अजय सिंह चौहान || भारत की शिक्षाव्यवस्था में ही नहीं बल्कि आर्थिक रूप से आज के बड़े घरानों से लेकर आम या साधारण भारतीय परिवारों के माता-पिता के लिए भी ‘काँन्वेंट’ एक स्टेटस सिंबल, यानी दिखावे का प्रतीक बन चुका है। आज भले ही जानबूझ कर या फिर अंजाने में ही सही, काँन्वेंट शिक्षाव्यवस्था को भारतीय सभ्रांत परिवार अपनी जिंदगी का एक अहम हिस्सा मान कर चलते हों, लेकिन, सच तो ये है कि अब वे इसे अपनाये बिना अपने बच्चों की शिक्षा की शुरूआत ही नहीं करना चाहते। जबकि आज भी कुछ ऐसे परिवार मिल जायेंगे जो काँन्वेंट शब्द से न सिर्फ दूर रहते हैं बल्कि घृणा भी करते हैं। जबकि जिन भारतीय परिवारों के बच्चे काॅन्वेंट स्कूलों में नहीं पढ़ रहे हैं उनका मजाक उड़ाया जाता है। दुख की बात तो ये है कि ऐसा मजाक उड़ाने वाले कितने नासमझ और महामूर्ख हैं कि वे खुद भी इस बारे में नहीं जानते। क्योंकि ऐसे लोग ना ही काॅन्वेंट स्कूलों के अतीत के बारे में जानते हैं और न ही इसके वर्तमान को समझ रहे हैं। क्योंकि भारतीय माता-पिता अपनी संतानों को ऊंची और महंगी शिक्षा दिलाने के लिए ‘काँन्वेंट’ शब्द की उत्पत्ति और इतिहास में न जाकर सिर्फ अपने बच्चों के आर्थिक रूप से सम्पन्न और सूनहरे भविष्य बारे में ही सोचते हैं।
काँन्वेंट शब्द की उत्पत्ति के संबंध में कुछ जानकार मानते हैं कि भारत के मीडिया और सोशल मीडिया में जानबूझ कर काँन्वेंट शब्द को सामने आने से रोका जाता है ताकि वे इसके सच को न जान सकें। लेकिन, यह सच है कि ब्रिटेन में ‘लिव इन रिलेशनशिप’ नाम से एक कानून था या आज भी है। यानी एक ऐसा कानून जिसमें बिना विवाह किये भी एक लड़का और एक लड़की यदि कम से कम 16 वर्ष या उससे अधिक की आयु के हो चुके हैं तो वे साथ में रह सकते हैं। यह कानून आजकल भारत पर भी थोपा जा चुका है इसलिए यहां भी इस प्रकार के संबंध अब आम बात हो चुकी है।
काँन्वेंट शब्द की उत्पत्ति को लेकर बात करें तो पता चलता है कि ब्रिटेन की संस्कृति और कानून के अनुसार ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने वालों के बीच शारीरिक संबंध बन जाना एक आम बात है। ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के परिणामस्वरूप संतानें भी पैदा होती थीं, आज भी हो रही हैं। लेकिन, जब इस रिश्ते से जन्मी अधिकतर संतानों को समाज ने जब स्वीकार नहीं किया तो उन संतानों के लिए सरकार ने एक विशेष व्यवस्था की, जिसके अंतर्गत ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने वाले जोड़े अपनी उन ऐसी संतानों को किसी चर्च में छोड़ दिया करते थे, और भूल जाते थे। आज भी यही हो रहा है।
हैरानी की बात है कि काँन्वेंट शब्द की उत्पत्ति को वे लोग पिछले करीब 300 वर्षों का इतिहास बता रहे हैं लेकिन, सच तो ये है कि इस शब्द और इसकी इस कुप्रथा का चलन यूरोप में पिछले करीब 2500 वर्षों का रहा है।
