Skip to content
15 July 2025
  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

DHARMWANI.COM

Religion, History & Social Concern in Hindi

Categories

  • Uncategorized
  • अध्यात्म
  • अपराध
  • अवसरवाद
  • आधुनिक इतिहास
  • इतिहास
  • ऐतिहासिक नगर
  • कला-संस्कृति
  • कृषि जगत
  • टेक्नोलॉजी
  • टेलीविज़न
  • तीर्थ यात्रा
  • देश
  • धर्म
  • धर्मस्थल
  • नारी जगत
  • पर्यटन
  • पर्यावरण
  • प्रिंट मीडिया
  • फिल्म जगत
  • भाषा-साहित्य
  • भ्रष्टाचार
  • मन की बात
  • मीडिया
  • राजनीति
  • राजनीतिक दल
  • राजनीतिक व्यक्तित्व
  • लाइफस्टाइल
  • वंशवाद
  • विज्ञान-तकनीकी
  • विदेश
  • विदेश
  • विशेष
  • विश्व-इतिहास
  • शिक्षा-जगत
  • श्रद्धा-भक्ति
  • षड़यंत्र
  • समाचार
  • सम्प्रदायवाद
  • सोशल मीडिया
  • स्वास्थ्य
  • हमारे प्रहरी
  • हिन्दू राष्ट्र
Primary Menu
  • समाचार
    • देश
    • विदेश
  • राजनीति
    • राजनीतिक दल
    • नेताजी
    • अवसरवाद
    • वंशवाद
    • सम्प्रदायवाद
  • विविध
    • कला-संस्कृति
    • भाषा-साहित्य
    • पर्यटन
    • कृषि जगत
    • टेक्नोलॉजी
    • नारी जगत
    • पर्यावरण
    • मन की बात
    • लाइफस्टाइल
    • शिक्षा-जगत
    • स्वास्थ्य
  • इतिहास
    • विश्व-इतिहास
    • प्राचीन नगर
    • ऐतिहासिक व्यक्तित्व
  • मीडिया
    • सोशल मीडिया
    • टेलीविज़न
    • प्रिंट मीडिया
    • फिल्म जगत
  • धर्म
    • अध्यात्म
    • तीर्थ यात्रा
    • धर्मस्थल
    • श्रद्धा-भक्ति
  • विशेष
  • लेख भेजें
  • dharmwani.com
    • About us
    • Disclamar
    • Terms & Conditions
    • Contact us
Live
  • कला-संस्कृति
  • श्रद्धा-भक्ति

Garba dance history: गरबा उत्सव का पौराणिक इतिहास और आज का दौर

admin 17 February 2021
history of garbha festival and navratri
Spread the love

AJAY-SINGH-CHAUHAN__AUTHOR

अजय सिंह चौहान || नवरात्र के अवसर पर जिस तरह से गरबा खेला जाता है क्या वही असली गरबा है या फिर इसका कोई और भी तरीका हो सकता है? गरबा उत्सव तो दिन में भी आयोजित किया जा सकता है लेकिन इसे रात को ही क्यों खेला जाता है? क्या गरबा सिर्फ एक खेल है (Garba dance history and natural science) या फिर इसका वैज्ञानिक पहलू भी हो सकता है? क्या गरबा, नवरात्र की नौ देवियों की आराधना के लिए ही खेला जाता है या फिर किसी और अवसर पर भी गरबा खेल सकते हैं? ऐसे कई सवाल हैं जिनका उत्तर अक्सर आम लोग ढूंढ़ा करते हैं। दरअसल, गरबा उत्सव की धूम जो हम बड़े महानगरों या माॅल कल्चर में देखते हैं, वह ‘गरबा डांस‘ तो होता है लेकिन उसमें ‘गरबा‘ जैसी कोई बात नहीं होती इसलिए इसे देवी आराधना के लिए खेला गया गरबा नहीं बल्कि मनोरंजन का एक माॅर्डन तरीका सकते हैं।

