ही नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह मंदिर सौराष्ट्र के उस पश्चिमी हिस्से में स्थित है जो युगों-युगों से ज्योतिषीय और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। इसलिए मान्यता, महत्व और प्रसिद्धि के तौर पर यह मंदिर गुजरात के सबसे अधिक प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इसके अलावा, भक्ति और श्रद्धा के साथ पर्यटन के महत्व से भी यहां आने वाले यात्रियों की संख्या कई गुणा रहती है।
चोटिला माता मंदिर का इतिहास-
चोटिला माता मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है और आज भी मंदिर का गर्भगृह उसी मूल स्थान पर है जहां से माता की मूर्ति प्राप्त हुई थी। इसके अलावा, मंदिर से जुड़े इतिहास और इसके अस्तित्व में आने की कथा के अनुसार, माता चोटिला स्वयं अपने एक भक्त के सपने में प्रकट हुईं थीं और उसे पहाड़ी की इसी चोटी के एक विशेष स्थान पर अपनी मूर्ति के दबे होने की बात बताई। उस भक्त ने अन्य लोगों की सहायता से उस स्थान पर जाकर खुदाई की और मूर्ति को भूमि से बाहर निकालने के बाद उसी स्थान पर स्थापित करवाकर उस पर एक मंदिर बनावा दिया।
गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले में स्थित इस चोटिला माता के मंदिर से जुड़े आधुनिक इतिहास के अनुसार, बताया जाता है कि सन 700 ईसा पूर्व में भी, इसका जिर्णोद्धार किया गया था, उसके अलावा 11वीं शताब्दी में भी इसके जिर्णोद्वार का उल्लेख मिलता है। उस समय यह मंदिर एक बहुत ही समृद्ध और वैभवशाली हुआ करता था। इसकी समृद्धि और प्रसिद्धि को देखते हुए मुगल आक्रमणों के दौर में यहां कई बार बड़े हमले हुए। उन हमलों के दौरान यहां भारी लुटपाट होती रही, मंदिर की संरचना तहस-नहस होती रही और फिर बनती भी रही। इस पर होने वाले हमलों और लुटपाट के दौरान माता के सैकड़ों ही नहीं बल्कि हजारों भक्तों ने अपनी पूरी क्षमता और विरता से युद्ध किया था।
वर्तमान मंदिर संरचना से जुड़ी जानकारी के अनुसार, इसका निर्माण सन 1823 में जाम साहेब विजय राजेन्द्र सिंह ने अपनी पत्नी की स्मृति में करवाया था। हालांकि, कुछ लोग इस संरचना को 16वीं शताब्दी में निर्मित मान रहे हैं। लेकिन, देखने से नहीं लगता कि इसका निर्माण इतना पुराना है। क्योंकि, इस संरचना में गुजरात की आधुनिक वास्तुकला और स्थापत्य कला की स्पष्ट झलक देखी जा सकती है।
चोटिला माता की दो मूर्तियों का रहस्य-
चोटिला के इस मंदिर के गर्भगृह में चामुंडा माता की दो मूर्तियां हैं जो आपस में जुड़ी हुई लगती हैं। यह अपने आप में एक रहस्य है। क्योंकि संभवतः इसके अलावा संसार के अन्य किसी भी माता के मंदिर में इस प्रकार से जुड़ी हुई एक साथ दो प्रतिमाओं के दर्शन नहीं होते। इसके पीछे की कहानी भील जनजाति के एक करियो नाम के ऐसे व्यक्ति से जुड़ी है जो अंग्रेजों से लूटे हुए धन को गरीबों में बांट देता था।
उस व्यक्ति ने चोटिला मंदिर में आकर चामुंडा माता से प्रार्थना की थी कि यदि माता के आशिर्वाद से उसके घर बच्चे का जन्म होगा तो वह यहां चामुंडा मां की एक और मूर्ति बनवायेगा। लेकिन, संतान प्राप्ति के बाद अपने उस वचन को वह भूल गया, और लूट की वारदात के दौरान एक दिन अंग्रेजों की पुलिस ने उसे पकड़ लिया और जेल में डाल दिया।