भारत में, पहला काॅन्वेंट स्कूल ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कलकत्ता में चलाया गया था और इसके संस्थापक थे राॅबर्ट क्लाइव। दरअसल उन दिनों भारत में राॅबर्ट क्लाइव का ही शासन हुआ करता था जो प्लासी की लड़ाई के बाद कलकत्ता के राजा बने। हालांकि, उन दिनों हिंदू समाज अपनी परंपराओं, अपनी संस्कृति और मूल्यों से बहुत अधिक जुड़े हुए थे इसलिए किसी भी हिंदू परिवार ने अपने बच्चों को उन काॅन्वेंट स्कूलों में नहीं भेजा। क्योंकि आम हिंदू को ब्रिटिश संस्कृति कभी पसंद नहीं थी। लेकिन, जो हिंदू अंग्रेजों के साथ काम करते थे या सरकारी कर्मचारी थे उनको एक कानून बनाकर विवश किया गया, ताकि वे अपने बच्चों को इन सरकारी काॅन्वेंट स्कूलों में भेज सकें।
ब्रिटेन की सरकार के सामने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ से जन्मी ऐसी संतानों की समस्या दिनोंदिन गंम्भीर होती जा रही थी। सरकार के सामने समस्या थी कि ऐसे बच्चों का क्या किया जाए जो अनाथ होने के साथ-साथ नाजायज भी हैं, और उनके माता-पिता के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। इसके बाद सरकार ने निर्णय लिया कि ऐसे बच्चों के लिए एक ऐसा स्थान तैयार किया जाये जहां उनके लिए लालन-पालन की ‘फ्री स्कूल’ जैसी व्यवस्था हो सके। तब वहां की सरकार ने एक नये शब्द की उत्पत्ति की, और वो था ‘काँन्वेंट स्कूल’।
काँन्वेंट स्कूल का यदि हम अपनी भाषा में सरल अर्थ निकालें तो ‘अनाथ आश्रम’ कहलाता है। यानी काँन्वेंट एक ऐसा स्थान है जहां अनाथ और नाजायज बच्चों को रखा जाता है और उनको मुफ्ता शिक्षा भी दी जाती है। इसके अलावा ब्रिटेन की सरकार के द्वारा ‘लिव इन रिलेशनशिप’ से जन्में ऐसे सैकड़ों नाजायज और अनाथ बच्चों को उनके माता-पिता के रिश्तों का एहसास कराने के लिए एक विशेष कानून बनाकर उन काँन्वेंट यानी अनाथालयों में शिक्षा व्यवस्था का भी बंदोबस्त करवाया गया जिनमें एक फादर (पिता) और एक मदर (मां) तथा साथ में एक सिस्टर (बहन) की भी नियुक्ति करवा दी, जो उनकी देखभाल के साथ-साथ उन्हें शिक्षा भी दे सके और उनके साथ झूठे और दिखावे जैसे रिश्तों का भी निर्वहन कर सके। एक प्रकार से उन नाजायज बच्चों को ‘काँन्वेंट’ नाम के इन अनाथ आश्रमों में माता, पिता और बहन आदि मिल गये।
इंग्लैंड के कानून, ऐतिहासिक तथ्यों और आंकड़ों के अनुसार इंग्लैंड में पहला काँन्वेंट स्कूल सन 1609 के आसपास एक चर्च में खोला गया था। जबकि भारत में भी पहला काँन्वेंट स्कूल कलकत्ता में सन 1842 में खोला गया था। भारत में काँन्वेंट स्कूल खोलने के पीछे का कारण यह था कि यहां जब अंगे्रजों की संख्या बढ़ने लगी तो उनके बीच यहां भी ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के परिणामस्वरूप उनकी नाजायज संतानों की संख्या बढ़ने लगी, जिसके बाद यहां भी काँन्वेंट स्कूल यानी ‘अनाथ आश्रम’ की आवश्यकता महसूस की गई।