अब रही बात गरबा उत्सव के उस प्रारंभिक दौर की और इसके नाम को लेकर कि आखिर इस उत्सव को गरबा नाम कब और कैसे दिया गया होगा और कैसे यह एक सनातन परंपरा में परिवर्तित हो गया? इसमें सबसे पहले बात आती है कि इसे गरबा ही क्यों कहा गया? कोई ओर नाम क्यों नहीं दिया गया तो इसको लेकर हमें जो प्रमाण मिलते हैं उसके अनुसार, माना यह जाता है कि आज जिसे हम गरबा कहते हैं वह वास्तव में गरबा नहीं है बल्कि इसका असली और सही नाम तो ‘दीपगर्भ’ है।

Garba dance history and natural science 1यहां दीपगर्भ नाम के इस शब्द के रहस्य को समझने के लिए हमें ये भी समझना होगा कि जिस संस्कृति में या जिस समाज के द्वारा यह उत्सव मनाया जाता है वह कोई धर्म या मजहब नहीं है बल्कि एक सनातन परंपरा है और ये सनातन परंपरा प्रकृति पर आधारित एक संपूर्ण जीवन पद्धति के रूप में है यानी एक ऐसी जीवन पद्धति जो पूरी तरह प्रकृति पर आधारित है और प्रकृति का ही अनुसरण करती हुई चलती है यानी कि प्रकृति के नियमों का ही पालन करते हुए चलती है और आज भी यह पद्धति शत-प्रतिशत उसी प्रकार चल रही है तभी तो सनातन जीवन पद्धति से जुड़े हर उत्सव और शब्द का कोई न कोई गहरा मतलब या अर्थ होता है। उसी तरह दीपगर्भ नामक इस शब्द का भी एक मतलब है और इस शब्द का जो मतलब निकलता है उसी के अनुसार ही ‘दीपगर्भ’ को स्त्री की सृजन शक्ति का प्रतीक माना गया है और स्त्री की सृजन शक्ति मतलब प्राकृतिक तौर पर यह मनुष्य जाति या किसी भी जीव की उसकी अपनी सृजन शक्ति यानी जीवन पद्धति होती है और यदि हम सीधे-सीधे ‘दीपगर्भ’ की बात करें तो ‘दीपगर्भ’ को नवरात्र के नौ दिनों तक मातृ शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।

आज जिस उत्सव को हम गरबा कहते हैं, वह गरबा दरअसल दीपगर्भ का बिगड़ा हुआ नाम है यानी कि रूप है। दरअसल, भाषा और संस्कृति में समय-समय पर होने वाले कई प्रकार के बदलावों के चलते ही कई शब्द अपनी असली पहचान से भटक जाते हैं और फिर उनकी वास्तविक पहचान के लिए हमें एक बार फिर से पुराणों की ओर ही लौटना पड़ता है वही आज इस दीपगर्भ के साथ भी हो रहा है। यहां गरबा के जन्म या उत्पत्ति की बात करें तो ये नाम संस्कृत के ‘दीपगर्भ‘ से लिया गया है। यदि हम इसे आसान भाषा में समझें तो वो ये ‘दीपगर्भ’ यानी अनेक छेदों वाले मिट्टी के घड़े यानी कलश के अंदर रखे दीपक को ही ‘दीपगर्भ‘ कहा जाता है।

दीपगर्भ को और भी आसान भाषा में या आसान शब्दों में समझने के लिए बता दूं कि एक जलते हुए दीपक को एक मिट्टी के घड़े या कलश के अंदर रख दिया जाता है और क्योंकि उस समय वह दीप प्रज्जवलित हो रहा होता है यानी वह जागृत आवस्था में होता है तो इसका अर्थ है कि उसमें जान है, यानी वह प्रज्जवलित दीपक किसी स्त्री के गर्भ में पल रहे एक बच्चे के समान ही होता है इसलिए इसे भी स्त्री की सृजन शक्ति के प्रतीक के तौर पर ‘दीपगर्भ’ कहा जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से स्त्री की सृजन शक्ति के प्रतीक के तौर पर प्रकृति के नियमों पर आधारित है इसलिए इसे ‘दीपगर्भ’ के रूप में मनाया जाता है।