जेल में जब एक दिन वह सो रहा था तो माता ने सपने में आकर उसे उसका वादा याद दिलाया। इसके बाद उसने माता से प्रार्थना करी कि जब वह जेल से बाहर आयेगा तो अपना वादा जरूर पुरा करेगा। लेकिन, क्योंकि वह गरीबों का भला कर रहा था इसलिए माता चामुंडा को उस पर दया आ गई और उन्होंने स्वयं ही मंदिर में अपनी एक और मूर्ति को प्रकट कर उसको क्षमा कर दिया। बताया जाता है कि तभी से यहां चामुंडा माता की दो मूर्तियां हैं। जबकि इसके पहले यहां एक ही मूर्ति हुआ करती थी।
कुल देवी भी हैं चोटिला माता-
यह मंदिर मात्र गुजरात में ही नहीं बल्कि संपूर्ण पश्चिम भारत में प्रसिद्ध है। इसकी प्रसिद्धी के सबसे प्रमुख कारणों में से एक तो यह है कि चोटिला वाली चामुंडा माता गुजरात और राजस्थान के कई परिवारों की कुलदेवी भी हैं। इसके अलावा, यह मंदिर सौराष्ट्र के उस पश्चिमी हिस्से में है जो युगों-युगों से ज्योतिषीय और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। यही कारण है कि यह मंदिर गुजरात और राजस्थान सहीत संपूर्ण पश्चिमी भारतीय राजपूतों और अन्य जनजातियों के लिए गौरवपूर्ण इतिहास का साक्षी रहा है। क्योंकि इस मंदिर से जुड़ा इतिहास अधिकतर वीर योद्धाओं और बलिदानियों से भरा पड़ा है। हालांकि, यह शक्तिपीठ नहीं है लेकिन, गुजरात के अधिकतर लोग इसे शक्तिपीठ के तौर पर भी पूजते हैं।
मणिबंध शक्तिपीठ मंदिर- कब जायें, कैसे जायें, कहां ठहरें?
चोटिला पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 1250 फीट है और पर्वत की इसी ऊंचाई पर स्थापित है माता चामुंडा का यह प्रसिद्ध मंदिर, जिसे चोटिला माता के नाम से पुकारा जाता है। मंदिर के लिए चढ़ाई शुरू करने वाला प्रवेश द्वार चोटिला कस्बे के बस स्टैंड के एक दम पास ही में बना हुआ है। मंदिर तक पहुंचने के लिए करीब 650 सीढ़ियां चढ़कर जाना होता है।
‘चामुंडा माता मंदिर ट्रस्ट’ की ओर से पहाड़ी पर स्थित माता के इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पूरे रास्ते में पक्की सीढ़ियां बनी हुई है और उन सीढ़ियों पर छाया की व्यवस्था भी की गई है। रास्ते के दोनों किनारों पर स्टील के पाइप लगे हुए हैं जिसकी सहायता से बड़े-बुजुर्ग श्रद्धालु भी आसानी से चढ़ाई कर सकते हैं। इसके अलावा, मंदिर के प्रांगण में भोजनालय, अतिथि कक्ष, सामान रखने के लिए लाॅकर और त्योहारों के प्रबंधन जैसी कई गतिविधियां आयोजित की जाती हैं।
चोटिला मंदिर में पहुंचने वाले भक्तों की संख्या प्रतिदिन हजारों में होती है। इसके बावजूद दर्शन करने में कोई परेशानी नहीं होती। मंदिर की एक और खासियत यह है कि रात के समय मंदिर में या इस पर्वत पर आज भी किसी को ठहरने की अनुमति नहीं है। हालांकि, मंदिर के मुख्य पुजारी सहीत कुल पांच व्यक्ति ही रात को यहां ठहर सकते हैं। इसलिए रात की आरती के बाद अन्य सभी श्रद्धालु और सेवक आदि पर्वत से उतर आते हैं और अगली सुबह फिर से पहाड़ी पर पहुंच जाते हैं। इसके पीछे कारणों के बारे में माना जाता है कि स्वयं माता का यह आदेश है कि रात के समय पहाड़ की इस चोटी पर मेरा कोई भी भक्त नहीं रूकेगा।