इसके लिए कलकत्ता को इसलिए चुना गया क्योंकि उन दिनों कलकत्ता भारत की राजधानी हुआ करती थी। यह वो दौर था जब ‘लिव इन रिलेशनशिप’ संस्कृति और कानून के कारण ही उन्होंने भारत में काँन्वेंट स्कूल की नींव डाली थी। लेकिन, आज भारतीय मानसिकता के ये हाल हो चुके हैं कि सन 1842 में तो हम शारीरिक तौर पर गुलाम थे, परंतु आज हम खुद को शारीरिक तौर पर तो आजाद कहते हैं, लेकिन, मानसिक तौर पर आज हमारे देश में लाखों की संख्या में काँन्वेंट स्कूल चल रहे हैं।
अंग्रेजी कानून के तहत कलकत्ता में खुलने वाला पहला कांन्वेंट स्कूल उन दिनों ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था। इसके बाद उसी अंग्रेजी कानून के तहत ‘कलकत्ता यूनिवर्सिटी’ की भी स्थापना कर दी गई, फिर ‘बम्बई यूनिवर्सिटी’ बनाई गयी और ‘मद्रास यूनिवर्सिटी’ भी खुल कर सामने आ गई। हैरानी की बात तो ये है कि गुलामी मानसिकता और भ्रष्ट संस्कृति की प्रतीक वे तीनों यूनिवर्सिटीज आज भी इस देश में शान के साथ चल रही हैं। आज के हजारों ही नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों ऐसे भातीय माता-पिता जिनकी संतानें नाजायज नहीं बल्कि जायज और सबसे प्रिय होते हुए भी ब्रिटेन की उस काँन्वेन्ट परंपरा को न सिर्फ निभा रहे हैं बल्कि जिंदा भी रखे हुए हैं।
आज भले ही भारत में काँन्वेन्ट स्कूलों को एक व्यवसाय के तौर पर अपना लिया गया है, लेकिन, इनमें पढ़ा कर माता-पिता खुद पति-पत्नी के अपने पवित्र रिश्ते को भी लिव इन रिलेशनशिप जैसा नाम देकर अपनी शान समझ रहे हैं और अपनी संतानों को भी अनाथ कहलाने के लिए ललायित होते दिख रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि हम भारतियों का दुर्भाग्य नहीं बल्कि मूर्खता भी है कि हम अपने दिल और दिमाग से काम न लेकर अब किसी और के बनाये कानूनों और इशारों पर अपनी जिंदगी और संस्कृति को खुशी-खुशी जी रहे हैं।
भारत के सबसे पहले काॅन्वेंट स्कूल से लेकर आज तक के किसी भी काॅन्वेंट स्कूल के परिसर के अंदर यदि गौर किया जाये तो करीब-करीब हर एक दीवार बाइबिल की पंक्तियों और ईसा मसीह के वाक्यांशों से भरी हुई दिखती हैं। स्कूल डायरियों में भी सिर्फ और सिर्फ बाइबिल के ही कई श्लोक और संदर्भ होते हैं। यह कुछ और नहीं बल्कि एक ऐसा षड्यंत है जो किसी भी अन्य धर्म के विद्यार्थियों की मानसिकता को अपने अनुरूप आकार देने का एक अप्रत्यक्ष प्रयास है।
दूर्भाग्य की बात यह है कि जिन अंगे्रजों से हम नफरत करते थे, जिनकी वस्तुओं का हमने त्याग किया, उन्हीं अंग्रेजों ने हम पर अपने वो सभी कानून और शिक्षाव्यवस्था को थोप कर हमें मानसिक रूप से गुलाम बना कर अब तक रखा हुआ है। यदि आज भी हम इस मानसिक सोच और गुलामी से बाहर नहीं निकले तो हम जस के तस गुलाम कहलाने के शत-प्रतिशत हकदार हैं। स्वतंत्रता के बाद से आज तक भारत में यही काॅन्वेंट स्कूल सबसे अच्छी शिक्षा प्राप्त करने और मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि में कड़ी प्रतिस्पर्धा को आसानी से पार करने लेने के लिए एक अंधी दौड़ के रूप में आश्चर्यजनक रूप से फले-फूले हैं।