और क्योंकि स्त्री के गर्भ में बच्चा 9 महीनों तक रहता है और उन 9 महीनों तक उस स्त्री से संबंधित परिवार में एक उत्सव सा माहौल रहता है इसलिए यहां भी उन 9 महीनों को 9 दिनों के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है और इन 9 दिनों तक पारंपरिक रूप में उसका उत्सव मनाया जाता है यानी कि पूजन किया जाता है।

आज भी अगर गुजरात या मालवा के किसी छोटे से गांव या देहात में देखा जाय तो नवरात्र के दिनों में यहां की लड़कियाँ और महिलाएं, मिट्टी से बने छोटे-छोटे छेद वाले घड़े को फूल-पत्तियों से सजाकर और उसमें दीप जलाकर उसके चारों ओर परंपरागत नृत्य करती हैं। इसके लिए उन्हें किसी भी प्रकार के कोई फिल्मी गाने या संगीत की आवश्यकता नहीं होती बल्कि वही सदियों पुराने पारंपरिक लोकगीतों पर थिरकना होता है।

Garba dance history and natural science 1 4उस गरबा के चारों ओर परंपरागत नृत्य को मनुष्य के जीवन चक्र के रूप में माना जाता है यानी मनुष्य इसी प्रकृति का अंश है, उसका जीवन एक चक्र के समान है। वह जन्म लेता है, अपना जीवन जीता है और फिर इसी प्रकृति में समा जाता है यानी मनुष्य जहां से अपना जीवन प्रारंभ करता है, अंत में वहीं वापस आ जाता है और इस नृत्य के बीच में रखा ‘गर्भ-दीप’ यानी गरबा ये बताता है कि हर इंसान के मन में एक देव तत्व छुपा हुआ रहता है।

इसी परंपरागत तरीके से किये जाने वाले नृत्य को यहां सही मायने में आज भी दीपगर्भ ही कहा जाता है। हालांकि, अब यह दीपगर्भ, शब्द समय, भाषा, और ऊच्चारण की सुविधा के अनुसार बदल गया है और इसमें से दीप यानी दीपक हट गया और गर्भ रह गया। यह गर्भ भी धीरे-धीरे आम बोलचाल और अन्य भाषाओं के प्रभावों में आकर गर्भ से गरबा होकर रह गया है और अब यही शब्द यानी गरबा शब्द ही पूरी तरह से प्रचलित हो गया है।

माना जाता है कि प्राचीन काल में सर्वप्रथम गरबा उत्सव की शुरुआत गुजरात से ही हुई थी और वहीं से यह दुनियाभर में प्रसिद्ध हुआ। आज भी खासतौर पर गुजरात, मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र, महाराष्ट्र, राजस्थान के कुछ भाग और निमाड़ के क्षेत्रों में यह बहुत बड़े पैमाने पर मनाया जाता है और आज भी यहां के कस्बों और गांवों में गरबा नृत्य में मुख्य रूप से देवी स्थान के आस-पास उसी छिद्र वाले दीप यानी ‘दीपगर्भ’ के पास या उसे केन्द्र मान कर ही किया जाता है।

नवरात्र की पहली रात्रि को गरबा की स्थापना की जाती है, फिर उसमें चार दिशाओं के प्रतीक के रूप में चार दीपक प्रज्वलित किये जाते हैं और उसी के चारों ओर विशेष प्रकार की परंपरागत शैली में महिलाओं या लड़कियों के द्वारा नृत्य किया जाता है। इस उत्सव को एक प्रकार से सामूहिक नृत्य उपासना भी कहा जा सकता है। हालांकि, इसमें पुरुष भी भाग लेते हैं और चार-चार, पांच-पांच के गु्रप में बंट कर अलग-अलग डांस करते हैं लेकिन मुख्य रूप से यह महिलाओं और बालिकाओं के लिए नृत्य और उत्सव का प्रतीक होता है।