इस विषय में मंदिर से जुड़े पुजारी और अन्य स्थानीय लोगों का कहना है कि सदियों से माता का वाहनरूपी एक शेर, हर रात को यहां माता के दर्शन करने के लिए आता है। इसीलिए रात के समय किसी भी यात्री को मंदिर में ठहरने की अनुमति नहीं है। हालांकि, कई लोगों का यह भी मानना है कि रात के समय इस पहाड़ी और मंदिर की पवित्रता और स्वच्छता को बनाये रखने के लिए भी यहां यात्रियों को ठहरने की अनुमति नहीं है।
श्री द्वारिकाधीश मंदिर के ‘ध्वज उत्सव’ का रहस्य और महत्व
यहां आने वाले श्रद्धालुओं में मात्र गुजरात और राजस्थान से ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत से हजारों सनातनी भक्त और श्रद्धालु चोटिला की इस पहाड़ी पर माता चामुंडा के दर्शन करने आते हैं। खासतौर पर तीज-त्योहार और रविवार सहीत अन्य छुट्टियों के दिन तो यहां भक्तों की संख्या कई हजार तक पहुंच जाती है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस मंदिर के प्रांगण में एक छोटा बाजार भी है जहां से पूजा-पाठ के लिए सामग्री खरीद सकते हैं।
चोटिला कैसे जाएं? –
चोटिला माता मंदिर की दूरी अहमदाबाद से करीब 170 किमी और राजकोट से करीब 50 किलोमीटर है। जामनगर से यह दूरी करीब 135 किलोमीटर, जुनागढ़ से करीब 150 किलोमीटर, सारंगपुर के कष्टभंजन हनुमान मंदिर से यह दूरी करीब 85 किलोमीटर और भाव नगर से करीब 200 किलोमीटर है।
सड़क मार्ग से मंदिर तक पहुंचने के लिए निजी और रोडवेज बसों और टेक्सियों का सबसे अच्छा साधन मिल जाता है। आप चाहें तो यहां गुजरात रोडवेज की बसों का भी सहारा ले सकते हैं। यदि आप यहां रेल या हवाई जहाज के द्वारा जाना चाहते हैं तो इसके लिए राजकोट में ही रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा भी उपलब्ध है। राजकोट से आगे करीब 50 किलोमीटर सड़क मार्ग से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
चोटिला में कहां रुके? –
इस बात का ध्यान रखें कि, शाम की आरती के बाद किसी भी श्रद्धालु को चोटिला पहाड़ी पर रुकने की अनुमति नहीं है। इसलिए पहाड़ी के पास ही में यात्रियों के ठहरने के लिए ‘चामुंडा माता मंदिर ट्रस्ट’ की ओर से ‘अतिथि भवन’ की सुविधा उपलब्ध है जिसमें करीब 45 से अधिक कमरे और 10 बड़े हाॅल बनाये गये हैं। इस अतिथि भवन में कोई शुल्क नहीं देना होता है। भवन के पास में मंदिर ट्रस्ट की ओर से प्रसाद के रूप में भोजनालय की सुविधा भी है। इसके अलावा, यदि आप चाहें तो चोटिला पहाड़ी के आस-पास बजट के अनुसार होटल, गेस्टहाउस, धर्मशाला, विश्राम गृह आदि का विकल्प भी देख सकते हैं।
चोटिला में स्थानीय भाषा और भोजन –
चोटिला में स्थानीय गुजराती भाषा का बोलबाला है। इसके बाद मारवाड़ी, राजस्थानी, हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव भी देखने को मिल जाता है।
भोजन में गुजरात के करीब-करीब हर एक प्रकार के पकवान का स्वाद लेने का अवसर मिल जाता है। हालांकि, आप चाहें तो यहां सादा भोजन भी तैयार करवा सकते हैं।
चोटिला का मौसम-
परिवार के बच्चों और बुजुर्गों के साथ चोटिला माता की यात्रा पर जाने के लिए सबसे अच्छा समय और मौसम सितंबर-अक्टूबर से मार्च के बीच का रहता है। और यदि आप गर्मियों के मौसम में यहां जायेंगे तो पहाड़ी पर चढ़ने में परेशानी हो सकती है।