इसमें खास बात यह है कि गरबा खेलते समय चुटकी, ताली, खंजरी, डांडिया यानी डंडा और मंजीरा के बजाने से निकलने वाली मधुर ध्वनि यानी आवाज के द्वारा देवी दुर्गा को ध्यान से जागृत करना और उन्हें ब्रह्मांड में शांति स्थापना के लिए, शक्ति रूप धारण कर पृथ्वी पर आने के लिए उनका आह्वान करना या उनको जगाना होता है।

यानी ‘दीपगर्भ’ को एक उत्सव के रूप में खेलने’ या मनाने को ही तालियों के साथ लयबद्ध स्वर में देवी की आराधना करना और पारंपरिक लोकगीतों और भजन आदि पर थिरकना ही गरबा कहा जाता है और क्योंकि इसे खेलने या इस नृत्य को करने के लिए इसमें छोटी-छोटी डंडियों की भी मदद ली जाती है इसलिए कई स्थानों पर इसे ‘डांडिया’ भी कहा जाता है। प्राचीन काल में ‘गरबा’ खेलते समय संतों द्वारा रचित देवी के विभिन्न प्रकार के गीत और लोक गीत ही गाए जाते थे लेकिन अब इसमें परंपरागत लोक गीतों की जगह ‘डिस्को-डांडिया’ प्रचलन बढ़ता जा रहा है।

About The Author

admin

See author's posts

4,649

Related

Continue Reading

Previous: श्री मेहंदीपुर बालाजी धाम मंदिर कब जायें, कैसे पहुंचे, कहां ठहरें ?
Next: जानिए! आज कहां है नाग वंश की मात्र भूमि | Land of Naga dynasty

Related Stories

What does Manu Smriti say about the names of girls
  • कला-संस्कृति
  • विशेष

कन्या के नामकरण को लेकर मनुस्मृति क्या कहती है?

admin 9 May 2025
Masterg
  • विशेष
  • श्रद्धा-भक्ति

‘MAAsterG’: जानिए क्या है मिशन 800 करोड़?

admin 13 April 2025
ham vah hain jinakee pahachaan gaatr (shareer) se nahin apitu gotr (gorakshaavrat) se hai
  • विशेष
  • श्रद्धा-भक्ति

हम वह हैं जिनकी पहचान गात्र (शरीर) से नहीं अपितु गोत्र (गोरक्षाव्रत) से है

admin 30 March 2025

Trending News

पुराणों के अनुसार ही चल रहे हैं आज के म्लेच्छ Indian-Polatics-Polaticians and party workers 1
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष

पुराणों के अनुसार ही चल रहे हैं आज के म्लेच्छ

13 July 2025
वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास Natural Calamities 2
  • विशेष
  • षड़यंत्र

वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास

28 May 2025
मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है? 3
  • विशेष
  • षड़यंत्र

मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?

27 May 2025
आसान है इस षडयंत्र को समझना Teasing to Girl 4
  • विशेष
  • षड़यंत्र

आसान है इस षडयंत्र को समझना

27 May 2025
नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह Nave Word Medal 5
  • देश
  • विशेष

नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

26 May 2025

Total Visitor

078649
Total views : 143523

Recent Posts

  • पुराणों के अनुसार ही चल रहे हैं आज के म्लेच्छ
  • वैश्विक स्तर पर आपातकाल जैसे हालातों का आभास
  • मुर्गा लड़ाई यानी टीवी डिबेट को कौन देखता है?
  • आसान है इस षडयंत्र को समझना
  • नार्वे वर्ल्ड गोल्ड मेडल जीत कर दिल्ली आने पर तनिष्क गर्ग का भव्य स्वागत समारोह

  • Facebook
  • Twitter
  • Youtube
  • Instagram

Copyright ©  2019 dharmwani. All rights reserved